महेंद्र सिंह धोनी बायोपिक? / जयप्रकाश चौकसे

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महेंद्र सिंह धोनी बायोपिक?
प्रकाशन तिथि : 27 सितम्बर 2014


'भाग मिल्खा भाग', 'पान सिंह तोमर' आैर 'मैरी कॉम' की सफलता के बाद फिल्म निर्माण क्षेत्र में बायोपिक की तलाश खजाने की तरह की जा रही है आैर इन तमाम फिल्मों के निर्माण के बहुत पहले मनमोहन शेट्टी की कंपनी ने हॉकी के जादूगर ध्यानचंद्र पर फिल्म की तैयारी प्रारंभ की थी आैर एक वर्ष पूर्व शोधपरक पटकथा बन चुकी है परंतु उस पर बन सकने वाली फिल्म की लंबाई को कम करने के प्रयास पटकथा स्तर पर जारी हैं आैर अगले माह एक संपूर्ण पटकथा रनवीर कपूर को पढ़ने के लिए दी जाएगी। बहरहाल इस दौड़ में महेंद्र सिंह धोनी बायोपिक की घोषणा हो चुकी है आैर 'काई पो छे' के लिए प्रसिद्ध सुशांत राजपूत धोनी की भूमिका करने वाले हैं।

अभी धोनी सक्रिय हैं आैर कॅरिअर का समापन नहीं हुआ है अत: क्लाइमैक्स विहीन फिल्म कैसे बनाई जा सकती है परंतु भारतीय बायोपिक में सुविधानुसार परिवर्तन किए जाते हैं। बायोपिक में सत्य का आग्रह होना चाहिए आैर पान सिंह तथा मैरी कॉम में हुआ भी है। भाग मिल्खा भाग में अंतिम दौड़ रोम ओलिंपिक थी परंतु लार्जर दैन लाइफ सिनेमा में नायक का हारता हुआ कैसे दिखा सकते हैं। इस कारण पाकिस्तान में हुई प्रतिस्पर्धा को क्लाइमैक्स बनाया गया ताकि बॉक्स ऑफिस के लिए अनिवार्य पाक-बेशिंग पर तालियां बटोरी जाए।

अत: महेंद्र सिंह धोनी बायोपिक का क्लाइमैक्स वन डे क्रिकेट प्रतिस्पर्धा जीतना हो सकता है। सच तो यह है कि अभी इस बायोपिक का समय नहीं है परंतु आज के दौर में पकने के पहले बिकने में अधिक लाभ है। 'आईआईटी' में फाइनल परीक्षा के पहले ही नौकरी मिल जाती है। सच तो यह है कि सभी क्षेत्रों में अब पकने का कोई इंतजार नहीं करता क्योंकि बाजार भी यही चाहता है। कोल्ड-स्टोरेज केवल एक व्यवसाय नहीं है, यह एक गहरा विचार भी है। सृजन क्षेत्र से जुड़े लोग अपने अवचेतन के शीत-कक्ष में कई विचारों के पकने का इंतजार करते हैं। कई बार अधपका विचार भी किसी जल्दबाजी के कारण त्रुटियों पर ध्यान दिए बिना बाजार में जाता है। ऐसे ही विगत शनिवार को इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आैर एक अंग्रेजी अखबार में छपी गलत सूचना के कारण मैंने नालंदा को तक्षशिला लिख दिया जिसे रायपुर के एक पाठक ने पकड़ा। उस त्रुटि के लिए क्षमा चाहता हूं परंतु इस गलती को भुला दें तो पूरे लेख में शिक्षा की बीमार हालत पर प्रकाश डाला गया था। संभवत: मेरे अवचेतन में बिहार में नरेंद्र मोदी का भाषण दर्ज था जिसमें भी इतिहास के विषय में चूक थी।

बहरहाल एक छोटे शहर के युवा धोनी ने क्रिकेट में चमत्कार किया है परंतु क्रिकेट में निहित व्यापार को उन्होंने आत्मसात कर लिया है। इसलिए वे जानते हैं कि अपनी लोकप्रियता के शिखर पर फिल्म को लाना मोटा लाभ कमा सकता है। सेवानिवृत होने पर वह बात नहीं आती। जैसे नेता चुनाव की आचार संहिता लगने के पहले ताबड़तोड़ फैसले लेता है, वैसे ही धोनी ने भी उफक पर खड़ी अपनी सेवानिवृति को भांप लिया है।

गौरतलब यह है कि विगत आइपीएल के समय क्रिकेट सट्टा कांड में धोनी का नाम भी आया था आैर वे अभी तक मुद्गल जांच समिति के सामने संभवत: नहीं पहुंचे हैं। उन पर आरोप था कि खिलाड़ियों के कॅरिअर मैनेजमेंट कंपनी में उनका हिस्सा है आैर वे कॉनफ्लिट ऑफ इंटरेस्ट के संभवत: दोषी हैं परंतु प्रमाण हाथ आने के पहले ही कागजी दुरुस्ती की जा चुकी है आैर अगर इसे क्लाइमैक्स बनाएं तो धोनी 'काउंटर क्लोजर' के शिकार माने जा सकते हैं। 'काउंटर क्लोजर' ज्यां पॉल सार्त्र का मुहावरा है कि विजय के क्षण में नायक जानता है कि दरअसल उसका आदर्श धराशायी है आैर जीत खोखली है।