मरियाना उर्फ़ मेरी / बलराम अग्रवाल

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मरियाना (Marianna) जिब्रान की छोटी बहिन थी और सुलताना की बड़ी। इस बारे में कि उसके भाई को लेबनान और यूरोप भेजा जाए या नहीं, लड़की होने के नाते उससे पूछने की जरूरत नहीं समझी गई। लेकिन केवल दो साल के अन्तराल में जब माँ, बहिन और घर चलाने वाला भाई पीटर टी.बी. से चल बसे, तब मरियाना ने अपने भाई खलील को, जिसकी साहित्यिक रचनाएँ अरब-संसार को जगाने का और ओटोमन राजवंश में सनसनी फैलाने का काम कर रही थीं, तथा खुद को अकेला पाया तथापि उसने समझदारी और साहस से काम लिया और अपने बड़े भाई की अभिभावक बन गई। मरियाना ने महसूस किया कि साहित्यिक महानता और धन-सम्पत्ति अक्सर एक-साथ नहीं मिलतीं और मिलती भी हैं तो जीवन के अन्तिम पड़ाव में। जिब्रान की शिक्षा अरबी में हुई थी। इसलिए उनकी रचनाओं और पुस्तकों से घर चलाने लायक आमदनी तब तक प्रारम्भ नहीं हुई थी।

अकेले रह जाने के बाद, मरियाना ने अपने भाई को ऐसा कोई भी काम नहीं करने दिया जो उसे अपने साहित्यिक और कलापरक रुचि को छोड़कर करना पड़े। अपना और भाई का खर्चा चलाने के लिए उसने सिलाई और बुनाई जैसे छोटे कार्य करने प्रारम्भ किए। उसने भाई को प्रेरित किया कि जब तब उसके पास प्रदर्शनी लगाने योग्य पेंटिंग्स न हो जायँ, वह चित्र बनाता रहे। मरियाना के पास उसकी प्रदर्शनी का आयोजन कराने लायक भी रकम नहीं थी। लेकिन जिब्रान ने उन दिनों बोस्टन में रहने वाली एक लेबनानी महिला से बीस डॉलर उधार लेकर चित्र-प्रदर्शनी लगाई। उक्त महिला ताउम्र जिब्रान के उस उधारनामे को अपनी सबसे बड़ी पूँजी मानती रही।

जिब्रान की शिक्षा पर खर्च की गई रकम सूद समेत वापस मिली; न केवल साहित्य-जगत व शेष समाज को बल्कि धन की शक्ल में उनकी बहन मरियाना को भी। शेष समाज को इस रूप में कि उक्त धन से मरियाना ने लेबनान स्थित मठ ‘मार सरकिस’ को खरीदकर उसे जिब्रान की कलाकृतियों व साहित्य आदि के प्रेमियों व शोधार्थियों तथा पर्यटकों के लिए ‘जिब्रान म्यूज़ियम’ में तब्दील कर दिया। एक अनुमान के मुताबिक 1944-45 में जिब्रान की कलाकृतियों और किताबों से मिलने वाली रॉयल्टी की सालाना रकम लगभग डेढ़ मिलियन डॉलर थी जो उसके गृह-नगर बिशेरी को भेज दी जाती थी। यद्यपि अपनी बहन मारियाना के जीवन-यापन हेतु उसका भाई अच्छी-खासी रकम छोड़ गया था। फिर भी, अन्तिम वर्षों तक वह मेरी हस्कल की तरह नर्सिंग होम में अपनी सेवाएँ देती रही। 1968 में उसका निधन हो गया। बारबरा यंग से मरियाना का रिश्ता हमेशा मधुर रहा। बारबरा ने अपनी पुस्तक ‘द मैन फ्रॉम लेबनान’ मरियाना को ही समर्पित की।