भ्रष्टाचार के साइड इफेक्ट / सत्य शील अग्रवाल

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स्पीक एशिया जैसी फर्में अपनी असंगत योजनाओं के साथ वर्षों तक चलती रहती हैं, जब लाखों लोग उनकी ठगी के शिकार हो जाते हैं तब शासन,प्रशासन की नींद खुलती है। फिर पकड़ धकड़ चलती है, संसद में उसकी गूंज सुनाई पड़ती है। आखिर ऐसी फर्में इतने समय तक अस्तित्व में क्यों बनी रहीं? और जनता को ठगती रहीं, सरकारी विभाग क्या कर रहे थे?

विक्टोरिया पार्क मेरठ अग्नि कांड होते हैं, सैंकड़ो व्यक्ति काल के गाल में समां जाते हैं। तब अग्निशमन विभाग, विद्युत् विभाग, स्थानीय प्रशासन सब अपने अपने नियमों के उल्लंघन होने का शोर मचाते है। आयोजकों पर आरोप मढ़ते हैं तथा स्वयं को पाक साफ होने का नाटक करते हैं। क्या नियमों का पालन करने की जिम्मेवारी किसी विभाग की नहीं है सिर्फ आरोप लगा कर अपन रोब गांठना ही उनका काम है?

उपहार सिनेमा दिल्ली अग्निकांड होता है, अनेकों बेगुनाह मनोरंजन करता करता मौत के आगोश में समां जाते हैं,तब सरकारी विभाग अपने कायदे कानून याद आते हैं, सिनेमा घर के मालिकों पर सारे आरोप सिद्ध करने की होड़ लग जाति है परन्तु इस लापरवाही में निरीह जनता पिस जाति है। क्यों?

शहर में नकली दवाओं,नकली खाद्य पदार्थों, जैसे घी, मावा, सिंथेटिक दूध, नकली सोस, इत्यादि के बड़े बड़े कारोबार चलते रहते हैं। स्थानीय प्रशासन को भनक तक नहीं लगती। क्या संभव है बिना स्थानीय प्रशासन की जानकारी के कोई इतना बड़ा धंधा चला सकता है?

बड़ी बड़ी फाइनेंस कम्पनियां अनेक प्रकार के लालच में जनता को फंसा कर विराट राशी डकार जाती हैं। सम्बंधित विभागों के अधिकारी जब जागते हैं तब तक जनता को भारी चूना लग चुका होता है। फिर दिखावे के लिए मालिकों को उठा कर बंद कर दिया जाता है अनेक वर्षो तक मुकदमा चलता है धीर धीरे सेटिंग हो जाती है सबूत नष्ट कर केस को कमजोर कर दिया जाता है। सब मामला रफा दफा हो जाता है। जनता के हाथ कुछ नहीं आता कुबेर फाइनेंस कम्पनी जैसी अनेको कम्पनियां इसका उदहारण है।

सभी सरकारी विभागों में अफसर बाजार भाव से कई गुना अधिक भाव पर अपने विभाग के लिए सामान खरीदते है, ठेकेदार से कई गुना कीमत देकर कार्य करवाते हैं,बड़े बड़े अफसर मंत्री अपनी मौन स्वीकृति देते रहते हैं जब कभी मीडिया कोई प्रसंग उछाल देती है तो निचले अधिकारियों को बलि का बकरा बना कर आरोपित कर दिया जाता है बड़े अधिकारी साफ बच जाते हैं।

उपरोक्त सभी ऐसे उदाहरण हैं जो स्पष्ट बताते हैं की रिश्वत के लालच में अनेक अवैध कार्य शासन प्रशासन के संरक्षण में चलते रहते हैं जिनके भयंकर परिणाम जनता को भुगतने पड़ते हैं। सरकारी विभागों के अधिकारियों का कुछ नहीं बिगड़ता जबकि उनके लालच के कारण ही अवैध कार्य हो पाते है। सभी दुर्घटनाओ का असली जिम्मेदार भ्रष्टाचार है।