भिखारी / मुकेश मानस

Gadya Kosh से
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चौराहे पर लाल बत्ती होने के कारण कार रोक दी गई। “शीशा बंद कर लो।” सूटेड-बूटेड साहब ने अपने बगल में बैठी बीबी से कहा।

साहब की बीबी अपने हाथों में पहनी सोने की चूड़ियों की चमक को देखने में मगन थी। उसने झटपट कार का शीश चढ़ा दिया।

एक भिखारी कार की तरफ लपका। उसके बदन पर चिथड़े लटके हुए थे। एक पैर को बैसाखी का सहारा था और दूसरे पर सफेद पट्टी बँधी थी जिस पर खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे। भिखारी के एक हाथ में एक बच्चा झूल रहा था जिसमें जीवतों जैसी कोई हरकत नहीं थी। भिखारी कार के पास आकर रुका। गरीबी, भुखमरी जैसे भाव उसके चेहरे पर गहरे थे। उसने दूसरे हाथ को दान पात्र जैसा बनाया। फिर बच्चे को दिखाकर कुछ मांगने का सा भाव प्रकट करने लगा। आंखों से आंसू टपकने ही वाले थे।

साहब ने उसे अंदर से ही ‘आगे चलो या माफ करो’ जैसा ईशारा किया।

भिखारी कुछ देर तक ठिठका रहा। फिर हाथ जोड़कर आगे बढ़ गया।

“देखो कैसी नौटंकी कर रहा है साला। खुद ही अपनी टांग काट ली होगी। दूसरे में झूठ-मूठ की पट्टी बांधकर हमें बेवकूफ बनाना चाहता है। बच्चे को भी अफीम खिला दी होगी कुत्ते-हरामजादे ने। साला सहानुभूति जगाकर हमें ठगना चाहता है।”

“जब बच्चों को खिला नहीं सकते तो पैदा क्यों करते हैं? भगवान भिखारियों को भी खूब बच्चे देता है।” बीबी बोल भी रही थी और अपने गले में पड़े कीमती हार पर उंगली भी फिरा रही थी।

“ये भी इसका कहाँ होगा। किसी का उठा लाया होगा या किसी से किराये पर ले लिया होगा।” हरी बत्ती होने पर कार आगे बढ़ा दी गई।

“ड्राईवर जरा वहाँ गाड़ी रोकना, जहाँ छबील लगी है।”

गाड़ी रोक दी गई। शीशे नीचे खिसका दिये गये। एक सेवादार ने आकर उन्हें ठंडे शरबत के गिलास थमा दिये। साहब ने बगल में पड़े बड़े से थरमस को सेवादार की ओर बढ़ाया। “भाई जी, जरा भर दीजिए।” थरमस भरकर लौटा दिया गया। साहब ने देखा थरमस जरा खाली था। “भाई जी जरा पूरा भर दीजिए।” थरमस पूरा भर दिया गया। पूड़ी-सब्जी भी बंट रही थी। “जरा पूड़ी-सब्जी भी दे दीजिए।” साहब ने हाथों को दान पात्र की-सी शक्ल में आगे बढ़ा दिया। पूड़ी-सब्जी दे दी गई। फिर साहब को कुछ ध्यान आया

“भाई जरा बच्चों के लिए भी दे दीजिए। उन्हें भी पुण्य लग जायेगा।” पूड़ी-सब्जी उन्हें दे दी गई। कार धुंआ उड़ाती आगे बढ़ गई। रचनाकाल : 2000