बा बात / रामस्वरूप किसान

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डूंगरियो म्हारै में सिरदार। मारतो जकै नै मारतो अर छोडतो जकै नै छोडतो। बां दिनां म्हारी ऊमर दसेक साल ही। जकै में डूंगरियो पंदरा रो लागतो। बीं रो ऊक-सूक होयोड़ो आकतड़ी-सो डील लाम्बो भोत हो। भाजण मे कूचियां रो कुत्तो-सो। आगलै नै दो ई पांवडा नीं जावण देंवतो। अर जे कोई छेती दे ई ज्यावै तो लारै सुं ललकर मारतो-‘भाटो आवै ऽऽऽ।’

आ सुणतां ईं आगलो कै तो थमो कै फेर झिरकी काटो। पण थमण रो मतलब समर्पण अर भाजण रो जुझ। इण में पै‘लो मारग ऐन सुरक्षित तो दूजो अर्ध-सुरक्षित। जकै में भाटो लागण री खासा गुंजाइस। क्यूंकै डूंगरियो इसो निसानची कै बोल पर भाटो मार दयै। अर भाटो मारण रो स्टायल ई कसूतो। बां दिनां क्रिकेट कोनी ही। ईं सारू डूंगरियै नै दुनियां रो पै‘लौ बालर कैयो जा सकै। उण सूं ई कणी खुरापाती क्रिकेट री गिंडी फैंकणी सीखी हुवै तो कांईं अचम्भो।

हां, तो डूंगरियै रै भाटै सूं बचण सारू तो थमणो, अर झिरकी, दो ई गेला हा। नीं तो बीं री ललकार पछै सीधो भाजणो खतरै नै नूंतणो। जकै रो सीधो-सो मतलब हो भोभरो सेकीजणो।

म्हैं उण सूं डरतो भोत बर स्कूल जावणो मुल्तवी कर देंवतो। क्यूंकै उण रो घर स्कूल रै सा‘रै हो। अर बो बैरी आखै दिन गळी में रमतो रैंवतो। मांय रैवणो तो बो सीख्यो ई कोनी हो। घर नै तो बो कैद मानतो। ईं सारू जकै दिन उण सूं थोड़ी-भोत अरण-बरण हो ज्यांवती, म्हैं मरयो ई स्कूल को जांवतो नीं। घर आळा भोत रोळा करता। कदे-कदे तो कूट तकात लेंवता। पण डूंगरियै रै डर आगै बा मार म्हनै बाळ बराबर ई को लागती नीं।

बीं सूं बचण रो एक ई उपाय हो कै रळायां राखो। बिगाड़ो नां बीं सूं। अर जे बिगड़ ई ज्यावै तो जिंयां-किंयां कर‘र बणाओ ऊंतावळी-सी। जिंयां-किंयां रो मतलब, जकी दतरां में चालै। हां, डोळ सारू रिसपत चइजती डूंगरियै नै। बिना रिसपत मानतो ई कोनी चाम। अर रिसपत में गोळी-पतासां सूं लेय‘र बीडि़यां रै मंडळ तांई हाथ मारतो अर पीसां पर तो उरड़गे ई पड़तो।

एक दिन री बात। हांडियां बगत म्हनै रो‘ड़ लियो। म्हारा थरणां कांपग्या।

कछड़ी री धूड़ झड़कांवतो बोल्यो -

‘बीं दिन आळी बात ?’

‘किसी ?’ म्हारो थूक सूखग्यो।

‘याद कोनी। इत्तो ऊंतावळो ई भूलग्यो ? लै तो....’

उण आकरो-सो थाप म्हारी गाल पर जड़ दियो अर घुरका काढतो बोल्यो-

‘रोयो है तो खा ज्याऊंगा गिंदर नै ...’

म्हैं चुसक्यो ई कोनी। बोलबालो उण रै आगलै पांवडै नै उडीकण लाग्यो। ओ सुवाल भेजै में बापरयो ई हो कै साळै कीडि़यै क्यामी मारी है ? उण म्हारो बूकियो मचकाय‘र सुवाल रै रूप में पडूत्तर दियो - ‘बा पिवणीं आळी डांई ?’

म्हारै झट दणी याद आयगी। उण दिन म्हैं बिचाळै भाज्यो हो। लारै सूं कीडि़यै (डूंगरियै) भाटो ई कसूतो बा‘यो हो।

म्हैं धूजतो-धूजतो बोल्यो -

‘यार, उण दिन तो म्हनै काम हो...।’

तो अब देदे.....डांई कोनी छोडूं। तेरै कीं मन में होली।’

म्हारा ध्यान धोळा होग्या। पसीनो आयग्यो। सोच्यो, मारैगो बटो कीडि़यो। जे हां भरली तो सळ काढ देसी। टोरै रो इत्तो साचो कै आंख बांध दयो भावूं। ऊकै कोनी। पिद बोकरी भाईड़ा सोपै तांई। ईं रा तो जी बधता ई जावैला। अण तो आज तांई बळी रो मारयो कोनी। आगलै ई पग छोडया है। अर आ ई तेरै में होसी। छेकड़ बिचाळै भाजणो पड़सी। डांईं रैय ज्यैगी बिंयां री बिंयां। अर तड़कै ई ओ मालो मांड लेसी। जे होवै तो ..... म्हैं जेब मांय हाथ मारयो। चवन्नी रड़की। काढ़‘र कीडि़यै रै हाथ पर मेल दी।

उण चिम्पाजी री-सी दांतरी काढी अर बोल्यो -

‘जा भाज्या ज्या। म्हैं तो ईंयां ई करै हो। अब सूं आपां बेली हां।’

बो ल्हावरी कुत्तै दांईं म्हारै सूं पैलां दुकानी कानी भाजग्यो। म्हैं बीं नै भाजतै नै देख्यो। धूड़ ई उपड़ती बगै ही लारै।

म्हैं टूटी चाल सूं घर कानी चाल पड़यो। म्हारी चाल में चवन्नी रो ढचरको हो। बो मूंगफळयां री झोळी भरयां म्हारै साम्हीं ई आवै हो। म्हारै काळजै में खरणाटो पाटयो।

‘कित्ती मूंफळी आयी है रे चवन्नी री ..’

म्हैं खुद सूं कैंवतै थकां उण रै सा‘रै कर टिपण लाग्यो तो उण लंगूर ज्यूं लफ‘र म्हारो बांवळियो झाल लियो -

‘जा कठै है ! आज्या थूं ई खा ले !

म्हैं तळै नै घूण घाल‘र रोवण लागग्यो।

उण कोडो होय‘र म्हारी आंख्यां में देख्यो।

‘रोवै है रै ! लै तेरी मूंफळी। म्हैं तो थोड़ी ई खाई है।’

म्हारै कुड़तै री झोळी आप रै हाथ सूं पकड़‘र सगळी मूंफळी घालतै थकां बोल्यो -

‘थारै कन्नै तो घणा ई पीसा है। तेरो बाबो तो नोकरी न्यारो लाग्योड़ो है। तो ई थूं चवन्नी खातर रोवै ? जे इत्ता पीसा म्हारै कन्नै होवै तो ...’

बो कीं और कैवणो चावै हो पण दूर सूं मां रो हेलो ‘कीडि़या, आटो कोनी। घरां आं‘ सुण‘र मुरदै हैरण री गळाई घर कानी डाकां हो लियो।

म्हैं आज सोचूं, बां दिनां ऊपर सूं टाबर दिखण आळो डूंगरियो भीतर सूं कित्तो बूढ़ो हो। म्हारै तो अब समझ में आयी है बा बात, जकी उण म्हारी झोळी में मूंफळ घाल‘र कैयी ही।