भूख और योग / सुरेश सौरभ

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह का वक्त था। कुछ लोग पार्क में हा-हा हा हूँ-हूँ करते हुए कलाबाजी कर रहे थे। जब उनकीं कलाबाजी खत्म हुई और तब सब चल पड़ें तभी एक भिखारी उनसे टकरा गया और वह मुंह फाड़कर कातर स्वर में बोला-बाबू लोगों बहुत भूखा हूँ। बहुत देर से आप लोगों की कलाबाजी देख रहा था। सोच रहा था, जब कलाबाजी आप लोगों की खत्म हो, तब मैं आप लोगों से कुछ मांगूं।

तब सब बाबू लोग हंसते हुए बोले-अरे! भाई हम लोग अपना स्वास्थ्य सही करने के लिए यहाँ योगा करने आए थे, यहाँ पैसे की क्या ज़रूरत है इसलिए हम लोग पैसे नहीं लाए. "

तब वह भिखारी आंखों में आंसू भरकर बोला-बाबू लोगों आप लोग बहुत पढ़े लिखे हैं। मैं गरीब अनपढ़ जाहिल हूँ। मैं आप लोगों से ये पूछना चाहता हूँ कि गरीब लोगों की भूख के लिए कोई योगा है।

अब सब खाए-अघाए योगा वाले जीव एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे।