ब्वे कि कारणा / महेशा नंद

Gadya Kosh से
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रात खुलि ग्या। दीनद्यब्ता सुरक आ, कैन नि चिता। सेळू घाम। जन्नि घाम चिल्कि तन्नि पंछ्यूंन् फौंकुर उफारि द्येनि। पंछी नमान् च्वींच्यांद सुद्दि बौळ्या बणी सि उडंणा छन। सुल्लु मोरी सैम बैठीं छ। वींकि आँखी रीती हुयींन्। रीति आँख्यूंन् वऽ इखरपंत मळां कऽ डांडा जना दिखण फर लगीं छ। मळां कऽ डांडै धारम् सुरजद्यौ अब्बि उब्डि। सुरजद्यौ झणि किलै झम्म झिंवर्यूं सि छ। वऽ छाळि कंचन सि दमाक नी, ज्व सुबेरा घामै हूंद। डांडि-कांठि भिलंकार सि लगंणीन्। घामै झौळुम् डाळौं मा अडगीं ऊँस तपराट कै इन झणि छ। जन ब्वलेंद डाळि रूंणी हून। अर दीनद्यब्ता मा औगार कनि हून कि- हे पणमेसुर! सगळि राता ऐड़ल् गत कटम्वर्ये ग्या। त्यरि कनि झौळ छ स्या जैंकि झमाकम् गत बिबरै जांद। ज्यू ज्यूंदु-जगदु ह्वे जांद। पणमेसुर त्यरि स्य मयळदु झौळ सदनि हम फर आणी रौ। जीबन ज्यूंदू-जग्द रौ। जु त्यरि रुमैलि झौळ नि हूंदी त् जीबनौ क्य हूंदू। दीनद्यब्तन् सुल्वी पितम्वरीं मुख्ड़ि थैं पलोसी सि द्या कुंगळा घामन्।

डिंड्यळ्या तौळ, खुंट्या जौड़ा फर कीलम् पूना गौड़ि बंधी छ। पूना गौळम् बंधी घांडि खुंणमुंण-खुंणमुंण बजणी छ। गौड़्या मुख फर घास धुळ्यूं छ। वींकु घास खाणौ ज्यू नि ब्वन्नू छ। इखरपंत रंमणी छ अर इना-उना द्यखण फर लगीं छ। बाजी दां बिदकि बि जाणि छ। वींकि बाछी वींकै सैम छ। कबऽरि वऽ बाछी थैं चाटि दींणी छ। बाछी गौड़्या गिच्चा दगड़ि गिच्चु न मिलाणी छ जन ब्वलेंद अपड़ि ब्वे कि भुक्कि पींणी हो। पूना बाछी थैं कळ्यूर कै द्यखणि छ। पूना ज्यू मा गुंण्याणि छ- दैबन वीं थै खुचिलि किलै नि द्या। वीं मा खुचिलि हूंदी त् वीन अपड़ि बाछी चुट्ट कै जिकुड़ा फर चिप्टै दींण छै। बाछी पूना तौळ जाणू हतखुटा छिबड़ाणि छ। निरभाग ज्यूड़ौ बंधखंण वीं थैं गौड़्या तौळ नि जाण दींणू छ। दुन्य-जगतरै मुर्दी-ज्यूंदि धाण अंगळति बंधखुंणू मा सगंढ कै मसकयीं छन। बिधातै ज्यूड़िम् ऐंठ्यूं जीबन हर्कि-फर्कि नि सकद।

कांति कौंकि डिंड्यळ्यू मुक पूरब दिसा मा छ। कांत्यू एक नौनू छ- डेड सालौ। गोरू-चिट्टू स्वाणु। बग्वानम् बिफर्यूं गुलाबौ सि फूल। नौ छ काना। ये स्ये पैलि द्वी नौनि अर एक नौनू ह्वे छौ। जन्नि बांण रै हो, जांदा रैनि। यु ह्वा त् सरेल बिळम्ये ग्या। कांति डिंड्यळम् चौपुड़ मारी बैठ्यीं छ। कांत्या खुचिल्यम् काना छ। ब्वे कि खुचिलि- जैं खुचिलिम् सैरी मुंथा समयीं छ। य खुचिलि बाळौ वु दौंपुड़ छ जै मा वु कबि ब्वे कि छत्ती फर मुठकि त् कबि खुटै मन्नू रांद तौबि ब्वे वे थैं अपड़ि जिकुड़ि फर चिप्टै कि रख्द। नौनू जैं यी दां खुटा छटकै कि ब्वे फर लगांद, ब्वे उत्ति दां बाळै खुट्यूं कि भुक्कि पींद। ल्वे कु दूध बणै कि पिलांद। बाळू यीं खुचिलिम् संसरदुधा पींद। यि संसरदुधा वेकऽ मुर्द-मुर्द तक ल्वे मा संसरि ज्यूंदा रंदिन।

कांति सगिळ रात उण्दि रा। ज्यान आँखा भबळयां छन। आँख्यूं कि जोत मुंझी छ। रीती आँखी रुड़्या सरगै सि तरां फटड़ाक हुयींन्। मुंड छिमन्यूं सि छ। गति फरौ सपकु काना तौळ मंदऽड़्वे ग्या। काना मुंथौ बिगरैलू नौनू छ। झपझपि काळी निबूर घुंघर्ळि बलुरि छन। द्वी आँख्यू कऽ मधि छुटि सि नकुंणि सैरी मुखड़्या बिगरौम् क्वी टूट नि कनि छ। कानै आँखी इन छन जन ब्वलेंद जूनै टुकड़्या मधि मा रातन् अपड़ि काळी टिक्की ठमाण कै लगयीं हो। स्वाणि आँखी वाड़ि सि खुलीं छन- भमाण। कांति कबि वेकि चौंठी त् कबि गिच्ची भुक्कि पींणी छ। कबऽरि वऽ वेकि मुखड़ि पल्वसणी छ त् कबऽरि आँख्यूं थैं फुंजणी छ। ज्यू मा आणी छ त् खिलपत ह्वेकि वऽ वे थैं नचांण बैठि जाणी छ। नचांद-नचांद जब वींकि ठौळ पटैनि, पाछ वऽ वेकु लाड कन बैठि ग्या- ‘‘म्यरु कानू, म्यरु सोनू बच्चा, म्यरु लाडौ कुता, म्यरि आँखी, म्यरि गौळै घंडुलि।’’ सुद्दि बयाण फर लगीं छ। पाछ कांतिन् कानू बौंहड़ां अपड़ि कोळिम् पुड़ाळ द्या। अपड़ा दैंणा हतन् वे थैं थुमथे-थुमथे कि निन्नाबाळ्यू गीत लगाण बैठि।

मुखड़ि बिगरैलि त्यरि जिकुड़ि उमैलि, म्यरि आँखी स्ये जा घुर। खुलबितु ब्वे कु तु पिंड छै ल्वेकु, म्यरा छौना स्ये जा गुर। जिकुड़ि लगौलु, त्वे दूधी पिलौलु, म्यरा कानु स्ये जा झम्म। न बाळु म्यरु र्वायी, न कानू बा स्यायी, हे निन्ना औ ये चम्म। बाबा जी आला, त्वेकु खिलौंणा ल्हाला, म्यरा बाळा स्ये जा गुर। दाद्यू लड्याळू छै दादा कु बाळू, म्यरि सासा स्ये जा सुर।

‘‘काना अमणि सींणू किलै नि ह्वलू। स्ये जा बाबा! आँखि बूज कुता। तिन ब्याळि रात बटि दूधी बि नि प्या।’’ ‘‘ब्वारी! मै मा द्येदि लाटी तै नौना थैं। मि सिवाळ द्यूलु तै। ब्याळि बटि त्यरि ठौळि पटै ग्येनि तै दग्ड़ि।’’ क्वांरि काकिन् कांति बटि काना थैं उंड मंगणै छौ पण कांतिन काना हौर चट्ट कै चिप्टै द्या अपड़ि जिकुड़ि फर।

ब्याळि तकै त् कानू यीं निन्नाबाळी सूणी गुर्र स्ये जांदू छौ। दूध्या बान हिंगर घालि दींदु छौ। सर्रा भितरै चखर्वड़ि मारी भांडि-कूंड्यूं टुट्गि-सम्मी कै द्यूंदु छौ। कांति जन्नि वे सान्यून् भट्यौ तन्नि वु घुंडग्वय्या लगै कि गुगराट कै वींकि खुचिल्यम् ऐ जादु छौ। कांति एक हत अपड़ु अर द्विया हत कान्वा म्याळा मा धारी इन गीत सि लगांदी- ‘‘ताति-ताति पूरी मा घ्यू मा छपोड़ि, अच्छू म्यारा बाळू का कानू मरोड़ि ।" तब अपड़ा हतल् कान्वी कुंगळी कंदुड़ि पखड़ी ‘कानू बोट’ ख्यल्दि। कानु खुतखुत-खुतखुत हैंसी अपड़ि ब्वे फर चिप्टि जांदू छौ। ब्वे कि जिकुड़ि मामतल् सम्म भ्वरे जांदि छै। कांति चुल्ला फर जबऽरि रुसै पकांदि छै तबऽरि कानु खुचरिंडा कनु रांदु छौ। चुल्ला मुछ्यळा रुंग्ड़ी हज्यड़ौ आटु छुल्ये कि, पांण्यू ल्वट्या फरकै कि कांत्यू खुणै अळझाट कनू रांदू छौ। सैरा भितरै संडऽभंडि कैकि इकराळ कै दींदु छौ। ब्वे कु सरेल काना खेलबोलू द्येखी खिलपत हुयूं रांदू छौ। एक दिन वेन ताति भुगयीं रुट्या पेट अंगुळ कोचि द्या। बिबलै ग्ये छौ काना। काना हत फर फुफ्रि उप्ड़ि ग्ये छै। कानै पिड़ा सैरी कांत्या जिकुड़म् झणि कक्ख बटि जांदि छै। अंगुळि कानै फुक्या अर पिड़ा काती जिकुड़ि फर ह्वा।

कानू जखमी ज्यू कैर तखमी हागि-मूति दींदु छौ। ब्वे कऽ सरेलम् बिधातल् झिड़बिड़ि नि उब्डा। कांति वे पखणू जौ त् वु गगराट कै म्याळा मा ग्वय्या लगै कि संगता लतग-पतग लगै द्यौ। ब्वे वेकु हग्यू-मुत्यूं उकर्दि त् वु करकुरु कै वीं थैं द्यख्दु कि ब्वे क्य कनी छ। कान्वा बिंगण्म् सप्पा नि औ। ब्वे जन्नि वे थैं नह्वे-धुवै कि उबणि झुल्लि पैरै कि उबठुंगु बणा, घडे़कमी झुल्ला फेर कुतरण्या ह्वे जौ। हति अर घुंड्यूंम् माटा दड़क लगि जांदा छा। कानै पुटगि खालि ह्वे त् कबलाटम् थिनकण बैठि जौ। उठंण्यूं मंगै भूक छै वेकि। एक चुसाक दूधै पींदू अर खुचिल्या बटि सरकी म्याळा मा रिंगण बैठि जौ। जरा फुंडै जा त् उबऽरि दूधै र्हौड़ घालि दींदु छौ। पाळ पख्ड़ी खुटा सरकांण, थुनमुन-थुनमुन हिटंण अर थचम्म भुंया पोड़ि जाण, पितलि बोलिम् ‘‘ता..... ता..... लुत्ति.... उत्ति’’ ब्वन्न अर बाजि दां थूड़ी भौंण सूंणी कांति दुन्य बिस्रि जांदि छै।

ज्यू मा भैर जाणै आणि छ, ग्वय्या लगै कि ठुमठ्याट कै डिंड्यळम् ऐ जौ। ब्वे कि जिकुड़ि हिद्रै जांदि छै। ‘‘हे म्यरि ब्वे! जु गैडगोळ हो त् छज्जा बटि लम्डी चटाक।’’ कांति सरबट वे चुट कोळि मा सैंकि भितर ल्है जांदि छै। ‘‘छि भै, कन चकरचळ्या ह्वा यु। म्यरि सैरी धांण फारि ह्वे जांद ये दग्ड़ि। म्याळा मा जे धांण छ, चट्ट टीपी कप्प गिच्चा घालि दींदु छौ।‘‘ काना गिच्चा बटि खटुगु भैर गाडी बोलि कांतिन, ‘‘काना! बा, कन पुटग्या ह्वे तु। निराट पुटग्यू रोग-सोग हुयूं रांद त्वेकु।’’

कांतिन् खटुगु भैर क्य गाडि कि कानन् सिर्ड़ि गाडि द्या। दूधि फर चिप्टै कि बिळमांण पोड़ि वे थैं। भरि बुरु मानि द्या वेन। झणि क्य रणमणि लगि वे। छट्ट दूधी छोडि वेन अर किराण बैठि ग्या। ब्वेनि पुळ्ये-पते कि धौसिनकै दूधी पिला। ‘‘बुबा जी आला, तब वूंमा त्यारा सौब चकरचाळ लगौलु। भरि उछ्यदि ह्वे ग्या। धांण-धंधौं कु बड़खैंचू कै दींद। सप्पा डौर नी ऐकि जिकुड़्यू।’’

कांत्या आँखौं मा कानै सैरी लीला इन आ जन ब्वलेंद वऽ वेकऽ सुपिन्या दिख्णी रै हो। वीन काना थैं करख्यळ्यूं बटि उठा। भुक्कि पींणै छै अर ढळक मोंण ढळके ग्या। ढळकयां डाळै फौंकि जन। ब्वे कि जिकुड़ि बटि मामतौ भंड भ्वरे कि इन आ जन ब्वलेंद औंदि गाडम् भचैम छल्वार उठि हून। बिधातै डांग जन जिकुड़ि थैं फुण वळु ऐड़ाट मचै द्या कांतिन्। सुनकार गौं मा जीबन त् हो हो, ढुंग्गा तकै तीड़ी ग्येनि। पंछी बिबलै कि फिफड़ांण बैठि ग्येनि। सैरी डिंड्यिळ सोरा-भारी, खोळद्वारा, गौं-गौळा दाना-सयणा, ब्यट्टि-ब्वारी, नौना-बाळा अर जनऽना-मरदुन भ्वरीं छै। ढुड्डि घलघली र्वै ग्येनि सौब। पूना गौड़ी कीला फर भिब्टै ग्या। वींकि गत झझरा अर ल्हतड़्क भुयां पोडि ग्या।

‘‘सौब जंप्ये गियां रै तुम! कैं गाडौ मसांण लगि तुम फर! तैं ब्वार्या खुचिल्या बटि तै नौना थैं फुंड गाडा। ब्याळि रात बटि छ तमऽसु लग्यूं। घाम स्यु चौढ़ी ऐ ग्या।’’ रण्णू ब्वाडौ सगळि रात भर बटि अकताट सि हुयूं छौ। सौब कांती कारणा मा कळ्यूर हुयां छा। कैकि हिकमत नि हूणी छै जु कांत्या खुचिल्या बटि काना थैं फुंड गाडि साक।

‘‘जी! यि लोग किलै अयान् इतगा। क्य ह्वा जी! म्यारा ससरा जी कक्ख छन? जिवरू! कानु थैं हौरी घुट्टि पिला। ब्याळि दुफरम् तुमुन वे थैं घुट्टि पिलै छै। जरा कुमणै ग्ये छौ। अमणि क्य ह्वा ये थैं? न यु सीणू छ, नि बिजणू छ। बाच-सान हर्ची ग्या। टटगार हुयूं छ।’’

‘‘ब्वारी! चुची! क्य ह्वा त्वे। बिस्रि जा बाबा। न तैन अब सीण छ, न बिजण छ अर न हिटंण छ। बिधाता कुम्प ह्वे ग्या त्वैकु।’’ जैमति दानी मनख्याण। कांती खोळद्वारै सासु छ। कांति थैं थामर दीणी छ। कांतिन् जैमति जना फटगरै कि द्येखि। कांत्यू उड्डर बरण बण्यूं छ। सरेल जमडांग सि ह्वे ग्या। वीं सौऽ नि आणी छ कि वींकु डेड सालौ कानू स्ये ग्या। वु इन सुनिंद स्ये ग्या, जैं निंदै सुबेर नि हूंद। कांती सासू सरेल ढुंग्गु बणि ग्या। सगळि रात भर बटि म्यौळंणि घाली गौळ किर्रै ग्ये छै। बाचौ भेद पताळ बैठि ग्या। जीब रुड़्या घामम् तचीं चौकै फटSळि जन हुयीं छ खंणखंणि।

भैर चौकुम् कांत्या सुसरा जी दिवलिम् कपाळ पखड़ी बैठ्यां छन। दानी अाँखि सुद्दि टपराणी छन। घडे़क बैठणै अर उचमुचि उठ जाणी छ। कबऽरि उबरा जाणै हुक्का गडणै, सजुला मा चिमटल अंगार धनै त् चिम्टा चुल्है मा बिस्रि जाणै। सरेलम् उमाळ खिबळाणू छ। दादौ सरेल भिट्गि ग्या- ‘‘खुचिल्यम् धर्यूं खिलौणा फुटि यु। पर्सी स्यु दा.... दा.... कनू छौ। म्यारा नात्यू किराट नि सुण्या पणमेसुर! यु क्य का तिल! हे काना! म्यरि त्वेकु चिज्जी ल्हयीं छ कानू! म्यरि कोटै कीसी लैंमचूसुन भ्वरीं छ कानू! गुगराट कै औ मै मा!’’ उबरा टौखणि मारी रूंण बैठि दादा। भै-बंद उबरा ग्येनि भिबड़ाट कै। भै-बंद कै थैं जि थामुन। दानी-दिवनी सुल्लु थैं बुथ्याणी छन। सुल्वी बाच नि आणी छै। वऽ निराट जिकुड़ि मुठक्यूंन फुण फर लगीं छ। खुचिलि झण फर लगीं छ।

मुर्यां कि डौकात स्वां बथौंम् उडि जांद। पल्या गौं कि रामी रौंका-धौंकि कै आ। रामी कांती मैतुड़्य छ। नाता मा कांती फूफू लग्द। जन्नि वीन सूणि त् फफ्यंडौं कऽ मुक आ- ‘‘क्य बज्जर पोड़ि समधणी! क्य ह्वा? हे म्यरि बकिबाता!’’ सुसगरा भोरी बोलि वीन।

सम्म पुटगा तका सुसगरा लेकि बोलि जैमतिन्, ‘‘समधणी! झणि क्य कळां ख्वया येकि। ब्याळि सुबेरम् तक त् खूब छौ। पुटगि छै येकि टमटमि बणी। ये थैं परसि बटि भैरथबी नि ह्वे छै। पुटगै-पुटगा झणि क्य ह्वा अर....।’’ मुंडा टलखन् आँखा फूंजी बोलि जैमतिन्- ‘‘हौरि घुट्टि त् मिन पिलै यालि छै। दुफरम् बि येकऽ दादन् ये थैं वऽ घुट्टि पिला पण हत नि आ।’’

‘‘हे रां द! गाड़ि -मोटर हूंदी, डौगडर हूंदा त् क्य जण्णै बचि बि जांदु।’’

कांति काना थैं सुद्दि झुल्ला सि गुंडै तरां कबि कांधम्, कबि गौळा उब धनि। ज्यू कऽ निसता म्याला सि च्वैनि। जै यि म्याला च्वैनि, वी बुसिलु दिखेंणू।

‘‘मोर ग्या तेरु! फुटि ग्या जोग। नि बिजाळ तै, तैन अब नि उठंण। ब्वारी! फुंड धैर तै नौना थैं। ब्याळि रुमुक दां बटि छ त्यरु ऐंठ्यूं स्यू नौनू। त्यरि कारणा कैकि जु तैन बचि जाण त् हम सौब कारणा करदां। झूटी छ्वीं छन।’’

चौक सैरु मनख्यूंन् भ्वर्यूं छ। दाना सला कना छन। मैंद्रु ब्वाडा रात भर नि रै साकि। राता दुसरा पौरा फर सीणू अपड़ा घौर ऐ ग्ये छौ। वे त् इन अणगम छै कि अब तकै नौना थैं ल्ही ग्ये ह्वला, पण इक्ख त् अबि बि म्यौळण्यून थौ नि खा। भिंगरे ग्या ब्वाडा- ‘‘अरै यूं कज्यण्यूंन् भरि बकि बात कनै ये गौं मा। लोळौं कऽ लोळौं! स्य ब्वारि त् बौळ्ये ग्या, तुम सौब किलै अड़गिट्यां। मोर ग्या बुरौ, अबेर नि कैरा भै! सौब इन्नी थुंथरी पखड़ी बैठ्यां राला त् ब्वारिन् नि छुडुण नौनू। फुंड रुंग्ड़ि द्या तै छ्वारा थैं वूंकऽ खुचिल्या बटि।’’ मैंद्रु ब्वाडन् कर्ड़ा बोल बोलि द्येनि।

‘‘ससरा जी! कन ब्वन्ना छवां तुम! कांत्यू परांण छ वु। परांण थै क्वी अछी छोडऽलु।’’ कळ्यूर सुरमा बौ कि गौळ घुट्ये ग्या।

‘‘म्वर्यां मुर्दा थैं कैएन् नि सैंकि भितर। माटु ह्वे ग्या।’’ मैंद्रु ब्वाडन् मुंथै निर्क बात बोलि अर सड़म्-सड़म् खुंट्यूं उब हीटि डिंड्यळम् ऐ ग्या। मुंथौ निगुरु मनिख बणि ग्या वु। कांत्या खुचिल्या बटि काना इन रुंग्ड़ि द्या जन ब्वलेंद लगुला बटि कख्डि झंझोड़ि हो। काना दग्ड़ि कांति बि लगुलै तैंणि जन झंझ्वड़्ये कि आ। जनऽनौन् कांति काना बटि छडा। मैंद्रु ब्वाडन् काना झुल्ला मा ढका अर ल्हीगि। कैन् कूटू उठा, कैन् काना झुल्ला।

यीं बाळि मुकजात्रा थैं नि द्येखि साकि कैन्। जनऽनौन् अपड़ा मुक सपकौम् लुकै द्येनि। किल्लाबिब्रि मचि ग्या सब्वी। सुल्लु निरपंणि सि माछी जन भिट्गि ग्या। क्वी दानी मनख्याण कांति थैं त् क्वी सुल्लू थैं थमणि छै। कांती धोति गुंजळे ग्ये छै। कांति भैनै कु मुक कैकि लम्पसार हुयीं अर एक हतन् काना पखणू रीति कंगस्या कनि- ‘‘ससरा जी! तुमुन म्यरि जिकुड़ि रुंगुड़ि यालि। हे सासु जी! म्यारा कानु थैं म्यरि खुचिलिम् धैरा। मिन अपड़ा बच्छा थैं दूधी नि पिला। म्यारा कानू! ब्वे! मै मा औ! ग्वय्या लगै कि औ! ठुमठ्याट कै औ! म्यारा सोनू मै मा औ! रीती खुचिलि बिल्कुणू आणि छ म्यारा छौना! काना! बच्छा! जैं बेर तु र्वे छै मिन ते बुथ्या। त्यरि ब्वे फर पिड़ा हूणी छ, मै बुथ्याणू औ रै!!! काना! कनु सुपिन्यु सि बणि ऐ तु! फ्वाँ रीता बादळै सि तरां उडि ग्ये! काना! अमणि कना ग्वय्या लगैनि तिन जु मिन ते छोपि नि साकि! कन छिंछ्याट कै अटगि म्यारा बच्छा तु! हे बा! त्वे अबि हिटंण नि आंदु! त्यरि नांगि खुट्टि छन! काना तु कै बाठा फर ग्ये! न हो तु कक्खिम् लम्डि जै!’’

यीं कारणा सूणी सौब मनख्यूं कि जिकुड़ि फुटि सि ग्येनि। कानौ दादा ऐड़ांद-ऐड़ांद आ भैर। सयणा गंवड़्य काना थैं ल्हि जाणा अर इना बाळै मामतौ निगुरु घौ कांत्या घटपिंडा झणि कै कूणा फर लगि अर गत घड़ि भरौ झ्वांऽऽ.. ह्वा। स्वांऽऽ... कांत्या परांण बाळा पिछ्वड़ि उडि ग्येनि। डंड्यळ्या कुर्रौं पुटुग घिंडुड़ि अपड़ा घोलम् बैठ्यां बच्छौं खुणै गिच्चम् ग्वाळा ल्है कि यीं ब्वे थैं द्येखी धंधेणी- ‘‘हे ब्वे! कनु परांण छ त्यरु! कतगा पिड़ा ह्वा त्वे फर! जु तिन सै नि साकि। कनु क्वांसु सरेल छ त्यरु! कुंगळू- पूसा मैना पाळा जन, जु जरा बि घाम नि सै सकद। घिंडुड़िन् बच्छा चुट्ट कै अपड़ि पौंखुर्यूं पेट लुकै द्येनि।