बेटे की शादी / संतोष भाऊवाला

Gadya Kosh से
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बैंड पूरे शबाब पर था और वह अपने क्लेयर्नेट पर "आज मेरे यार की शादी है" धुन बजाता बैंड के बीच नाचते लोगो के घेरे में मस्ती से खुद भी नाचता ख़ुशी से पागल सा हुआ जा रहा था। बारात में जितने लोग आये थे, सभी उसकी तारीफ़ किये बिना न रह सके। इतनी मधुर धुन बजा रहा था और हाव भाव से भी ख़ुशी झलक रही थी कि इतने लोगो की बैंड की टीम मे भी उसका होना,अलग से अहसास दिला रहा था। लोगो ने पूछा, आज बहुत खुश लग रहे हो, क्या बात है।उसने बताया कि उसके बेटा हुआ है, वह बाप बन गया है। एक दिन अपने बेटे की शादी में भी इसी तरह बजाऊंगा, झूम झूम कर नाचूँगा। लोगो ने कहा कि अभी तो पैदा हुआ है, उसे अच्छी शिक्षा देनी होगी, उसके लिए बहुत कमाना होगा, अब तो जिम्मेदारियां और भी बढ़ गयी है, और तुम अभी से शादी के सपने देखने लगे। उसने बड़ी बेफिक्री से कहा, हो जायेगा, सब कुछ हो जायेगा। देखना, एक दिन मेरा बेटा भी इसी तरह राजकुमार बनेगा और घोड़ी पर बैठ कर शादी के लिए जा रहा होगा, तब भी उसके आगे आगे चलता हुआ, मै यही धुन बजाऊंगा। उसकी बात सुन कर सभी लोग हंसने लगे,कहने लगे, बावला हुआ जा रहा है, बहुत ही भोला है। जमाना इतना ख़राब है, आज की कोई खबर नहीं और ये कल के सुनहरे सपने देख रहा है।

बैंड की कम्पनी में एक छोटा सा मुलाजिम था। उसका नाम था राजा। नाम के ही अनुरूप था। अपने काम के प्रति पूर्ण रूपेण समर्पित, सभी का दिल जीत लेता था, धुन तो इतनी प्यारी बजाता था कि गाँव में सभी उसे ही बुलाना चाहते थे। धीरे धीरे समय बीतता गया,उसकी मेहनत रंग लाने लगी, उसने अपने नाम से बैंड की कंपनी खोल ली। अब उसके नीचे कई लोग काम करने लगे। शादियों में अब वो ना के बराबर जाने लगा था। बस, अपने कर्मचारियों को भेज देता था।उसने इतने अच्छे से सभी को सिखाया था, फिर भी लोग उससे पूछते रहते थे कि वह क्यों नहीं आता है, लेकिन वह हमेशा हंस कर टाल देता, फिर भी मन में सोचता था कि बेटे की शादी में जरूर बजाऊंगा। बेटा भी धीरे धीरे बड़ा हो रहा था। उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजा। उसका सीना मानो ढाई गुना बढ़ गया था। गाँव वाले कहते, अपनी तरह बाजा बजाना सीखा दे उसे, क्या होगा ज्यादा पढालिखा कर, लेकिन वह सीना ठोंक कर कहता, देखना एक दिन मेरा बेटा मेरा सपना पूरा करेगा। बेटे ने भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर गाँव की ओर रूख किया। राजा इतना खुश था कि पाँव धरती पर नहीं पड़ रहे थे। कुछ दिन इसी ख़ुशी भरे माहोल मे ही ब्यतीत हो गए।फिर एक दिन राजा ने शादी की बात छेड़ दी, सुनते ही बेटा थोडा संजीदा हो गया। उसने थेरेसा के बारे में बताया कि कैसे वो और थेरेसा साथ रहते थे, एक दुसरे के साथ भी और नहीं भी। राजा ने पूछा, ये क्या कह रहा है ऐसे भी हो सकता है साथ है और नहीं...

तब उसने बताया कि हम दोनों साथ रहते है घुमते है,खाते पीते है, लेकिन दोनों को एक दुसरे से कोई मतलब नहीं, कौन कहाँ जाता है कितने बजे आता है, अपना कमाते है और मौज उड़ाते है। अमेरिका में इसे लिविंग रिलेसंस कहते है, जिसमे किसी के ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं होती है।

शादी की जरूरत ही नहीं है वहां, उसे वैसे ही अपनी जिंदगी गुजारनी है। वैसे भी वह कुछ दिनों के बाद वापस जा ही रहा है। सुन कर राजा सकपकाया, ये क्या कह रहा है, ऐसा भी होता है भला। बहुत समझाया कि ये रिश्ते बेमानी होते है "अपनी ढपली अपना राग" ऐसे रिश्तो से किसी का भला नहीं होता है। जीवन में ठहराव बहुत जरूरी है। ऐसी लडकिया किसी की भी सगी नहीं होती,लेकिन उसने पिता की एक न मानी, अपनी जिद पर अड़ा रहा। कुछ दिन बाद वह वापस चला गया। राजा क्या करता,मन ही मन दुखी होंता, अकेले मे आंसू बहा लेता, अपने बाजे को बड़े प्यार से पौंछ कर, एक ठंडी साँस लेकर, उसे उसकी जगह पर रख देता, सोचता, क्या गाँव वाले ठीक कहते थे उसने बेटे को ज्यादा पढालिखा कर गलती की ...

इसी तरह से कई साल बीत गए। राजा ने तो उम्मीद ही छोड़ दी। अंदर ही अंदर, ये गम उसे दीमक की तरह खाए जा रहा था। कमर झुकने लगी थी।

उधर बेटा और थेरेसा ख़ुशी ख़ुशी रह रहे थे कि अचानक बेटे के साथ एक हादसा हो गया, दुर्घटना में बेटे का एक पैर जख्मी हो गया, पूर्ण रूपेण वह थेरेसा पर आश्रित हो गया था हर छोटे छोटे काम के लिये... शुरू के एक

आध महीने तो आराम से गुजर गये,जैसे तैसे थेरेसा ने भाग भागकर,कर दिया पर धीरे धीरे उसे यह सब झंझट लगने लगा,वह अपनी निजी जिंदगी में इतना बदलाव बर्दाश्त नहीं कर पायी, फिर उनका रिश्ता ऐसी कोई मजबूत डोर से बंधा भी न था कि वह उसे जी जान से निभाती।

अब थेरेसा की दिनचर्या फिर से पहले जैसी हो गई थी जिसमे उसके लिये न तो समय था न ही कोई स्थान....इससे हर रोज उन दोनों में छोटी छोटी बातों पर झगडा होने लगा और एक दिन थेरेसा उसे छोड़ कर किसी और के साथ हो ली। अब उसे समझ में आया कि इस तरह की जिंदगी में सुख के साथी सभी है, पर दुःख का ना कोय। इस तरह के संबधों से किसी का भी भला नहीं हो सकता, क्यों कि जिस रिश्ते में ठहराव नहीं, उस रिश्ते के कोई मायने नहीं। ये एक तरह से धर्मशाला हुई जहाँ ब्यक्ति कुछ देर ठहर तो सकता है, लेकिन अपनी पूरी जिंदगी नहीं गुजार सकता। धीरे धीरे उस जिंदगी से उब चला था, अब उसे भी अहसास हो चला था कि शादी के क्या मायने होते है। अब वह भी ठहराव चाहता था। जिंदगी मे भागते भागते थक गया था। पाश्चात्य सभ्यता का भूत उतर चूका था,वापस गाँव लौट आया, धीरे धीरे ठीक हो रहा था राजा की मेहनत और वैद्य के इलाज से थोडा थोडा चलने लगा था,छड़ी के सहारे सहारे... अब एक साथी की कमी खलने लगी थी, लेकिन किस मुहं से कहता।

फिर भी एक दिन उसने अपने पिता से हिम्मत करके कह ही दिया कि वह शादी करना चाहता है,घर बसाना चाहता है। क्या करता एक ही तो बेटा था, और फिर उसका भी सपना पूरा जो हो रहा था। बेटे के मोह में सोचा, देर आये दुरुस्त आये। राजा ने अपनी स्वीकृति दे दी। शादी भी तय हो गयी। बेटे की बारात जा रही थी, सभी ख़ुशी से नाच गा रहे थे, धुन भी वही बज रही थी। सभी के चेहरों पर ख़ुशी झलक रही थी, पर राजा के चेहेरे पर ख़ुशी बिलकुल नदारद थी, एक फीकी सी मुस्कान लिए चलता जा रहा था। बाजा हाथ में था, लेकिन होठो तक पहुँच न पा रहा था।

राजा की आएगी बारात...