मन्ना डे जन्मशती माधुर्य उत्सव / जयप्रकाश चौकसे

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मन्ना डे जन्मशती माधुर्य उत्सव
प्रकाशन तिथि : 16 मई 2019


यह गायक मन्ना डे का जन्मशती वर्ष है। उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीत रचना भी की है। महान गायक भीमसेन जोशी के साथ मन्ना डे ने शंकर-जयकिशन की फिल्म 'बसंत बहार' में गीत गाया था। रिकॉर्डिंग के पहले उन्होंने भीमसेन जोशी के चरण स्पर्श किए और अपनी यह दुविधा बताई कि वे फिल्म के नायक के लिए पार्श्वगायन कर रहे हैं, जिसे फिल्म में विजेता की तरह प्रस्तुत किया जाएगा, जबकि भीमसेन जोशी पराजित व्यक्ति के लिए गा रहे हैं। भीमसेन जोशी ने उन्हें आश्वस्त किया कि वे सारी बातें जानते हैं। उन्हें इस तरह की पराजय विचलित नहीं करती। शंकर-जयकिशन की मधुर धुन के कारण उन्होंने गाना स्वीकार किया है। गीत के बोल थे 'केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले ऋतु बसंत अपनो कंत गौरी गरवा लगाए..'।

फिल्म संगीत के उस स्वर्णकाल में कुछ ऐसा भ्रम रच दिया गया था कि मोहम्मद रफी की आवाज दिलीप कुमार के लिए और मुकेश की आवाज में गाए गीत राज कपूर पर फिल्माए जाने से वे स्वाभाविक लगते हैं। मुकेश की सीमा थी और हाईनोट्स के गीत उन्हें नहीं दिए जाते थे। बहरहाल, आवाज़ और अभिनेता की इस तथाकथित जुगलबंदी के कारण मन्ना डे को कम अवसर मिले। यह उनकी दिव्य प्रतिभा के साथ किया गया अन्याय था। आजकल रैप गायन का तमाशा चल रहा है परंतु शंकर-जयकिशन ने 'श्री 420' में रचा 'दिल का हाल सुने दिलवाला, सीधी सी बात न मिर्च मसाला, कहकर रहेगा कहने वाला…. बिन मौसम मल्हार न गाना वरना पकड़ लेगा पुलिसवाला' को पहला रैप कहने पर गली बॉयज खफा हो सकते हैं।

आवाज़ और सितारा जोड़ियों के बन जाने के कारण मन्ना डे के गीत हास्य कलाकारों पर फिल्माए गए। यहां तक कि उनका अत्यंत लोकप्रिय गीत 'लपक जपक तू आ रे बदरवा, सर की खेती सूख रही है, बरस बरस तू आ रे बदरवा, झगड़ झगड़ कर पानी ला तू, अकड़ अकड़ बिजली चमका तू तेरे घड़े में पानी नहीं तो पनघट से भर ला रे बदरवा' फिल्म 'बूट पॉलिश' में डेविड पर फिल्माया गया है। यह केवल भारतीय फिल्म उद्योग में ही हो सकता है कि शास्त्रीय गायन में पारंगत होने पर आपकी आवाज हास्य कलाकार के लिए आरक्षित की जाती है। शास्त्रीयता को हास्य के हाशिये में डाला जाना भी भारत महान में ही हो सकता है।

एक बार पुणे में पोलैंड से भारतीय लोकसंगीत पर शोध करने आए व्यक्ति से मुलाकात हुई। इत्तफाक से उस समय 'चोरी चोरी' फिल्म में मन्ना डे और लताजी का गाया गीत 'ये रात भीगी भीगी' बज रहा था। इस पोलिश शोधकर्ता ने कई बार गीत सुनकर कहा कि ऐसा माधुर्य रचना मनुष्य के बस की बात नहीं है। यह तो ईश्वरीय करामात है। इसी फिल्म में लताजी का गाया गीत 'रसिक बलमा तोसे दिल क्यों लगाया' लोकप्रिय हुआ था। एक बार फिल्मकार मेहबूब खान अपनी हृदय चिकित्सा के लिए लंदन गए थे। वहां अनिद्रा से वे परेशान हो गए। नींद की गोलियों का भी अब कोई असर नहीं हो रहा था। उन्होंने अपने सेवक से कहा कि किसी तरह लताजी से बात करा दें। उन दिनों बड़ी कठिनाई से फोन लगते थे। बहरहाल, फोन लगा और मेहबूब खान ने लता से अनुरोध किया कि वे फोन पर उन्हें 'रसिक बलमा' गीत सुना दें। यह गीत सुनते ही उनकी बेचैनी कम हो गई और अनिद्रा से मुक्ति मिली, जिसके बाद हृदय रोग का उपचार हो सका। राग से रोग का इलाज हो गया। बगीचे में संगीत सुनकर कलियां जल्दी पल्लवित होती हैं। संभवत: अपने संगीत प्रेम के कारण ही आईएएस अफसर पंकज ने अपने नाम के साथ 'राग' जोड़ा। उनकी लिखी पुस्तक 'धुनों की यात्रा' फिल्म संगीत की पाठ्यपुस्तक का दर्जा रखती है।

बहरहाल, मन्ना डे के गुरु उनके निकट के रिश्तेदार केसी डे थे। मन्ना डे ने पार्श्वगायन में सफलता पाने के बाद बांग्ला भाषा में बनी फिल्मों का संगीत भी रचा। ज्ञातव्य है कि निरंजन पॉल ने एक अंग्रेज पुलिस अफसर की पिटाई की थी और जेल जाने से बचाने के लिए उसी रात उन्हें जहाज द्वारा लंदन भेज दिया गया था। कालांतर में निरंजन पॉल के लिखे नाटक लंदन में मंचित किए गए। उनकी हिमांशु राय और देवकी रानी से मित्रता हुई। ज्ञातव्य है कि हिमांशु राय निरंजन पॉल और देविका रानी ने फिल्म निर्माण संस्था 'बॉम्बे टॉकीज' की स्थापना की। सिनेमा इतिहास में इन तीनों का योगदान अहम माना जाता है।