मंदिर से बंदर की यात्रा / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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हर कोई अलग राज्य की मांग कर रहा था। सो धर्म, संस्कृति और भाषा के नाम पर कई राज्य बड़े राज्यों से अलग कर बना दिए गए। फिर भी बात नहीं बनी। वोट की राजनीति के चलते फिर एक पर्वतीय राज्य बना। पर्वतीय राज्य वो नहीं, जिसके अंचल में पर्वत हों। नवगठित राज्य का अधिकांश हिस्सा पहाड़ी था। पहाड़ी कैसा? बारिश हो रही है, तो कई दिनों तक होती रहेगी। भूस्खलन से महीनों एक जनपद का दूसरे जनपद से संपर्क नहीं हो पाता था। यातायात बंद तो राशन बंद। स्कूल बंद। बर्फ पड़े तो चार महीनों तक सैकड़ों गांव बिजली, पानी और रसद से दूर। खैर राज्य की गाड़ी बैलगाड़ी की तरह ही सही, सरकी, सरकती हुई दस बरस आगे जा पहुँची। मतलब? मतलब यही कि पर्वतीय राज्य बने दस बरस हो गए और क्या?

खैर। सूबे के मुख्यमंत्री ने भी रेल नहीं देखी थी। देखते भी कैसे! पहाड़ में गधे चढ़ सकते हैं। खच्चर-घोड़े चढ़ सकते हैं। पर रेल कहां से चढ़ सकती है। बहरहाल...। ‘नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है’ की तर्ज पर मुखिया ने कैबिनेट की बैठक बुलाई। कहने लगे- "‘धर्म, आंचलिक भाषा, संस्कृति और पर्यटन के लिए हमारा राज्य पहचाना जाए। राज्य को ‘देव भूमि’ बनाना है। सैकड़ों मंदिर हैं। एक-एक जनपद की जिम्मेदारी एक-एक मंत्री लेगा। एक-एक मंदिर का नाम, कहां है, किस स्थिति में है, एक-एक मंदिर को विशेष कोड देकर आओ। प्राथमिकता पर यही काम होना है। मैं कुछ नहीं जानता।"

एक मंत्री ने कहा- "मुखिया जी। ये काम तो जटिल है। कैसे होगा?"

मुखिया ने आंखें तरेरी। कहा- "चुनाव जीतना भी तो मुश्किल था। दल बहुमत से आया न। फिर। हाई तकनीक का इस्तेमाल करो। सूबे को सूचना तकनीक की नई सुविधाए देने में कोई कसर मत छोड़ो। बस फिर क्या, कोई भी काम आसान हो जाएगा।"

मंत्रियों ने नौकरशाहों को आदेश दिया। मंदिरों की गणना करो। मुख्य सचिव को संयोजक बनाया गया। हर कोई हाथ से लिखने का आदी था। मगर अब तो कंप्यूटर में महारत हांसिल करनी थी। मुखिया ने हाथ से लिखकर दिया था- "मंदिरों की गणना की जाए।" मुख्य सचिव पर आंचलिक भाषा का असर पड़ा। उन्होंने भी अपर सचिव को हाथ से लिखे आदेश में मंदिर को ‘मंदर’ कर दिया। लिखा- "मंदरों की गणना की जाए।"

अपर मुख्य सचिव ने ‘मंदर को बंदर’ पढ़ा। उन्होंने भी हाथ से आदेश सचिव को लिखा- "बंदरों की गणना की जाए।"

सचिव सूचना तकनीक के माहिर थे। उन्होंने समस्त मंडलायुक्तों, जिलाधिकारियों और उप-जिलाधिकारियों को पत्र लिखा- "सरकार की दृष्टि में बंदरों की गणना सर्वोच्च प्राथमिकता का कार्य है। अन्यथा की दृष्टि में संबंधित जिम्मेदार होंगे।"

बस फिर क्या था। नौकरशाह और राजकीय कार्मिक बंदरों की गणना में जुट गए। बंदरों को पकड़ने में सरकारी मशीनरी के हाथ-पांव फूल गए। वहीं बंदर बस्तियों में घुसकर उत्पात मचाने पर तुले हुए थे। पांच साल बीत गए। मगर बंदरों की गणना नहीं हो सकी। ये ओर बात है कि जनता ने मतगणना में सत्तारूढ़ दल की गणना कर डाली और बाहर का रास्ता दिखा दिया।