भारत का पहला एंटी हीरो मोतीलाल / जयप्रकाश चौकसे

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भारत का पहला एंटी हीरो मोतीलाल


आज इरफान खान और नवाजुद्दीन की चहुंओर प्रशंसा हो रही है और उनके स्वाभाविक अभिनय के कारण उन्हें नसीरुद्दीन शाह और ओमपुरी के स्कूल का अभिनेता माना जा रहा है। मगर, अभिनय में स्वाभाविकता के इस स्कूल के पुरोधा थे मोतीलाल जी, जिन्होंने तीसरे और चौथे दशक में अभिनय को के.एल. सहगल और सुरेन्द्रनाथ की अति नाटकीयता तथा सोहराब मोदी की पारसी थियेटर की शैली से मुक्त कराया। मोतीलाल एक श्रेष्ठ परिवार से आए आधुनिक युवा थे। उन्होंने कभी अभिनय नहीं किया वरन् वे भूमिकाओं में इस तरह रम गए कि लगता ही नहीं था कि कोई स्टार काम कर रहा है। 1936 में उनके विवाह में प्रसिद्ध सरोजनी नायडू ने शिरकत की थी, जिससे आप मोतीलाल की पारिवारिक पृष्ठभूमि का अनुमान लगा सकते हैं। ए.आर. कारदार की ‘होली’ में उन्होंने एक अपराधी की भूमिका निभाई, जिसे उस लड़की से प्यार हो जाता है जिसका वह अपहरण करके लाया था। यह काहनी आज भी आधुनिक लगती है और मोतीलाल ने इस एंटी हीरो को अत्यंत स्वाभाविकता से निभाया। इस तरह यह फिल्म अशोक कुमार की ‘किस्मत’ के पहले भारत की पहली एंटी हीरो छवि वाली फिल्म थी। मोतीलाल ने मेहबूब खान के लिए तीन हिट फिल्मों में काम किया और वे उस दशक के सबसे लोकप्रिय सितारा हो गए। सन् 1940 में उनका तलाक हो गया, क्योंकि उनकी पारंपरिक मूल्यों वाली पत्‍नी मोतीलाल की आधुनिकता से परेशान थी। वे पहले सितारे थे, जिनके पास अनेक रंगों की कारें थीं और वे उसी रंग का सूट तथा फैल्ट हैट पहनते थे। वे रेस कोर्स में महाराजाओं के लिए आरक्षित बॉक्स में बैठते थे। उस समय तक शोभना समर्थ तीन पुत्रियों की मां थीं और उनकी ‘रामराज्य’ ने उन्हें पूजनीय बना दिया था। शोभनाजी विदुषी महिला थीं और मोतीलाल से उनकी अंतरंगता चौंकाने वाली थी, परंतु यह दोनों का ही साहस था कि उन्होंने अपनी दोस्ती को किसी आवरण में नहीं छुपाया। आज की तरह मीडिया केंद्रित युग होता तो मीडिया पागल हो जाता। दरअसल मोतीलाल को समझना आसान नहीं है। वह परिभाषाओं के परे जीवन को डटकर और खुलकर जीने वाले व्यक्ति थे, परंतु उनका यह पक्ष भी देखें कि आठ अगस्त 1942 को गांधीजी के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के बाद सारे नेता गिरञ्जतार कर लिए गए थे और अवाम का जोश बनाए रखने के लिए कई छोटे प्राइवेट ट्रांसमीटरों से देश भक्ति के संदेश दिए जाते थे। ऐसा ही एक ट्रांसमीटर मोतीलाल के बंगले में उनकी सहमति से लेखक राजा राव ने लगाया था। हम लोगों का आकलन किसी टांचे के अंतर्गत नहीं कर सकते। लंबी और सफल पारी खेलने के बाद मोतीलाल ने 1956 में बिमलराय की देवदास और राजकपूर की ‘जागते रहो’ में जबरदस्त चरित्र भूमिकाओं का निर्वाह किया, बाद में ऋषिकेश मुखर्जी की ‘अनाड़ी’ में वे नूतन के पिता की भूमिका में आए। ज्ञातव्य है कि प्रतिभाशाली नूतन शोभना समर्थ की ज्येष्ठ पुत्री थीं और आज अभिनय में स्वाभाविकता के लिए जाने वाली काजोल की वे नानी थीं। जब मोतीलाल चरित्र भूमिकाओं के लिए मुंहमांगा पैसा पा रहे थे तब उन्होंने ‘छोटी- छोटी बातें’ नामक एक सार्थक फिल्म का निर्माण किया और अपना सारा धन खो दिया।

1965 में मात्र पचपन की उम्र में हताशा ने उन्हें मार दिया। जिस व्यक्ति ने राजा की तरह जीवन जिया था, उसके पास अपने अंतिम वर्षो में कोई धन नहीं था। उन्होंने अपनी अंतरंग मित्र शोभना समर्थ से कोई मदद स्वीकार नहीं की। वे प्रसिद्ध गायक मुकेश चंद के भी निकट रिश्तेदार थे परंतु उन्हें अपना आत्म सम्मान प्यारा था।