भय / अमरेन्द्र

Gadya Kosh से
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ऊ आदमी आपनोॅ चार-पाँच लोगोॅ के साथें चन्दा माँगै लेॅ ऐलोॅ छेलै। देखैय्ये सें लागै कि ऊ सब चन्दा लेलेॅ बिना कोय्यो रं जाय वाला नै छेलै। मुंशी चन्दा दैय्यो देतियै, मजकि जोॅन रं सें ऊ आदमीं रशीद पर पाँच-दस टाका लिखै के जग्घा पर सीधे पचास टाका लिखी देलेॅ छेलै, ओकरा सें मुंशी के तेॅ मिजाजे चढ़ी गेलै आरो वैं आपनोॅ कुव्वत सें बाहर चन्दावाला केॅ कही देलकै, "हम्में चन्दा दै वाला नै, तोरासिनी केॅ जे करना छौं, करोॅ।"

सुनत्हैं ऊ आदमी के रंग चढ़ी गेलै आरो कहलकै, "की कहलौ, नै देवै! मुहल्ला में रहवौ आरो चन्दा नै देवौ। तेॅ ठीक छै! रे सुखना, चल। जबेॅ अपहरण होतै; आपन्है आवी केॅ पचास हजार टाका जमा करवैतै--फिरौती लै लेॅॅ।" आरो ई कही ऊ आपनोॅ आदमी सिनी साथें बडबड़ैतें निकली गेलोॅ छेलै।

सब के जाय भर के देर छेलै कि मुंशी के दिमागे जेना चक्कर खावेॅ लागलै। ओकरा कुछुवो समझै में नै ऐलै आरो ऊ सीधे आपनोॅ घोॅर सें निकली केॅ नगीचे के थाना जाय पहुँचलै। संयोगे छेलै कि थाना के बड़ा बाबू कुर्सी पर आराम करतें मिली गेलै। मुंशी केॅ देखलकै तेॅ बिना उकुस-पुकुस करल्हैं बोललै, "की छेकै मुंशी, हिन्नें केना? तोंहे तेॅ बोलतें रहलोॅ छैं कि भला आदमी केॅ थाना-फाड़ी सें की काम?"

"धोखा में छेलियै बड़ा बाबू। आयकल तेॅ भगमानो केॅ थाना-फांड़ी के बिना राहत नै।"

मुंशी के बातोॅ में रस के गंध मिलत्हैं बड़ा बाबू कुर्सी पर सीधा होय गेलै आरो बोललै, "बोलें, की बात छै?" एक भेद भरलोॅ नजरी सें बड़ा बाबूं मुंशी

केॅ देखलकै।

"हेनोॅ छै कि अभी कुछ लोग हमरोॅ घरोॅ पर ऐलै--चन्दा माँगै लेॅ आरो हमरोॅ मोॅन के खिलाफ रशीद पर अपने मने पचास टाका लिखी देलकै। जबेॅ हम्में नै दै के बात कहलियै तेॅ वै में एक कही गेलै--'आबेॅ अपहरण होला के बादे पचास हजार टाका पहुँचवैतै।' हम्में जानै छियै कि ऊ सब कत्तेॅ खतरनाक किसिम के लोग छेकै, कभियो कुछ करेॅ सकै छेॅ।"

बड़ा बाबूं मुशी केॅ ओकरोॅ बातोॅ सें एक पल में तौली लेलकै, आरो फेनू वहा रं कुर्सी पर जमतें हुवेॅ कहलकै, "तेॅ फेरू जो, जबेॅ अपहरण होतौ, तेॅ कहै लेॅ अय्यें आकि रिपोर्ट करैय्यें। अभी कथी लेॅ आवी गेलोॅ छैं--माथोॅ चाटै लेॅ।"

"मजकि अपहरण के बाद हम्में यहाँ केना आवेॅ पारौं?"

"सब होय छै" आरो हठाते बड़ा बाबू उखड़तें बोललै, "थाना केॅ कबाड़ी के दुकान समझी राखलेॅ छैं--कहीं कुछ बात होलै नै कि सीधे थाना पहुँची गेलौं। भागै छैं कि नै यहाँ सें?"

आरो वही दिन मुंशी शहर छोड़ी केॅ भागी गेलै।