बाप की कमाई / गोवर्धन यादव

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मेरे एक मित्र है करोडीमल, जैसा नाम उसी के अनुरुप करोडॊंपति भी, उन्होंने अपनी तरफ़ से कोई बडा ख़र्च कभी किया हो, ऎसा देखने में नहीं आया, कपडॆ भी एकदम सीधे-सादे पहनता, कोई तडक-फ़डक नही, उनसे उलट है उनका अपना बेटा, दिल खोलकर ख़र्च करता, मंहगे से मंहगे कपडॆ पहनता, कार में घूमता, देश-विदेश की यात्रा में निकल जाता, जब कोई करोडी से पूछता कि वह क्यों नहीं शान से रहता? कभी दिल खोलकर ख़र्च नहीं करता, बाहर घूमने-फ़िरने नहीं जाता तो हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ जवाब देता:-" भाई, उसका बाप करोडपति है, इसीलिए वह दिल खोलकर ख़र्च करता है, महंगी से महंगी गाडियों में घूमता है, वह जो लुटा रहा है, उसके बाप की कमाई है, मैं ठहरा एक गरीब बाप का बेटा, अतः चाहकर भी मैं कोई ख़र्च नहीं कर पाता, यदि थोडा-सा ज़्यादा ख़र्च हो जाता है तो मुझे दुःख होता है,

पूरे परिवार को इस बात का इन्तजार था कि भैया कब आते हैं, वे गर्मी में पडने वाली छ्ट्टियों में परिवार सहित आते रहे हैं, वे जब-जब भी आए हैं, सभी के लिए कोई न कोई सौगात साथ लेकर ज़रूर आते हैं, इन बार न जाने क्यो उन्हें आने में देरी हो गई थी,

काफ़ी इन्तजारी के बाद उनका आगमन हुआ, आश्चर्य इस बात पर सभी को हुआ कि इस बार वे अकेले ही आए थे, उनके हाथ में एक बडा-सा सूटकेस था, अब पूरे परिवार की नज़र उस सूटकेस पर थी कि वह कब खुलता है।