भूख / गोवर्धन यादव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूरी बस्ती में इस ख़बर को फ़ैलने में देर नहीं लगी कि ददुआ की जवान छोरी कल रात अपने आशिक के साथ भाग गई है, एक अख़बार में नए-नए काम पर लगे संवाददाता ने सोचा कि इस ख़बर को हाई-लाइट किया जा सकता है, उसने अपना कैमरा उठाया, जेब में डायरी डाली, पेन को जेब के हवाले किया और वहाँ जा पहुँचा,

उसे ददुआ के मकान को खोज निकालने में देर नहीं लगी, उसने ताबडतोब कई प्रश्न उसके सामने उछाल दिए,

कुछ देर तक तो वह चुप्पी साधे बैठा रहा फिर उसने किसी तरह थूक से गले को गीला करते हुए जबाव दिया " बाबू साहब, आज मुझ गरीब की लडकी भागी है, कल किसी और की भाग जाएगी, कब तक इनके भागने की खबरें छापते रहोगे, लडकियाँ तो आए दिन भाग रही है, यदि मिल भी जाएगी तो कुछ दिन बाद फिर भाग जाएगी, इसका कारण नहीं जानना चाहोगे, सुनो-मैं बतलाता हूँ इसका कारण, एक गरीब बाप उसे भरपेट खाना नहीं खिला सका, शायद तुम जानते होगे कि पेट की भट्टी में जब भूख की ज्वाला प्रज्जवलित होती है, तो आदमी को कुछ सुझाई नहीं देता और उन्हें जब कोई रोटी खिलाने की बात कह देता है, तो वे सहर्ष उनके पीछे हो लेती

है, लडकियाँ जानती है कि इसकी क़ीमत तो उसे चुकानी पडेगी, और वे चुका भी रहीं है, अख़बार में ख़बर छाप देने से कुछ नहीं होगा, ख़बर के बदले उन्हें रोटियाँ दिला सकते हो कुछ हद तक इनके भागने पर रोक लगाई जा सकती है।