बोनी कपूर, जाह्नवी और खुशी / जयप्रकाश चौकसे

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बोनी कपूर, जाह्नवी और खुशी
प्रकाशन तिथि : 25 मार्च 2019


ताजा खबर है कि श्रीदेवी और बोनी कपूर की छोटी बेटी खुशी अभिनय प्रशिक्षण के लिए अमेरिका जा रही हैं। ज्ञातव्य है कि रणवीर कपूर भी प्रशिक्षण के लिए इसी संस्था में गए थे। अमेरिका पहला देश है, जिसने सबसे पहले फिल्म विधा प्रशिक्षण केंद्र खोले। उनके छात्र अपनी अभिरुचि जाहिर करते थे कि उन्हें विधा में सक्रिय रहना है या इस विधा का शिक्षक बनना है। उस नीति के कारण ही आज दुनियाभर के ऐसे प्रशिक्षण केंद्रों में शिक्षक पद पर अमेरिकन नियुक्त हैं। जर्मनी में फिल्म प्रशिक्षण का कोर्स 6 वर्ष का है और पहले 5 वर्षों में विधा के सारे विषय पढ़ने होते हैं और अंतिम वर्ष में वह विषय जिसमें आप पारंगत होना चाहते हैं। श्रीदेवी और बोनी कपूर की जेष्ठ पुत्री जाह्नवी को करण जौहर मराठी भाषा में बनी फिल्म से प्रेरित 'धड़क' में प्रस्तुत कर चुके हैं, जिसमें शाहिद कपूर के भाई को बहुत पसंद किया गया। जाह्नवी के पास अधिक प्रस्ताव नहीं आए हैं परंतु वे अभी मैदान में टिकी हैं। खुशी का स्क्रीन टेस्ट स्वयं बोनी कपूर आयोजित कर चुके हैं और पूत के पांव पालने में दिख रहे हैं। खुशी एक बड़ी संभावना है। वर्तमान में बोनी कपूर का अधिक समय चेन्नई में गुजरता है। जहां वे 'पिंक' का तमिल संस्करण बना रहे हैं और 'बधाई हो' को भी तमिल में बनाने की तैयारी चल रही है। बोनी कपूर की कुंडली में कर्म स्थान पर चेन्नई गुरु-शुक्र की युति के स्थान पर बैठा है। श्रीदेवी ने तो कमल हासन की तरह 4 वर्ष की आयु में ही अभिनय शुरू कर दिया था। हिंदी फिल्मों के दर्शकों ने उन्हें फिल्म जूली में बाल कलाकार के रूप में देखा है। अमोल पालेकर के साथ श्रीदेवी 'सोलहवां सावन' में आईं परंतु जितेंद्र के साथ उन्होंने 'हिम्मतवाला' में सफलता अर्जित की। पूरन चंद्र राव की 'चालबाज' में उन्होंने दोहरी भूमिका का निर्वाह किया। उनके कॅरिअर में बोनी कपूर की शेखर कपूर द्वारा निर्देशित 'मिस्टर इंडिया' का विशेष स्थान है। उनके चेहरे पर बचपना और देह में मादकता का मणि-कांचन योग था। श्रीदेवी एकमात्र सितारा हैं, जिनकी दूसरी पारी में उन्होंने 'इंग्लिश विंग्लिश' और 'मॉम' में भारी सफलता अर्जित की। इन दोनों फिल्मों में उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन किया। वे अपनी कला के शिखर पर एक हादसे की शिकार हो गईं। जाह्नवी और खुशी के लिए सबसे महत्वपूर्ण होगा अपनी माता द्वारा अभिनीत सारी फिल्में देखना। खुशी की पहली फिल्म उनके पिता बोनी कपूर बना सकते हैं। करण जौहर ने प्रयास प्रारंभ कर दिए होंगे। बोनी कपूर बमुश्किल 20 वर्ष के होंगे जब उन्होंने अपने पिता सुरेंद्र कपूर द्वारा बनाई जा रही 'फूल खिले हैं गुलशन गुलशन' पूरी करनी पड़ी। इस फिल्म के निर्देशक की अकाल मृत्यु के कारण यह रुक गई थी। उन्होंने अपने छोटे भाई अनिल कपूर के लिए दक्षिण के निदेशक बापू द्वारा निर्देशित 'वो सात दिन' का निर्माण किया था। अनिल कपूर एमएस सथ्यू की फिल्म 'कहां कहां से गुजर गया मैं' में अभिनय कर चुके थे परंतु 'वो सात दिन' ने उन्हें अपनी स्वतंत्र पहचान दिलाई। आज भी अनिल कपूर चरित्र भूमिकाओं में सक्रिय हैं और उन्होंने अपने को चुस्त-दुरुस्त बनाए रखा है। बोनी कपूर ने अपने सबसे छोटे भाई संजय को स्थापित करने के बहुत प्रयास किया परंतु बात नहीं बनी। तब्बू को भी पहला अवसर बोनी कपूर ने ही दिया था।

बोनी कपूर के पास फिल्म निर्माण का गहरा अनुभव है और वे अपनी फिल्मों पर खूब धन भी खर्च करते हैं। क्या यह संभव है कि बोनी कपूर भविष्य में अपनी दोनों पुत्रियों को एक ही फिल्म में प्रस्तुत करें। दो बहनों की कथाएं कई बार फिल्माई गईं हैं। बिमल रॉय इस विषय पर 'प्रेसिडेंट' नामक फिल्म बना चुके हैं। इसी कथा को गुरुदत्त ने 'बहारें फिर आएंगी' के नाम से बनाया था। राज कपूर, उषा और वैजयंती माला अभिनीत 'नजराना' बनी थी। इसी विषय को जितेंद्र, श्रीदेवी और जया प्रदा अभिनीत 'तोहफा' के नाम से बनाया गया। इस मामले में फिल्मकार की ईमानदारी देखिए कि 'नजराना' और 'तोहफा' समानार्थी शब्द हैं। ज्ञातव्य है कि शोभा डे का उपन्यास 'सिस्टर्स' भी दो बहनों की कथा है, जिसका प्लॉट शानदार है परंतु उसमें अंतरंगता के साहसी विवरण हैं। विदेशों में दो बहनों पर कुछ फिल्में बनी हैं। एक फिल्म में हिल स्टेशन पर एक छोटा होटल है, जिसे पिता की मृत्यु के बाद दोनों बहनें संचालित करती हैं। एक लेखक वहां किताबें लिखने आता है। छोटी बहन को लेखक से प्रेम हो जाता है परंतु छोटी बहन को यह नहीं मालूम कि उसकी बड़ी बहन भी मन ही मन लेखक से प्यार करने लगी है। बहरहाल, लेखक और छोटी बहन विवाह करके चले जाते हैं। कुछ समय बाद छोटी बहन को अपनी बड़ी बहन की डायरी मिल जाती है। वह अपने पति के साथ लौटती है परंतु बड़ी बहन एक नन बन चुकी है। वह क्रिश्चियन साध्वी बन चुकी है। छोटी बहन अपने पति के साथ चर्च जाती है और कहती है कि वह पति को तलाक दे देगी। उन दोनों का विवाह करा देगी। इस प्रस्ताव पर बड़ी बहन कहती है कि अब वह ईश्वर सेवा में ही अपनी उम्र लगा देंगी। नन बनते ही उसके मन से सारी सांसारिकता का लोप हो चुका है।