माताजी से मत कहियेगा / प्रतिभा सक्सेना

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इन्टर कॉलेज में पढ़ा रही थी उन दिनों।

हम छः-सात बराबर की टीचर्स थीं बस, दो-तीन साल की छुटाई-बड़ाई रही होगी। यही बीस-बाईस की उम्र।

सब प्रिन्सिपल से खीझी रहतीं थीं -अच्छी पटरी बैठती थी हमलोगों में। शादी हममें से दो की ही हुई थी, एक रमा जी को छोड़ कर बाकी सब उम्मीदवारी में थीं।

रमा जी - ज़रा मोटी और छोटी, अट्ठाइस पार कर गईं थीं, तीन छोटी बहिनें पढ रहीं थीं। कहतीं थीं मुझे शादी नहीं करनी, इन लोगों की करवानी है। सादे जीवन में विश्वास करनेवाली बहुत आदर्शवादी महिला थीं।

हम लोगों मे किसी की ज़रा जबियत खराब हो जाये तो लेक्चर झाड़ने लगतीं थीं -'अरे सबसे बड़ी चीज़ है संयम। इन्सान संयम से रहे तो हमेशा स्वस्थ रहे। और हम दोनो विवाहिताओं के सामने ब्रह्मचर्य का महत्व बखानते थकती नहीं थीं। ब्रह्मचारी रहो तो शरीर में शक्ति बनी रहती है। ज़रा सी मेहनत पड़े तो ये नहीं कि थके जा रहे हैं। चेहरे पर तेज रहता है और मन हमेशा प्रसन्न। दवा की कभी जरूरत ही न पड़े। और भी जाने क्या - क्या उनकी तमाम आदर्शवादी व्याख्याएँ ।

हम दोनों को उनकी लेक्चरबाज़ी सुहाती नहीं थी। पर क्या करते एक तो उम्र में बड़ी, फिर उनकी बातें नाना पुराण -निगमागम सम्मत। विरोध कर नहीं सकते। खिसयाहट तो लगती ही जैसे हम पापी, अनाचारी हों।

पर कहाँ तक चुप रहें! हमारा स्वाभाविक जीवन जीना मुश्किल होता जा रहा था। हमारी ज़बाने भी खुलने लगीं।

जरा उनकी तबियत नासाज़ होती, हम फौरन घेर लेते, ’रमा जी, क्या हो गया? आप तो बाल-ब्रह्मचारी हैं फिर कैसे ढीली पड़ गईं। शारीरिक ब्रह्मचर्य का महत्व है पर मानसिक उससे भी ज्यादा असर डालता है। आजकल क्या मन में कुछ ऐसा-वैसा, सोचती रहती हैं?

दूसरी कहती, ’हाँ मन को जीते बिना सब बेकार। हम लोगों की संगत का आप पर कोई खराब असर तो नहीं पड़ने लगा?’

वे बेचारी दोनों ओर से घिर जातीं, साथ की टीचर्स मज़े लेती, हँसती रहतीं

'आप सावधान रहिये ध्यान इधर न जाए, मन को कस के नियंत्रण में रखे रहिये। ’

कभी उनसे समाधान मांगते’पता नहीं, सिर में दर्द क्यों होने लगा! हम तो एक हफ़्ते से ब्रह्मचारी हैं। ’

'पति टूर पर गये लगते हैं’ दूसरी और जोड़ देरी, ’ और चार दिन से तो हम भी। । '

बाकी साथिने हँसी रोकतीं -और रमा जी जी आँखें तरेरतीं। हम बेशर्मों पर कोई असर न होते देख लाचार झेंपी हुई सी मुस्करा कर अपनी खिसियाहट छिपा लेतीं।

इधर कुछ दनों से परेशान थीं।

'क्या हो गया आजकल आप चिन्तित लगती हैं। ”

'इधर कुछ दिनों से अम्माँ की तबीयत खराब चल रही है। ’

'अरे, अम्माँ तो बहुत एक्टिव थीं। क्या हुआ है?’

'बताती तो हैं नहीं। कुछ दिनों से सिर में दर्द रहता था अब बहुत बढ़ गया। टेस्ट कराये हैं...’

हम लोगों को सुनकर दुख हुआ पर, ललिता चुप न रह सकी उसने जड़ दिया, ’ रमा जी, आप तो आदर्शवादी हैं। बेलाग बात कहने की हिम्मत है आपमें। पर हमलोगों से आप चाहे जो कुछ कह लीजिये, माताजी से ये सब मत कहियेगा। ’

घड़ों पानी पड़ गया हो जैसे उन पर रमा जी एकदम चुप! धीरे से वहाँ से खिसक लीं। ’

अब सोचती हूँ, हमें उन्हें से ऐसी बेतुकी बातें नहीं करनी चाहिये थीं। उनकी अपनी मजबूरियाँ थीं,

चार छोटी बहने ब्याहने को, पिता रिटायर हो चुके थे। पर तब इतना सब सोचने की ताब कहाँ थी।