भैंस के आगे बीन नहीं राडिया टेप / जयप्रकाश चौकसे

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भैंस के आगे बीन नहीं राडिया टेप
प्रकाशन तिथि : 28 मार्च 2014


अलविरा एवं अतुल अग्निहोत्री की उमेश बिस्ट द्वारा निर्देशित फिल्म 'ओ तेरी' में एक मौलिक दृश्य अत्यंत मजेदार है और कमोबेश एक भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा देश जिसके लोगों का अवचेतन आख्यानों के रेशों से बना है, को यथेष्ठ ढंग से प्रस्तुत करता है। गांव का युवा नौकरी की तलाश में महानगर आया और जद्दोजहद के बाद उसे एक चैनल में रिर्पोटर की नौकरी मिलती है क्योंकि जिसे कहीं काम न मिले और कोई योग्यता न हो तो उसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया रिर्पोटर बना देता है।

उसकी गांव में बैठी मां का आदेश है कि उनकी बीमार भैंस दवा से परे अब प्रार्थना और दुआ की दशा में पहुंची है, अत: महामृत्युंजय जप का आयोजन करना आवश्यक है और नौकरी का घटनाक्रम उसे एक खतरनाक मोड़ पर ले आया है परंतु फिर भी मां का भक्त नायक अपने एक मित्र से जाप या आरती का वीडियो सीडी मांगकर मां को भेजना चाहता है। उसका सरकारी महकमे का मित्र अपना हर काम कुंडली देखकर करता है और उसके पास भक्ति की विविध सीडी है। उस दिन उसे आला अफसर ने भ्रष्टाचार का भांडा फोडऩे वाली राडिया नुमा सी.डी देता है। जिसे आला अफसर एक नेता को बेच चुका है परंतु 'आध्यात्मिकता' में लीन बाबू यह सी.डी अपने मित्र को दे देता है और मंत्र की सीडी नेता के गुंडों को। यह गलती जानकर नहीं की गई है परंतु 'आध्यात्मिकता' का दिखावा करते हुए भ्रष्टाचार में डूबा बाबू यह गलती कर बैठता है।

मां का फोन आता है कि भैंस बेहोश हो गई और भैंस मरी तो मां भी मर जाएगी। नायक कार में सीडी रखता है जिसकी ध्वनि गांव में एम्पलीफायर से सुनी जाएगी। जैसे ही राडिया नुमा टेप में उद्योगपति और नेता की बातचीत शुरू होती है, भैंस को जोर की डकार आती है, वह गैस से मुक्त होकर खड़ी हो जाती है गोयाकि मंत्रोचार की सीडी के बदले भ्रष्टाचार की सीडी से भैंस स्वस्थ हो जाती है। भैंस के आगे बीन बजाओ या भ्रष्टाचार की गाथा, उसके लिए समान है। यह भी संभव है कि भ्रष्टाचार गाथा के टेप सुनकर भैंसे ज्यादा दूध दें गोयाकि देश की बीमारी मवेशियों का उपचार हो सकती है। इस आधार पर उनका चारा खाया जा सकता है। इस एक ही दृश्य में अनेक सतह पर हम कुछ सार्थक बातें प्राप्त कर सकते है। दरअसल भ्रष्टाचार में आकंठ आलिप्त सभी लोग, बाबू से लेकर मंत्री और उद्योगपति तक धार्मिक आस्था का दिखावा करते है और उन्हें लगता है कि उनके पाप इस तरह की प्रार्थना से धुल सकते है। जिस भैंस का चारा खा लिया गया है, उस भैंस को भूख से भी गैस हो सकती है, दरअसल पेट में गैस अनेक राष्ट्रीय समस्याओं का प्रतीक है। बीस प्रतिशत अभावों के कारण खाली पेट में जाने कैसे गैस आ जाती है। तमाम राष्ट्रीय व्याधियों का इलाज नीम-हकीम कर रहे हैं जो खुद भी बीमार है। कुछ 'विशेषज्ञ' लाक्षणिक इलाज करके मुतमइन हो जाते है।

उमेश बिस्ट ने कुंदन शाह की अमर अजर फिल्म 'जाने भी दो यारों' के तत्वों को वर्तमान के एशिया ओलंपिक में हुए घपले से जोड़कर 'ओ तेरी' बनाई है। पत्रकारों के चरित्र तथा भ्रष्ट नेता, अफसरों के चरित्र भी उसी फिल्म से लिए गए है और उस क्लासिक का मुर्दा पात्र भी उन्होंने लिया है और अपनी मिक्सी में घोंटकर यह फिल्म रची है परन्तु यह भैंस और राडियानुमा टेप में उनका अपना मौलिक योगदान है और इस मनोरंजक मौलिक दृश्य के 'पुण्य' से उनके एक क्लासिक को उड़ाने की गुस्ताखी माफ की जा सकती है। 'जाने भी दो यारों' के फिल्मकार कुंदन शाह ने इसे दुबारा बनाने या इसकी अगली कड़ी बनाने से इनकार कर दिया।

वर्तमान पीढ़ी के दर्शकों ने कुंदन शाह की फिल्म नहीं देखी है। आज के चुनावी माहौल में इस तरह की फिल्म आना उचित ही है और चुनाव लडऩे वालों के पास भी कोई मौलिक मुद्दा नहीं है, अत: फिल्मकार को क्यों दोष दें। मूल की तरह ही इस फिल्म का 'मुर्दा पात्र' मजेदार है और एक मोटी महिला को उससे इश्क लड़ाने का मुगालता भी हो जाता है। वह भी मजेदार है। दोनों ही फिल्मों में 'मुर्दा पात्र' का श्रेष्ठ अभिनय है। मुर्दा की भूमिका में जान फूंकना भी कठिन होता है। कमल हासन ने भी एक पूरी फिल्म में मुर्दे की भूमिका की थी। इस फिल्म में फुटबॉल विश्व कप के समय के ऑक्टोपस द्वारा भविष्यवाणी वाे दृश्य की पैरोडी भी प्रस्तुत है। सब मिलाकर यह एक व्यंग्य फिल्म है जिसमें अनेक मजेदार चरित्र प्रस्तुत किए गए हैं। फिल्मकार ने भ्रष्टाचार के अनेक पहलुओं को छूने की कोशिश की है परंतु इस फॉरमेट की गहराई को नजरअंदाज किया है। यह उसका पहला प्रयास है।