बाज और राजा सिन्दबाद की कहानी / मुनीश सक्सेना

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अगली रात को शहरजाद ने बाज और राजा सिन्दबाद की कहानी इस प्रकार शुरू की:

राजा यूनान ने अपने वजीर से कहा, “ईर्ष्या ने तुम्हारी आँखों पर परदा डाल दिया है, और इसलिए तुम भले-बुरे की तमीज नहीं कर पा रहे हो, और एक नेक इंसान को बदइंसान बता रहे हो। तुम चाहते हो कि मैं उसकी हत्या करवा दूँ। मगर, उसके बाद क्या होगा, जानते हो? मुझे उसी तरह पछताना पड़ेगा, जैसा राजा सिन्दबाद पछताये थे। लगे हाथ सुन लो उनकी भी कहानी। इसी फॉर्स नगर में कभी एक ऐसा राजा राज्य करता था, जिसे शिकार का बड़ा शौक था। राजा के, जिसका नाम सिन्दबाद था, पास एक बाज था, जो चौबीसों घण्टे उसी के साथ रहता था। राजा ने उसे ऐसा प्रशिक्षित किया था कि शिकार के दौरान और अन्य अवसरों पर भी वह राजा के प्राणों की रक्षा के लिए अपने प्राण देने को भी तैयार रहता था।

“एक दिन राजा सिन्दबाद उस बाज को लेकर एक घाटी में शिकार करने गया। घाटी में उसने जो जाल फैलाये, उसमें चिंकारा (कलपुंछ) जाति का एक पशु फँस गया। राजा ने अपने सभी सहायकों से कहा, “जो इसे जाने देगा, वह जिन्दा नहीं बच पाएगा।” मगर, संयोग ऐसा हुआ कि चिंकारा स्वयं उन्हें ही चकमा देकर भाग गया। राजा उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे, अपने घोड़े पर बैठकर भागे, अन्त में, वे उसे पकड़ने और मारने में सफल हो गये।

“चिंकारा के पीछे भागते-भागते राजा बहुत थक गया था। घोड़ा भी बहुत प्यासा दिखाई दे रहा था। राजा ने जब देखा कि एक वृक्ष से गाढ़ा द्रव नीचे गिर रहा है, तो उसने बाज के गले में पड़े एक प्याले को वृक्ष के नीचे रखकर उस द्रव को जमा करना आरम्भ कर दिया। लेकिन उसे बाज ने झपटकर नीचे जमीन पर गिरा दिया। जब बाज ने तीन बार ऐसा किया, तो राजा को बहुत गुस्सा आया, और उसने अपनी तलवार से उसके दोनों पंख काट दिये। तब बाज ने अपना सर उठाकर पेड़ के ऊपरी भाग की ओर राजा का ध्यान आकर्षित किया। वहाँ एक भयानक दृश्य देखकर वह चकित रह गया। अनेक साँप, एक-दूसरे से लिपटे हुए, अपना जहर नीचे टपका रहे थे, और इसी द्रव को राजा प्याले में जमा करके उसे अपने घोड़े को पिलाने के बाद, स्वयं भी पीना चाहता था। वह घायल बाज को लेकर वापस महल में आया। मगर, महल में आते ही बाज की मृत्यु हो गयी, और राजा पश्चात्ताप की आग में जलने लगा। उसे पश्चात्ताप हो रहा था कि जिस स्वामीभक्त बाज ने उसके तथा उसके घोड़े के प्राण बचाने का प्रयास किया, उसने उसे ही मार डाला।”

राजा यूनान की यह कहानी सुनकर दुष्ट वजीर ने कहा - “हा! प्रतापी राजा! मैंने आपको जो परामर्श दिया, वह आपकी और राज्य की सुरक्षा की खातिर ही दिया। यदि आपको लगता है कि मैंने ऐसा ईर्ष्यावश किया, तो आप मुझे सहर्ष प्राण-दण्ड दे सकते हैं। लेकिन तब आपको उसी भाँति पछताना पड़ेगा, जिस प्रकार राजा सिन्दबाद को बाज को मारने के बाद, पछताना पड़ा था। अतः आप जो कुछ करें, काफी सोचविचार कर ही करें। जहाँ तक हकीम का सवाल है, यकीन मानें, वह आपको धोखा देगा ही।”