महाभारत का एक और आकलन / जयप्रकाश चौकसे

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महाभारत का एक और आकलन
प्रकाशन तिथि : 16 मई 2014


'काइ पो छे' के लिए प्रसिद्ध अभिषेक कपूर को यूटीवी-डिज्ने ने महाभारत को ढाई घंटे के दो भागों में बनाने के लिए अनुबंधित किया है और अशोक बैंकर इसे लिख रहे हैं। साथ ही महाभारत पर हाल में प्रदर्शित लुगदी साहित्य को भी परखा जा रहा है। मैंने उन्हें महाभारत के प्रस्तुतीकरण का अपना दृष्टिकोण बताया जिसका उपयोग किया जाए या नहीं, उन पर ही छोड़ दिया है क्योंकि फिल्म लेखक नहीं निर्देशक का माध्यम है। उम्र के इस मोड़ पर अपने पाठकों को अति संक्षेप में इस संबंध में बताना चाहता हूं। जलप्रपात के निकट एक पहाड़ी पर एक व्यक्ति प्रार्थना करता है कि अनेक प्रयास असफल हो गए, इस बार उसे सफलता देना। वह व्यक्ति जलप्रपात में कूद पड़ता है, चट्टानों से रक्तरंजित उसका शरीर नदी के तल में एक नुकीले पत्थर से टकराता है। जब खून की लाली हटती है तो हम देखते हैं कि वह व्यक्ति पूरी तरह चंगा होकर किनारे पर आता है और एक चिता का निर्माण कर, स्वयं को जलाने का असफल प्रयास करता है। वेदव्यास कहते हंै कि अश्वत्थामा तुम्हें द्रौपदी का श्राप है कि तुम मौत को तरसोगे और वह तुम्हें अनंत काल तक नहीं मिलेगी।

इसके बाद वेदव्यास कुरुक्षेत्र जाकर देखते हैं कि रक्त रंजित मिट्टी अभी भी लाल है और मोटापे से गिद्ध उडऩे के प्रयास में विफल हो रहे हैं। एक किसान हल चलाता है तो धरती से केवल टूटे हथियार, टूटी हड्डियां निकलती हैं। कुरुक्षेत्र पर सदैव बादल वर्षों से छाये हैं परंतु बरसते नहीं। वेदव्यास हस्तिनापुर के राजमार्ग से गुजरते हुए देखते हैं कि कमजोर बच्चे, निर्बल वृद्ध और युवा विधवाएं भूूख और बीमारियों से ग्रस्त हैं। राजमहल से वेदव्यास को जानकारी मिलती है कि सरकारी खजाना खाली है। कुछ नहीं किया जा सकता।

व्यथित वेदव्यास गंगा तट पर जाकर मां गंगा से प्रार्थना करते हैं कि उसकी गोद में अस्थियां विसर्जित हैं, उन सभी व्यक्तियों को मात्र कुछ समय के लिए सशरीर गंगा तट पर भेज दें ताकि युद्ध के इतने वर्षों पश्चात संभवत: वे अपने अहंकार, अंधकार और पूर्वग्रह से मुक्त होकर गंगा तट पर विचार करें कि कहां चूक हुई और क्या यह युद्ध टाला जा सकता था। गंगा के तल से उभरकर सारे महत्वपूर्ण पात्र तट पर आते हैं परंतु मां गंगा का आशीर्वाद सीमित नहीं था, कुछ आम आदमी, साधारण सिपाही और वे व्यापारी जिन्होंने युद्ध सामग्री से ढेरों कमाया था, भी तट पर आते हैं। इस समय पांडव-कौरव मित्रों और प्यार करने वाले भाइयों की तरह प्रकट हुए हैं मानो कुंती और गांधारी का आदर्श मृत्यु के बाद जीवित हो उठा है।

वेदव्यास इस महान वापसी का प्रयोजन बताते हैं और खुली निष्पक्ष बहस प्रारंभ करते हैं। सत्यवती स्वीकार करती हंै कि उसकी महत्वाकांक्षा ने योग्य भीष्म को सिंहासन से वंचित किया परंतु उसने सिंहासन की रक्षा की शपथ ली और आम जनता के लाभ को खारिज कर दिया। भीष्म स्वीकार करते हैं कि सिंहासन के प्रति निष्ठा का उनका आदर्श सदियों तक लोगों को गुमराह करेगा परंतु उन्हें तो नंदिनी को चुराने की लंबी सजा काटना थी, अन्यथा उन्हें मोक्ष नहीं मिलता। कुंती का कहना है कि युद्ध का एकमात्र कारण गांधारी द्वारा अंधत्व ओढऩा था जिसके कारण जन्मांध पिता और अंधत्व ओढ़ी माता अपने बच्चों को गुमराह होते देख ही नहीं पाए। गांधारी अंधत्व ओढऩे को पति भक्ति का आवरण देती है परंतु यह भी स्वीकार करती है कि उसकी इच्छा के विरुद्ध जन्मांध से शादी का प्रतीकात्मक विरोध उसने आंखों पर काली पट्टी बांध कर किया। गांधारी का प्रति आरोप यह है कि अगर कुंती समय रहते कर्ण को उसके जन्म का रहस्य प्रकट करती तो दुर्योधन संभवत: कर्ण के पांडवों की ओर जाने पर युद्ध नहीं करता।

कुंती कहती है कि युद्ध पूर्व उसने कर्ण को सत्य बताया तो उसने कहा वर्षों सूत पुत्र कहलाने की पीड़ा से दुर्योधन ने उसे बचाया था, अत: वे वफादारी का निर्वाह करेंगे। अंधी वफादारी क्या-क्या जुल्म ढाती है और कितने लोग गुमराह होते हैं। कर्ण ने कुंती को यह भी बताया कि वह जानता है कि दुर्योधन की और उसकी हार होगी। प्रकृति ने युद्ध के परिणाम का संकेत दिया है कि जिधर पांडवों का कैम्प है, वहां के वृक्ष हरे हैं, पशु पक्षी चहक रहे हैं और कौरव पक्ष के कैम्प की ओर पतझड़ है। अब कर्ण को खोजा जाता है तो श्री कृष्ण बताते हैं कि नए जन्म का लाभ लेकर वह उन निर्दोष लोगों के परिवार की सेवा के लिए गया है जो अनजाने ही उसके रथ से छूटे पहिए के नीचे आ गए थे।

यह वार्तालाप और शोध की सभा पात्र दर पात्र आगे बढ़ती है और पहले विचार टकराते हैं, फिर पात्र टकराते हैं और वेदव्यास को महसूस होता है कि अहंकार, अंधकारऔर स्वार्थ से मरकर भी लोग मुक्त नहीं होते। गंगातट पर छिड़े नए महाभारत से व्यथित वेदव्यास गंगा से प्रार्थना करते हैं कि इन्हें वापस बुला लो।

आम आदमी लौटते हुए वेदव्यास से कहते हैं कि गेहूं के साथ वे ही सदैव घुन की तरह पिसते हैं। अब गंगातट पर श्री गणेश आकर कहते हैं कि सारे युद्ध अनावश्यक होते हंै। जब मनुष्य तटस्थ होकर तर्क का साथ छोड़ते हैं, वैज्ञानिक विश्लेषण को नकारते हैं तब युद्ध होता है। मुस्कुराकर श्री गणेश वेदव्यास से पूछते हंै कि घटना के पूर्वाभास के कारण उन्होंने महाभारत की कथा गढ़ी? कई बार कल्पनाएं इस तरह सत्य होकर सामने यथार्थ स्वरूप में आ जाती हैं। कृपया अपनी भूमिका का भी पुनरावलोकन करें। यह सार प्रस्तुत किया गया है और अगर इस कथा के कुछ पात्र आपको चुनावी महाभारत में देखने को मिलें तो यह महज इत्तफाक है।