मनोरंजन जगत का अनोखा मुकदमा / जयप्रकाश चौकसे

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मनोरंजन जगत का अनोखा मुकदमा
प्रकाशन तिथि :10 सितम्बर 2015


हॉलीवुड के फिल्मकार माइकल कीटन ने 'द मैरी जेंटलमैन' नामक फिल्म निर्देशित की, जो 2008 में बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह असफल रही परंतु एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रशंसित हुई। उसे कुछ समीक्षकों ने सराहा भी। निर्माता ने अदालत में दो आधार पर माइकल कीटन के खिलाफ मुकदमा दायर किया। पहला आधार फिल्म की असफलता और दूसरा यह कि पहले से तय महीने में फिल्म पूरी नहीं हुई और निर्देशक ने एक माह बाद फिल्म पूरी की। निर्माता ने अदालत से प्रार्थना की कि पांच मिलियन डॉलर की हानि निर्देशक द्वारा निर्माता को अदा की जाए। इस प्रकरण में यह जानना जरूरी है कि हॉलीवुड में सितारों के साथ अनुबंध में यह शर्त भी रहती है कि कोई सितारा शूटिंग के दरमियान अपना वजन घटा या बढ़ा नहीं सकता। हॉलीवुड में प्राय: निर्माण पूर्व की तैयारी में खूब समय लेते हैं परंंतु फिल्मांकन अधिकतम 12 सप्ताह में समाप्त हो जाता है।

अदालत ने निर्माता के मुकदमे को दो आधार पर निरस्त किया। पहला यह कि निर्देशक ने फिल्म पूरी करके दी और सृजन कार्य में एक माह की देरी कोई मायने नहीं रखती। दूसरी बात यह कि फिल्म समीक्षकों द्वारा सराही गई, जिसका अर्थ है कि फिल्म अच्छी बनी थी। बॉक्स ऑफिस की आय कला का मानदंड नहीं है। भारत मंें निर्माता, निर्देशक तथा कलाकारों के अनुबंध में कोई कठिन शर्त नहीं होती, क्योंकि सितारा आधारित फिल्मों का बेताज बादशाह सितारा होता है और वही सारी टीम का चयन करता है। आजकल सितारे लाभ में मोटा प्रतिशत भी लेते हैं अर्थात निर्माता की हैसियत कार्यकारी निर्माता की रह गई है। अत: भारत में कोई निर्माता फिल्म की असफलता का दायित्व सितारे या निर्देशक पर नहीं डाल सकता। हमारी सरकारी विफलता की जवाबदारी भी कोई नहीं लेता। यह उत्तरदायित्व विहीनता का देश है। हमारी फिल्मों में कोई सितारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं करता। आज से आधी सदी पहले निर्देशक पीएल संतोषी ने अपनी फिल्म 'सरगम' के सितारे राज कपूर के खिलाफ मुकदमा दायर किया कि वे कभी दो बजे के पहले काम पर नहीं आते, क्योंकि देर रात तक खुद की फिल्में शूट करते हैं। अदालत ने राज कपूर को प्रतिदिन 9 बजे आने का आदेश दिया, जिसका पालन राज कपूर ने किया परंतु अभिनय यंत्रवत और बेजान होता था। हर आदेश का पालन किया परंतु भावना पैदा नहीं हो पाई। अत: पीएल संतोषी ने उन्हें दो बजे ही आने को कहा और अदालत से अपना प्रकरण भी हटा लिया। अपने समय पर आकर राज कपूर ने भावनापूर्ण अभिनय किया और राज कपूर-सुरैया अभिनीत 'सरगम' सुपरहिट रही, जिसका एक गीत था, 'जब दिल को सताए गम, छेड़ सखी सरगम।'

सिनेमा ऐसी विधा है, जिसमें विपुल धन की आवश्यकता है परंतु भावना अभिव्यक्ति के लिए कलाकार का मन लगाकर काम करना जरूरी है। सृजन के किसी भी काम को टाइम टेबल के मुताबिक नहीं किया जा सकता। दूसरा मुद्‌दा समालोचना के साक्ष्य पर मुकदमे का फैसला है। भारत के आम दर्शक कभी किसी की समालोचना से प्रभावित नहीं होते। उनके फिल्म देखने का अपना मौलिक मानदंड है परंतु कुछ फिल्मों की समालोचना मदद करती है पर यह असर अत्यंत सीमित है। सिनेमा देखकर निकले दर्शक की प्रशंसा अधिक दर्शकों को सिनेमा ले आती है, जिसे माउथ पब्लिसिटी कहते हैं। आदित्य चोपड़ा ने 'जोर लगाके हैशा' बिना प्रचार के प्रदर्शित की। इस सिताराहीन फिल्म ने माउथ पब्लिसिटी के आधार पर अपनी लागत का चार गुना व्यवसाय किया।

'द मैरी जेंटलमैन' के निर्माता ने पटकथा पढ़कर फिल्म बनाई थी, अत: सारा दायित्व उसका था। दरअसल, मनोरंजन व्यवसाय का आधार अधिकतम की पसंद है, जिसका अनुमान लगाना मेंढक तौलने की तरह कठिन है। लोकप्रिय हवा का रुख कोई नहीं पढ़ पाता। एक अमेरिकन फिल्म के पहले दृश्य में फूलों से भरा बगीचा है, नीचे तख्ती लगी है कि 'फूल तोड़ना मना है।' तेज हवा चलती है और सारे फूल गिर जाते हैं तब परदे पर टाइटल आता है, 'विंड केन नॉट रीड।' दरअसल, हमारे देश में कोई भी कर्तव्य के प्रति निष्ठावान नहीं है और अधिकार मांगने से कोई चूकता नहीं। हमारे नेता चुनाव में कई वादे करते हैं और एक भी पूरा नहीं करते, यहां तक कि बयान दिया जाता है कि वह चुनावी वादा था, भला विदेशों से काला धनलाकर हर नागरिक को पंद्रह लाख कहां दिए गए और कौन देता है। वादा खिलाफी भारतीय नेताओं की विशेषता है और वे यह काम क्यों न करें, जब अवाम ही बार-बार ठगे जाने के लिए तत्पर है। गोएबल्स जिंदाबाद। प्रचार-तंत्र जिंदाबाद। विकास के सपनों के व्यापारी जिंदाबाद।