भूत विदा ले रहे हैं / पद्मजा शर्मा

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी सासू माँ को कई भूतों ने घेर रखा था। जैसे कि अधिक पढ़ाई करने से लड़की आजाद ख्याल हो जाती है। बड़ों की इज्जत नहीं करती। अपने आपको बहुत समझने लगती है। नौकरी तो करती है पर बिगड़ जाती है क्योंकि पुरुष मित्र रखती है। अपने पाँवों पर खड़ी हो जाती है, कमाती है तो घमंड करती है। नखरे करती है। घर के काम से जी चुराती है। बच्चों का ख्याल नहीं रखती। अपने निर्णय आप लेती है। किसी की सुनती नहीं है।

इसी तरह के कई भूत और भी थे जैसे कि लड़की है तो रात को घर से बाहर मत जा। यह मत पहन। यहाँ मत खड़ी हो। यहाँ मत रुक। जोर से मत बोल। हंस मत। तेज मत चल। जल्दी-जल्दी खा। यह क्या कि खाने को लिए बैठी है। ब्ला...ब्ला... ब्ला।

इतना ही नहीं वे तो गाँव की लड़की को अच्छी और शहर की लड़की को बुरा भी मानती थीं। उनका विश्वास था कि गाँव वाली लड़की में सभ्यता और संस्कार ज़्यादा होते हैं। शहरी लड़की पश्चिम की हवा से बिगड़ जाती है। सारे संस्कार भूल जाती है।

इनकी नौकरी लगी तो मैं सासू माँ को अपने साथ शहर ले आई. पूरा सम्मान दिया। प्यार से रखा। ऐसे जैसे अपनी माँ हो और माँ ही तो थी। मैं ज्यादातर निर्णय उनसे सलाह करके लेती। खाने में उनकी रुचि का ध्यान रखती। कहीं बाहर जाती तो उन्हें भी अपने साथ ले जाती। बच्चे उनको कभी पार्क घुमा कर लाते तो कभी बाज़ार ले जाते। कभी-कभी तो उन्हें राजा-महाराजाओं के गढ़-महल दिखाने ले जाते। अपनी किताबों में से अच्छी कहानियाँ सुनाते। उनसे सुनते। स्कूल की बातें करते। ये माँ के लिए कभी साड़ी लाते तेा कभी फल।

सासू माँ कल ही हिमानी को कह रही थीं तुझ पर जींस फब रही है। मुझे हँसते हुए देखकर बोलीं तू हंसती हुई सुन्दर लग रही है। एक दिन नीना को बोली तेरे जूते अच्छे हैं। पांवों को बांध के रखते हैं। पोते से कह रही थीं मेक डी चलकर वह तेरा पिज्जा चखाना कैसा है?

यह सुनकर बेटा खुश हो गया। मैं खुश हो गयी। बेटियाँ खुश हो गयीं।

अधिकतर भूत ऐसे होते हैं जो आपके अच्छे व्यवहार से भाग जाते हैं। उन्हें किसी डंडे की ज़रूरत नहीं होती। परिवार में सब एक दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखें तो बड़े से बड़े भूत को भी विदा लेनी ही पड़ती है।