महाशक्ति के संशय और भ्रम / जयप्रकाश चौकसे

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महाशक्ति के संशय और भ्रम

प्रकाशन तिथि : 06 जुलाई 2012

अमेरिका को आजाद हुए २३६ वर्ष हो चुके हैं। इस अवसर पर चिदानंद राजघाट्टा ने एक अंग्रेजी अखबार में लेख लिखा है। कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि अब अमेरिका पहले जैसी महाशक्ति नहीं रहा। इस लेख में स्पष्ट किया गया है कि अमेरिका के विरोध की अभिव्यक्ति पर वहां कोई रोक-टोक नहीं है।

दूसरी विशेषता यह है कि उसकी जीवनशैली की नकल अनेक देश कर रहे हैं और तमाम विवादों के बाद भी दुनियाभर में अनेक लोग अमेरिका में बसने के लिए लालायित हैं।दरअसल अमेरिका ने हमेशा दूसरे देश के लोगों को आत्मसात किया है।अमेरिकी जीवन शैली की इस लोकप्रियता को रचने में हॉलीवुड की फिल्मों ने बहुत सहायता की है। हॉलीवुड के सिनेमा के विविध रूप हैं। अपराध फिल्मों की गंगोत्री हॉलीवुड ही है। मनुष्य मन के अंधेरे पक्ष का नॉयर सिनेमा भी उसने ही रचा है।

उसकी सुपरहीरो फिल्मों ने उसके कॉमिक्स के पात्रों को सारी दुनिया के बच्चों में लोकप्रिय बनाया है। उन्होंने अपनी विज्ञान फंतासी में दार्शनिक संकेत भी दिए हैं और मानवीय करुणा भी जगाई है। स्टीवन स्पीलबर्ग की ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ में रोबो बालकमां के लिए रोता है। उसने धरती के परे अन्य ग्रहों में जीवन के भ्रम को सत्य की तरह स्थापित कर दिया है। अंतरिक्ष प्राणियों की कल्पना को उसने पहचान दी है, चेहरे दिए हैं। अमेरिका ने ही हॉरर फिल्में बनाना सिखाया।इसका यह अर्थ नहीं कि अमेरिका ने केवल अंधेरे और अपराध की फिल्में रचीं।उसने महान प्रेम और युद्ध फिल्में भी रची हैं। सबसे बड़ी बात यह कि तमाम विविध किस्म की फिल्मों ने अमेरिका के शहर, उनके वैभव और जीवन शैली को खूब गरिमा मंडित किया है।

उन्होंने प्रतियोगिता और सफलता को महिमामंडित किया। उनकेयहां कभी कछुआ नहीं, हमेशा खरगोश ही जीतता है। उन्होंने पूंजीवाद को अपनी पूरीक्रूरता के साथ श्रेष्ठतम सिद्ध किया। जीवन में किसी भी रास्ते सफलता तक पहुंचना है। अमेरिका ने अत्यंत साहसी राजनीतिक फिल्में बनाई हैं।

दरअसल उनके सिनेमा ने उनके अपराजेय होने की छवि रची है। अमेरिका ने युद्ध छेड़े, परंतु कहीं भी विजय नहीं मिली, फिर भी उसके अभेद्य होने का भ्रम रचा गया है। जब अमेरिका और रूस केबीच शीतयुद्ध चल रहा था, तब उसके फिल्मकारों ने ‘जेम्स बांड’ श्रंखला रची।

अब अमेरिका ने ग्रीन हौवा खड़ा किया और उसका सिनेमा उसे अपने चिर-परिचित अतिरेक के साथ सर्वत्र फैला रहा है।सिनेमा के प्रारंभ में ही माध्यम की ताकत को भांपकर अमेरिका ने विधा पढ़ने-पढ़ाने के लिए हजारों संस्थाओं को जन्म दिया और वहां प्रशिक्षित लोग दुनियाभर के देशों मेंसिने विधा पढ़ाते हुए अमेरिकी सिनेमा के उदाहरण देकर उसे मजबूत बना देते हैं। अबभारत में अमेरिकी प्रशिक्षक और उनका पाठच्यक्रम भारतीय युवा फिल्मकार के मन मेंअमेरिकी सिनेमा और जीवन शैली को गहरे तक ठूंस देता है। इसी का नतीजा है कियुवा भारतीय फिल्मकार भारत में अमेरिकी ऑस्कर के लिए मरे जाते हैं। हॉलीवुड नेदूसरा काम यह किया कि अनेक देशों में अपनी फिल्मों के वितरण और प्रदर्शन की व्यवस्था की।

यह सिनेमा क्षेत्र में उनकी उपनिवेशवाद नीति की सफलता है। हॉलीवुडने तीसरा काम यह किया कि सिनेमा उपकरण बनाए और टेक्नोलॉजी की मदद से खूबविकास किया। आज अनेक देशों के फिल्मकार इस टेक्नोलॉजी के चमत्कार के कायलहैं। ‘टाइटैनिक’ और ‘अवतार’ वे ही रच पाते हैं। हॉलीवुड ने चौथा काम यह कियाकि सिनेमा के प्रचारतंत्र के माध्यम से सितारों को महिमामंडित किया और उनके रहस्यकी रचना की। अमेरिका में ही पहली गॉसिप लेखिका हेड्डा हॉपर हुई हैं।

अपमान और अपशब्द कहने वाली हेड्डा हॉपर भी उन्हीं की बनाई हुई थी और आज उसी की मानससंतानें भारतीय पत्रकारिता के गलियारों को दूषित कर रही हैं। हॉलीवुड की सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि अमेरिका के लोग और सरकार उनके फिल्मी नायकों, सुपरहीरो की तरह सोचती है कि ‘आई एम द ग्रेटेस्ट’। सोच का यही मॉडल हमारे फिल्मी सितारों के मन में भी गहरा समाया है।