बाबा रोॅ विरासत / राहुल शिवाय

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कोय व्यक्ति रोॅ परिवार ही ओकरोॅ पहिलोॅ शिक्षक होय छै। कारण ई छै कि वहीं सें वें चलना बोलना आरो आपनोॅ पहिलोॅ ज़रूरत केॅ पूरा करना सीखै छै। हमरोॅ शब्द विचार, कल्पना आरो संस्कार के सौसे श्रेय हमरोॅ प्रथम गुरु बाबा श्री छोटे लाल झा जी केॅ जाय छै।

हमरोॅ जन्म के समय हुनी सत्तर वसन्त देखी चुकलोॅ छेलै। तखनी हुनी प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक के पदोॅ सें मुक्त होय गेलोॅ छेलै। हुनकोॅ उठलोॅ छूरिया नाक आरो गठलोॅ देह उनका सुन्दरता में चार चान लगावै छेलै। यहोॅ उमर में हुनी छौड़ा नांकी लागै छेलै। हुनकोॅ एक नियमित दिनचर्या छेलै जेकरा हर परिस्थिति में हुनी चालू रखै रहै। हुनका देखी केॅ ई बात सिद्ध होय छै कि दौड़ै वाला घोड़ा आरो नियम सें चलै वाला आदमी कभियो बूढ़ोॅ नै होय छै। पहिलकोॅ लोगें एक साथें बैठी केॅ गपशप आरो विचार विमर्श करै रहै। बाबा दुआरी पर बैठी केॅ चाय रोॅ चुस्की के साथें रोजे बैठकी जमाबै रहै। ढेरे रंग रो राजनीतिक आरो सामाजिक बहस के बाद पान के बीड़ा के साथें ऊ बैठकी समाप्त होय रहै।

बाबा के दिनचर्या रो हम्में नै कटै वाला अंग रहियै। हमरा याद छै, हुनी भोरे-भोर हमरा उठाय केॅ मुँह धुआबै छेलै, नहलावै छेलै, तौलिया सें देह हाथ पोछै छेलै। साथें साथ मंत्र के उच्चारण अपनोॅ करै छेलै आरोॅ हमरोॅ सें करवावै छेलै।

हमरा 'क्यूं' शब्द सें सब दिना विशेष लगाव रहै। हमरोॅ हर क्यूं के उत्तर हुनी दै रहै। हम्में कभियो हुनका कोय प्रश्नों पर झुंझलैतें नै देखलियै। हुनी हरदम हमरा भाय बहिन सबकेॅ सब चीजोॅ के शिक्षा देतेॅ रहलै। हम्में छठा वर्ग तक हुनकै लगां पढ़लियै। तखनी तांय हम्में स्कूल नै जाय छेलियै। हुनी छहाछत जित्तोॅ-जागलोॅ इसकुल छेलै, ई कहना ग़लत नै होतै।

बाबा आपनोॅ जीवन के शुरू-शुरू में काफी गरीबी भोगनें छेलै। हमरा खूब याद छै हुनी अखबार के सादा जग्घोॅ पर लिखलोॅ कॉपी के चौथाई में गणित के अभ्यास करावै छेलै। हुनी पुरनका किताबोॅ केॅ बाँधी केॅ आरो सहेजी केॅ राखै रहै। हमरा घरोॅ में 40 बरसोॅ सें भी अधिक पुरानोॅ दिनोॅ के किताब सब सुरक्षित मिलेॅ पारे, ई राखै रोॅ किरपा बाबा के ही छेलै।

साँझ केॅ हुनी रोज बाज़ार आरो मंदिर जाय छेलै। हमरा जेन्है बुझावै हुनी बाहर निकलतै, हम्में पहिनै सड़कोॅ पर भागी केॅ चल्लोॅ जाय छेलियै। हमरा देखतै हुनी हँसी दै छेलै, आरो हम्में जे चीजोॅ लेॅ जिद करै छेलियै हुनी पूरा करी दै छेलै।

2006 ई0 में हम्में हुनकोॅ याद में एक छोटोॅ सन कविता लिखनें छेलियै जे नीचें छै।

दुआर पर छै बैठलोॅ बाबा,
पिन्हीं के चश्मा पोथी खोललकै
हमरा वहाँ बोलाय केॅ बाबा,
पास बिठाय केॅ गणित सिखैलकै

हमरोॅ मोन इत उत में रहै,
पास जैये की नै जैये
पढ़ै के हमरा मोॅन करै नै,
ई बाबा केॅ केना बतैइयै

मोॅन करै छै फेनु सें हम्में,
हुनका गोदी में चढ़ी जैये
पान लगाय केॅ हुनका साथें,
फेरू हम बाज़ार केॅ जैये

सांझ केॅ हुनी हमरा शिवालय लै जाय छेलै। ई वक्ती हुनी हमरोॅ हाथ कस्सी केॅ पकड़ै छेलै। हुनी अत्ते तेज चलै छेलै कि हम्में हुनका साथें दौड़लौ चलै छेलियै। हमरोॅ छोटका-छोटका गोड़ हुनका साथें तेॅ होय जाय रहै मतुर यै सें हमरोॅ तेज चलै के आदत अब तांय बनलोॅ छै। 24 मई 2004 केॅ जबेॅ हम्में स्कूली सें लौटलियै तेॅ हमरा पता चललै कि बाबा केॅ अस्पताल लै गेलोॅ छै। हम्में पिताजी के साथें जाय वाला ही छेलियै कि खबर मिललै कि हुनी दुनियाँ छोड़ी देलकै। पता नै हमरा कौन शक्ति आवी गेलोॅ छेलै कि हम्में ई सुनी केॅ भी खामोश रही गेलियै। ऊ दिना हुनकोॅ मरलोॅ देह घर ऐलै। रात भर सभ्भे हुनका लगां बैठी केॅ फुटी-फुटी केॅ कानी रहलोॅ रहै। हमरा बुझाय छेलै कि हम्में समझदार होय गेलोॅ छियै। हमरा धीरज नै खोवै केॅ चाहियो। अगला दिन हुनकोॅ शव के अंतिम संस्कार करलोॅ गेलै।

दाह संस्कार के बाद घरोॅ में मेला नांकि लगी गेलै। लोग आवै रहै, जाय रहै, सहानुभूति के शब्द कहै रहै। पिताजी, चाचाजी सभ्भे रीति-रिवाज केॅ पूरा करै में व्यस्त रहै। हम्मू हमरोॅ उमर के बच्चा सिनी जे घरोॅ में एैलोॅ रहै, ओकरै साथें खेलै में व्यस्त रहियै। तखनी नै बुझावै रहै कि हम्में कौन चीज खोय देलियै। ई तेॅ श्राद्ध खतम होला के 3-4 दिन बादोॅ सें आय तक महसूस होय रहलोॅ छै कि हम्में कि खोय देलियै।

मरण ईश्वर के हाथों में होय छै। मरण सत्य छै आरो आदमी असहाय, आय जबेॅ हम्में हुनका याद करै छियै तेॅ पता चलै छै कि हमरा की हानि होलोॅ छै। आय भलें हुनी हमरा साथें नै छै मतुर उनको विरासत हमरा साथें छै। ई विरासत कोय धन दौलत नै छेकै हुनकोॅ विचार, अनुशासन शिक्षा-दीक्षा आरो देलोॅ संस्कार छेकै। जें हमरोॅ जीवन के निर्माण करनें छै। जे हमरा जीवन के सच्चा रास्ता देखैनें छै, ई विरासत हमरा सें कहियो नै अलग होय पारेॅ।

अंत यहीं नै हुवेॅ पारे, सिनेमा नांकि एक-एक दृश्य आँखों में आवै छै। केकरा लिखियै, केकरा छोड़ियै, बड़ी मुश्किल छै। लिखै लागवै तेॅ मोटोॅ-मोटोॅ किताब हुवेॅ पारे। यही लेली अंत में हुनका याद करतें हुवें, प्रणाम करतें हुवें, आपनोॅ बात खतम करि रहलोॅ छियै। मतुर ई विश्वास नै होय छै कि उनको साथ छुटी गेलोॅ छै। आभियो चाहे हम्में घरोॅ में रहौ या कांहु भी हुनी लागै छै हमरा साथे-साथ चलतें रहेॅ। दिल्ली में आपनोॅ इंजीनियरिंग के पढ़ाय रोॅ अंतिम बरस छेलै। हम्में एकदम सुन्नो रसता में भीड़-भाड़ सें अलग चल्लोॅ जाय रहलोॅ छेलियै। माथोॅ होय वाला परीक्षा पर छेलै। तभिये हमरा लागलै कि कोय हमरा कहलकै कि भीड़ में बची केॅ चलोॅ। कोय दुर्घटना हुवें पारै छेॅ। रसता में ई रं विचारोॅ में डूबी केॅ चलै रोॅ नै छेकै।

हम्में चैतन्य होलियै तेॅ लागलै कि पीछू वाला एक ऑटो रिक्सा के धक्का सें बाल-बाल बची गेलियै। ई कोय नै छेलै, बाबा ही छेलै। छाया बनी केॅ हुनी आभियो हमरा हर समय रसता देखाय छै, रक्षा करै छै, है बात याद एैतै हमरोॅ आँख डबडबाय गेलै। हम्में नै कहेॅ पारौ ई उनका साथें हमरोॅ बहुत प्रेम आरो दुलार सें जीलोॅ क्षण के अनुभूति छेकै कि उनकोॅ छहाछत किरपा ही हमरा ऊपर बरसै छै मतुर है हम्में विश्वास के साथ कहेॅ पारै छीं कि जोंन भी रूप में हुअें हुनी निचिते हमरा साथें रहै छै। कभी-कभी तेॅ सुतलां में हुनी जीयै के तौर-तरीका, आगू उन्नति के सलाह मशविरा भी एक शिक्षक अभिभावक नांकी दै छै। परिवार के हर लोगो के प्रति हुनकोॅ जे सहानुभूति आरो प्यार बरसै छेलै, लागै छै आभियो बरसतें रहेॅ। आय हम्में लिखी-पढ़ी केॅ शरीर के क्षणभंगुरता आरो विज्ञान सें विरासत में मिललोॅ ज्ञान पर जबेॅ आपनोॅ ई सब अनुभूति केॅ तौलै छियै तेॅ की सच छै आरो कि झूठ, एकरा बीचोॅ में ओझराय जाय छियै। मतुर बाबा तेॅ बाबा छेकै आरो हमरोॅ विश्वास कभी नै टुटतै है हम्में दिलोॅ सें कहेॅ पारेॅ छी।