भयावह युद्ध से जन्मीं किताबें और फिल्में / जयप्रकाश चौकसे

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भयावह युद्ध से जन्मीं किताबें और फिल्में
प्रकाशन तिथि : 01 सितम्बर 2014


आज से ठीक पचहत्तर वर्ष पूर्व दूसरा विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ था जो 6 वर्ष पश्चात 1945 में समाप्त हुआ। यह इतना भयावह था कि अब युद्ध को छापामार या आतंकवाद की शक्ल में चलाया जा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध में जितने मनुष्य मरे उससे कई गुना अधिक लोग बाद में अल्प पैमाने पर लड़े युद्धों की श्रृंखला में मारे गए हैं। उस महायुद्ध ने युद्ध का स्वरूप बदल दिया क्योंकि उसकी भयावहता को कोई देश दोहराना नहीं चाहता। उसी युद्ध के अंतिम चरण में अनावश्यक रूप से अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा आैर नागासाकी पर आणविक विस्फोट किए 6 आैर 8 अगस्त 1944 को आैर इस जघन्य अपराध का एक शिकार नन्हा बिकनी नामक द्वीप भी था और स्नान के लिए महिलाओं के अल्पतम पोशाक को बिकनी कहा गया। यह फैशन संसार का क्रूर मजाक है। इस युद्ध ने विश्व को नृशंस हिटलर की तानाशाही से मुक्त किया परंतु जिस प्रकार अन्य स्वरूप और स्केल पर युद्ध आज भी जारी है, वैसा ही तानाशाही अपने अनेक मुखौटों के साथ आज भी जगह-जगह विद्यमान हैं। अपने ढंग से अन्य भी सोचें यह विचार किसी किसी रूप में हमेशा विद्यमान रहता है।

बहरहाल दूसरे महायुद्ध की त्रासदी पर सबसे अधिक किताबें लिखी गई हैं और फिल्में तो इतनी अधिक बनी हैं कि कमोबेश 6 साल चले युद्ध का दैनिक विवरण भी इनसे मिल सकता है। अगर अन्य स्रोत समाप्त हो जाएं तो युद्ध फिल्मों के आधार पर भी उसका अध्ययन किया जा सकता है। इस युद्ध को ब्रिटिश बुद्धि, अमेरिकन धन और रूसी सैनिकों के दम पर जीता गया है। सबसे अधिक जन हानि रूस में हुई और इसका दर्द उनकी फिल्मों में नजर आता है। 'बैलेड ऑफ सोल्जर' में पराक्रम के लिए पुरस्कार स्वरूप सीमित समय की छुट्टी पाया सैनिक अपने मित्रों के संदेश देने उनके घरों पर जाता है और इस यात्रा में वह देखता है उसके अपने देश में कितना विध्वंस हुआ है, कैसे जीवन मूल्य आदर्श टूटे हैं कि परिवार को दो वक्त रोटी उपलब्ध कराने के लिए मोर्चे पर लंबे समय से लड़ने वाले वीर की पत्नी अपना शरीर बेच रही हैं। बहरहाल युद्ध के कहर को कविता की तरह प्रस्तुत करने वाली फिल्म का नायक जब अपने घर के निकट पहुंचता है तब फौज का ट्रक सीमित छुट्टी के समाप्त होने के कारण उसका इंतजार कर रहा है। इसी तरह 'क्रेंस आर फ्लाइंग' भी एक महान फिल्म है।

युद्ध से प्रेरित अमेरिकन फिल्मों में विश्वसनीय ब्यौरा तो है परंतु वह मानवीय करुणा नहीं जो रूस में बनी फिल्मों में हैं। युद्ध ने साहित्य में भी महज रचनाओं के लिए अवसर गढ़े और इरिच मॉरिया रिमार्को के उपन्यास 'आर्च ऑफ ट्रायम्प' 'थ्री कामरेड्स' 'टू वीमैन' महान हैं तथा सोफिया लारेन अभिनीत 'टू वीमैन' एक महान फिल्म भी हैं। हेमिंग्वे का 'फॉर हूम दे बेल्स टोल्स' भी महान रचना है। हेमिंग्ले स्वयं भी स्पेन के ग्रह युद्ध में हिस्सा लेकर घातक रूप से घायल भी हुए थे। इस क्षेत्र में अनगिनत रचनाएं हुई हैं। स्टीवन स्पिलबर्ग की 'शिन्डलर्स लिस्ट' क्लासिक का दर्जा रखती हैं। ग्राहम ग्रीन ने 'थर्ड मैन' की सफलता के बाद निर्माता के आग्रह पर "टेंथ मैन' लिखी जिस पर फिल्म नहीं बनी परंतु बाद में पटकथा प्रकाशित हुई थी। इसमें हिटलर के यातना शिविर में निर्मम अधिकारी कतार में खड़े दसवें आदमी को मारने के पहले अपने उपहास के लिए निर्मम खेल भी रचता है कि कोई अन्य अन्य कैदी उस अभागे का स्थान ले सकता है और दोनों के बीच सौदा होता है तथा ऐसे ही एक सौदे में अभागे की सारी सम्पति अपने नाम करवा कर अन्य व्यक्ति मरने के लिए तैयार हैं और ठीक उसी वक्त यातना शिविर पर आक्रमण होता है। युद्ध के पश्चात उस अभागे की सारी सम्पति यातना शिविर में लिखे गए सौदे के मुताबिक दूसरे व्यक्ति को मिलती है। बलदेवराज चोपड़ा ने इससे प्रेरित फूहड़ सीरियल रचा था।

इस दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने पर इसमें अहम भूमिका निभाने वाले ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधान मंत्री विन्सट्न चर्चिल से युद्ध का कारण पूछा तो उन्होंने कहा था कि सारे युद्ध अकारण ही लड़े जाते हैं। उनका आशय था कि जब लोग तर्क और सहज बुद्धि का त्याग करते हैं तो युद्ध की स्थिति बनती है। युद्ध तर्कहीनता का अंतिम सोपान है। बहरहाल युद्ध की भयावहता पर साहिर लुधियानवी की पंक्तियां हैं- 'गुजश्ता जंग में तो घर बार ही जले, अजब नहीं इस बार जल जाए तनहाइयां, गुजश्ता जंग में तो पैकर (शरीर) ही जले अजब नहीं इसबार जल जाए परछाइयां।'

हम सबको अपनी तनहाइयां और परछाइयां जल जाने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि तर्कहीनता का यह स्वर्ण युग है और अपनी इच्छा सब्र पर लादने वालों की भी कमी नहीं।