बाढ़ / सुरेश सौरभ

Gadya Kosh से
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आज घर से सोच कर वह चला था कि जाल में खूब मछलियाँ फांसेगा। बाढ़ से उफनाई नदी के करीब पहुंचा। जाल फेंका। उसकी अन्तड़ियाँ बोलीं-आज अगर बढ़िया मछलियाँ फंस गईं, तो पैसों से खूब तर माल खाया जायेगा। मज़ा आ जाएगा। हृदय बोला-खाली तेरे खाने से काम न चलेगा घर में तेरे बीवी बच्चे कई दिनों से भूखे हैं। उनके आंसू मुझसे देखे नहीं जाते। तभी मन बोला-ये बाढ़ पता नहीं कब तक रंज और गम देती रहेगी।

मछुआरे ने अब जाल खींचना शुरू किया। ओह! बड़ा भारी लग रहा है ... लगता है, आज मोटी कमाई होगी। नदी के बाहर जैसे ही जाल आया उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। आज मछलियाँ की जगह उसके जाल में एक मासूम बच्चे का शव था।

उसकी आंखों से अब आंसूओं की बाढ़ आ गई. जाल छोड़ कर पागलों की तरह अब रोता हुआ अपने घर भागा जा रहा था।