बेचारा सितारा और बीमार समाज / जयप्रकाश चौकसे

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बेचारा सितारा और बीमार समाज
प्रकाशन तिथि : 12 जून 2013


डॉक्टर की सलाह पर शाहरुख खान को छह सप्ताह आराम करना है। कंधे के ऑपरेशन के बाद जख्म को भरने के लिए यह जरूरी है। उन्हें मिलने के लिए मित्र प्रतिदिन शाम को आते हैं। प्रिटी जिंटा, दीपिका पादुकोण, फरहा खान, रोहित शेट्टी, अनुराग बसु इत्यादि कलाकार आते हैं। ज्ञातव्य है कि पूरी तरह से स्वस्थ रहने पर भी शाहरुख खान को रात में नींद नहीं आती थी। अपने शिखर दिनों में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन भी रतजगे करते थे, गोया कि सितारे रात में नहीं सोते, आसमान के भी और जमीन के भी। अगर आपको शिद्दत से अहसास हो कि आपके करोड़ों प्रशंसक हैं और आपका पूंजी निवेश दिन-रात आपके लिए पैसा बना रहा है, गोया कि धन अधिक धन को जन्म दे रहा है और आपकी खरीदी हुई इमारतें दिन-ब-दिन महंगी होती जा रही हैं तो आप कैसे सो सकते हैं? इसके साथ ही यह चिंता भी सोने नहीं देती कि आज जहां हम हैं कल कोई और होगा तथा प्रतिद्वंद्वी इंच-दर-इंच उसके सिंहासन की ओर बढ़ रहे हैं तो नींद कैसे आ सकती है। सफल आदमी का संसार अलग होता है। उसके सुख-दु:ख अलग होते हैं।

शाहरुख खान और गौरी खान अच्छे मेहमाननवाज हैं। अलसुबह तक खाना-पीना जारी रहता है। फिल्म उद्योग में कुछ लोग बीमार का हाल पूछने वालों की संख्या से उसके स्टार पावर का आकलन करते हैं। सच तो यह है कि हर आने वाला आपका दोस्त नहीं है और जो इस रिवाज को नहीं निभा पाए, वे आपके दुश्मन नहीं हैं। यह कितनी अजीब बात है कि फिल्म सितारे की शक्ति उसके प्रशंसक हैं और आम प्रशंसक कभी अपने बीमार सितारे का हाल जानने उसके अंतरमहल में प्रवेश नहीं कर पाता। नींव के पत्थर शिखर कभी देख नहीं पाते। वे अपनी जगह तनिक-सा सरके तो शिखर ढह जाता है।

शाहरुख की आंखें हर शाम दरवाजे पर टिकी रहती हैं। किसी खास का इंतजार रहता है, परंतु वह खास चाहकर भी नहीं आ सकता। ज्ञातव्य है कि प्रियंका चोपड़ा और शाहरुख की मित्रता गौरी को खटक रही थी और इसी कारण उनके प्रिय सगे से ज्यादा सगे देवर करण जौहर ने अपने 41वें जन्मदिन की दावत में उन्हें नहीं बुलाया। यह कहा जाता है कि इसी के बाद शाहरुख और करण जौहर के बीच कुछ फासला आ गया। वह बेचारा क्या करे 'भाभी' को खुश रखता है तो 'भैया' खफा हो जाते हैं। सितारों के संसार में सामान्य व्यवहार असंभव है और किसी एक से नजदीकी दूसरे को खफा कर देती है।

सितारों की दुनिया से अलग नेताओं की दुनिया है, जहां लोग सरेआम एक-दूसरे की आलोचना करते हैं और गोपनीय ढंग से एक-दूसरे के स्वार्थ की रक्षा करते हैं। उनके बीच एक अलिखित समझौता है कि सत्ता की देवी जब एक से रूठे तो दूजा उसकी रक्षा करेगा, क्योंकि कभी भी किसी की भी बारी आ सकती है। हाल ही में खेल के नाम पर रचे तमाशे में मिली 'कुश्तियों' के राज उजागर होते ही एक सत्ताधारी दिखावे के लिए हट गए हैं और उनकी जगह पुराना खिलाड़ी है। जिस पर पहले इसी संस्था ने घपलेबाजी का आरोप लगाया था। इस गोरखधंधे का पटकथा लेखक फरार है और लंदन में ठाठ से रह रहा है। इस घपलेबाजी के खिलाफ कुछ भूतपूर्व श्रेष्ठ खिलाडिय़ों ने आवाज नहीं उठाई, क्योंकि संस्था उन्हें किसी न किसी जायज बहाने तीन-चार करोड़ रुपए देती है। इस खेल के कप्तान भी एक कंपनी से जुड़े हैं। जाने काजल की कोठरी में क्या हो रहा है और सरकार संस्था के खिलाफ अध्यादेश नहीं जारी कर सकती। उनके अपने मंत्री जो इससे जुड़े हैं। विरोधी पक्ष के नेता भी शामिल हैं।

बहरहाल, सितारों की बीमारी उनके चमचों के लिए स्वर्ण अवसर है। उनमें आपसी प्रतिद्वंद्विता भी चलती है कि कौन बड़ा चमचा है। राजेश खन्ना के शिखर दौर में जब वे अपने बवासीर के ऑपरेशन के लिए अस्पताल में दाखिल हुए तो अनेक उम्मीदवार निर्माता भी डॉक्टर के पास गए कि उनकी बवासीर भी निकालें और राजेश खन्ना के पड़ोस का कमरा उसको दे दें। चमचागिरी अपने आप में एक कला है और हर कोई ऐरा-गैरा सितारे का चमचा नहीं हो सकता।

इस उद्योग से जबरदस्ती जुडऩे कुछ लोग आ जाते हैं। उन्हें कोई पैसे का लाभ नहीं चाहिए। वे स्वयं धनवान हैं, परंतु सितारे का मित्र होने का झूठा गौरव उन्हें किसी भी कीमत पर चाहिए। किसी सितारे का प्रश्रय नहीं हो तो उन्हें अपना जीवन व्यर्थ लगता है। यह नई प्रजाति अभी विकसित होनी शुरू हुई है। शीघ्र ही इनकी संख्या में इजाफा होगा, क्योंकि इस तरह की मानसिक व्याधियां बहुत तेजी से फैलती हैं। यह हमारे द्वारा विकसित वीआईपी संस्कृति का ही एक हिस्सा है। साधारण व्यक्ति के असाधारण सुख की कल्पना कम लोग ही कर पाते हैं।