बुद्धिबलं कौशलम / गोवर्धन यादव

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एक निहायत ही भोला भाला, सीधा-सादा आदमी था। अपनी मुफ़लिसी के चलते हुए भी वह लोगों की मदद करने में पीछे नहीं हठता था। कई लोग इस बात को लेकर उसके पीछे पड़ गए कि उसे चुनाव में खड़े हो जाना चाहिए, लेकिन पैसॊं के अभाव के चलते वह कभी इसके लिए राजी नहीं हुआ।जब बहुत सारे लोगों ने उसका साथ देने का वादा किया तो उसने चुनाव में खड़े होने का मानस बना लिया। वह जानता कि स्थानीय नेता के चलते वह शायद ही चुनाव जीत पाएगा। उसने अब अपनी बुद्धिबल का प्रयोग करते हुए, कुछ लोगॊं को साथ लेकर नेताजी के आवास पर जा पहुँचा और उन्हें आगाह करते हुए कहा-श्रीमानजी, इस बार आप चुनाव न लड़ें तो अच्छा रहेगा क्योंकि इस बार मैं आपके विरुद्ध चुनाव लड़ने जा रहा हूँ। यदि आपने मेरा कहा न माना तो हो सकता है कि आपको शर्मिन्दा होना पड़ेगा। एक खरगोश क़िस्म का आदमी सीधे शेर की मांद में जाकर शेर को ललकार रहा था। सुनते ही नेताजी का दिमाक सातवें आसमान पर जा पहुँचा। आँखों से क्रोध के अंगारे बरसने लगे। अनायास ही उनका हाथ कमर में लटकती रिवाल्वर पर जा पहुँचा। वे उसे बाहर निकाल पाते, इसके पूर्व उन्हें ध्यान आया कि क्रोध करने से सारा मामला उलटा पड़ सकता है। चुनाव का मौसम है। जरा-सी भी असावधानी से लेने के देने पड़ सकते हैं। इस पिद्दी जैसे आदमी से कभी और भी निपटा जा सकता है। उन्होंने जैसे-तैसे अपने आप को काबु में किया और अत्यन्त ही विनम्र होकर उससे कहा:-अच्छा बच्चु, तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मेरे विरुद्ध चुनाव लड़ोगे? चुनाव तो लड़ तो लोगे, लेकिन किस बूते पर? । न तो तुम्हारे पास अपने खाने-कमाने का ठौर-ठिकाना है और न ही करोड़ों की जायजाद और न ही बैंक बैलेंस, आख़िर किस तरह तुम मुझसे टक्कर लोगे? ।

प्रश्न सुनकर वह न तो विचलित हुआ था और न ही घबराया था। उनसे नेता जी से कहा कि वे स्वयं इसकी परीक्षा ले सकते हैं। उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा:-यदि आप मेरी ताकत देखना ही चाहते हैं तो कृपया मेरे साथ जनता के बीच में चले और देख लें कि वह किस तरह उठकर मेरा इस्तकबाल करत्ती हैं। नेताजी ने सोचा कि वे यहाँ के दबंग नेता है और जनता पर उनका पूरा दबदबा है। लेकिन जब यह चैलेन्ज कर ही रहा है तो चलकर देखने में क्या जाता है। उन्होने कहा कि वे इसके लिए तैयार हैं। उस आदमी ने देखा कि उसकी योजना सफल हो रही है तो उसने तत्काल एक प्रश्न फिर उछाल दिया।_श्रीमानजी... चलिए चल कर स्वयं देख लें। लेकिन मेरी एक छोटी-सी शर्त है और वह यह कि जनता के बीच जाते स़मय, आपकॊ मुझसे दो क़दम पीछे रहकर चलना होगा और देखना होगा कि मेरी अपनी क्या हैसियत है। यदि आपको मेरी छोटी-सी शर्त मंजूर है तो मैं आपके साथ चलने को तैयार हूँ। नेताजी ने सोचा कि ऐसा करने में क्या हर्ज है और वे इसके लिए तैयार हो गये।

ढोल ढमाके साथ वे दोनों मुहल्ला-मुहल्ला, गली-गली में जा रहे थे। शर्त के मुताबिक वह चार फ़ुटा-सा आदमी, बड़े डील-डौल वाले नेताजी से दो क़दम आगे-आगे चल रहा था और नेताजी उसके पीछे-पीछे चल रहे थे। लोग जब अपने प्रिय नेताजी को आता देखते तो उठकर खड़े हो जाते और अपने दोनों हाथ उठा-उठाकर उनका अभिवादन करते। जनता को ऐसा करते देख उन्हें पक्का यक़ीन हो चला था कि इस अदने से आदमी का जनता पर काफ़ी प्रभाव है, तभी तो लोग उठ-उठकर इसका स्वागत कर रहे हैं और वह भी समझ रहा था कि जनता किसे नमस्कार कर रही है।

जब उसने देखा कि नेताजी पर इसका व्यापक असर हो रहा है तो उसने धीरे से नेताजी से कहा:-श्रीमान...देखा आपने, जनता मुझे कितना मान देती है। अब इसी में भलाई है कि आप इस बार चुनाव न लड़ें और मेरा साथ दें। कुर्सी पर मैं बैठा दिखाई दूँगा लेकिन आदेश आपके ही चलेगें। मेरा आपसे यह पक्का वादा है।

नेताजी उसकी फ़िरकी में आ गए और उन्होंने उसे जितवाकर लोकसभा में भेजने का मानस बना लिया था।