बेटी रोॅ दर्द / धनन्जय मिश्र

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पापा जी प्रणाम्!

कत्ते दिनों रोॅ बाद है चिट्ठी तोरा लिखी रहलि छियौ। बीहा रोॅ बाद हमरा यादे नै आबै छै कि हम्में कोनों चिट्ठी लिखने छिहौं। कैन्हे कि तोहे हमरो कुशलता रोॅ हाल-चाल पुछै छेलौ आरू हम्मु दू-चार वाक्य बोली केॅ जवाब दै देॅ छेलिहौं। हमरोॅ आरू तोरोॅ बीच ऐतनै तक भवनात्मक सम्बंध छेलै। तोहे कैयौह है जानै में रूचि नै राखलौ कि ससुरालोॅ में हमरो 'लाडो' बेटी केना केॅ रही रहली छै। तोहे कैयौह भैया 'सोम' केॅ है नै कहलौ कि सोम बेटा, तोहे जाय केॅ हमरो बेटी रोॅ हाल-चाल देखी के आवो।

पापा! तोहे नाराज नै हुओ. हम्मंे तोरा पर कोनों दोषारोपण नै करै छिहौ। होॅल सकै छै हमरो सोच ही ग़लत छै, जेकरा सें हमरो सौतेली माय ही तोरा है करैलॅ रोकतें होतौ, कैन्हें कि सौतेली माय रोॅ सम्बंध सौतेलों संतानो रोॅ साथै कैन्हों खराब होय छै है सौसे संसारे जानै छै। पापा! हमरो माय रोॅ छवि हमरो मानस पटल पर धुंधला ही छै, आरू हौ धुंधला छवि है कहै छै कि हमरी माय हजारोॅ में एक छेलै। हमरा याद छै पापा कि हौ दिन तोहें घरोॅ में नै छेलौ। हम्में खेलते-खेलते बचपनोॅ में एक दाफी घरोॅ के बाहरी मटकुइयाँ में जबे ससरी के गिरी गेली छेलियै ताॅ हौ देखी के हमरी माय छाती पीटनें, हकरली, डिकरली, बिना जान रोॅ परवाय करने हमरा बचाय लेली खाड़े हौ कुइयाँ में धोंस दै देने रहै आरू हमरा कान्हा पर उठाय केेॅ बदहवास नांकी तब तक गरजतें रहलै जब तक कि कुइयाँ के उपर भीड़ नै लागी गेलै। हलाँकि हौ मटकुइयाँ में हमरी माय रोॅ गल्ले भर पानी रहै मतरकि हमरा लेली तॅ वहा समुद्रर छेलै।

हमरा याद छै कि एक दिन हम्में आपनों आँगना मंे बैठी के कल आय आरू कल रोॅ बारे में सोचतें-सोचते हमरा ला कत्ते नी सवाल आवी के हमरोॅ आगु-पीछे घुरै लागलो छेलै आरू हम्में परेशान होय के अपने आप सें उत्तर पुछै छेलियै, मतुर जबे उत्तर नै खोजैल पारलियै तॅ पापा जी, तोरो है अक्षर कटटू बेटी टुटलो-फुटलो भाषा मंे चिट्ठी लिखैल बैठी गेलिहौ, है सोची के कि तोहे उत्तर नै देभौ तेॅ के देतै।

पापा जी! पहिलो बरसात पर्व छेलै। हम्में जानै छियै कि पहिलो बरसैती पर मायकेॅ सें नै बेसी ताॅ कुछछु भी शगुन ज़रूरे आवै छै। तोहे दीदीयो के भी भेजै छेलौ। हम्में इन्तजार करतेॅ रही गेलियै मतुर कोनो शगुन नै ऐलै। मनोॅ में डोॅर लागलै कि एै पर हमरो सास-ससुरें की सोचतै आरू सभ्भे सें बेसी डाॅर है छेलै कि हमरोॅ दोभियो पति 'मोहिते' कि सोचतै। हम्में नी हुनको दोसरो पत्नी देलियै, मतुर हुनि तॅ हमरोॅ पहिलो पति छेकै। हम्में मनझमान छेलियै।

मतुर पापा जी! बरसात पर्व से एक दिन पहिने ससुर जी ने आबी के हमरा बतैलकै कि बहु "तोरो पिता जी ने चार हजार रुपया रोॅ ड्राफ्ट तोरा लेली भेजने छौ। है रुपया लैके राखी लेॅ, आरू मोहित साथै बाज़ार जाय केॅ अपनो सभ्भे लेली जे इक्छा छौ किनी ला।" माॅन प्रसन्नता सें नाँची उठलै झुकी केॅ ससुर जी रोॅ पाँव छुवी के आर्शिवाद लेलीयै। सच कहै छियौं पापा, हौ वक्ती तोरो लेली मोॅन श्रद्धा सें भरी उठलौ। प्रसन्नता मंे ताॅ दिनौं के पंख लागी जाय छै। यहाँ रंग चार-पाँच दिन गुजरी गेलै। फेरू याद ऐलैकि पापा, कम से कम तोरा ताॅ है बताय दिहौं कि मोहित केॅ कपड़ा आरू आपनोॅ साड़ी की रंग खरीदने छिहै। माय के बतैलाॅ सें की होतै।

"पापा जी! हम्में मोबाइल से आपनो खुशी सेॅ इजहार करै लेली तोरा फोन करने छेलिहौ कि तोहे रुपया भेजी केॅ हमरो ससुरारी में हमरो मान राखी लेलौ। भैया सोम के हमरा लिवाय लेली यहाँ भेजै के भी आग्रह करने छेलिहौं। मतरकि हमरो दुर्भाग्य रहै कि फोनों पर तोहे नै छेलौ, मम्मी छेलै। मम्मी बस औपचारिकता रोॅ निर्वाह करी के हाँ हूँ में जवाब दैकेॅ फोन राखी देने रहै। सच कहै छियौं पापा, हौ समय बस हमरो मम्मी के ही याद आवी के मोन उदास होय गेलै आरू आँखी से कत्ते नी लोॅर भरभराय के गिरी गेलै।"

पापा जी! हिन्हें कुछछु दिनों से हमरो मोॅन तोरा सिनि के देखय लेली छटपटाय रहलो छेलै। खास करी केॅ भैया लेली। रक्षाबंधन बिती गेलै। हम्में मोहित के कत्ते नी निहोरा वहाँ ले जाय लेली करने छेलियै, मतरकि हौ बक्ती हम्में असफल छेलियै, फेरू हम्में तखनी सफल होलियै जखनी हुनि ' भैया दूजों रोॅ समय हमरा वहाँ लै जाय रोॅ अश्वासन देलकै। समय ने मोहित से आश्वासन पुरौ करवैलकै। तोरा सिनि के है उम्मीद नै छेलौ कि बिना कोनो सूचना के हमरा सिनि वहाँ पहुंची जैवो। हमरा दुन्हू के देखी के पापा तोहे खुश तॅ होलौ, मतरकि हौ खुशी में ममता आरू वात्सल्य के बोध नै छेलै।

हमरा याद छै पापा कि राती में मम्मी तोरा गोस्साय के कहने रहौ कि "आपनै फोन करी के बेटी-जमाय के बोलैने होवौ। आवे हमरो खर्चा में आरू खर्चा बढ़ी गेलै।" है सुनि के तोहे मम्मी के गिड़गिड़ाय के कहने छेलौ कि "भाग्यवान ज़रा धीरे-धीरे बोलो? बेटी जमाय सुनतौ तेॅ कि सोचतौ। हमरोॅ इज्जत ताॅ नै उघारोॅ। तोहे हमरा कि बुढ़बक समझै छौ। हम्में नै ताॅ बेटी-जमाय के बोलैने छिहै आरू नै ताॅ बरसैती में भी कोनों रुपया भेजने छियै। आवे जबे आबी गेलो छै तॅ हमरा कुछछु नै कुछछु ताॅ करैल पड़तै।" है सुनि के हम्में अवाक होलो छेलियै पापा। तोहे नै रुपया भेजने छेलौ तॅ हौ रुपया केॅ भेजने छेलै। हम्मे सोचै लागलियै। तखनी हमरा है समझते देर नै लागलै कि हमरा मनझमान देखी केॅ हमरो ससुरै ही आपनो रुपया दै केॅ हमरो मान राखी लेलकै हमरोॅ सासु माय आरू ननदो रोॅ नजरोॅ में। कत्ते महान छै हौ आत्मा। हमरो मोॅन ससुर जी रोॅ लेली आरू श्रद्धा से भरी गेलै आरू आँख लोराय उठलै। तखनी हम्में है सोचै लाॅ मजबूर होय गेलियै कि पापा रोॅ मोॅन हमरो लेली है रंग बदली कैन्हे गेलै, पहिने तॅ हुनि हैं रंग नै छेलै। हम्में मानै छियै कि सौतेली माय है रंग करै छै मतरकि पापा ताॅ सौतेलो नय छेकै। फेरू मनै ने उत्तरो देलकै कि होयल सकै छै कि माय रोॅ सोहबत में ही पापा जी बदली रहलो छै। फेरू अगला दिन भैया दूज रोॅ सब रस्म निभाय के पति मोहित साथे हम्में आपनों घोॅर आबी गेलिहै।

पापा जी! जबे-जबे कोय बड़ों पर्व या त्यौहार आबै छेलै, तबे-तबे ससुर जी तोरो नामों से भेजलो ड्राफ्ट या मनीआॅर्डन कही के ससुरालो में हमरो मान-सम्मान के रक्षा करै छेलै। है देखी के एक दिन हमरोॅ सासु माय है बातों पर ससुर जी सें उलझी के बोललो रहै कि "समधी जी बराबर मनी आॅर्डर भेजी केॅ कि हमरा सबके तौलै छै। कहियौव आपनो बेटा सोम केॅ बहिनी के ससुराल कैन्हें नी भेजै छै। बहु यदि तोरो भाय सोम यहाँ एक-दू दिनों में नै एैतौ तॅ है मनी आॅर्डर के हम्में आबकी वापस करी देभौ। है सुनि के सभ्भें अबाक छेलै। तबे समय रोॅ चाल के भाँपी के तुरंत ससुर जी रोॅ फरमान होलै-" बहु के भाय सोम के यहाँ आवैल पड़ते। "पापा जी हमरा याद छै कि तुरत हम्में तोरा फोनो पर ससुर जी रोॅ फरमान कहनै छेलियौ, आरू यहो याद छै कि फोनै पर तोहे हड़बड़ायौ गेलो रहो, आरू फेरू सोम के यहाँ आवै लेली स्वीकृतियो देने रहौ। फेरू भैया यहाँ ऐलो रहै। एतना समान देखी के यदि सबसे बेसी, कोय खुश छेलै तॅ हौ हमरो सासु माय आरो ननद छेलै। यहाँ भैयौ रोॅ खुब स्वागत होलै। हम्मु है सब समान देखी के खुशी सें विभोर छेलियै। मतुर है सब समानों के बीचोॅ रोॅ रहस्य अनबुझ पहेली छेलै। कोय ठीक्के ही कहने छै कि" कुछ रहस्य अगर पर्दा में ही रहे ताॅ निको छै बाहर निकलतै फीकोॅ छै। "भैया जाय वक्ती हमरा कहनै रहै कि" बहिन तोरो है घोॅर सचमुचे में स्वर्ग छेकौ, है स्वर्ग के स्वर्ग बनाय के ही राखियौ है बातोॅ के हम्मी हौ समय बुझै नै पारलियै।

पापा जी! हम्में तोरा से कोय शिकायत नै करी रहलि छियौ। मतरकि योहो सच छै कि जबे हम्में आपनों बचपन छोड़ी रहली छेलिहै, हौ बक्ती तोरो नया परिवार बढ़ी रहलोॅ छेलौ। वै बक्ती तोहें परिवारों लेली बेसी उत्तरदायित्व सें भरलो छेलोॅ जे स्वाभाविके रहै। हमरो छोटो से छोटो ज़रूरतो भी सपना नांकी होय छेलै। हरदम तिरस्कार आरू कुबोली ही हमरो हिस्सा में रहै। हमरा याद छै कि एक बार बुआ माय यहाँ ऐली रहै। हमरो हालत देखी के तोरा धर्मशास्त्रा सें लैके कत्र्तव्य बोध तक के शिक्षा देने रहौ, मतरकि तोहे कहाँ कोनो माकुल जवाब देने रहौ। जाय वक्ती बुआ माय ने आपनो बुतरू रोॅ उतरन हमरा दै के कहने रहै कि "लाडोॅ बेटी है सिनि सुन्दर प्रिंट रोॅ सलवार कुरती तोहें सहेजी के राखियो हेकराय पीनिहो।" हम्में राती में सुतै वक्ती हौ सब उतरन कॅ सहेजी केॅ सिरहना में राखी केॅ मिट्ठो सपना लैके सुतली रहियै। सपनै में हमरा आरू भाय बहिनी साथै हौ उतरन लेली खुब मारोॅ होलो रहै। सुबह जबाॅ नींद खुललै ताॅ प्रायः हौ सब उतरन गायब छेलै। हम्में खुब कानलो रहियै आरु फेरू मोॅन मसोसी के रहि गेलियै। हमरो दुःखो काॅ के जानतियै।

पापा जी! बचपन में हमरो नबकी माय साथै तोहे एतना डूबी गेलो रहौ कि हमरो शिक्षा दीक्षा भी तोरो सोच के भँवर में उलझी के एन्हों डूबलै कि हम्में अक्षर कट्टु बनी के रही गेलियै। है ताॅ धन्य छै हमरो हौ सास-ससुर जें सब कुछ जानते हुए भी है उपेक्षित आरू दू मिट्ठो बोली रो तरसलो तोरो बेटी कॅ आपनो बहुरूप में अपनाय के है सुखलोॅ सावन में आपनो प्रेमो रोॅ बारिस करी के हरा भरा बनाय देने छै। हमरा हौ अपनत्व आरू प्यार देने छै, जेकरा लेली हम्में हरदम तरसलो छेलियै।

पापा जी! तोहे सोचते होबौ कि हमरो है लाड़ो बेटी खाली हमरा सें शिकायते करै छै। है बात नै छै। हमरो बीतलो दुःखोॅ रो दर्द रूपी सागर सें कोनों लहर निकली के तोरा सें टकराय जाय छौ जेकरा सें हमरो मोॅन कुछछु हल्का होय जाय छै ताॅ यै में हमरो की देष छै। दोष ताॅ छै हौ लहरोॅ के नी। हमरा याद छै पापा, दस साल पहिने आपनो गामों से सटलो 'विष्णुपुर' गामांे रोॅ दस सालो रोॅ विवाहित संतानहीन दंपति मोहित रोॅ पत्नी के अज्ञात रोगों सें इंतकाल होलो रहै। एक राती तोरा सें माय बोली रहली छेलौ कि हौ लड़का खाता पीता परिवार सें आपने स्वजाति के ही छेकै। जल्दी सें है बलाय के हौ लड़का सें बीहा करी के है झंझटोॅ सें मुक्ति पावो, जेकरा से हमरा सिनि के चैन मिलतै, कैन्हे कि हमरो भी ताॅ बेटी छै। आरू तोहे पापा हमरा बलाय रूपी बोझ के गठरी समझी काॅ बिना हमरो इक्छा जानलैं हुनका सें बीहा करी देलौ, हेकरा भी हम्में तोरो प्रसाद समझी काॅ ग्रहण करी लेलीयै। हमरा याद नै छै पापा कि वहाँ आपनो जीवन रोॅ बितलो एक्को कोनो नीेको रंग स्मृति छै जेकरा याद करी के हमरो आँख लोराय जाय।

पापा जी! तोहे है लाड़ो बेटी रोॅ पापा छेकौ। तोरो आरू हमरोॅ मरली माय रोॅ लहु हमरो देहो में दौड़ी रहलो छै। हम्में जानै छियै कि तोरो दिलो में हमरा लेली प्यार आरू ममता छौ, मतुर तोरो बढ़लो परिवार आरू माय रोॅ सोहवत रोॅ असर है रंग तोरा पर हावी छौ कि तोहे किकत्र्तव्यविमूढ़ छौ, जेकरा से तोरो है रंग व्यवहार होय जाय छौ। फेरू कोनो बात नै छै पापा, है बलाय रूपी अक्षर कटटू बेटी तोरा आय चिन्ता सें मुक्त करै छिहौ-कि हम्में आपनों घोॅर परिवार रूपी संसार में सुखी छियै।

तोरो बेटी-लाड़ो।