मनीषा : मंदिर मे जलता दीया / जयप्रकाश चौकसे

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मनीषा : मंदिर मे जलता दीया
प्रकाशन तिथि : 12 दिसम्बर 2012


मनीषा कोइराला कैंसर से पीडि़त हैं और अमेरिका में उनकी शल्य चिकित्सा की गई है। नेपाल के राजनीतिक परिवार से आई इस षोडशी को सुभाष घई ने अपनी फिल्म 'सौदागर' में प्रस्तुत किया था। पाकिस्तान की एक फिल्म से प्रेरित यह कहानी दो दोस्तों की है, जिन्हें परिस्थितियां दुश्मन बना देती हैं। यह सिनेमाई ड्रामा अंग्रेजी फिल्म 'द बेकेट' से प्रारंभ हुआ, जिसमें इतिहास आधारित घटना को प्रस्तुत किया गया था। लड़कपन से दोस्त थे युवराज हैनरी और बेकेट। राज्याभिषेक होने के बाद संपूर्ण सत्ता हथियाने के लिए राजा अपने बचपन के मित्र बेकेट को चर्च में सर्वोच्च स्थान दिलाता है। लेकिन ईश्वर का सेवक बनने के बाद बेकेट राजा के अन्याय के विरुद्ध खड़ा हो जाता है। राजा को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता है और उसे भाग्य विधाता भी माना जाता है। उधर चर्च का अधीक्षक भी स्वयं को राजा का प्रतिनिधि मानता है। राजसत्ता बनाम धर्मसत्ता का युद्ध शुरू होता है। सदियों से चला आ रहा यह सत्ता-संघर्ष उन सब देशों में कहर ढाता है, जहां राजनीति में धर्म का प्रवेश करके धर्मनिरपेक्षता को हाशिये में डाल देते हैं, जैसे पाकिस्तान में हुआ। जहां सरकारी नियम को ताक पर रखकर मौलवी के फतवे को कानून से ऊपर माना जाने लगा। भारत ने धर्मनिरपेक्षता या छद्म धर्मनिरपेक्षता के सहारे कई दशक गुजार दिए, परंतु विगत बीस वर्षों में धर्म फिर राजनीति में शक्ति के रूप में उभर रहा है।

बहरहाल इसी कथा के आधार पर ऋषिकेश मुखर्जी ने अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना को लेकर 'नमक हराम' बनाई थी। सुभाष घई ने बेकेट कथा में युवा प्रेमकथा जोड़ दी, गोयाकि शत्रुता के बाद एक पक्ष का युवा दूसरे पक्ष की कन्या से प्रेम करता है और घटनाक्रम छद्मवेश में इन पात्रों को विरोधी घरों में स्थापित कर देता है। मनीषा कोइराला युवा नायिका की भूमिका में थीं और युवा नायक थे विवेक मुश्रान, जो आजकल 'परिचय' नामक सीरियल में श्वेता तिवारी के पति की भूमिका कर रहे हैं। दुश्मन दोस्त थे दिलीप कुमार और राजकुमार। गाना था - 'इमली का बूटा, बेरी का पेड़, इमली खट्टी मीठे बैर'। आनंद बक्षी सुभाष घई की सबसे बड़ी ताकत थे। इस फिल्म की कुल्लू मनाली में शूटिंग के समय नेपाल से एक फोन मुंबई गया कि उनकी कन्या मनीषा पर डोरे डाले जा रहे हैं और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने मित्र दिलीप कुमार को फोन किया, जिन्होंने लंपट व्यक्ति को डांट पिलाई और मनीषा को महफूज किया। इत्तफाक देखिए उन्हीं दिलीप कुमार के ९०वें जन्मदिन पर वही कन्या कैंसर से जूझ रही है। क्या बुजुर्ग दिलीप किसी सत्ता को डांट पिलाकर मनीषा कोइराला की रक्षा करेंगे? क्या उम्र के इस पड़ाव पर बुजुर्ग फनकार की डांट में दम नहीं रहा या 'सत्ता' ज्यादा बहरी और निर्मम हो गई है।

बहरहाल मनीषा कोइराला के सौंदर्य की प्रशंसा में जावेद अख्तर ने विधु विनोद चोपड़ा की '१९४२ ए लव स्टोरी' में अपने जीवन का श्रेष्ठ गीत लिखा और पंचम ने मधुर धुन रची - 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे खिलता गुलाब, जैसे उजली किरण, जैसे वन में हिरण, जैसे नाचता मोर, जैसे मंदिर में हो एक जलता दीया...।' इस गीत में सौंदर्य की २१ उपमाएं थीं। कुछ सनकी लोगों का कहना है कि कोई पचास वर्ष पूर्व जोश मलीहाबादी लिख चुके थे - 'जुबना का उभार, जैसे गदर अनार...।'

बहरहाल इस फिल्म के गीतों के फिल्मांकन के लिए विधु विनोद चोपड़ा ने संजय लीला भंसाली को जवाबदारी दी थी और इसी से खुश होकर मनीषा ने भंसाली की पहली फिल्म 'खामोशी' स्वीकार की थी। जीवन के संयोग कैसे अनोखे, अनपेक्षित अवसर प्रस्तुत करते हैं। मनीषा कोइराला का सौंदर्य और प्रतिभा उन्हें शिखर पर पहुंचा सकती थी, परंतु उनकी बिंदास जीवन-शैली से फिल्म उद्योग की व्यवस्था घबरा गई। प्रेम कहानियां रचने वाला उद्योग यह अपने कामकाज में भीरू और पारंपरिक है। मनीषा सरेआम शराबनोशी करती थीं और उद्योग की दकियानूसी रंगीन शीतल पेय दिखने वाले जाम की इजाजत देती थीं। उन्हें पीने पर एतराज नहीं था, परंतु छुपाकर पीना जायज माना जाता था। बिंदास मनीषा को नानाा पाटेकर से इश्क हो गया - एक तरफ मलाई की लुनाई थी, दूसरी तरफ चट्टानों का खुरदरापन, परंतु प्रेम का कंवल तो दो पत्थरों की जुड़ाई के बीच छूटी जरा-सी जमीन में पनप जाता है। यह बात अलग है कि समय के जूते उस कंवल को कुचल देते हैं। क्या नाना पाटेकर आज मनीषा के लिए दुआ करेंगे?