बिखरता बचपन / विक्रम शेखावत

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दोनों हथेलियों पे अपना मुह टिकाये वो बच्चा कहीं शून्य में कुछ सोच रहा था बच्चे अक्सर इतने गंभीर नहीं होते वो तो उदंड प्रवर्ती के और बे-परवाह होते हैं, उन्हें बस हर वक़्त खेलने से मतलब वो अक्सर खेलने में इतने मशगूल हो जाते हैं की भूख प्यास तक को भुला देते हैं मेने बच्चे के विचारों में खुद को दाखिल किया और उस मासूम के चिंतन का कारण जानने की कोशिश की एक प्रौढ़ और बच्चे की सोच में जमीन आसमान का फर्क होता है, बच्चे ज्यादातर खेल और खाने से ताल्लुक रखते हैं इसलिए ये दो चीजे उनकी सोच का मुख्य विषय होतें हैं और प्रौढ़ अक्षर दुनियादारी में उलझा हुआ रहता हैं इसीलिए उसकी सोच का दायरा असीमित होता है.

लम्बे समय के अन्तराल के बाद में टकटकी लगाये उस बच्चे के पास जा बैठा और खामोश रहकर वहां बैठने की उसकी इजाजत का इन्तजार करने लगा बच्चे की लम्बी ख़ामोशी मेरे लिए वहां बैठने की इजाजत थी सो में बैठ गया और बच्चे से बातों का सिलसिला शुरू करने का उपाय तलाशने लगा आप चाहे कितने ही बड़े तीशमारखां हों मगर बच्चे से नहीं जीत सकते सो मेने अपने आप को बच्चा बनाया और बातों का सिलसिला शुरू किया अरे! आपने तो बड़ी अच्छी टी-शर्ट पहनी है .....और ये सामने तो बिलकूल आप जैसे एक बच्चे की फोटो भी छपी है.. मगर फोटो में ये दूसरा ...कोन है भई ? .(मेंने रुककर पूछा ) बच्चा अभी भी शून्य में निहार रहा था.

.......में कुछ देर चुप रहकर उसकी प्रतिक्रिया का इन्तजार करने लगा....."वो चिंटू है"..... ( बच्चे ने बिना ऊपर देखे जबाब दिया )..... "चिंटू कौन भई ?", मैने उत्साहित होकर पूछा ताकि बच्चा शून्य से बाहर आये और खुलकर बातें करे. एक पल चुप रहकर बच्चे ने सामने के घर की तरफ इशारा किया और कुछ देर चुप रहकर बोला ... "वो है उसका घर" ... मैने सामने वाले घर के दरवाजे पर लगे लोहे के ताले को देखा..... उस घर के सामने जमा कूड़े से लग रहा था की वो काफी दिनों से बंद है एक पल सोचा और फिर पूछा कहाँ गया चिंटू ?

"उसके पापा को शहर में नोकरी मिल गई इसलिए वो चिंटू और उसकी मम्मी को भी शहर ले गए......", "पढने के लिए.....",बच्चे ने घर की तरफ देखते हुए कहा (कुछ देर चुप रहकर बच्चे ने कहा).... "अब वो वहीँ रहेगा" मैने उस मासूम की तरफ देखा तो लगा जैसे किसी ने वक़्त से पहले उसका बचपना छीन लिया हो. में कुछ देर उसको सांत्वना देने के लिए वहीँ बैठकर सोचने लगा ...आस पास ख़ामोशी पसरी हुई थी और एक बचपन एक प्रोढ़ से मन ही मन शिकायत कर कर रहा था और मनो कह रह हो ...की आपके बचपन जैसी खुशिया मुझे क्यों नहीं ? में कुछ देर अनमना से बैठा रहा और थोड़ी देर बाद बच्चे की पीठ सहलाकर एक और चल पड़ा मेरी आँखों के सामने मुझे मेरा बचपन खेलता हुआ नज़र आ रहा था, सामने मोहल्ले का वो चौक जहाँ हम बचपन में खेला करते थे, वो बूढ़े ताऊ का घर जहाँ से वो हमें शौर करने पर डांटते थे, वो बिल्लू, पप्पू, विक्की, बंटी के घर ... यही दुनिया थी बचपन की मगर आज .... बूढ़े ताऊ के घर की जगह एक खंडहर है

सुना है ताऊ अब इस दुनिया में नहीं रहे और उनका परिवार अपने खेतों में जाकर बस गया, अब वहां बच्चे नहीं खेलते क्योंकि चौक ही नहीं रहा वहां अब कूड़े का ढेर है जहाँ सभी घरों के लोग अपने घर का कचरा फेंकते हैं मेरे दोस्तों के घर भी अब पहचान में नही आ रहे थे, क्योंकि अब एक घर में चार से पांच नए घर बन गए बड़े होने पर बच्चे अक्सर अलग परिवार बना लेते हैं, इसीलिए पता नही चलता किसका घर कौन सा है

में एक घर के सामने रुक गया और सर को खुजाते हुए कुछ याद करने के कोशिश करने लगा मेरे बचपन का सबसे अच्छा दोस्त था बबलू ये उसी का घर था ... उसे घर तो नही कहा जाता हाँ घर का अवशेष जरुर कह सकते हैं अपने दिमाग पे जोर डालकर मेने उस घर का वो पुराना खाका बनाया जब वो घर खुशियों से सरोबार रहता था, बबलू के पिता अक्सर मुझे और बबलू को बहुत प्यार करते थे घर के गेट पर बनी दो सीमेंट की कुर्सीयों पे में और बबलू घंटों खेला करते थे आज वहां वीरानी पसरी हुई है अचानक मुझे किसी ने धक्का दिया तो मेने मुड़कर देखा एक युवा शराब के नशे में धुत मुझे एक और धकेलकर उस टूटे फूटे खंडहरनुमा घर में घुस गया कुछ देर बाद वो बाहर आया और दिवार के एक टूटे हुए हिस्से पर बैठा गया वो गर्दन झुका कर कुछ बड़बड़ाने लगा, बीच बीच में गर्दन उठा कर इधर उधर देखने लगता अचानक मुझे लगा की वो कुछ जाना पहचाना सा है मेने गोर से देखा तो सन्न रह गया वो मेरा दोस्त बबलू था क्या हालत हो गई है उसकी अपनी उम्र से दुगना लग रहा था वो बात करने की हालत में नहीं था में कुछ देर उसकी हालत देखता रहा और फिर आगे निकल गया

बाद में किसी ने बताया बबलू के पापा के निधन के बाद उनकी माली हालत ख़राब होने लगी और बबलू भी गलत दोस्तों के साथ रहकर शराब पीने लगा उसकी माँ भी २ साल पहले उसका साथ छोड़ भगवान के पास चली गई मगर जाने से पहले बेटे के फेरे करवा दिए थे आजकल अक्सर बबलू का उसकी पत्नी से झगडा होता है और कारण एक ही है, पैसे की तंगी बबलू का बेटा इधर उधर सहमा सहमा सा गुमता रहता है, फटी हुई शर्ट को मुह में चबाता हुआ वो किसी दोस्त को तलाशता रहता है उसका भी सायेद कोई दोस्त अपने मम्मी पापा के साथ शहर चला गया होगा