बाढ़ और नाजुक तने वाले वृक्ष / जयप्रकाश चौकसे

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बाढ़ और नाजुक तने वाले वृक्ष
प्रकाशन तिथि : 22 जुलाई 2020


नदियां अपना क्रोध बाढ़ के रूप में अभिव्यक्त करती हैं। अतिवृष्टि एकमात्र कारण नहीं है। आहत हिमालय क्रंदन करता है। उसका नीर भी बाढ़ लाता है। मनुष्य की क्रूरता असली कारण है। सदियों से मनुष्य प्रकृति को लूटता रहा है।

‘द अर्थ बी प्लन्ड्रेड’ किताब में इसका पूरा विवरण है। उत्तर-पूर्व में बाढ़ से हुए विनाश पर भास्कर के लक्ष्मी पंत ने पूर्व अनुमान लगाकर लेख, किताब लिखी है। नदियों के किनारे ऐसे भवन बनाए गए, जिनका ऊपरी माला नदी के चरण स्पर्श करता हुआ लगता है। दुष्यंत कुमार लिखते हैं ‘नदी के किनारे हैं घर बने और बाढ़ की संभावनाएं हैं, सामने चीड़ वन में आंधियों की बात मत करो, बेहद नाजुक से इन दरख्तों के तने।’ गंगा की 2550 किलोमीटर की यात्रा में अनेक नदियां उससे मिलती हैं। दक्षिण भारत की एक गुफा में गंगावतरण का दृश्य अंकित है। गंगा से अधिक यात्रा करने वाली 13 नदियां हैं विश्व में, परंतु गंगा के समान कथाएं कविताएं और किंवदंतियां किसी अन्य नदी से नहीं जुड़ी हैं। कथा वाचकों व श्रोताओं के चिरंतन देश भारत में यह तो होना ही था। खाकसार की लिखी कथा ‘कुरुक्षेत्र की कराह’ कुरुक्षेत्र की कराह / जयप्रकाश चौकसे में प्रस्तुत है कि कुरुक्षेत्र में लड़े गए युद्ध के दशकों पश्चात वेदव्यास के आग्रह पर योद्धाओं का पुनरागमन गंगा के तट होता है। मुद्दा यह है कि क्या वह युद्ध टाला जा सकता था? सारे पात्र पुनरागमन में भी अपने स्वभाव की मूल प्रकृति को लेकर आए हैं। अत: वे पुन: आपस में लड़ने लगते हैं। वेदव्यास, मां गंगा से प्रार्थना करते हैं कि गंगा सबको वापस बुला ले। श्री गणेश वहां पधार कर वेदव्यास से कहते हैं कि जब मनुष्य तर्क को तिलांजलि देता है, तब युद्ध होता है। भावना और तर्क के बीच सामंजस्य बनाना होता है।

युद्ध प्रशिक्षण में पहाड़ों, नदियों का ज्ञान दिया जाता है। ज्ञातव्य है कि पाकिस्तान के हिस्से में आए बंगाल में बहुत नदियां हैं। फील्ड मार्शल मानेक शॉ ने भी छोटी-छोटी टुकड़ियां नदी के मार्ग बंगाल भेजीं। घोषित युद्ध के समय पाकिस्तान की फौज भौचक्की रह गई कि सामने से अधिक आक्रमण, पीछे से हो रहा है। युद्ध इतिहास में यह अनोखी घटना है कि पाकिस्तान के बंगाल में नियुक्त जनरल नियाजी ने 95,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया। पाकिस्तान की हार का एक कारण यह भी था कि वेस्ट पाकिस्तान ने ईस्ट पाक बंगाल से केवल कर प्राप्त किए और वह खर्च नहीं किया गया। गोयाकि पकाया बंगालियों ने और खाया लाहौर वालों ने। अत: अवाम में आक्रोश था ।

सुशांत राजपूत अभिनीत फिल्म ‘केदारनाथ’ में नायक बाढ़ में फंसे लोगों की सहायता करता है। उन्हें सुरक्षित स्थान भेजने, हेलिकॉप्टर द्वारा भी बचाव कार्य होता है। अंतिम उड़ान में वह स्वयं को ना बचाते हुए अन्य को अवसर दे देता है। फिल्म में एक प्रेम कथा पिरोई गई थी। प्रेम में पाना नहीं खोना भी आध्यात्मिक विकास का अवसर बन सकता है। राज कपूर की फिल्म ‘बरसात’ में नायिका बाढ़ में बह जाती है। एक अनपढ़ गंवार तैरकर उसे बचाता है और उस पर मालिकाना अधिकार का दावा करता है। नदी और नारी पर मालिकाना अधिकार जताने की जहालत हमेशा कायम रही है। फिल्म ‘सत्यम शिवम सुंदरम’ के क्लाइमैक्स में बाढ़ में ही नायक की समझ आता है कि सौंदर्य त्वचा के परे गई हकीकत है। राज कपूर की तीन फिल्में गंगा से प्रेरित हैं ‘जिस देश में गंगा बहती है।’ ‘संगम’ और ‘राम तेरी गंगा मैली।’ दिलीप कुमार निर्मित एकमात्र फिल्म का नाम भी ‘गंगा जमना’ है।

नदियों से प्रेरित कथाएं और कविताएं साहित्य में अनगिनत हैं। नरेश मेहता के उपन्यास का नाम है ‘नदी यशस्वी है।’ हमारे महान कवि जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य ‘कामायनी’ में बाढ़ ग्रस्त मानवता की करुणा प्रस्तुत की गई है। गौरतलब है अंग्रेजी भाषा के कवि जॉन मिल्टन के महाकाव्य ‘पैराडाइज लॉस्ट’ में बाढ़ पीड़ित मानवता का विवरण है। सारांश यह कि विश्व साहित्य में बाढ़ विवरण लिखे गए हैं।