भाग-4 / रंजना वर्मा

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अपने इस विचार पर चंदू स्वयं ही हँस पड़ा। भला इस समय मुन्नू यहाँ कैसे आ पाएगा। वह तो पहाड़ी पर ही पड़ा होगा या फिर चंदू को ढूंढ-ढूंढ कर परेशान हो रहा होगा। उसे भला क्या पता होगा कि चंदू कहाँ और किन लोगों के बीच फंस गया है। दोनों व्यक्तियों ने चंदू को सिंहासन के पास ले जाकर खड़ा कर दिया। सुंदरी ने उनसे अपनी विचित्र भाषा में कुछ पूछा जिस के उत्तर में उन्होंने नकारात्मक ढंग से सिर हिलाया।

"तुम कहाँ के निवासी हो?" सुंदरी ने चंदू की ओर देख कर प्रश्न किया। उसे इस प्रकार शुद्ध हिन्दी में बोलते देख कर चंदू आश्चर्यचकित रह गया।

उसे चुप देख कर उस लड़की ने अंग्रेज़ी में अपना प्रश्न फिर दोहराया तो चंदू बोला-

"मैं भारत का निवासी हूँ जो पृथ्वी नामक ग्रह पर स्थित है। लेकिन तुम हमारी भाषा कैसे जानती हो? क्या तुम चंद्र लोक की निवासिनी नहीं हो?"

"मुझे हिन्दी में बोलते देख कर तुम्हें आश्चर्य हो रहा है। मैं हिन्दी, अंग्रेज़ी और फ्रेंच भाषाएँ बहुत अच्छी तरह जानती हूँ क्योंकि मैं भी ..."

अचानक वह चुप होकर सिंहासन के दाहिनी ओर से आती हुई मनुष्यों की टोली की ओर देखने लगी। फिर बोली-

"लो, तुम्हारा साथी भी आ गया।" उसकी इस बात को सुन कर चंदू चौक पड़ा। उसने पलट कर देखा। आने वाले व्यक्ति मुन्नू को उठाए हुए थे। उसके हाथ में वह छोटी लाठी जैसा अस्त्र अभी भी था। वह बड़े आश्चर्य से वहाँ के लोगों को देख रहा था। चंदू को देखते ही वह चीख पड़ा-

"अरे चंदू! तुम यहाँ हो?"

"हाँ, उन्होंने मुझे भी पकड़ लिया है।"

मुन्नू को चंदू से थोड़ी दूर पर खड़ा करके आगंतुक टोली के सदस्यों ने उस सुंदर लड़की को सम्मान देते हुए सिर झुकाया और पीछे हट गए. अब मुन्नू ने ध्यान से उस लड़की की ओर देखा जो उन्हें स्थिर दृष्टि से चकित भाव से देख रही थी।

"तुम लोग चंद्रमा पर कैसे आ गए?" उसने मुन्नू को अपनी ओर देखता हुआ पाकर पूछा। उसके प्रश्न ने मुन्नू को असमंजस में डाल दिया। वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि उसे अपने आने का रहस्य बताएँ अथवा नहीं।

"डरो मत। सच-सच पूरी बात बता दो।" उस लड़की ने फिर कहा।

मुन्नू ने पूछा-

"क्या हम तुम्हें अपना मित्र समझें?"

"तुम ऐसा समझ सकते हो लेकिन तुम्हारे यहाँ आने का उद्देश्य ज्ञात किए बिना मैं तुम्हें अपना मित्र या शत्रु नहीं कह सकती।"

"तुम्हें हमसे क्या खतरा है?" चंदू ने पूछा।

"क्यों? क्या तुम्हारी धरती पर भयानक क्षेपास्त्र नहीं बनाए जाते? यदि तुम हमारे लोक पर तबाही फैला कर यहाँ अधिकार जमाना चाहते हो तो तुम हमारे शत्रु हो। उस स्थिति में यहाँ के निवासी तुम्हें जीवित ही भून कर खा जाएंगे। यदि तुम हमारे मित्र हो तो हमारी धरती पर तुमने इस प्रकार अनधिकार प्रवेश क्यों किया और किस प्रकार किया है इसे स्पष्ट रूप से बताओ."

उसकी बात का औचित्य समझ कर मुन्नू ने जिज्ञासा की-

" लेकिन तुम तो चंद्रलोक की निवासी नहीं प्रतीत होती। तुम्हारी आकृति यहाँ के निवासियों के समान भयानक नहीं है।

"क्या तुम भी हमारी पृथ्वी की रहने वाली हो?" मुन्नू का प्रश्न सुनकर वह मौन हो गई.

"तुम कौन हो?" मुन्नू ने फिर पूछा। मुन्नू के बार-बार पूछने पर वह क्रोधित हो कर बोली-

"तुम्हें यह पूछने का क्या अधिकार है? क्या तुम नहीं जानते कि इस समय तुम मृत्यु के कगार पर खड़े हो?"

"जानता हूँ इसीलिए अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहता हूँ। तुम हमें मृत्यु के भय से डराना चाहती हो। यदि हमें मृत्यु का भय होता तो पृथ्वी से चांद तक आने का साहस ही कैसे करते?" मुन्नू ने निर्भीक स्वर में कहा।

"तुम लोग यहाँ क्यों आए हो?"

"अपनी जिज्ञासा शांत करने। यह जानने के लिए कि चंद्रमा की धरती कैसी है। यहाँ के लोग कैसे हैं। क्या करते हैं। कैसे रहते हैं।"

"यह सब जान कर क्या करोगे तुम?" लड़की ने फिर पूछा।

"अपने देशवासियों को यहाँ के बारे में बताएंगे। संभव हुआ तो हम यहाँ के निवासियों से मित्रता करेंगे।" मुन्नू के उत्तर से संतुष्ट होकर वह मुस्कुराती हुई बोली-

"तुम दोनों अब हमारे अतिथि हो। अब कहो, हम तुम्हारी क्या सेवा करें?"

"सेवा नहीं। हम पर कृपा करके यहाँ के निवासियों तथा अपने बारे में बताओ. सब बताऊंगी लेकिन एक शर्त पर।"

"वह क्या?" चंदू और मुन्नू ने एक साथ पूछा।

"इस शर्त पर कि यहाँ से वापस जाने के बाद तुम स्कॉटलैंड यार्ड के प्रसिद्ध वैज्ञानिक एस-सी विलियम के बूढ़े नौकर को मेरा एक संदेश अवश्य पहुंचा दोगे। उनसे कहोगे कि ..."

अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि आकाश जैसे बादलों की गड़गड़ाहट से कांप उठा। उस की बात अधूरी ही रह गई. भयानक आंधी ने अचानक उन्हें घेर लिया। चंद्रमा के निवासियों ने भयभीत होकर अपनी आंखें बंद कर ली और वे पेट के बल लेटकर जोर-जोर से अपनी भाषा में कुछ बोलने लगे। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वे अपने रुष्ट इष्ट देवता से प्रार्थना कर रहे हों। भयंकर गर्जना से डर कर चंदू मुन्नू से लिपट गया। मुन्नू ने सांत्वना देते हुए उसका हाथ थपथपाया और किसी भयंकर घटना की प्रतीक्षा करने लगा।

अचानक वह स्वर भयंकर अट्टहास में बदल गया जिसे सुनकर उसके रोंगटे खड़े हो गए. सुंदर लड़की का चेहरा पीला पड़ गया था फिर भी वह स्वयं को संयत रखने का प्रयास कर रही थी।

कुछ क्षणों बाद वह अट्टहास बंद हो गया और उस लड़की के निकट एक पुरुष आकृति प्रगट हो गई. इस प्रकार उस पुरुष को प्रगट होते देखकर मुन्नू और चंदू भयभीत हो गए.

उसका मुख पृथ्वी के मनुष्यों के समान ही था। तपाये हुए सोने जैसा रंग, खूंखार आंखें और लंबा ऊंचा कद। भयंकर रूप से कठोर चेहरे वाले उस पुरुष को देखकर चंदू सहम गया था। मुन्नू उसे एकटक देख रहा था। उसने अपने हाथ में पकड़ी छड़ीनुमा बंदूक को कस कर पकड़ लिया था जिससे किसी भी क्षण उसका प्रयोग कर सके. वह भयंकर तथा कठोर आकृति वाला पुरुष उन्हें घूर कर देखता रहा। फिर अचानक अट्टहास कर उठा-

"तुम लोग दूसरे ग्रह से आए हो। हा-हा-हा-। आज ... आज मैं तुम लोगों को अपनी शक्ति का परिचय दूंगा। मैं दिखाऊंगा कि एक आदमी क्या-क्या कर सकता है। हा-हा-हा-।"

फिर वह उस लड़की की ओर घूम कर बोला-

"लिजी, तुम इन्हें अपना दोस्त कहती हो? ये तुम्हारे दोस्त हैं? हा-हा-हा-। जमीन पर रेंगने वाले कीड़ों से तुम दोस्ती करती हो। हा-हा-हा-। चलो, अपने दोस्तों को ज़रा पत्थर घर की सैर तो करवा दो।" वह जहरीले स्वर में बोला।

लिजी नाम कि वह लड़की अब भय से थर-थर कांप रही थी। पत्थर घर का अर्थ चंदू और मुन्नू नहीं समझ सके लेकिन उस मनुष्य के कहने के ढंग से इतना ज़रूर समझ गए कि वह कोई अत्यंत भयंकर स्थान होगा उस व्यक्ति के संकेत करने पर दो चंद्रमा वासी आगे बढ़े। उन्होंने झपट कर मुन्नू और चंदू के ऊपर रस्सी का फंदा फेंक कर बाँध दिया। पूरी तरह बंधन में जकड़ जाने पर भी मुन्नू ने उस लाठी को नहीं छोड़ा

उन आदमियों ने उन्हें ले जाकर एक ठंडी और अंधेरी पत्थर की गुफा में बंद कर दिया। वह बहुत भयानक स्थान था और उसमें चारों ओर अंधकार छाया हुआ था।

"अब क्या होगा?" चंदू ने बड़ी कठिनाई से टटोल कर मुन्नू का हाथ पकड़ते हुए पूछा।

"घबराओ मत। वही होगा जो ईश्वर की इच्छा होगी।" मुन्नू ने शांत भाव से उत्तर दिया। वह उस स्थान से मुक्त होने का उपाय सोच रहा था। अच्छा स्काउट होने के कारण उसने मुसीबतों में घबराना नहीं सीखा था। साहस और धैर्य उस में कूट-कूट कर भरा था। जबकि चंदू आयु में छोटा और अपने माता पिता का अत्यंत लाडला होने के कारण बहुत शीघ्र घबरा जाने वाले बच्चों में था।

कुछ देर सोचने के बाद मुन्नू ने कहा-

"आओ चंदू! इस गुफा की तलाशी ले ली जाए."

"लेकिन हमारे हाथ तो बंधे हुए हैं।"

"हाथ बंधे हैं तो क्या हुआ? पैर तो खुले हैं न!"

"नहीं। मुझे डर लगता है और यह बंधन बहुत कस गया है। हाथ बदन से चिपक गए हैं। मुझे छुड़ाओ नहीं तो मैं ऐसे ही बंधे-बंधे मर जाऊंगा।"

चंदू ने रोनी आवाज में कहा। चंदू के कहने पर मुन्नू को भी अपने बंधन का ध्यान हो आया। उसे लगा जैसे बंधे-बंधे उसके हाथ दर्द की अधिकता से बेजान होने लगे हैं। अंधेरे में ही वह आहिस्ता-आहिस्ता चंदू के ठीक पीछे पहुंच गया और बोला-

"मुझसे बिल्कुल सटकर खड़े हो जाओ चंदू! मैं गांठ खोलने का प्रयास करता हूँ।"

उसके शरीर से सटकर चंदू खड़ा हो गया। मुन्नू उसकी गांठ खोलने की कोशिश करने लगा। अँधेरा होने के कारण हाथ को हाथ सुनाई नहीं देता था और गांठे बहुत कसी हुई थी। बहुत प्रयत्न करने पर भी उसे सफलता नहीं मिली।

"ओह, अब क्या करूं?" वह परेशान हो गया। कुछ सोच कर वह जमीन पर बैठ गया और टटोल कर चंदू के हाथों में बंधी रस्सी की गांठ दांतों में दबा कर उसे खोलने की कोशिश करने लगा। गांठ खुली तो नहीं किंतु ढीली अवश्य हो गई जिससे चंदू ने किसी प्रकार अपने हाथ बंधनों से आजाद कर लिए. पहले उसने दोनों हाथों को रगड़ा जिससे उनमें खून का दौरा फिर से शुरू हो गया। फिर उसने हाथों और दांतों की सहायता से मुन्नू का बंधन भी खोल डाला। अब दोनों स्वतंत्र थे। मुन्नू के हाथों में उसकी लाठीनुमा बंदूक थी। उसकी जेब में पड़ी जेबी टार्च भी उन चंद्रमा वासियों ने नहीं निकाली थी। उन्होंने टॉर्च जला कर गुफा के मुख पर रखे पत्थर को ध्यान से देखा। वह बहुत बड़ा और भारी था। ऊपर की ओर पतली-सी दरार थी जिसमें से थोड़ी-थोड़ी हवा और नाम मात्र का प्रकाश भीतर आ रहा था। उसे देखकर दोनों ने समझ लिया कि उसे रास्ते से बाहर निकलना असंभव था।

अब उन्होंने पलटकर गुफा के भीतरी भाग को देखने के लिए उस ओर प्रकाश डाला। उस ओर देखते ही दोनों के मुख से चीख निकल गई. चंदू की तो डर के मारे घिग्घी ही बन्ध गई. उस ओर बहुत से नर कंकाल और मनुष्य के शरीर के विभिन्न अंगों की हड्डियाँ पड़ी हुई थी। कुछ संभलकर मुन्नू ने चंदू को सांत्वना दी।

"चंदू! यह तो हड्डियाँ है। यहाँ सजा देने के लिए जिन्हें बंद किया जाता होगा उन्हीं अभागों के कंकाल हैं ये। आओ, इसके पीछे चल कर मार्ग ढूंढे नहीं तो हमें भी इन्हीं कंकालों में शामिल हो जाना पड़ेगा।"

"नहीं, नहीं। मैं नहीं जाऊंगा। मुझे डर लगता है। ये कंकाल ..."

"अरे हट पागल! मरे हुए लोगों की हड्डियों से डर रहा है। बहादुर हो कर ऐसी बात कर रहा है? हम पृथ्वी के बेटे हैं चंदू! हम अपनी धरती पर पहुंच कर ही मरेंगे।" मन्नू के बहुत समझाने पर भी चंदू उधर जाने के लिए तैयार नहीं हुआ तो मन्नू ने कहा-

"ठीक है फिर। तू यहीं बैठ। मैं अकेला ही जाता हूँ। इस तरह हाथ पर हाथ रखकर बचाव की कोशिश किए बिना मरना मुझे मंजूर नहीं है।" मुन्नू को अकेला जाने के लिए तत्पर देखकर चंदू विरोध नहीं कर सका। उस भयंकर गुफा में अकेले ठहरने की कल्पना भी बहुत दुखदाई थी अतः वह भी चलने के लिये तैयार हो गया। मुन्नू ने टार्च चंदू के हाथ में पकड़ा दी और स्वयं उस विचित्र लाठी को एक हाथ में लेकर दूसरे हाथ से चंदू का हाथ पकड़ लिया। कंकालों तथा हड्डियों के टुकड़ों को कभी पैरों से तो कभी उस लाठी की सहायता से किनारे करके रास्ता बनाते वे बच-बच कर आगे बढ़ने लगे। कंकाल और हड्डियों का मिलना थोड़ी देर बाद ही बंद हो गया।

आगे ठंडी किंतु कठोर गुफा की फर्श दूर तक अंदर की ओर चली गई थी। वे तेजी से आगे बढ़े। कुछ आगे जाने पर गुफा और भी संकरी हो गई थी। इतनी संकरी कि दोनों का बगल-बगल एक साथ चलना भी कठिन हो गया। अब मुन्नू आगे चलने लगा और चंदू को उसने अपने पीछे कर लिया। दस पन्द्रह मिनट चलने के बाद ऐसा लगा जैसे गुफा वहीं समाप्त हो गई हो।

"अब क्या करें?" हताश होकर मुन्नू बोला। इतनी मेहनत और इतनी दूर आना सब बेकार हो गया। हमें अब इसी गुफा में मरना होगा। " चंदू ने उदास होकर कहा।

मुल्लू ने थक कर गुफा की दीवार से पीठ टिका ली। अचानक कुछ देख कर वह चौक पड़ा।

"वह ... वह देखो। उधर क्या है।" दोनों ने देखा। जहाँ गुफा समाप्त होती प्रतीत हो रही थी वही दाहिनी ओर बहुत पतली गली जैसी थी जो कुछ आगे जाकर एक सुराख की सूरत में बदल गई थी। इसी छेद से रोशनी भीतर आ रही थी और उस से मोड़ के उस थोड़े से भाग में हल्का प्रकाश दिखाई दे रहा था। मुन्नू ने प्रसन्न होकर चंदू को लिपटा लिया।

"रास्ता ... चंदू! रास्ता मिल गया।" और कुछ ही देर बाद वे उस स्थान पर पहुंच गए. वह स्थान बहुत छोटा था लेकिन लेट कर उसमें से कोई भी व्यक्ति खिसकता हुआ बाहर जा सकता था। वे दोनों बालक थे और वह भी इकहरे शरीर के स्वामी इसलिए उन्हें बाहर निकलने में कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई. गुफा के बाहर खुला हुआ लंबा चौड़ा मैदान था। छोटी-छोटी झाड़ियों ने उस गुफा के उस छोटे गुप्त द्वार को ढक रखा था। एक ओर कुछ पेड़ों का झुरमुट दिखाई दे रहा था। वहीं कुछ छोटे-छोटे खरगोशों जैसे पशु इधर-उधर फुदक रहे थे। चंदू और मुन्नू उसी ओर बढ़ गए. उन वृक्षों के पीछे एक छोटा पहाड़ी झरना जैसा दिखाई दिया जिसमें स्वच्छ जल कल-कल कल करता हुआ बह रहा था। पानी देख कर उनकी भूख प्यास जग गई.

उन्होंने उन वृक्षों के नीचे गिरे कुछ फल इकट्ठा कर लिये। दोनों ने उन फलों को खा कर ठंडा पानी पिया और एक पेड़ के नीचे लेट कर आराम करने लगे। उनका बहुत-सा समय मानसिक उलझन और तनाव में बीता था। इसके साथ उन्हें चलना भी बहुत पड़ा था। भूख प्यास और भय ने उन्हें अधमरा कर रखा था। अब आराम करने का अवसर मिला और भूख प्यास से छुटकारा मिला तो पेट भरा होने के कारण नींद ने आ घेरा।

बंदूक कमर में बांध कर और टार्च को जेब में रख कर मुन्नू एक पेड़ के तने से टिक कर बैठ गया। चंदू का सर उसने अपनी गोद में रख लिया। थोड़ी ही देर में दोनों गहरी नींद में डूब गए. वे पता नहीं कितनी देर उसी प्रकार सोए रहे। अचानक किसी शोर ने उनकी नींद तोड़ दी। आश्चर्य से उठ कर दोनों ने चारों ओर देखा और बीती हुई घटनाओं के विषय में सोचने लगे। उन्हें लगा जैसे वे कोई स्वप्न देख रहे हैं क्योंकि जब वे सोए थे तब झरने के पास वृक्ष के नीचे थे और अब वे एक विशाल कक्ष में पलंग पर पड़े थे।

वह कक्ष किसी प्रयोगशाला का एक भाग प्रतीत हो रहा था। सीमेंट चूने से बने उस कक्ष में बिजली के रॉड जल रहे थे। ये रॉड भी कई रंगों के थे। दो लाल तीन पीले और सात नारंगी और नीले। नीले रंगों वाले कुल 12 रॉड थे जिनसे विभिन्न रंगों की किरणें फूट रही थी। कमरे में एक ओर वह बड़ा पलंग बिछा हुआ था जिस पर वे दोनो पड़े थे। शेष कक्ष का बड़ा भाग बड़े-बड़े विभिन्न आकार प्रकार वाले यंत्रों से भरा था। कक्ष में वही भयंकर अट्टहास गूंज रहा था जिसे वे पहले भी सुन चुके थे।

अचानक ही वह व्यक्ति के पलंग के पास प्रगट हो गया। चंदू और मुन्नू की ओर देख कर उसने फिर अट्टहास किया और बोला-

"उठो। चलो, मैं तुम्हें आज अपनी शक्ति दिखाता हूँ। उसके बाद तुम्हें मैं ऐसे मसल दूंगा।" उस ने ऐसे चुटकी मसली जैसे किसी चींटी को मसल रहा हो।

"हमारी हड्डियाँ इतनी कोमल नहीं है दोस्त!" मुन्नू ने साहस पूर्वक उत्तर दिया।

"दोस्त? दोस्त नहीं, दुश्मन कहो। दुश्मन। मैं तुम्हारा ही नहीं तुम्हारी पूरी पृथ्वी का दुश्मन हूँ। मैं तुम सब को मार डालूंगा। सब को। हा-हा-हा-।"

उसके अट्टहास से कमरे की दीवारें कांप उठी। चंदू और मुन्नू पलंग से उतर कर खड़े हो गए. मुन्नू ने देखा पलंग पर उसके निकट उसका छड़ीनुमा अस्त्र अभी भी पड़ा था। उसने झुक कर उसे उठा लिया। यह देख कर वह व्यक्ति ठहाका लगा कर हंस पड़ा।

"नादान छोकरे! यहाँ यह छड़ी क्यों लाया है? क्या तूने सोचा था कि चंद्रमा पर भेड़ बकरियाँ होगी जिन्हें तू छड़ी से मार भगाएगा?" मुन्नू ने कोई उत्तर नहीं दिया। उन्हें चलने के लिए उद्यत देख कर वह व्यक्ति पलट कर यंत्रों की ओर चल दिया।

मुन्नू और चंदू भी उसके पीछे चल पड़े।

एक बहुत बड़े यंत्र के पास जाकर वह रुक गया। यह यंत्र एक कुर्सी के आकार का था। उसके दोनों हाथों पर कई बटन लगे हुए थे। उन्हें दिखाते हुए वह बोला-

"यह मेरा वायुयान है। इस पर बैठ कर मैं जहाँ चाहूँ वहाँ जा सकता हूँ। इसकी गति इतनी तीव्र है कि कुल सत्ताईस मिनटों में यह पृथ्वी तक की दूरी तय कर लेता है। यही नहीं, जल, थल, पृथ्वी, कहीं भी इसे सरलता से उतारा जा सकता है। इस पर बैठ कर यात्रा करते समय ऑक्सीजन बैग साथ रखने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि चलते समय यह अपने चारों ओर तीन फीट की दूरी तक वायुमंडल बना लेता है।" मुन्नू और चंदू आश्चर्यचकित होकर उस यंत्र को देख रहे थे तभी उसने एक अन्य यंत्र की ओर संकेत करते हुए कहा-

"यह मेरी तोप है। इसमें जो छोटी-सी पेंसिल के आकार की काले रंग की नली लगी है यदि उसका रुख किसी वस्तु की ओर करके यह सुनहरा बटन दबा दिया जाए तो वह वस्तु पल भर में ही नष्ट होकर हवा में मिल जाएगी।"

फिर उसने एक दूसरे यंत्र की ओर इशारा किया-"इसे देखो। इसमें कई छोटे-छोटे गोले फिट हैं। इन गेंदों के आकार के गोलों को इस यंत्र में बाई ओर इस खाने में फिट कर दिया जाए तो इस स्टैंड पर खड़ा मनुष्य देखते ही देखते गायब हो जाता है। इसी को दाहिनी ओर के खाने में फिट करने पर वह व्यक्ति से प्रगट हो जाता है। इसके द्वारा मैं जब जहाँ चाहूँ गायब और प्रगट हो सकता हूँ।"

उन्होंने कक्ष में फैले अन्य छोटे-छोटे यंत्रों की ओर देख कर पूछा-"और इस यंत्र की क्या विशेषता है?"

"इनसे मैं एक प्रयोग कर रहा हूँ जिसके पूरा होते ही मैं अमर हो जाऊंगा। जब मैं सारी पृथ्वी को उजाड़ दूंगा तो वहाँ फिर से एक नई दुनिया बसा लूंगा जो पूरी तरह मेरी गुलाम होगी। मेरा घर और प्रयोगशाला यही चंद्रमा पर रहेंगे। यहीं से मैं पृथ्वी पर शासन करूंगा।" उसके भयंकर इरादे ने उन्हें दहला दिया। उसकी वैज्ञानिक उपलब्धियों के सामने संसार के वैज्ञानिकों की प्रगति बहुत कम थी। इतनी भयानक विनाश-लीला की कल्पना भी उनके लिये असह्य थी। अपनी प्यारी पृथ्वी को बचाने के लिए वे बेचैन हो गए. अब तक उन्हें केवल अपने प्राण बचाने की चिंता थी किंतु अब वे अपने प्राण दे कर भी पृथ्वी वासियों को बचा लेना चाहते थे। इस चिंता ने उनके माथे पर पसीना ला दिया।

"और अब एक घंटे बाद मैं तुम दोनों को अड़सठ घंटों के लिए बेहोश कर दूंगा। अड़सठ घंटों में प्रयोग पूरा हो जाएगा। तब मैं तुम्हें मार डालूंगा। तब तक तुम लोग मेरे प्रयोग की सफलता देखने के लिए जीवित रहोगे।"

"तुम ... तुम अपने इस प्रयोग और इरादे को कभी पूरा नहीं कर पाओगे।" मुन्नू ने विरोध किया।

"मुझे अब कोई नहीं रोक सकता। ह-ह-ह-।"

उसने दीवार में लगा एक स्विच दबा दिया। उसी पल दाहिनी ओर की दीवार में एक द्वार उत्पन्न हो गया। सामने एक छोटा कमरा दिखाई दे रहा था जिसमें हल्के हरे रंग का प्रकाश फैला हुआ था।

"लिजी! अपने दोस्तों के साथ एक घंटा गुजार लो। हा-हा-हा-"

उसकी आवाज सुन कर दूसरे कमरे से लिजी निकल आई. उसका मुख उदास और आंखें लाल थीं। लगता था जैसे अभी-अभी रो कर आई हो। मुन्नू और चंदू को साथ लेकर वह फिर उसी कमरे में चली गई. दीवार में उत्पन्न हुआ मार्ग कुछ पलों बाद स्वतः ही बंद हो गया।

"लिजी! तुम रो रही थी क्या?" मुन्नू ने कमरे में बिछे पलंग की ओर बढ़ते हुए पूछा।

" नहीं, नहीं। उधर मत जाओ. लिजी ने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया।

"क्यों?"

" क्योंकि उस पलंग पर बैठते ही तुम गूंगे हो जाओगे। आओ, यहाँ बैठो। लिजी ने फर्श पर बिछी चटाई की ओर संकेत करते हुए बताया। चटाई पर बैठती लिजी की आंखों में उस समय भी आंसू भरे थे।

"तुम रो क्यों रही हो?" मुन्नू ने फिर पूछा। चंदू उससे सट कर सहमा हुआ बैठा था। उसे लिजी का मुख देख कर अपनी माँ की याद आ रही थी। दूर धरती पर बैठी वह भी अपने बेटे के लिए ऐसे ही रो रही होगी। मुन्नू के बार-बार टोकने पर लिजी जोर से रो पड़ी। कुछ देर रो लेने के बाद वह संभल कर बोली-

" यह वैज्ञानिक स्कॉटलैंड का निवासी था। इसका नाम विलियम है। इस का एक बूढ़ा नौकर था जार्ज। मैं उसी जार्ज की बेटी हूँ। इसकी प्रयोगशाला में मैं भी काम किया करती थी।

एक दिन इसने मुझ से विवाह करने की इच्छा प्रकट की। मैंने उसे बहुत फटकारा। उस समय यह चुप रहा और अपने प्रयोग में लगा रहा। फिर एक दिन अपने यंत्र की परीक्षा करते समय मुझे अपने साथ लेकर उसमें बैठ कर यहाँ चंद्रमा पर भाग आया। चंद्रमा पर फिर से प्रयोगशाला बनाई. यहाँ के भोले भाले निवासियों को अपने प्रयोगों के चमत्कारों से डरा कर स्वयं उनका मालिक और भगवान बन गया। अब यह पृथ्वी को नष्ट करके और स्वयं अमर बन कर, पृथ्वी पर नई दुनिया बसा कर उस पर शासन करना चाहता है। उस दिन मैंने तुम लोगों के द्वारा अपने डैडी को संदेश भेजना चाहा था। उससे रुष्ट होकर इसने उसी दिन अपने यंत्र द्वारा यहीं बैठे-बैठे मेरे डैडी को मार डाला। मेरे देखते ही देखते वे मर कर हवा में विलीन हो गए. उनकी लाश भी नहीं बची। " कहते-कहते लिजी रोने लगी।

मुन्नू ने बड़ी कठिनाई से उसे चुप कराया और विलियम से जो कुछ बातें हुई थी उसे बताया। मुन्नू की बातें सुन कर लिजी भी चिंतित हो गयी थी। कुल एक घंटा था उनके पास जिसमें से अब केवल पच्चीस मिनट ही बच गए थे। पच्चीस मिनट बाद उन दोनों को बेहोश कर दिया जाएगा। फिर तो कुछ भी नहीं किया जा सकेगा। जो कुछ भी करना हो इन पच्चीस मिनटों में ही कर लेना था।

"तुम्हारे पास कोई हथियार नहीं है?" लिजी ने मुन्नू से पूछा।

"यही बंदूक है।" मनु ने छड़ी की ओर संकेत करते हुए बताया।

"बंदूक?"

"हाँ, यह देखो।" मुन्नू ने उसे छड़ी हाथ में लेकर दिखाई.

"चलो फिर कोशिश करते हैं लेकिन इसमें बहुत खतरा है। मुन्नू! हमें बहुत सावधान रहना होगा। यदि जरा-सी भी चूक हो गई तो वह हम तीनों को तड़पा-तड़पा कर मारेगा।" लिजी ने कहा।

"अब चाहे जो हो। एक बार अपनी पृथ्वी को बचाने का प्रयत्न ज़रूर करना होगा। वरना तो वैसे भी वह हमें बख़्शने वाला नहीं है।"

"ठीक है फिर। आओ." कह कर लिजी उसी दीवार की ओर बढ़ गई जिधर से यह लोग कुछ समय पूर्व आए थे। दीवार में एक अलमारी फिट थी। लिजी ने उसे खोला और कुछ देर न जाने क्या करती रही। फिर उसने चंदू और मुन्नू को संकेत से अपने पास बुला कर एक सफेद रंग की प्लेट में उन्हें देखने के लिए कहा।

चंदू और मुन्नू उस सफेद चमकीली प्लेट पर झुक गए. प्लेट में जैसे कोई पदार्थ उबल रहा था। थोड़ी देर बाद उसका रंग गहरा काला हो गया। उस काले रंग में धीरे-धीरे प्रयोगशाला के उसी विशाल कक्ष का दृश्य उभरने लगा। उस समय वह वैज्ञानिक उसी कक्ष में एक यंत्र पर झुक कर कुछ कर रहा था। दीवार की ओर उसकी पीठ थी। लिजी ने फुसफुसाते हुए कहा-

"इस समय वह खाली हाथ है। अगर अभी उसे काबू में न किया गया तो फिर कभी वह हाथ नहीं आएगा।"

"भीतर जाने का रास्ता बताओ." मुन्नू बोला। उसने दृढ़ता से अपनी बंदूक थाम ली। लिजी ने एक बटन दबा कर दीवार में रास्ता बना दिया। वैज्ञानिक अभी भी यंत्र पर झुका था।

"हैंड्स अप।" मुंन्नू चीख कर बोला।

विलियम ने चौंक कर पीछे देखा और सीधा खड़ा हो गया। मुन्नू को देख कर वह सधे कदमों से आगे बढ़ता हुआ बोला-

"इस से मुझे डराना चाहते हो? बहुत हिम्मती हो बच्चे!-हा-हा-हा।"

"वहीं खड़े रहो। अब तुम्हारा खेल समाप्त हो चुका।" मुन्नू ने कहा।

"खेल समाप्त हो चुका है? नादान लड़के! खेल तो अभी शुरू भी नहीं हुआ और तुम समाप्त होने की बात कर रहे हो? ह-ह ह ह।"

अपनी भयानक हंसी से उसे आतंकित करके वह तेजी से अपने तोप वाले यंत्र की ओर झपटा। मुन्नू ने गोली चला दी लेकिन हड़बड़ी में निशाना चूक गया। तब तक लिजी दबे पांव उस तोप वाले यंत्र तक पहुंच चुकी थी।

[07 / 12, 13: 45] Ranjana Verma: "ओह डियर! इसी तोप से इन शैतानों को नेस्तनाबूद कर डालो।" विलियम चीख कर बोला।

"उन्हें मार डालूँ या तुम्हें? मेरे बूढ़े बाप को मारते समय कुछ सोचा था तुमने?" लिजी ने क्रोध भरे स्वर में कहा।

"नमक हराम!" विलियम चीखा। तभी लिजी ने बटन दबा दिया। तोप की नलियों से चमकीली किरनें निकल कर विलियम के शरीर से टकराई. क्षण भर तड़प कर वह ठंडा हो गया और देखते ही देखते उसका शरीर हवा में मिल गया।

लिजी तो जैसे पागल हो उठी थी। उस ने तोप का मुंह घुमा कर प्रयोगशाला के यंत्रों की ओर कर दिया और एक-एक करके सभी छोटे-बड़े यंत्रों को नष्ट करने लगी। तब तक मुन्नू और चंदू भी उसके पास पहुंच गए.

"यह क्या कर रही हो लिजी?" मुन्नू ने उसे रोकना चाहा।

"मुझे मत रोको मुन्नू। शासन का लोभ बहुत बुरा होता है। क्या पता कल मैं भी विलियम के समान भयानक सपने देखने लगूँ जिनमें सृष्टि का विनाश और शासन करने की इच्छा समाई हुई हो।" लिजी ने उत्तर दिया।

कुर्सीनुमा यंत्र को छोड़कर उसने सभी यंत्र नष्ट कर दिए. अंत में उसने प्रयोगशाला पर अंतिम वार करते हुए कहा-

"अब मैं यहाँ के निवासियों के साथ मिल कर सादगी से अपना जीवन बिताऊँगी।"

"क्यों? क्या तुम पृथ्वी पर वापस नहीं चलोगी?"

"नहीं। वहाँ जाकर अब क्या करूंगी? तुम दोनों इस कुर्सी पर बैठ कर पृथ्वी पर चले जाना। कुछ दिन अभी हमारे अतिथि बन कर चंद्रलोक में रहो।"

लिजी के आग्रह पर वे दोनों दो दिनों तक चंद्रमा में रुके. लिजी ने उनका खूब आतिथ्य सत्कार किया और घुमाया फिराया। तीसरे दिन दोनों ने लिजी के साथ मिल कर एक ऊंचे पर्वत की चोटी पर सभी राष्ट्रों के झंडे फहरा कर उन्हें सलामी दी।

"हमें तुम लोगों की बहुत याद आएगी।" लिजी ने आंसू भरी आंखों से उन्हें विदाई देते हुए कहा। सभी चंद्रमा निवासी अपने उपकार कर्ताओं को विदाई देने के लिए पास खड़े थे। उन्होंने हाथ हिला कर सबसे विदा ली। बटन दबाते ही यान तीव्र गति से पृथ्वी की ओर बढ़ चला। देखते ही देखते चंद्रमा उनसे दूर होकर आकाश में जगमगाने लगा। नीचे उनकी विशाल पृथ्वी दिखाई दे रही थी और उनकी प्यारी धरती माँ मानो उन्हें पुकार रही थी। खुशी से उनकी आंखें छलक उठीं।