महिला - पुरुष समानता का आदर्श / जयप्रकाश चौकसे

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महिला - पुरुष समानता का आदर्श
प्रकाशन तिथि : 23 जनवरी 2021

चौहत्तर प्रतिशत महिलाएं खेती से संबंधित काम करती हैं, जबकि महज तेरह प्रतिशत महिलाओं के पास खेत का मालिकाना हक है। अनुमान है कि अगर महिलाओं के पास तीस प्रतिशत कृषि भूमि पर मालिकाना अधिकार हो जाए तो भारत अपने उपजाए अनाज का निर्यात भी कर सकता है। अहम बात तो यह है कि कृषि प्रधान कहे जाने वाले देश में कोई भूख से नहीं मरे। अकाल आज भी अलग स्वरूप में अपने कुछ द्वीप बनाए बैठा है, जिसके किनारों को परिवर्तन की कोई लहर नहीं छूती। सदियां बीत गईं विभिन्न स्वरूप में अछूत नामक भेद कहीं न कहीं कायम है। सत्यजीत रे की मुंशी प्रेमचंद्र कथा से प्रेरित फिल्म ‘सद्गति’ में अछूत से कमरतोड़ काम कराता वामन परिवार चिंतित है कि अगर यह मर गया तो इसकी मृत देह को आंगन से बाहर फेंकने के लिए इसे छूने मात्र से वह नरक में जा सकते हैं। गुरुदत्त की व्यंग फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ में अमीरजादी को नायक अपने गांव लाया है। नायक की भाभी चक्की चलाती है, भोजन पकाती है, घर बहारती है और बच्चों की परवरिश करती है। उसका पति महानगर में नौकरी करता है। वर्ष में तीन बार छुट्टियों में घर आता है। अमीरजादी पूछती है कि भाभी आप इतना परिश्रम क्यों करती हैं आपको क्या मिलता है। भाभी कहती हैं कि मुझे आनंद मिलता है। गृहस्थी का कार्य बोझ नहीं है, वरन उनका धरम-करम है। अमीरजादी छद्म आधुनिकता से ग्रसित महिला के लिए जीवन नए रूप में परिभाषित होता है। जीवन से आनंद लेना और दूसरों को बांटना ही जीवन है। कौन कितना काम कहां कर रहा है यह महत्वपूर्ण नहीं है। वर्तमान में जारी किसान आंदोलन में महिलाएं घर संभाल रही हैं और हड़ताल पर गए लोगों का भोजन भी पका रही हैं। आंख अंधे मस्तिष्क में घनघोर अंधेरा लिए महानगरों में बैठे निकम्मे लोग कह रहे हैं कि हड़ताली किसान सरसों का साग और मक्खन लगी रोटी खा रहे हैं। उन्हें ज्ञात नहीं है कि यह भूख हड़ताल नहीं है। तमाम इतिहास और पौराणिक गाथाएं पुरुषों ने लिखी है परंतु कलम स्त्रीलिंग है। यह बात अलग है कि तानाशाह आवाम के सिर कलम करते हैं। तानाशाह का भाग्य भी किसी कलम द्वारा ही लिखा होता है। यह क्रम कहां रुकता है- ‘दिन आता जाता है, रात भी गुजर जाती है। पृथ्वी भी स्त्रीलिंग है, आकाश पुल्लिंग है। हैरानी की बात यह है कि तथाकथित सद्व्यवहार में भी ‘महिला पहले’ कह कर उसे कमजोर ही कह रहे हैं। सबसे अधिक शिशु जहां उत्पन्न होते हैं, उस पावन देश में ही सबसे अधिक भ्रूण हत्याएं होती हैं। कन्या जन्म देने वाली स्त्री का सन्मान बालक को जन्म दिन वाली स्त्री से कम किया जाता है। राजकुमार संतोषी की मनीषा कोइराला, माधुरी दीक्षित और जैकी श्रॉफ अभिनीत फिल्म में कन्या का जन्म होते ही उसे दूध में डूबा कर मार दिया जाता है। पानी की जगह दूध का इस्तेमाल भी पुरुष की दया है। सीता ने दो बार वनवास काटा है। निदा फ़ाज़ली लिखते हैं...‘जो बीत गया वो इतिहास है तेरा, अब जो काटना है वह वनवास है तेरा’। यह हम कैसे भूल सकते हैं कि शब्द ‘क्षमा’ स्त्रीलिंग है, ‘पाप और अपराध’ पुल्लिंग है, जज पुल्लिंग है, जूरी व्यवस्था अब निरस्त कर दी गई है जो स्त्रीलिंग शब्द था। भाषा स्त्रीलिंग है परंतु व्याकरण पुल्लिंग है। यह खबर है कि भगत सिंह की भतीजी भी किसान आंदोलन में शरीक हो गई हैं। लगता है कि किसान आंदोलन कहीं जलियांवाला बाग भाग 2 न बन जाए। वर्तमान में गांधीजी का पुनरागमन संभव नहीं है। गोडसे बहुसंख्यक हैं। बहरहाल सामाजिक व्यवहार हो या भाषा हो, सभी क्षेत्रों में पुरुष का एकाधिकार है। चुनाव में 33% क्षेत्र में महिलाएं ही चुनाव लड़ सकेंगी। इस प्रस्ताव की फाइल धूल के पहाड़ के नीचे दबी रह गई है। आंखों में धूल झोंकने वाले, फाइलों से दूर हटाने के लिए समय नहीं निकाल पाते। बकौल रेणु शर्मा ‘इस सवाली दौर में हमने आसमान के पोस्ट बॉक्स में एक चिट्ठी डाली है।’