मन के जीते जीत / उपमा शर्मा

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व्हीलचेयर पर बैठ जब चौदह साल का गगन मोस्ट इंस्पायरिंग इंडिविजुअल अवार्ड लेने आया, तो दर्शक दीर्घा में बैठे नेहा और साहिल की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे। अवॉर्ड लेने के लिए जब मंच संचालिका ने गगन के मम्मी पापा को भी बुलाया, तो गगन ने कहा-इस अवार्ड को पाने में जितनी मेहनत मेरे मम्मी पापा ने की है, उतनी ही मेहनत मेरी इंस्पिरेशन मेरी यशोदा माँ डॉक्टर दीप्ति ने भी की है, जो वहाँ मुझ जैसे न जाने कितने गगन को जीवन और हौसला देने के कारण ही यहाँ नहीं आ पाईं हैं; लेकिन वीडियो कॉल पर वे हमारे साथ हैं। डॉक्टर दीप्ति की आँखों से भी आँसू बहने लगे। स्टेज पर नेहा गगन के संघर्ष की कहानी बता रही थी और दीप्ति की आँखों के आगे वह दिन आ गया, जब गगन ने अपने नन्हे कदमों से इस दुनिया में दस्तक दी थी।

"दीप्ति।"

"हाँ, बोलो नेहा।"

"मेरा बेबी कहाँ है?"

"जानना नहीं चाहोगी बेबी है कि बाबा।"

"बेबी हो या बाबा। बस जल्दी से मेरे बच्चे को मेरे पास ले आओ दीप्ति। अपने दिल की धड़कनों को छूना है मुझे।"

"अभी छूना, खूब प्यार करना, पहले स्टिच तो लगाने दो नेहा।"

"दीप्ति प्लीज़।"

"तुम्हारा बाबा अभी उसके पापा के पास ऑपरेशन थियेटर से बाहर है नेहा। मैं नर्स को बोलती हूँ, तुम्हारे पास लाने को। तब तक स्टिच भी लग जाएँगे।"

"दीप्ति! इस वक्त तुम मेरी सहेली से ज्यादा मुझे बहुत स्ट्रिक्ट डॉक्टर लग रही हो।"

"स्ट्रिक्ट डॉक्टर बनना होगा नेहा। अभी स्टिच लगवाओ।"

"कर लो मनमानी सहेली।" नेहा ने लाड़ से कहा।

डॉक्टर दीप्ति अजीब-सी स्थिति में फँसी थी। नेहा पहले ही प्रिग्नेंसी में बहुत कॉम्प्लिकेशन सह चुकी थी। अब ऐसे में वह उसे कैसे बताए कि उसका बेटा दुनिया में किस बीमारी के साथ आया है! नेहा अपने बच्चे को छूने को बेचैन थी। होना भी चाहिए। बच्चे के जन्म के साथ ही माँ का भी जन्म होता है। एक माँ नौ महीने प्रतीक्षा करती है अपने दिल के टुकड़े का। अपने खून-पसीने से सींचती है। उस माँ से कैसे कहे दीप्ति कि पता नहीं कितने दिन, कितने महीने वह अपने बच्चे को नहीं छू भी नहीं पाएगी। अभी डिलीवरी से बेबी कॉट तक आते-आते ही उस बच्चे को बीस फ्रैक्चर हो चुके थे। बच्चे के पापा साहिल को वस्तुस्थिति तो बतानी ही होगी; लेकिन सीनियर डॉक्टर रजत का कहा कैसे बोले कि उसका बेटा कुछ महीने के लिए ही अपनी साँसे ले दुनिया में आया है। नेहा को अभी कोई भी मेंटल शॉक घातक हो सकता था। नेहा को ट्रेंकुलाइजर दे दीप्ति ओटी से बाहर आ गई। बाहर साहिल को उत्सुकता से बैठे देख उसका दिल भर आया। कोई आम पेशेंट होता दु: खी वह तब भी होती। यहाँ तो मामला दोस्ती का था। वह साहिल और नेहा अपने कॉलेज तक की पढ़ाई में एक साथ थे। तीनों ही आपस में बहुत अच्छे दोस्त थे। दीप्ति ने साहिल का हाथ अपने हाथ में ले सांत्वना दी।

"क्या बात है दीप्ति? तुम परेशान-सी लग रही हो। क्या हुआ है बेबी कि बाबा। नेहा कहती है देखना हमारे बेटा होगा, बिलकुल मुझ जैसा और दीप्ति मुझे लगता है बेटी आएगी बिलकुल नेहा जैसी प्यारी। बोलो न दीप्ति किसकी चाह पूरी हुई, नेहा कि या मेरी।"

"बहुत प्यारा बेटा आया है तुम्हारे यहाँ।"

"तुम इतनी उदास-सी क्यों हो? मेरी नेहा ठीक है न।"

"बिलकुल ठीक है।"

"तो मेरा बेटा? कितनी देर में मिल पाऊँगा मैं उसे और नेहा को।"

"नेहा ठीक है साहिल। तुम्हारा बेटा भी अभी ठीक है। कुछ देर बाद मिल लेना दोनों से।"

"क्या दीप्ति? स्कूल वाली आदत गई नहीं तुम्हारी डराने की। पता है कितना डर गया मैं? चलो मैं जल्दी से मिठाई लेकर आता हूँ।"

"साहिल सुनो तो। देखो मेरी बात ध्यान से सुनो। नेहा पहले ही बहुत कमज़ोर है मैं उसे कुछ बता नहीं सकती। लेकिन तुमसे अब ज्यादा देर छिपा भी नहीं सकती। तुम्हारे बेटे को हाथ में लेते ही फ्रैक्चर हो रहे हैं। इसीलिए अभी तुम उसे छू नहीं सकते। देखना भी सिर्फ दूर से है, वह भी बाद में।"

साहिल सुनकर परेशान हो गया। "छूते ही फ्रैक्चर! ऐसा क्यों? बताओ दीप्ति क्या हुआ है मेरे बेटे को!"

"अभी कुछ टेस्ट कराने को भेज दिए हैं साहिल। बस प्रे करो हमारी डायग्नोसिस गलत हो।"

ऐसी कठिन परिस्थिति में एक उदास-सी मुस्कान साहिल के होठों पर आ गई। दीप्ति की आवाज़ की गंभीरता से वह समझ गया कोई गंभीर दिक्कत ही है। वह दीप्ति के उदास चेहरे को देख बोला

"दीप्ति, तुम भी जानती हो, तुम खुद को और मुझे बहलावा दे रही हो। जो भी बात है, मुझे बताओ। इतना कमज़ोर नहीं मैं और जो भी हो परिस्थिति का सामना करना ही होगा। बस मैं नेहा और बच्चे दोनों का सोच परेशान हूँ।"

"साहिल, तुम्हारा बेटा एक ऐसी बीमारी से पीड़ित है, जिसमें हड्डियाँ बहुत कमज़ोर होती हैं। इतनी कि बच्चे को छूते ही फ्रैक्चर हो जाता है। साइंस की भाषा में इसे ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा बोलते हैं।"

"दीप्ति! सच बोलना। इसका कोई इलाज तो होगा। हमारा बेटा ठीक तो हो जाएगा?"

"ईश्वर पर भरोसा रखो साहिल।"

"बोलो दीप्ति। मेरा बेटा ठीक तो हो जाएगा।"

"रिपोर्ट का इंतज़ार करते हैं साहिल। इलाज है। क्यों नहीं होगा? हर बीमारी का इलाज है।"

दीप्ति साहिल के कंधे को थपथपा आगे बढ़ गई। यहाँ वह साहिल की दोस्त से ज्यादा डॉक्टर थी और पेशेंट भी देखने थे। साहिल यही सोचकर परेशान था नेहा को कैसे सँभालेगा? "

बेबी कॉट में लेटे उस मासूम को देख नेहा की आँखें भर-भर आ रही थीं। लाख सँभालने पर भी आँसू रुक नहीं पा रहे थे।

नौ महीनों की तपस्या उसका बेटा उससे बहुत दूर था। जब से नेहा को यह सब पता चला, नेहा के आँसू बंद नहीं हो रहे थे। साहिल उसका हाथ थाम सांत्वना देने की कोशिश कर रहा था। भारतीय समाज में पुरुषों की परवरिश ही ऐसी होती है कि वे खुलकर रो भी नहीं सकते। महिलाएँ रोकर दिल का बोझ तो हल्का कर लेती हैं। टेस्ट रिपोर्ट्स आ गईं थीं। रिपोर्ट्स के अनुसार बच्चे की उम्र दो महीने से ज्यादा नहीं थी।

नेहा और साहिल दोनों ही पूरी तरह टूट गए। पहली संतान उसका भी जीवन सिर्फ दो महीने। दोनों सूनी आँखों से नलियों से जकड़े अपने बेटे की ओर निहारते रहते। दो दिन इसी तरह अस्पताल के कमरे में बीत गए। दीप्ति से दोनों का हाल देखा नहीं जा रहा था। दीप्ति रूम में आई और दोनों को समझाने लगी।

"देखो नेहा और साहिल! गगन को जो भी बीमारी है; लेकिन वह अभी कुछ दिन का बच्चा है। वह ख़ुद कुछ नहीं कर सकता। स्थिति तुम दोनों को सँभालनी है। असंभव कुछ भी नहीं है। इस बीमारी का जो भी इलाज़ है, वह शुरू कर दिया है। अब आगे की तपस्या तुम्हारी है। हार मान बेटे को मरने के लिए छोड़ दोगे या उसकी जिंदगी के लिए कोशिश करोगे। इलाज़ डॉक्टर करेंगे; लेकिन हिम्मत तुम दोनों को दिखानी होगी।"

"दीप्ति! तो क्या मेरे बेटे की बचने की संभावना है? सच कहना कोई झूठी दिलासा नहीं।"

"क्यों नहीं है नेहा? जितने दिन ईश्वर ने दिए हैं, वह रहेगा और अगर नहीं भी रहेगा, तो तुम अभी से छोड़ दोगी? सब कुछ संभव है नेहा। जिजीविषा से मौत कितनी बार हारते देखी है मैंने अपनी प्रैक्टिस में। बस हिम्मत तुम्हें दिखानी है।"

नेहा और साहिल को जैसे एक राह मिल गई। डॉक्टर दीप्ति की बातें उनके लिए राहत के द्वार खोलती आई थीं। फिर शुरू हुआ दोनों की तपस्या और कोशिशों का दौर। डॉक्टर दीप्ति जैसी दोस्त के सान्निध्य में नेहा और साहिल अपने बेटे गगन को बचाने की कोशिशों में पूरी तरह जुट गए।

"दीप्ति! नाम बहुत प्यारा चुना तुमने गगन।"

"नेहा, मैंने इसे सोच समझकर यह नाम दिया है। तुम लोग अभी पता नहीं कितने महीने इसे गोद में नहीं ले पाओगे। सिर्फ छू पाओगे और देखना बड़े होकर यह सबके दिलों को छुएगा। यह एक दिन गगन की ऊँचाइयों को छुएगा।"

नेहा इस नामकरण पर मुस्कुरा दी। उम्मीद की रोशनी उन लोगों की आस पास फैलने लगी। पूरे छह महीने बाद नेहा गगन को गोद में ले पाई थी। उस वक्त उसकी आँखो में मातृत्व की चमक दीप्ति ने देखी थी। नेहा और साहिल ने सच में बहुत तपस्या की। तपस्या दीप्ति की भी थी। गगन की देखभाल वह बहुत मनोयोग से कर रही थी। गगन पूरे एक साल तक नाक में ट्यूब के सहारे रहा; क्योंकि वह कुछ निगल नहीं पाता था। एक साल के बाद गगन की राह की मुश्किल बस इतनी आसान हुई कि उसकी नाक से ट्यूब हट गई। गगन अभी भी कुछ हार्ड चीज नहीं छू सकता था। कुछ छूते ही उसकी हड्डी फ्रैक्चर हो जाती। कोई बड़ा हो, तो समझा भी दो, कितना मुश्किल था एक बच्चे को कुछ पकड़ने से रोकना। बहुत मुश्किल भरे दिन थे नेहा, साहिल और गगन तीनों के लिए। दीप्ति कितनी भी व्यस्त हो, दिन में एक बार गगन को मिलने घर जरूर आती। गगन से ढेरों बातें करती। उसे नई-नई बातें बताती। वक्त को बीतना होता है, वह बीत ही जाता है। गगन अपनी मुश्किलों से लड़ते हुए तीन साल का हो गया था। वह अभी भी पेंसिल नहीं पकड़ पाता था। पेंसिल पकड़ने से भी फ्रैक्चर। गगन के लिए जीवन बहुत संघर्ष भरा था। नेहा बहुत परेशान हो जाती। ऐसे में साहिल और दीप्ति उसे बहुत हौसला देते। दीप्ति का कहा सच साबित हो रहा था। गगन बहुत होनहार बच्चा था। तीन साल की उम्र में जब वह कीबोर्ड बजाने लगा, नेहा के लिए वह बहुत खुशी का दिन था; लेकिन गगन की मुश्किलों का अंत अभी नहीं था। की-बोर्ड बजाने से उसे फिर फ्रेक्चर हो गया। की बोर्ड भी गगन से ले लिया गया। गगन की मासूम आँखों के सूनेपन से दीप्ति भी सिहर गई; लेकिन उन तीनों ने ही हार नहीं मानी। गगन अब तक पढ़ना सीख गया था। नेहा और साहिल उसे बहुत धैर्य और लगन से अक्षर ज्ञान और मात्रा सिखा रहे थे उतने ही लगन से गगन ने सब सीखा। अब उसने किताबें पढ़ना शुरू कर दिया। गगन का की बोर्ड जरूर छूटा; लेकिन संगीत से लगाव कम नहीं हुआ। उसका संगीत से लगाव देखते हुए दीप्ति उसे गाना गाने को प्रेरित करने लगी। गगन बहुत अच्छा गाना गाता था। नेहा ने उसका चाव देखते हुए उसे गायन की शिक्षा दिलानी शुरू कर दी। गगन की राह में मुश्किलें आती गईं। फ्रेक्चर की संख्या बढ़ती गई। सर्जरी होती गईं। उतनी ही लगन भी बढ़ती गई। धीरे-धीरे गगन का आत्मविश्वास बढ़ने लगा और मम्मी-पापा के सपोर्ट से वह स्टेज शो करने लगा। साहिल ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा विधिवत दिलानी शुरू कर दी। अब गगन ने गीत लिखने शुरू कर दिए और अधिकतर का म्यूजिक भी खुद कंपोज किया। आज गगन मोटिवेशनल स्पीकर भी बन गया है। जब गगन को पहला अवॉर्ड मिला था, नेहा साहिल के साथ दीप्ति भी उतनी ही खुश थी। जिस बच्चे की उम्र कुछ महीने बताई जा रही थी। वह बच्चा आज चौदह की उम्र का हो गया। अब तक उसको एक सौ बीस फ्रेक्चर हो चुके हैं। नेहा जब-जब उसके फ्रैक्चर देख परेशान होती, गगन कहता-मौसी मम्मा तो फ्रेक्चर देख ऐसे ही रोती हैं। आयरन मैन हूँ, कितने रोड हैं मेरे शरीर में। अपनी मेहनत और लगन से गगन आज ढेरों अवॉर्ड लेकर न सिर्फ अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी हौसले की निशानी बन गया है।

स्टेज़ पर अवॉर्ड लेते समय गगन वही अपनी पहली लिखी कविता गा रहा था। नेहा साहिल और दीप्ति की आँखों में खुशी के आँसू झिलमिला रहे थे-

राह कितनी भी कठिन हो, यूँ हार कभी न मानना।

पर्वत भी झुक जाएँगे, मन में बस यही ठानना॥

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