मरुस्थल / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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"जमना, तू क्या कहना चाह रही है?"

"मौसी, जे जो गिराहक आया है, इसे किसी और के संग मत भेजियो।"

"जमना, जे तू कै रई हय? इत्ती पुरानी होके. हमारे लिए किसी एक गिराक से आशनाई ठीक नई."

"अरे मौसी, तू मुझे ग़लत समझ रई है। मैं कोई बच्ची तो नहीं। तू किसी बात की चिन्ता कर। पर इसे मैं ही बिठाऊँगी।"

"वजह भी तो जानूँ?"

"वो...बात जे है कि...कि।" एकाएक जमना का पीला चेहरा और फीका हो गया, आँखें झुक गई-"इसकी शक्ल मेरे सुरगवाली मरद से बहुत मिलती है। जब इसे बिठाती हूँ तो थोड़ी देर के वास्ते ऐसा लगे है जैसे मैं धंधे में नहीं अपने मरद के साथ घर में हूँ।"

"पर...पर...आज तो वह तेरे साथ बैठनाई नहीं चाह रिया...उसे तो बारह-चौदह साल की चइए. !"