भदवा चन्दर, खण्ड-5 / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

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"की सोची रहलोॅ छोॅ चन्दर?"

"नै, कुछु सोची रहलोॅ छियै?"

"सोची तेॅ रहलोॅ छोॅ ज़रूरे कुछ। कै दिन सें तोरा हेने मनझमान देखै छियौं।" भदवा चन्दर के चेहरा पर नजर गड़ैतें लाल बाबा नें कहलकै।

लाल बाबा के समाज के बीच काफी नाम छै। आय सें नै, लगभग चालीस साल पहिलें ऊ आपनोॅ गाँव छोड़ी केॅ नेपाल आवी गेलोॅ छेलै आरो वांही एक इस्कूल खोली केॅ बच्चा सिनी केॅ पढ़ावेॅ लागलोॅ छेलै। स्कूल चली निकललै तेॅ वैनें दू-चार आरो गुरूजी के बहाली करी लेलकै।

भदवा चन्दर केॅ मालूम होलै कि लाल बाबा दुमका के ही रहै वाला छै, तेॅ वहू ओकरोॅ पास चललोॅ ऐलै। लाल बाबा तेॅ सुनत्हैं खुश भै गेलै कि भदवा चन्दर ओकरे गाँव-टोला के आस-पास के लोग छै। आरो वही दिन सें दोनों एक भै गेलै। भदवा दास जी के स्कूली में गुरूजी बनी गेलै। गुरु की बनी गेलै, एक तरह सें हौ इस्कूल के मालिके समझोॅ। हेना केॅ भदवा छेलै तेॅ लाल बाबा सें बहुत छोटे-उमिरो में आरो कदो में। तहियो लाल बाबा साथें ओकरोॅ व्यवहार कुछ दोस्तानाहै रहै।

आय कै दिन सें सचमुचे में भदवा कुछ-कुछ उदास दिखै। होकरोॅ ध्याने बँटावै लेली लाल बाबा नें एक अखबार आपनोॅ झोली सें निकाललकै आरो कहेॅ लागलै, "चन्दर, देखोॅ तोरोॅ वास्तें हम्में एक अखबार लाननें छियौं। अखबारोॅ में आपनोॅ मुलुक के बारे में छपलोॅ छै। दू-चार पंक्ति पढ़लियै तेॅ खरीदी लेलियै। सोचलियै कि तोंही एकरा पढ़ी केॅ सुनैवा तेॅ हम्में सुनवै। देखोॅ नी यै में की लिखलोॅ छै।"

भदवा चन्दर नें अखबार आपनोॅ हाथोॅ में लै लेलकै। सचमुचे में ओकरोॅ चेहरा सें उदासी हठाते हटी गेलोॅ छेलै। अखबार खोली केॅ वैनें पढ़ना शुरू करी करलकै-अंग जनपद के स्थापना आरो अंग-वंश के उद्गम सम्बंधी बात अनेक पुराणोॅ के साथ ऋगवेदो में ४ / ३ॉ / १६ सें लै केॅ १ॉ / ६२ / १ॉ तालुक चर्चा छै, जबेॅकि विष्णु पुराण के ४ / १ॉ / ३, भागवत पुराण के ९ / २३ / १६, वायु पुराण के ९९ / ५ आरो ब्रह्मांड पुराण के १ / ७५ / ७ में अंगवंशोॅ के छिटपुट चर्चा छै। विस्तृत रूप में अग्निपुराण के पूरे २७७मां अध्याय आरो मत्स्य पुराण के सौंसे ४८मां अध्याय में अंग-वंश के चर्चा होलोॅ छै। होना केॅ अर्थववेद के ५ / २२ / १८, गोपथ के २ / ९ आरो अत्रोय ब्राह्मण के ३९ / ८ / २२ के अलावें शतपथ, दीर्घतम आरो कक्षीवत आरनी में भी छिटपुट रूपोॅ में अंग आरो अंगनृपोॅ के नाम अयलोॅ छै, मतर ओकरा सिनी सें अंग जनपद अथवा अंग-वंशीय राजा सिनी केॅ गोरे खांड चर्चा देखैलोॅ गेलोॅ छै। जे रं विस्तारोॅ सें चर्चा अग्नि पुराणोॅ आरो मत्स्य पुराणोॅ में होलोॅ छै, हौ रं दोसरोॅ ठियाँ नै मिलै छै। रामायण (बाल्मीकि) के बालकांड के सर्ग ८ सें लै केॅ १८ तालुक में आरो महाभारतोॅ के आदि पर्व सें लै केॅ अश्वमेघ यज्ञ पर्व तालुक में कैक मर्तवे अंग देशोॅ के चर्चा भेलोॅ छै, मतरकि ओकरा सें अंगवंशीय राजा के सीमित चर्चा ही भेटै छै।

सब्भै पुराणोॅ में अंग जनपद के उल्लेख छै। आबादी वाला भाग जनपद कहलावै छेलै, जबेॅकि गैर आबादी वाला भाग वन, अरण्य आरनी नामोॅ सें जानलोॅ जाय छेलै। प्रत्येक जनपद कोय राज्है के नामोॅ सें जानलोॅ जाय छेलै।

अग्नि पुराण में अनेक वंशोॅ के लेखा-जोखा छै। कोॅन जनपद कोनी वंशोॅ के राजां स्थापित करनें छै-एकरोॅ उल्लेख साथें-साथ देलोॅ गेलोॅ छै। जेनाकि सूर्यवंश के स्थापना के कथा अलगे-अलग ढंगोॅ सें अग्नि पुराण, मत्स्यपुराण अथवा नरसिंह पुराणोॅ में कुछु कम-बेशी करी केॅ देखैलोॅ गेलोॅ छै। वहेॅ रं पुरु वंशोॅ के कथा छै, जेकरोॅ वर्णन अलग-अलग अध्यायोॅ में सब्भे पुराणोॅ में छै। ओकर्हौ में कटि-कटि समरूपता के अभाव मालूम पड़ै छै। होना केॅ सृष्टि के बाद केना-केना मनु-वंशोॅ के वंशावली चललै? की-की घटना कबेॅ-कबेॅ कोॅन रं घटित भेलै? हय रं कोय राजवंशोॅ के पीढ़ी आदि कालोॅ सें पुराण लिखै काल तक केॅ देखाय के मकसद ही पुराणोॅ के विषय भेलै। अग्नि पुराणोॅ में जे देवद्वीपोॅ के साथ कुमारिका द्वीपोॅ के वर्णन ऐलोॅ छै, हौ तखनी वास्तविक पृथ्वी के ही द्योतक रहै। वही कुमारिका द्वीप के मालिक के रूप में सृष्टि के बाद आबादी बढ़ला पर महाराज तुवर्सु के नाम दिखावै छै। अनेक वंशोॅ के साथ-साथ अंगवंश्हौ के हुनिये उद्गम पुरुष अग्निपुराणोॅ में देखैलोॅ गेलोॅ छै। प्रथम राजा के रूप में हुनकै मानी केॅ हुनकोॅ वंशावली देखैलोॅ गेलोॅ छै, हुनकोॅ बीस पीढ़ी है रं दर्ज छै-अनाम / तुवर्सु / वर्ग / गोमानु / त्रौशानि / करंघम / मरुत / दुष्यन्त / वरुथ / गाण्डीर / गान्धार / धर्म / घृत / विदुष / प्रचेता / सुभानु / कालेरनल / सृंजय / पुरंजय आरो जन्मेजय।

यें बीस पीढ़ी के अन्दर ही कत्तेॅ राजां सिनी आपनोॅ-आपनोॅ नामोॅ सें अलग-अलग जनपद स्थापित करलकै। जेना कि गाण्डीर के पाँच पुत्र-१. गान्धारें, २. केरलें, ३. चौलें, ४. कर्षे ं आरो ५. पाण्डयें, आपना-आपना नामोॅ पर राज्य स्थापित करलकै। मतर मत्स्य पुराणोॅ में अंग-वंश के साथ अन्य वंशोॅ के उद्गम-पुरुष ययाति केॅ देखैलोॅ गेलोॅ छै। अग्नि पुराणोॅ में उद्धृत उद्गम-पुरुष तुवर्सु ही ययाति के पाँचमोॅ बेटा देखैलोॅ गेलोॅ छै। है रं ययाति के पाँच बेटा जेकरोॅ नाम क्रमशः जन्मेजय, दुह्य, अनु, नरुथ आरो तुबर्सु देखैलोॅ गेलोॅ छै, वास्तव में ययाति के द्वारा सम्पूर्ण कुमारिल द्वीप के पाँच अलगे-अलग जनपद बनलै। राजा अनु ही मध्य क्षेत्र के सम्राट बनलै, जेकरोॅ वंशावली है रं देखैलोॅ गेलोॅ छै-ययाति / अनु / समानर / कोलाहल / संजय / पुरंजय आरो जन्मेजय।

संजय आरो सृंजय के नामोॅ में कटिटा असामनता देखैला बाद पुरंजय आरो जन्मेजय लै केॅ, बांकी के वंशावली के पीढ़ी में कटि-कटि नामोॅ के अंतर छोड़ी केॅ बांकी दोन्हूँ पुराणोॅ में एकरूपता ही छै। अग्नि पुराणोॅ के अठारमोॅ अंग वंशीय पीढ़ी आरो अग्नि पुराणोॅ के पाँचमोॅ पीढ़ी के नाम के बाद कहीं बेशी विषमता नै भेटै छै।

कुल मिलाय र्केॅ अिग्न पुराणोॅ में अंग-वंश के राजा सिनी के ५१ पीढ़ी दर्ज छै, जबेॅकि मत्स्य पुराणोॅ में सब मिलाय केॅ ३९ पीढ़ी ही दर्ज देखैलोॅ गेलोॅ छै। राजा जन्मेजय के बाद के पीढ़ी में क्रमशः हुनकोॅ बेटा महाशाल आरो पोता महामना राजा बनलै। महाराजा के दू बेटा उसीनर आरो तितिक्षु भेलै। उसीनर के ही पुत्र ऋषि कन्या दृष्वन्ती सें महराज शिवि होलै, जेकरोॅ दानशीलता जगतप्रसिद्ध छै। शिवि आरो दधीचि के खिस्सा सें के अवगत नै छै? वै राजा शिवि के ही चार पुत्रों चार जनपद आपनोॅ-आपनोॅ नामोॅ सें स्थापित करलकै, जे पृथुदर्भ, सुवीर, कैकय आरो भद्रक होलै।

चक्रवर्ती महाराज महामना के दोसरोॅ बेटा तितिक्षु जेकरोॅ वर्णन ऊपर भै चुकलोॅ छै, हुनिये अंग वंश के मध्यम पुरुष के रूप में काशी आरो पूर्वी क्षेत्रोॅ के राजा बनलै। हुनकोॅ पुत्र रुषद्रथ, पोता पैल आरो परपोता सुतपा, क्रमशः पीढ़ी-दर-पीढ़ी पूर्वी क्षेत्रोॅ के राजा होलोॅ गेलै। राजा सुतपा अनन्य शिवभक्त छेलै आरो कुछ श्रापवशें निर्व ंशता झेली रहलोॅ छेलै।

है वै समय के खिस्सा छेलै, जखनी पाताल नरेश महादानी असुरराज बलि के दानवीरता के परीक्षा लै खातिर भगवान विष्णु केॅ वामन अवतार धरै लेॅ पड़लै। सम्पूर्ण पृथ्वी केॅ पाताल सहित तीन डेगोॅ सें छली केॅ जबेॅ वामन नें बलि के दानवीरता के प्रशंसा करी-करी खुश होय केॅ वरदान दियेॅ लागलै तेॅ राजा बलि नें निर्व ंशता हटाय खातिर पुत्र-कामना करलकै। वामन देवें बलि केॅ अगला जन्मोॅ में सुतपा के पुत्र रूप में मनुष्य योनि में कामना पूर्ण करै के वरदान दै देलकै।

पैल पुत्र सुतपा के पुत्र रूपोॅ में असुरराज के मनुष्य योनि में ऐथैं हुनकोॅ नाम फेनू बलि ही पड़लै, मतर "महायोगी बलि" कहलाय केॅ हुनी पिता के मृत्युपरांत राजा बनलात। हुनकोॅ बीहा सुदेष्णा नामक पत्नी सें भेल्है, मतर वामन के पूर्वजन्म के वरदानोॅ के खातिर पुत्र के मनोकामना में हुनका पत्नी सहित महर्षि दीर्घतमा के शरण में जाय लेॅ पड़लै। यै जन्म में भी हुनकोॅ पुत्र-योग कोय अन्य श्रापवश अधुरे रहलै। आखिर अनुनय-विनय पर महर्षि दीर्घतमा घामी गेलात आरो हुनके संयोगोॅ सें बलि के सहमति के आधार पर सुदेष्णा के गर्भ सें पाँच टा क्षेत्रज पुत्र राजा बलि केॅ मिललै। एक ऋषि के तेज सें पैदा होलोॅ बलि के यै पाँचो क्षेत्रज पुत्रोॅ में ऋषि-संस्कार भरलोॅ छेलै।

वही पाँच क्षेत्रज पुत्रोॅ में ज्येष्ठ के नाम अंग छेलै। बाँकी चार पुत्र बंग, पुण्डय, सुह्य आरो कलिंग रहै। अग्नि पुराणोॅ में सुह्य के जग्घा पर बलि के चतुर्थ पुत्र के नाम 'मुख्यक' देखैलोॅ गेलोॅ छै। काशी सें पूरब के राजोॅ केॅ पाँच हिस्सा में बांटी-बांटी यै पाँचो क्षेत्रज पुत्रों आपना-आपना नामोॅ सें अलगे-अलग जनपद स्थापित करलकै। अंग देश के स्थापना बलि के ज्येष्ठ पुत्र अंग द्वारा ही होलै, जंे राज्य के केन्द्रीय स्थल मालिनी केॅ आपनोॅ राजधानी बनैलकै। बाद में महायोगी बलि नें सब्भै बेटा केॅ राजपाट थमाय केॅ तप आरो समाधि में जिनगी खपाय देलकै।

श्रुति, स्मृति आरो पुराणोॅ के तुलनात्मक अध्ययन सें पता लागै छै कि अंग देश के स्थापना गंगावतरण काल सें कुछवे पैन्हें होलोॅ छै।

अग्नि पुराण, मत्स्य पुराण अथवा नरसिंह पुराण में सूर्यवंश के अंग-वंश रोॅे पूर्व नृपति सें पीढ़ी-दर-पीढ़ी के अस्तित्व मिलौनोॅ पर है स्पष्ट होय जाय छै कि जों कौशलपति दशरथ आरो अंगपति रोमपादोॅ के मित्रता केॅ पैमाना मानी केॅ ऊपर के पीढ़ी आरो नीचें के पीढ़ी के बारीकी सें मिलौन हुवेॅ तेॅ राजा अंग के पिता महायोगी बलि सूर्यवंशी राजा दिलीप के समकालीन राजा मालूम पड़ै छै आरो चक्रवर्ती सम्राट अंग महाराज भगीरथ के समकालीन। भगीरथें जबेॅ आपनोॅ पुत्र नाभाग केॅ अयोध्या राज सौंपी केॅ तप करै खातिर जाय छै, ठीक तखनिये अंग जनपद के स्थापना के समय होय छै। राजा भगीरथोॅ के सातमोॅ पुस्तोॅ में दशरथ आवै छै, ठीक वहेॅ रं महायोगी बलि के सातमोॅ पुस्तोॅ में रोमपाद के नाम छै। सात पुस्तोॅ में अंग के बाद-दधिवाहन / दिविरथ / धर्मरथ / चित्ररथ आरो सत्यरथ छै। होना केॅ अंग नरेश रोमपाद के बेटा चतुरंग या सोमपाद भेलै, जिनी निर्व ंशता में उलझलोॅ छेला। हुनकोॅ पुत्र पुथुलाक्ष भी ऋष्यश्रृंग के नियोग द्वारा ही भेटलोॅ छेल्है। पृथुलाक्ष के बेटा चम्प भेलै, जिनकोॅ जन्मोत्सव में महानगरी मालिनी के आगू में चम्पा शब्द जुटलै आरो तहिये सें मालिनी चम्पा कहावेॅ लागलै,

राजा चम्प भी निपुत्तरे छेलात। पूर्णभद्र जी के कृपा सें ही हुनका 'हर्यङ्ग' पुत्र भेलै, जिन्ही कालक्रम में राजसूय यज्ञ करी केॅ चक्रवर्ती सम्राट बनलात। यज्ञ के आहुति पर ही देवराज इन्द्र के वाहन ऐरावतें खुश होय केॅ हुनका आपनोॅ पुत्र यज्ञ-कुण्ड सें प्रदान करलकै, जेकरा देखथैं दुश्मनोॅ के सेना के बोॅल आधोॅ होय जाय छेलै। हर्यङ्ग के पुत्र भद्ररथ आरो पौत्र वृहदकर्मा भी चक्रवर्ती पिता के साख ढोतें रहलै, मतर वृहदकर्मा के पुत्र वृहद्भान के समय में पुरुवंशी राजा शान्तनु के चक्रवर्ती बनथैं सब्भे पूर्वी राज हुनके अधीन होय गेलै। वृहद्भान के बेटा जयद्रथ आरो पोता वृहद्रथ भेलै। राजा विश्वजीत ही राजा वृहद्रथ के पुत्र छेलात, जेकरा फेनू विर्व ंशता झेलै लेॅ पड़लै। चौथापन तालुक हुनी निपुत्रो रहलात। राजा भगदत, जे पूर्वी देश पुण्ड्रय के राजा छेलै, विश्वजीत के सहायतार्थ कुरुराजोॅ के कहला पर हुनकै संरक्षण में काफी समय तालुक अंग राज्य में रहलै, जौनें आपने नाम पर भगदतपुर नगर बसैलकै, जे इखनी भागलपुर कहावै छै। शासन करै में लाचार अंगराज विश्वजीतोॅ केॅ पावी केॅ ही कुरुपति दुर्योधनें रंग-सभा में कर्ण केॅ अंग-सम्राट बनाय के ऐलान करी देलकै। कर्ण भी वही आधारोॅ पर अंग के राजधानी चम्पा मालिनी आवी केॅ यहाँ राजा विश्वजीतोॅ के पोसपुत्तर बनलात आरो अंगपुत्र बनला के बादे हुनी अंग-सम्राट के पद ग्रहण करलकात।

अंग-सम्राट होला पर महाराज विश्वजीत के पुत्र रूप में ही, हुनके सलाह पर हुनी बीहौ भी करलकात आरो शौर्य, दानशीलता के कीर्ति-पताका फहरैतें महाभारत युद्ध में वीरगति पैलकात। हुनके जीवनकाल में ही हुनकोॅ दू पुत्र वृषसेन आरो वृषकेतु भारी पराक्रमी निकललै। वृषसेन के मृत्यु तेॅ कुरुक्षेत्र युद्ध में कर्ण के मृत्यु के एक दिन पैल्हैं होलै, जबेॅकि वृषकेतु भीष्म पितामह के आदर्श लै केॅ ब्रह्मचर्य पालन करतें हुवेॅ, राजा परीक्षित आरो जन्मेजय के (युद्धिष्ठरोॅ के बाद) सिपहसालारोॅ में रहलै। अर्जुन के साथें, कुरुक्षेत्र युद्ध होला पर, अश्वमेघ यज्ञ में सब्भे राजा सिनी केॅ युद्ध में अकेले पराजित करी-करी हस्तिनापुरोॅ के अधीनता स्वीकार करवाय केॅ फेनू युद्धिष्ठिर केॅ चक्रवर्ती सम्राट बनावै में वृषकेतु मददगार भेलै।

कर्ण के पोता पृथुसेन अंग-वंश के अंतिम राजा मत्स्य पुराणोॅ में देखैलोॅ गेलोॅ छै-

आसीद वृहद्रथाच्चैव, विश्वजिज्जन्मेजयः
दाया दस्तत्य चाङगोवै तस्माद कर्णोऽभव नृपः
कर्णस्य-वृषसेनस्तु, पृथुसेनस्तथात्मजः
एतेऽङगस्थाज्मजाः सर्वे राजान कीर्तिमान

होना केॅ विश्वजिज्जन्मेजय के मोताबिक अग्नि पुराणोॅ में कर्ण केॅ राजा जन्मेजय के पुत्र बतैनें छै, जबेॅकि वृषसेन आरो पृथुसेनोॅ केॅ क्रमशः दोसरोॅ आरो तेसरोॅ पीढ़ी के रूप में ओकर्हौ में चर्चा छै। मतर सब्भे बात-विचारोॅ सें मत्स्ये पुराण के सब बात तर्कसंगत बुझाय छै।

होना केॅ राजा पृथुसेन जे कर्ण के पोता छेलै, हुनका मरला सें अंग-वंश कुछ लड़खड़ाय केॅ छिन्न-भिन्न ज़रूरे होलेॅ होतै, कैन्हेंकि सब्भे पुराणें यहीं ठां अंगवंश के कथा केॅ समाप्त करी दै छै।

दोन्हू पुराणोॅ आरो खास करी केॅ मत्स्य पुराणोॅ के मोताबिक अयोध्या के सूर्यवंशी अन्तिम राजा के रूपोॅ में श्रृतायु केॅ ७२वीं पीढ़ी में राखनें छै तेॅ अंगवंशी राजा पृथु केॅ ३९वीं पीढ़ी में। अंगवंशीय राजा कर्ण के समकालीन सूर्यवंशीय राजा चन्द्रगिरि केॅ देखैलोॅ गेलोॅ छै। इतिहास के अध्ययन सें पता चलै छे कि आपना केॅ अंग-वंशीये मानी केॅ राजा ब्रह्मदत्त आखरी राजा होलै, जौनें आपनोॅ पराक्रमोॅ सें मगधपति भटटेय केॅ युद्ध में पराजित करी आरो मगधराज के हत्या करी, मगध केॅ अंग साम्राज्य में मिलाय लेलकै। मतर कुछुवे कालोॅ के अन्तरालोॅ में भट्ेटय राजा के निर्वासित पुत्र बिम्बसारें अंग सैनिकोॅ में विद्रोह कराय आपनोॅ तरफें मिलाय लेलकै आरो फेनू आपनोॅ पिता के हत्या के बदला वें ब्रह्मदत्त के माथा काटी केॅ वसूली लेलकै। यहो उल्लेख मिलै छै कि सम्राट अशोक के माय सुभद्रांगी देवी यही चम्पामालिनी परिवारोॅ सें छेलीत।

महाराज अजातशत्रु के समय सें ही अंगवंश के स्वरूप मिठी गेलै। हुनकोॅ बेटा मगध सम्राट उदयन भेले, जेकरोॅ समय तक अैतें-अैतें चम्पामालिनी के राजपरिवारें पलायन करी चुकलोॅ छेलै।

महान इतिहासकार एॉ एसॉ अल्तेकर के मोताबिक बौद्ध साहित्य अट्टकथा में वर्णित भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण काल में जे वैशखी पूर्णिमा ४८६ ठब् में होलै, अंगराज वंशोॅ के नाम मेटाय चुकलोॅ छेलै। कैन्हेंकि अट्टकथा में खाली नवे टा राजवंशोॅ केॅ हुनकोॅ अस्थिकलश लेली लड़ते-झगड़तें देखैलोॅ गेलोॅ छै, जेकरा में अंग-राजवंशोॅ के नाम नदारद छै। अजातशत्रु ही वै समय में सब्भे राजा सिनी के मुखिया छेलै। कहै छै कि अजातशत्रु के कहलहै पर हुनकोॅ पुत्र उदयन नें अंगराज केॅ पट्टी पर चलाय लेली वणिक-वंश के नगर सेठ चन्द्रशेखर (चान्द्र सौदागर) केॅ मातहत राजा के दर्जा देलकै। बिहुला-विषहरी के कथा हुनके काल के छेकै, जेकरा में सती बिहुला के चलतें अंग क्षेत्र के यश कीर्ति कर्ण के बाद फेनू उजागर भेलै। वणिक-वंश के बाद खेतौरी-वंश के पट्टीदारें सिनी अंग के टुकड़ा-टुकड़ा करी केॅ राजा बनलोॅ गेलै।

अंग के पूरे क्षेत्र नौमी सदी तालुक केन्हौ केॅ एकजुट रहेॅ पारलै। दशमी सदी में नालन्दा आरो विक्रमशिला, जलालुद्दीन खिलजी हाथें ध्वस्त होला के बाद सौंसे अंग छितराय गेलै। मुगल शासकें आरो फेनू अंगरेज शासकें एकरोॅ पहचान मिटाय के भरसक प्रयत्न करलकै।

सब्भे के चोट सहतें हुवेॅ भी है धरती के लोगें कर्णचौरा कर्णगढ़, चान्द सौदागरोॅ के लोहा-बाँस गृह, विक्रमशिला, जान्हवी, रावणेश्वर मधुसूदन धाम मन्दार, अजगैवीनाथ, सिहेश्वर नाथ, बटेश्वरनाथ, जेठौरनाथ आरो बासुकीनाथोॅ केॅ स्मरण करी-करी विभन्नता में एकता प्रदर्शन करी-करी अभी भी अंग देशोॅ के नामोॅ पर एक होय केॅ जुटलोॅ छै।

अंग के प्राचीन गरिमा में पुरुष पात्र विश्वजयी चक्रवर्ती सम्राट अंग के साथ-साथ हुनकोॅ पिता महायोगी बलि, बीज पिता महर्षि दीर्घतजमा वंशज, महानैय्यायिसक चित्ररथ, बाहुबली रोमपाद, पृथुलाक्ष के बीजपिता ऋष्यशृंग, विश्वजयी खानदानी राजा हर्यङ्ग, दानवीर सूर्यपुत्र कर्ण, बाहुबलि कर्णपुत्र वृषसेन, पराक्रमी कर्णपुत्र वृषकेतु के बाद अन्तिम अंगवंशीय नृप ब्रह्मदत्त केॅ जे रं स्थान छै, वही रं स्थान चक्रवर्ती राजा अंग के माय आरो बलि पत्नी सुदेष्णा, रोमपाद केॅ दशरथ सें देलोॅ दत्तकपुत्री त्यागमयि देवी शान्ता, अंगवंशीय राजा के पुत्री सुभद्रांगी देवी-जिनका गर्भ सें मगध सम्राट अशोक पैदा होलै, वणिकसुता बिहुला-जौनें अंग के गरिमा के इतिहास रचलकी आरो बौद्धकालीन वणिकसुता विशाखा एवं जैनकालीन चन्दनवाला के गरिमामय स्त्राीपात्र रूपोॅ में छै।

अंग जनपद के पराक्रम आरू गरिमा केॅ तेॅ मात्र ई वचन सें ही समझलोॅ जावेॅ सकै छै-

अंग समन्तं सर्वतः पृथ्वीजयन परियायाश्वेन च मेध्येनेजे इति।

पढ़तें-पढ़तें भदवा चन्दर मौन होय गेलै। होकरोॅ चेहरा पर एक अजीब तरह के गौरव उतरी ऐलोॅ छेलै, जेना वें ऊ गौरव केॅ पहचानै के कोशिश करतें रहेॅ। ऊ सोचेॅ लागलै कि ओकरोॅ मुलुक कत्तेॅ महान छै, जेकरा छोड़ी केॅ ऊ चललोॅ ऐलोॅ छै। कि हठाते ओकरोॅ मनोॅ में ऐलै कि ऊ आपनोॅ मुलुक लौटी जाय। आपनोॅ देश, गाँव, जहाँ वैं आपनोॅ जीवन के सब्भे सुख छोड़ी केॅ चललोॅ ऐलोॅ छै-दौड़तें-धूपतें, भागतें-भागतें नेपाल।

"की सोचेॅ लागलोॅ चन्दर?"

"नै, कुछुवे नै...बस यही कि..."

"यही कोैन चीज?"

"बस यही कि हमरोॅ मुलुक कत्तेॅ महान छै-यहेॅ सोचेॅ लागलोॅ छेलियै।"

"से बात तेॅ एकदम सही छै। वेद-पुराण, रामायाण-महाभारत, सब में आपनोॅ मुलुक के बखान छै।"

भदवा चन्दर लाल बाबा के बात सुनतें रहलै। मतरकि बोललै कुछु नै। वैनें आपनोॅ मनोॅ के ऊ भाव केॅ भी हठाते छुपाय लेनें छेलै जे कि ओकरोॅ मनोॅ में कुछुवे देर पहिलें उठलोॅ छेलै-यहाँकरोॅ सबकुछ छोड़ी-छाड़ी केॅ फेनू सें घोॅर भागी जाय के मोॅन, आपनोॅ गाँव लौटी जाय केॅ इच्छा। लाल बाबा के सब बात सुनी केॅ बस एतने भदवा नें कहलकै, "लाल बाबा, ऊ आदमी सचमुचे में सबसें बड़ोॅ बदनसीब छै, आरो ई धरती पर सबसें बड़ोॅ अभागा, जेकरा पेटोॅ खातिर आपनोॅ मुलुक आरो घोॅर-द्वार छोड़ै लेॅ लगै छै।" कहतें-कहतें भदवा के ठोर कँपकपाय उठलै। भदवे के नै, लाल बाबा के भी। दोनों बहुत देर लेली कुछुवो नै बोललै।