भदवा चन्दर, खण्ड-11 / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

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सौंसे गाँव में कुकहारोॅ मची गेलोॅ छै कि आय गाँव के शिवाला वाला मैदानी में नाटक होय वाला छै। नाटक होय रहलोॅ छै, ई कोय बड़ोॅ बात नै छेलै; बात ई छेलै कि ई नाटक में भदवा चन्दर साथें बंटीया, सुन्दरवा आरनी तेॅ भाग लइये रहलोॅ छै, सरबतियौं साथंे साथ यै में भाग लेतै।

"बाप रे बाप, ई तेॅ पहिले दाफी होतै।"

"एकदम अजूबा बात होतै। आय तांय तेॅ लड़क्हैं लड़की के पार्ट करै छेलै, आबेॅ ई नाटक में लड़कीयै लड़की के पार्ट करतै। हद होय गेलै।"

" अभी की हद होलोॅ छै। बाहर सें बहुत कुछ सीखी केॅ ऐलोॅ छै भदवा, अभी गाँवोॅ के बहुत कुछ सिखैतै यैं।

"मतरकि सरबतिया केॅ ओकरोॅ माय-बाप केना नाटकोॅ में भाग लैलेॅ दै रहलोॅ छै।"

" तोहें जानै नै छै, सरबतिया के शादी तेॅ बच्है में भदवा साथें होय गेलोॅ छै। आबेॅ भदवां जे चाहतै, ऊ केना नै होतै।

"ई बात हम्में नै समझेॅ पारलियै कि बच्है में सरबतिया रोॅ बीहा।"

"असल में सरबतिया आरो भदवा के माय बचपन के सहेली रहलोॅ छै। जखनी सरबतिया कोखी में छेलै, तखनिये भदवा के माय सरबतिया-माय सें कहलेॅ छेलै-जों बेटी होलौ तेॅ ऊ हमरी पुतोहू होती। बस यही समझी ले कि सरबतिया के मांगी में सिन्दूर नै पड़लोॅ छै, कारण कि मैट्रिक पास करला के बाद भदवा गाँव सें भागी जे गेलै। आबेॅ ऐलोॅ छै तेॅ देखै की-की होय छै।"

"तेॅ की है बात भदवा आरो सरबतियो केॅ मालूम छै?"

"अरे ई बात शाते गाँवोॅ में हेनोॅ कोय होतै, जे नै जानै छै-जेना तोहें।"

"तेॅ है कहीं कि नाटक में पति-पत्नी आरो दियोरसिनी मिली केॅ भाग लै रहलोॅ छै। तबेॅ तेॅ नाटक में आरो मजा ऐतै।"

ठीक रात के नोॅ बजे नाटक शुरू होलै। नाटक देखैलेॅ मुखिया, सरपंच आरनी साथें ऐलोॅ छै। एकदम मंच के आगू में आठ कुर्सी लगैलोॅ गेलोॅ छै, जेकरा पर मुखिया आरनी विराजमान छेलै। पीछू जमीन पर पुआल दूर तक बिछाय देलोॅ गेलोॅ छेलै जैमें, दू हजार सें कम आदमी नै बैठलोॅ छै। खाली वहेॅ गाँव के लोग नै जुटलोॅ छेलै-आस-पास के कैएक ठो गामोॅ के भी लोग जुटलोॅ छेलै।

ढोलक हरमुनियम, झाल के आवाज बंद होत्हैं, अँधेरा भरलोॅ मंच पर रौशनी होलै आरो दृश्य शुरू होय गेलै।

"अरे बाप, भदवा तेॅ एकदम मुखिया रं लागै छै, केहनोॅ रूप सजैनें छै"

"अबेॅ चुप, नाटक देख।"

पूरे पंडाल में एकदम शांति छै। एकदम पीछू वाला उचकी-उचकी केॅ दृश्य देखी रहलोॅ छै,

रघु ः प्रणाम बाबूजी! कबेॅ आइल्ह भागलपुरोॅ सें?

मुखिया ः रघु! सुनै छियौ आयकाल तों बड़ा परोपकारी होय गेलोॅ छैं। सबकेॅ शिक्षा दान करैलेॅ चललोॅ छैं। बच्चा केरोॅ साथ-साथ जवान छौड़ियौ केॅ पढ़ावै छैं। आपनोॅ काम-धाम करै के ठिकानोॅ नै तेॅ परोपकार करैलेॅ चललोॅ छै। बड़ा दधीचि बनैलेॅ चललोॅ छैं। अरे, सब गरीब गुरूआ केरोॅ बच्चा केॅ पढ़ाय देभैं तेॅॅ हमरोॅ होॅर के जोततै?

रघु ः बाबूजी! तोेरोॅ सोच एकदम ग़लत छौं। है धरती पर आदमी कथीलेॅ पैदा लै छै? खाली स्वारथै लेॅ कि कुछ परोपकारो करलोॅ जाय। खाना-पीना, मरना है तेॅ जानवरो केरोॅ काम छेकै, बाबूजी. अगर परोपकार केरोॅ भावना आदमी सें लुप्त होय जाय तेॅ आदमी आरो जानवरोॅ में फिरू फरक की रहलै? एक आदमी अगर दोसरोॅ आदमी रोॅ दुख-दरद नै समझतै तेॅ के समझतै, बाबूजी?

टेकना ः मालिक! ठीक कहै छौं छोटे मालिकें।

मुखिया ः अबे साला, चुप। मारबो जे थापड़ कि होसे बिगड़ी जैतौ। बड़ा बीचोॅ में टपकैलेॅ चललोॅ छैं!

रघु ः बाबूजी! है गरीब बेचारा केॅ तोहें कैहनें गाली दै छोॅ? यहेॅ नै कि हय गरीब छै, लाचार छै, दोसरा के रोटी पर जियै छै। लेकिन जानी लेॅ, बाबूजी! इहेॅ गरीबोॅ के चलतें आय तोरोॅ है महल खड़ा छौं। मखमली सेज पर एकरै चलतें तोहें आय आराम फरमाय छोॅ आरो तोेहें ई बेकसूरोॅ केॅ गाली दै छोॅ!

मुखिया ः तोरा पागल सें हमरा ज्यादे बहसबाजी नै करना छै। हमरोॅ आगू में जनमलोॅ हमरे सिखाय लेॅ चललोॅ छैं। जो-जो आबेॅ बहुत उपदेश होय गेलौ। ज्यादे बहसबाजी करै रोॅ हमरा टाइम नै छै।

कि तभिये मुखिया उठी केॅ चली दै छै, मंच पर रघु आरो ठेकना बची रहै छै। कि तखनिये अँधेरा फैलै छै आरो 'मार साला केॅ, मार साला केॅ' आवाज के साथें 'बाप रे बाप' के चीख मचै छै। रौशनी होला पर मंचोॅ पर लहुलुहान रघु आरो टकना पड़लोॅ छै। तखनिये भदवा चन्दर सामान्य भेषोॅ में सरबतिया साथें आवै छै आरो घूमी-घूमी गीत गावै लागै छै-

कहिया ऐतै जिनगी में बहार सुन गे सजनी
केना होतै शिक्षा में सुधार।
प्राथमिक शिक्षा के तेॅ हाल बदहाल गे
पाँच-पाँच कक्षा पेॅ-दू टा शिक्षक बहाल गे
विद्यालय की लगतै, लागै गुहाल सुन गे सजनी
केना होतै शिक्षा में सुधार।
एके गो कोठरिया में तीन-तीन किलास गे
बैठौ में मारा-मारी, ताकै आकाश गे
पढ़ैतै की मास्टर, धुनै कपार; सुन गे सजनी
केना होतै शिक्षा में सुधार।
वोटर-लिस्ट सें लैकेॅ, वोट दिलावै में
आदमी, गाय, भैंस, बकरी आरो मुर्गी गिनाबै में
मस्टरवा छै रात-दिन बेहाल, सुन गे सजनी
केना होतै शिक्षा में सुधार।
इन्दरा-आवास, बिरधापेंशन, पोखरिया खोदाबै में
गाँव-गाँव घुरी-घुरी, आम सभा करावै में
नै तेॅ सस्पेड होय लेॅ होय जा तैयार, सुन गे सजनी
केना होतै शिक्षा में सुधार।
शिक्षा आरो शिक्षक के दुख, केकरा सुनाबै
सुनी-सुनी सब्भे आपनोॅ, मुड़िया घुरावै।
आबेॅ जे ऐतै कोॅन सरकार सुन गे सजनी
केना होतै शिक्षा में सुधार।

नाटक होय गेलै। आरो-आरो दर्शक साथें मुखियो जी आपनोॅ दल-बल साथें उठलै आरो एक दिश बिना कुछ प्रतिक्रिया जाहिर करल्हैं चली देलकै। पीछू-पीछू ओझा जी भी आपनोॅ ढेका सम्हालने चललै। आरो केकरो चेहरा पर जत्तेॅ खुशी रहेॅ, ओझा जी के चेहरा पर गुस्सा एकदम साफ-साफ दिखी रहलोॅ छेलै।