ममत्व / जगदीश कश्यप

Gadya Kosh से
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जब स्थिति ज्यादा बिगड़ गई तो पुलिस और प्रशासन की मदद के लिए सेना बुला ली गई । फैशनेबल बाज़ारों में मुर्दापन और गली-मुहल्लों में टोपधारी सशस्त्र वर्दियाँ नज़र आ रही थीं ।

किशना की माँ बच्चे के दूध के लिए तड़प रही थी । उसे पता नहीं था कि उसका मिस्त्री पति इन दंगों में मारा गया है या कहीं मुसीबत में फँस गया है ।

जवान लड़की किशना को माँ ने सख़्त हिदायत दे रखी थी कि वह खिड़की न खोले । कहीं ऐसा न हो कि वह किसी वहशी की नज़र में आ जाए और उसकी इज़्ज़त पर डाका पड़ जाए ।

माँ दस्त से परेशान थी । बच्चे गर्म मानी, कभी उबली खा-खाकर परेशान हो गए थे । दोनों समय का आटा ज़रूरत से कम मांडा जाता, पता नहीं कर्फ़्यू कब खुले ।

किशना की माँ के पेट में फिर मरोड़ उठा ।

‘ले किशना, जरा बबलू को पकड़ । मरे, ये लोग दंगा क्यों करते हैं । इनका सत्यानाश हो । और वह धोती सँभालती हुई पाखाने की ओर भागी । बच्चा बुरी तरह डकरा रहा था ।

जब वह लौटी तो उसने एक अविश्वसनीय दृश्य देखा । उसकी जवान अविवाहिता लड़की किशना बच्चे को शायद स्तनपान कराने का प्रयास कर रही थी ।