भाग-3 / रंजना वर्मा

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बच्चों की इस विचित्र नगरी में पहुंचकर चंदू प्रसन्न भी था और आश्चर्यचकित भी। उसने मुन्नू का हाथ दबाते हुए धीरे से कहा-

"मैं कहता था न कि चंद्रमा पर बच्चे ज़रूर होंगे। मेरी बात बिल्कुल सच निकली।"

"हाँ चंदू! , इन बच्चों से मित्रता करके बहुत मजा आएगा। हम इन्हें अपनी धरती पर भी ले जायेंगे।"

मुन्नू ने उत्साह भरे स्वर में कहा-

"इनकी परी माँ इन्हें जाने देगी तब न।"

"हम लोग तुम्हारी धरती पर ज़रूर चलेंगे चंदू।" तितली जो बहुत देर से उनकी बातें सुन रही थी बोल पड़ी-

"अरे लो, परी माँ का दरबार भी आ गया।"

चंदू और मुन्नू एक द्वार के पास खड़े थे जिस पर मोतियों की झालर वाला सफेद पर्दा लटक रहा था। द्वार के दोनों ओर नीली पोशाक की पहने दो बच्चे खड़े थे। उनके सिरों पर लाल रंग की पगड़ियाँ और हाथों में चांदी के बने हथियार थे। चंदू और मुन्नू को उन्होंने झुक कर अभिवादन किया और पर्दा एक ओर खिसका दिया। तितली उन्हें ले कर भीतर प्रवेश कर गई.

वह एक विशाल कक्ष था। भीतर एक ओर कोने में लाल रंग की लकड़ियों के कुछ टुकड़े जल रहे थे जिनसे चंदन जैसी सुगंध निकल रही थी। उस सुगंध से वह सारा कक्ष सुगंधित हो रहा था। फर्श पर मोटे-मोटे गलीचे बिछे थे जिन पर मोतियों का काम किया गया था। दीवारों में जड़े रत्नों से रंग बिरंगी किरणें फुट रही थी। एक ऊंचे चबूतरे पर सामने एक विशाल सिंहासन रखा था जिस पर एक अत्यंत सुंदर स्त्री बैठी थी। उसकी आंखें और बाल गहरे नीले रंग के थे। उसने जड़ाऊ आभूषण तथा मूल्यवान वस्त्र पहन रखे थे। खुले हुए बाल पीठ पर बिखरे हुए थे। उसके सिर पर मोर पंखों से जड़ा लाल रंग का कमल के फूल की आकृति का मुकुट था और पीठ पर कंधों के पास दो हल्के नीले रंग के चमकीले तथा सुनहरी बिंदियों वाले पंख निकले हुए थे।

चंदू और मुन्नू को देखकर वह हँसती हुई आगे बढ़ी और उनका हाथ पकड़ कर उन्हें अपने साथ सिंहासन पर बैठा लिया। परी माँ का संकेत पाकर तितली वहाँ से चली गई. उसके पंखों को देखकर ही दोनों मित्रो ने उसके परी माँ होने का अंदाजा लगा लिया था। तितली के जाने पर उसने पूछा-

"तुम लोगों को यहाँ आने में कोई कष्ट तो नहीं हुआ?"

"नहीं।" चंदू ने उत्तर दिया।

"तुम्हें हमारा चंद्रलोक कैसा लगा?"

"बहुत सुंदर। हम यहाँ घूमना चाहते हैं और इसे अच्छी तरह देखना चाहते हैं।" इस बार मुन्नू ने कहा-

"ठीक है। अभी तुम लोग खा पीकर आराम करो। कुछ देर बाद तितली तुम्हें चंद्रलोक की सैर कराने ले जाएगी।" परी माँ ने कहा। तभी तितली अपने हाथों में दो सुंदर चांदी के प्याले लिए हुए आ गई. उसके साथ एक और लड़की थी जिसके हाथों में चांदी की तश्तरी में कटे हुए फल थे। परी माँ ने उन्हें आग्रह करके फल खिलाए और प्यालो का शहद पीने के लिए दिया। जब वे खा पी चुके तो प्यार से उनकी पीठ थपथपा कर बोली-

"जाओ. अब तुम लोग थोड़ी देर सो लो।" तितली उन्हें लेकर दूसरे कमरे में आ गई जहाँ चांदी के बने बड़े-बड़े पलँगों पर गुदगुदा और आरामदेह बिछौना बिछा हुआ था। वे वहाँ लेट गए लेकिन उत्सुकता उन्हें सोने नहीं दे रही थी।

तितली के वहाँ से जाते ही चंदू बोल पड़ा-

"यहाँ कैसा लग रहा है मुन्नू?"

"बहुत अच्छा। जब हम धरती पर जाकर वहाँ के लोगों को यहाँ की बातें बताएंगे तो सबको कितना आश्चर्य होगा।"

"हाँ। हम वास्तव में बहुत भाग्यशाली हैं जो यहाँ तक आ गए."

"आ भी गए और सकुशल वापस भी पहुंच जाएंगे। अगली बार मैं अपने मम्मी पापा को भी साथ ले आऊंगा।" चंदू चहक कर बोला।

"मैं भी गुड्डू पप्पू सबको ले आऊँगा। यहाँ के लोगों से मिल कर सब को बहुत आनंद आएगा।" मुन्नू ने सहमति प्रकट करते हुए कहा। बातें करते-करते उन्हें बहुत देर हो गई किंतु वह थोड़ी देर भी नहीं सो सके. मुन्नू ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा-

"अरे, सात बज गए."

"अब तो अँधेरा होने लगा होगा।" चंदू ने कहा। तभी तितली के साथ परी माँ वहाँ आ गई.

"अब उठो। चलो। तुम लोगों को अपने देश की सैर कराएँ।" तितली हंस कर बोली। दोनों झटपट उठ कर बैठ गए. कमरे से बाहर आने पर चारों ओर दिन जैसा प्रकाश देखकर वे विस्मित रह गए. उन्हें आश्चर्यचकित देखकर तितली ने पूछा-

"क्या बात है?"

"यहाँ रात नहीं हुई अभी।" चंदू ने चकित स्वर में पूछा।

"कैसी रात?" तितली ने पूछा तो परी माँ हँस पड़ी।

"यह पृथ्वी नहीं है। यहाँ कभी रात नहीं होती। आओ चलें।" मीठी-मीठी बातें करती परी माँ उन्हें अपने देश की सैर कराने लगी। उन्होंने वहाँ के बच्चों से मित्रता की और कुछ देर उनके साथ खेले भी। वे बागों और जंगलों में भी गए जहाँ नीली झाड़ियाँ और हरे रंग के झरने थे। जंगलों में उन्होंने हाथी के समान विशाल पशुओं को इधर-उधर घूमते हुए देखा। नगर में स्थान-स्थान पर क्यारियाँ बनी थी जिनमें सतरंगी फूल खिले हुए थे।

मुख्य मार्ग के दोनों लाल जड़ कर फर्श बनाई गई थी। सवारियों के रूप में छोटे-बड़े रथ और घोड़ों का प्रयोग हो रहा था। परी माँ से पूछ कर चंदू ने उन कार्यों से कुछ फूल तोड़ लिए. परी माँ ने उन्हें एक वृक्ष से लाल रंग का फल तोड़कर खिलाया जो बहुत स्वादिष्ट था। उन्होंने हरे झरनों में बहने वाला पानी भी पिया जो दूध की तरह स्वादिष्ट और मीठा था। उसके बाद परी माँ ने उन्हें अपना महल दिखाया। भवन में कई कक्ष रत्नों से भरे थे। एक कमरा विभिन्न पोशाकों तथा आभूषणों से भरा था। परी माँ ने उनमें से कुछ सुंदर अंगूठियाँ और मालाएँ निकाल कर उन्हें पहना दी। बातों ही बातों में परी माँ ने पूछा-

"चंदू! तुम्हें हमारा देश कैसा लगा?"

"बहुत सुंदर। यहाँ घूमने में बड़ा मजा आया और यहाँ के बच्चे भी बहुत अच्छे हैं। उनके साथ दोस्ती करना और खेलना बहुत अच्छा लगा।" चंदू ने खुश होकर कहा।

"तो फिर तुम यहीं रह जाओ." परी माँ बोली।

"क्यों?" चंदू ने पूछा।

"यहाँ तुम बहुत प्रसन्न रहोगे। मेरा यह भवन तुम्हारा घर होगा और यहाँ के बच्चे तुम्हारे दोस्त। मैं तुम्हें इन बच्चों का सरदार बना दूंगी। तुम इन्हें अच्छी-अच्छी बातें सिखाया करना।" परी माँ ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

"और मुन्नू?"

"मुन्नू वापस जाएगा। वह यहाँ का संदेश पृथ्वी पर ले जाएगा। हम तुम्हारी पृथ्वी के निवासियों से मित्रता करना चाहते हैं। मुन्नू हमारे लिए संदेश वाहक का काम करेगा।"

"हमारे मम्मी पापा को भी आप यहाँ बुला लेंगे?" चंदू ने पूछा।

"नहीं। यह बच्चों का देश है। यहाँ किसी के मम्मी पापा नहीं रह सकते।" परी माँ ने इनकार करते हुए कहा।

"तब मैं भी यहाँ नहीं रहूंगा। मम्मी के बिना मैं यहाँ बिल्कुल नहीं रहूंगा।" चंदू व्याकुल होकर बोला।

"यहाँ मम्मी पापा नहीं है तुम्हारे तो क्या हुआ। मैं तो हूँ यहाँ। किसी बच्चे के मम्मी पापा नहीं है। तुम्हें यहीं रहना होगा। तुम्हारे मम्मी-पापा तुम्हारी पृथ्वी पर रहेंगे।"

"मैं यहाँ नहीं रहूंगा।" चंदू ने दृढ़ता से उत्तर दिया।

"तुम यही रहोगे।" परी माँ ने कठोर आदेश देते हुए कहा-

"मुन्नू! वह देखो तुम्हारा यान उधर खड़ा है। तुम पृथ्वी पर वापस जाओ."

"मैं यहाँ नहीं रहूंगा। मैं अपनी पृथ्वी पर वापस जाऊंगा।" चंदू मुन्नू के पीछे दौड़ा। परी माँ ने तुरंत बच्चों को आदेश दिया-

"पकड़ लो इसे। जाने न पाए." बच्चों ने चंदू को पकड़ लिया। मुन्नू को जाते देख कर वह चीख पड़ा-

"मुझे छोड़ कर मत जाओ मुन्नू! मत जाओ."

"चंदू! अरे उठ तो। देख हम चंद्रमा पर पहुंच गए." मुन्नू ने चंदू को झकझोरते हुए पुकारा। सपना देखते-देखते चंदू सचमुच चीख पड़ा था। यान अपनी यात्रा पूरी करके अब चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा था। चंदू को देर से सोया देख कर मुन्नू ने उसे जगा दिया।

"मैं ... मैं कहाँ हूँ? मुन्नू! तुम मुझे छोड़ कर मत जाना।" चंदू चौंक कर उठा और मुन्नू से लिपटकर बोल पड़ा।

"तुझे छोड़ कर कहाँ जाऊंगा पागल! देख, हम चांद पर पहुंच गए."

"तो वह सब क्या था?"

"क्या? तू तो कब से सो रहा था। क्या कोई सपना देख रहा था?" मुन्नू ने हँस कर पूछा।

"हाँ, विचित्र स्वप्न था। अब तुम ड्राइविंग सीट संभालो। मैं राडार का निरीक्षण करता हूँ।" चंदू आंंख मलता हुआ अपनी सीट पर जा बैठा।

मुन्नू भी चाक सीट पर पहुंच गया और विमान को उतारने का प्रयास करने लगा। यान में चंद्रमा के सात चक्कर लगाए और फिर धीरे-धीरे चंद्रमा पर उतर गया। चंदू और मुन्नू ने डट कर खाया पिया और अपनी-अपनी पोशाकों की जेबों में आवश्यक वस्तुएँ भरकर यान से उतरने के लिए सीढ़ियाँ लटका दी। पहले मुन्नू और उसके पीछे चंदू ने चंद्रमा की धरती पर पांव रखा। दोनों ने दूर तक फैली चंद्रमा की धरती को देखा और एक दूसरे की ओर देख कर मुस्कुरा दिए.

मुंन्नू ने अपने हाथों में दो विशेष प्रकार की छड़ियाँ ले रखी थी। ये भी डॉक्टर रमेन्द्र का अद्भुत आविष्कार थी। वह एक छड़ी चंदू को देता हुआ बोला-

"लो चंदू! इसे संभाल कर रखना। इस की मुठिया दबाने वाली बात भूल तो नहीं गए हो?"

"नहीं।" चंदू ने छड़ी लेते हुए उत्तर दिया।

दोनों संभल-संभल कर आगे बढ़ने लगे। उनके जूते विशेष प्रकार के बने थे तथा चुंबकीय शक्ति से युक्त थे। चंद्रमा की धरती पर चलने में उन्हे जूते और छड़ियाँ विशेष सहायक हो रहे थे। चंद्रमा की जमीन बहुत चिकनी थी। चारों ओर सफेद धूल बिखरी थी। कुछ और आगे जाने पर उन्हें लाल रंग के पत्थरों के कुछ टुकड़े इधर-उधर पड़े हुए दिखाई दिए. सफेद धूल पर पड़े हुए पत्थर मूंगे के समान चमक रहे थे। वैसी ही लाल रंग की कुछ चट्टानें भी उन्हें दिखाई दी।

दोनों मित्र लगभग तीन घंटे चंद्रमा की धरती पर चलते रहे। तब उन्हें लाल पत्थरों का एक ऊंचा पर्वत दिखाई दिया जिस पर पीले रंग की वनस्पतियाँ उगी हुई थी। यात्रा ने उन्हें बुरी तरह थका दिया था। थकान के साथ उन्हें भूख भी सताने लगी थी।

"भूख लग रही है अब तो।" चंदू ने बड़े थके हुए स्वर में कहा।

"बस, थोड़ा और चलें। फिर लौटते हैं।" मुन्नू ने कहा और पर्वत पर चढ़ने लगा। वे छड़ी के सहारे धीमी गति से ऊपर चढ़ रहे थे। तभी छड़ी से लगकर कुछ पत्थरों के टुकड़े नीचे लुढ़क कर गिर पड़े। उन्हें धीरे-धीरे लुढकता देख कर चंदू ने आश्चर्य से पूछा-

"अरे, यह क्या? ये पत्थर इतनी धीरे-धीरे क्यों गिर रहे हैं जैसे कि उड़ रहे हो?"

"यहाँ की धरती में शायद बहुत कम गुरुत्वाकर्षण शक्ति है तभी ऐसा हो रहा है।" मुन्नू ने कुछ सोचते हुए उत्तर दिया। उसने पढ़ा था कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी पर कोई वस्तु ऊपर फेकी जाए तो वह तेजी से नीचे की ओर गिर पड़ती है। पहाड़ की चोटी पर पहुंच कर उन्होंने अपने साथ लाया हुआ तिरंगा झंडा निकाला और उसे वही गाड़ कर फहरा दिया। दोनों ने झंडे को सलामी दी और प्रसन्न होकर गले मिले। दोनों ने जोर से 'जय भारत,' जय हिंदुस्तान' का नारा लगाया। तभी चंदू की निगाह पहाड़ के दूसरी ओर घाटी में गई और वह उत्तेजित होकर चीख पड़ा।

"मुन्नू! उधर देखो, वह क्या है?" मुन्नू ने उस ओर देखा और कुछ देर बाद अनुमान लगाता हुआ बोला-

"वहाँ उस ओर शायद कोई बस्ती है।"

"हाँ, लगता तो ऐसा ही है।" चंदू ने गौर से देखते हुए कहा। ध्यान से देखने पर वहाँ नन्हें-नन्हें घरौंदों जैसे कुछ घर बने दिखाई दे रहे थे।

"चलो, वहीं चला जाए." चंदू ने उल्लास होकर कहा।

"नहीं। पहले कुछ खा पी लें तब चलेंगे उधर।"

"क्यों? वहीं चल कर क्यों न खाया पिया जाए?" चंदू ने पूछा।

" क्योंकि यह ठीक नहीं होगा। बस्ती में रहने वाले अनजान लोग पता नहीं हम से दोस्ती का व्यवहार करें या दुश्मनी का। इसलिए पहले कुछ खा पी कर हम विश्राम करेंगे तभी उधर चलेंगे मुन्नू ने उसे समझाया।

एक चट्टान पर बैठ कर दोनों ने अपने थैलों में से बिस्कुट, डबलरोटियाँ, डिब्बे में बंद फल और मेवे निकाले। चंदू ने अपने थैले से पानी का फ्लास्क भी निकाला। दोनों ने डटकर खाना खाया और पानी पीकर वही एक चट्टान की आड़ लेकर लेट गए. मुन्नू ने सारा सामान अपने थैले में समेट लिया था और उसी थैले पर सर रखकर सो गया।

चंदू नटखट था। वैसे भी वह खूब सो चुका था इसलिए नींद नहीं आ रही थी। वह मुन्नू से बातें करना चाहता था लेकिन वह बुरी तरह थका होने के कारण जल्दी ही सो गया। उसके सो जा जाने पर चंदू एक चट्टान के सहारे बैठ कर नीचे दिखाई देने वाली बस्ती को ध्यान से देखने लगा। दो कतारों में पत्थर के बने मकानों का सिलसिला दूर तक चला गया था। बीच में एक चिकना रास्ता था जिससे हर मकान से निकल कर एक पगडंडी मिल गई थी। एक ओर पेड़ों के झुरमुट के पास छोटे-छोटे बकरियों के आकार के कुछ पशु घूम रहे थे।

कुछ देर तक वह उन्हें देखता रहा। अचानक उसका चंचल मन शरारत सोचने लगा। उसने सोचा जब तक मुन्नू सो रहा है क्यों न वह नीचे तक घूम आए और फिर वहाँ की बातें बता कर उसे चकित कर दे। बस वह चुपके से उठा और मुन्नू को सोता छोड़कर छड़ी हाथ में ले उसी के सहारे उछलता, उड़ता हुआ नीचे की ओर बढ़ चला।

छड़ी के सहारे वह जल्दी ही नीचे पेड़ों के झुरमुट तक पहुंच गया। एक पेड़ के तने के पीछे छिप कर वह उन जानवरों को ध्यान से देखने लगा। उन का रंग पीला और आंखें हरी थी। उन की पूछ के बाल लाल रंग के थे। शरीर के पीले बाल चिकने और चमकीले थे। जिस वृक्ष के पास वह खड़ा था उसका तना काला और पत्तियाँ नीले रंग की थी। पेड़ पर लाल रंग की छोटी-छोटी चिड़ियाँ बैठी थी जिनके सिर सुनहरे और चोंच काली थी।

चंदू खड़ा उन्हें देख ही रहा था कि तभी उसे कुछ आहट सुनाई दी। वह तुरंत पेड़ की ओट में छिप गया। थोड़ी ही देर बाद उसे कुछ मनुष्य आते दिखाई दिए. चंदू उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि वह मनुष्यों के समान नहीं थे। उनकी आंखे बड़ी-बड़ी तथा सिर चिकने और चमकदार थे। चेहरे पर मूँछ थी और नाक के ऊपर एक ही आँख थी जो उनकी आकृति को भयंकर बना रही थी। चंदू सहमा-सा वृक्ष के पीछे दुबका रहा। वे संख्या में तीन थे।

जब वे आगे बढ़ गए तो चंदू ने उनका पीछा करने का निश्चय किया। वह दबे पांव वृक्ष के पीछे से निकला और उनके पीछे चल पड़ा वे तीनों बस्ती के अंतिम छोर पर पहुंच कर एक घर के सामने जाकर रुक गए. चंदू जल्दी से एक दूसरे घर की आड़ में छिप गया। उनमें से एक ने किसी विचित्र भाषा में कुछ कहा। थोड़ी देर बाद ही उस घर का द्वार खोल कर एक सुंदर लड़की ने अपना सर बाहर निकाला।

वह लड़की बहुत सुंदर थी। उसके सुनहरे बाल कंधों पर फैले हुए थे और उसकी आकृति पृथ्वी के मनुष्यों के समान थी। उसकी आंखें गहरे काले रंग की थी। वह हल्के रंग के पत्तों का बना वस्त्र पहने हुए थी। तीनों पुरुषों के अंदर जाने पर द्वार पुनः बंद हो गया। चंदू दबे पांव आगे बढ़ा। उसने सावधानी से घर का एक चक्कर लगाया। पिछवाड़े की दीवार कुछ नीची अवश्य थी किंतु फिर भी वह उसे पार नहीं कर सकता था। पिछली दीवार के पास ही एक वृक्ष था जिसकी लंबी डालियाँ घर के भीतर तक चली गई थी। चंदू ने घर के भीतर पहुंचने के लिए उसी मार्ग को अपनाने का निश्चय किया। पेड़ पर चढ़कर धीरे-धीरे खिसक कर वह लंबी डाल पर घने पत्तों में छुप कर ऐसे स्थान पर बैठ गया जहाँ से वह घर के भीतरी भाग को पूरी तरह देख सकता था।

आंगन में वे तीनों व्यक्ति बैठे थे और वह सुंदर लड़की हाथ में खंजर जैसा अस्त्र लिये क्रोध में भरकर उनसे कुछ कह रही थी। वे तीन अपराधियों के समान सर झुकाए बैठे थे। चंदू उनकी बातें तो नहीं समझ सका किंतु उसने इतना अनुमान अवश्य लगा लिया कि वह उसकी किसी आज्ञा का पालन नहीं कर सके थे। जिसके लिए वह लड़की उन्हें फटकार रही थी। कुछ देर उन्हें डांटने के बाद वह एक पशु ले आई और उसे उनके सामने रखकर खंजर से काटने लगी। जैसे-जैसे उसका खंजर चलता था पशु की चीखें तेज होती जा रही थी। वह तीनों मनुष्य उस समय थर-थर कांप रहे थे। चंदू को भय से अपना रक्त जमता हुआ प्रतीत होने लगा।

इतनी सुंदर लड़की के इतने खूंखार होने की वह कल्पना भी नहीं कर सकता था। वैसे उसने अपनी आंखें बंद कर ली। तभी उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया हो। वह घबराकर आंखें खोलने पर विवश हो गया। अपने शरीर के चारों और उसने अजगर जैसे भयंकर जंतु को लिपटने देखा तो चंदू की चीख निकल गई. मूर्छित होकर वह आंगन में जा गिरा। न जाने कितनी देर बाद उसकी मूर्छा टूटी तो उसने स्वयं को उसी आंगन में एक ओर पड़ा हुआ पाया।

उसके हाथ पाँव मजबूत डोरी से बंधे थे। चारों ओर गहरा सन्नाटा छाया था। कहीं कोई दिखाई नहीं दे रहा था। बंधे-बंधे उसके हाथ पैरों में दर्द होने लगा। बहुत देर हो गई. भूख प्यास के मारे उसका बुरा हाल था। कितनी देर से वह वहाँ बंधी हुई स्थिति में पड़ा था इसका कोई अनुमान लगाना संभव नहीं था। अंततः आंगन का बाहरी दरवाजा खुला और दो व्यक्तियों ने प्रवेश किया। वे वैसी ही भयंकर आकृति वाले चंद्रमा वासी थे जिन्हें चंदू पहले देख चुका था। उन्हें अपनी ओर बढ़ता देख कर वह भय से चीख उठा। उनमें से एक ने उसे बढ़ कर गोद में उठा लिया और एक ओर चल पड़ा। उसका शरीर बहुत ठंडा था। चंदू को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसे किसी बर्फ की सिल से लिपटा दिया गया हो।

कुछ क्षणों बाद वे घने वन से होकर आगे बढ़ रहे थे। जंगल एक खुले लंबे चौड़े मैदान के पास समाप्त हो गया। मैदान के बीचो-बीच आग जल रही थी। आग को घेर कर उसी प्रकार की आकृति वाले अनेक मनुष्य वहाँ बैठे हुए दिखाई दे रहे थे। थोड़ी दूर पर दाहिनी ओर एक ऊंचा चबूतरा था जिस पर चमकीले नीले रंग की धातु का सिंहासन रखा हुआ था। उस सिंहासन की आकृति किसी भयंकर पशु के समान थी। पीछे की ओर उस सिंहासन में कुछ मनुष्य की खोपड़ी के समान चित्र बने थे जो आकार में बहुत बड़े थे।

चंदू वहाँ का दृश्य देखकर भय से काँप उठा। वह समझ गया कि वह बहुत खूंखार व्यक्तियों के हाथ में पड़ गया है। पता नहीं वे उसके साथ कैसा व्यवहार करें। सिंहासन पर वही सुंदर लड़की बैठी थी। चंदू की ओर देख कर वह मुस्कुराई किंतु उसे उसका इस प्रकार हँसना अच्छा नहीं लगा। अचानक उसके मन में आशा की किरण कौंध गई. संभवतः वह उसके साथ मित्रता का व्यवहार करे। पता नहीं इस समय मुन्नू कहाँ होगा। यदि अपने विचित्र अस्त्र के साथ वह यहाँ आ जाए तो शायद उसके प्रभाव से ये लोग उनके साथ शत्रुता का व्यवहार न कर सके. परंतु यह भी कहाँ संभव है?

पता नहीं इस समय मुन्नू कहाँ होगा। यदि इस समय वह अपने अनोखे अस्त्र के साथ यहाँ आ जाता तो शायद ये लोग उन्हें अपना सम्मानित अतिथि बना लेते। अपने इस विचार पर चंदू स्वयं ही हँस पड़ा।