भारत और पाकिस्तान में क्रिकेट व सिनेमा जुनून / जयप्रकाश चौकसे

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भारत और पाकिस्तान में क्रिकेट व सिनेमा जुनून
प्रकाशन तिथि : 21 अगस्त 2018


पाकिस्तान में इमरान खान शिखर पद पर विराजमान हुए हैं। दशकों पूर्व ऑस्ट्रेलिया में खेले जा रहे वर्ल्ड कप में पाकिस्तान अपनी लीग से ही बाहर होने की कगार पर पहुंच गया था। इमरान की कप्तानी और गेंदबाजी ने उन्हें न केवल उस मैच में जिताया वरन वर्ल्ड कप जीतने में भी सफलता दिलाई। आज पाकिस्तान के खस्ता आर्थिक हालात है, आवाम की भुखमरी और बेरोजगारी ने उसे एक देश के रूप में टूटने और पूरी तरह से बिखर जाने की कगार पर ला खड़ा किया है। क्या इमरान खान अपना क्रिकेट करिश्मा राजनीति के अखाड़े में भी दोहरा पाएंगे? अपने निर्माण के बाद से ही पाकिस्तान अमेरिका की राहत पर निर्भर रहा और गुजश्ता दशक में चीन की मदद निरंतर प्राप्त कर रहा है।

सारांश यह है कि पाकिस्तान ने कभी अात्म-निर्भरता का लक्ष्य रखा ही नहीं। इस तरह बैसाखियों पर चलते रहने से उसकी भीतरी बनावट में जंग लग गया है। जब भारत में हवाई जहाज का निर्माण हो रहा था तब पाकिस्तान में पहली बार साइकिल बनाने का कारखाना खुला था। पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व के कारण ही भारत पाकिस्तान जैसा होने से बच गया। यह विचार महान राजनीतिक चिंतक राजेन्द्र माथुर का था। बहरहाल, इमरान खान को पाकिस्तान की फौज का मोहरा कहा जा रहा है। कभी-कभी शतरंज का मोहरा खेलने वाले के इरादे और चाल के खिलाफ बगावत करके खुद चल पड़ता है। यह भी कहावत है कि सीढ़ी के अंतिम पायदान पर पैर रखकर, उसे नीचे फेंक दिया जाता है। यह बात राजनीतिक क्षेत्र में कई बार घटी है।

इमरान खान फौज के शिकंजे से निकलकर अपने देश को 16वीं सदी की सोच से बाहर निकालकर 21वीं सदी में लाने का प्रयास करें। भले ही वह 20वीं सदी तक ही पहुंच पाएं। इन महान लक्ष्य के साथ ही इमरान खान दो छोटे कदम ये उठा सकते हैं कि पाकिस्तान में हिंदुस्तानी फिल्मों के प्रदर्शन पर लगी पाबंदी तो खत्म कर दें। पहली फिल्म आनंद एल. राय की 'हैप्पी भाग जाएगी' दिखाई जाए। ज्ञातव्य है कि इस फिल्म की नायिका अपनी शादी के दिन घर से भाग जाती है और मजेदार घटनाक्रम उसे पाकिस्तान पहुंचा देता है। पाकिस्तान के धनाढ्य व्यक्ति अपने सुपुत्र को राजनीति के क्षेत्र में उतारना चाहते हैं और बार-बार कहते हैं कि उनका सुपुत्र नेता बनकर पाकिस्तान का मुस्तकबिल बदल देगा। अर्थात उसे प्रगति के रास्ते पर ले आएगा। सुपुत्र की भूमिका अभय देओल ने निभाई थी। धर्मेंद्र के बड़े भाई अजीत देओल का यह प्रतिभाशाली बेटा अपने ढंग का निराला देओल है। वह जिम भी नहीं जाता है और मसल्स से अधिक यकीन उसे अपने मस्तिष्क पर है। ज्ञातव्य है कि अभय देओल को फिल्मकार इम्तियाज अली ने ही पहला अवसर दिया था। पाकिस्तान में मात्र 45 सिनेमाघर हैं। पाकिस्तान के अवाम को भारतीय फिल्में देखना बहुत पसंद है। सच तो यह है कि फिल्म देखने की दीवानगी दोनों मुल्कों में समान है क्योंकि ये एक ही मांस के दो पिंड जो हैं। समान अवचेतन है। दुबई से हिंदुस्तानी फिल्मों की अवैध सीडी और पेन ड्राइव पाकिस्तान पहुंचती हैं। इस अवैध व्यवसाय की गति कुछ ऐसी है कि भारत में प्रदर्शन होने वाले दिन ही पाकिस्तान के घरों में भी वही फिल्म देखी जाती है गोया कि 'शुक्रवार' और 'जुम्मा' इस तरह भी समानार्थी हो जाते हैं। जुम्मा की उत्पत्ति और सफर पर एटिमालॉजी के महान पंडित डॉ. शिवदत्त शुक्ला प्रकाश डाल सकते हैं। वे भोपाल स्थित अपने घर में बैठकर शब्द के दुनियाभर की यात्रा को जानते हैं। उनके साथ-साथ चलते हैं। आभास होता है मानो वे शुक्र द्वारा पृथ्वी पर भेजे एलियन हैं, जो धरती का सारा ज्ञान शुक्र को भेज सकते हैं।

इमरान खान दूसरा कदम यह उठा सकते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट दौरे पुन: प्रारंभ करें तथा इसके साथ ही हॉकी की टीमों के दौरे भी प्रारंभ करें, क्योंकि यूरोप के देशों ने इस खेल में भारत और पाकिस्तान से अधिक महारत हासिल कर ली है। दोनों दुश्मन देशों में क्रिकेट और सिनेमा के लिए समान जोश है। देश के विभाजन के समय कुछ हिंदू धर्म मानने वालों ने पाकिस्तान में ही बने रहने का निर्णय किया और इसी तरह इस्लाम को मानने वालों ने भी भारत में ही बने रहना पसंद किया। दोनों ही जगह इन लोगों को भारी जद्दोजहद से गुजरना पड़ रहा है। इस दुख को फिल्म 'मुल्क' में अत्यंत प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। सभी कलाकारों ने विश्वसनीय अभिनय किया है परंतु ऋषि कपूर एवं तापसी पन्नू ने अभिनय इतिहास में एक स्वर्ण अध्याय ही जोड़ दिया है। यह माना जाता है कि 20वीं सदी ज्ञान, विज्ञान के क्षेत्र में सांस्कृतिक जागरण की सदी थी। तो 21वीं सदी के प्रारंभिक दशक संकीर्णता के दशक रहे हैं। समय चक्र को विपरीत दिशा में अधिक समय तक नहीं चलाया जा सकता। जो बौना व्यक्ति यह मानता है कि वही इस चक्र को चला रहा है, वह नहीं जानता कि वह इस विराट चक्र का मामूली सा हिस्सा है। ये टीएस एलियट की लिखी कविता का आशय है। हम आशा कर सकते हैं कि इमरान खान पुन: अपना क्रिकेट यूनिफॉर्म धारण करें और फौजी कोट उतार फेंके।