माधुरी, मनोरंजन, मस्ती और माधुर्य / जयप्रकाश चौकसे

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माधुरी, मनोरंजन, मस्ती और माधुर्य
प्रकाशन तिथि :01 दिसम्बर 2007


आदित्य चोपड़ा, निर्देशक अनिल मेहता और जयदीप साहनी बधाई के पात्र हैं। उन्होंने माधुरी दीक्षित अभिनीत ‘आजा नच ले’ को एक अत्यंत मनोरंजक और सामाजिक सौद्देश्यता वाली फिल्म की तरह गढ़ा है। इसे देखने के बाद दर्शक बहुत ही प्रसन्नता के साथ थिएटर से बाहर निकलता है और कई लोग नम आंखों को छुपा नहीं पाते। कुछ चेहरों पर सूखे हुए आंसुओं के निशान देखे जा सकते हैं।

कमाल की बात यह है कि माधुरी की केंद्रीय भूमिका वाली इस फिल्म में ढाई दर्जन सहायक भूमिकाएं हैं और सभी अभिनेताओं ने माधुरी की वापसी को सार्थक बनाने के लिए अपनी भूमिकाओं में प्राण फूंक दिए हैं। कुनाल कपूर (रंग दे बसंती) कोंकणा सेन शर्मा, दिव्या दत्ता, दर्शन जरीवाला, रघुवीर यादव, विनय पाठक, रनवीर शोरी, इरफान खान, मुकेश तिवारी ने अपनी भूमिकाएं जड़ाऊ अंदाज में की हैं। हीरे के नेकलेस में छोटे मोती, हीरे, नीलम इत्यादि पत्थरों को जड़ा जाता है। मामला कुछ ऐसा ही है। इस फिल्म के लेखक ने रोजमर्रा बोली जाने वाली भाषा में कमाल के संवाद लिखे हैं। पूरी फिल्म में हास्य, विट इस तरह प्रस्तुत है कि दर्शक को पसलियों के पास अदृश्य उंगलियों द्वारा की गई गुदगुदी महसूस होती है। ‘चख दे इंडिया’ की तरह यह फिल्म भी आपके दिल को झंकृत करती है।

फिल्म में गंभीर सामाजिक तथ्यों की भीतरी लहर भी मौजूद है। एक छोटे शहर में सांस्कृतिक गतिविधियों के ‘अजंता’ नामक केंद्र को नष्ट करके वहां मॉल और मल्टीप्लैक्स गढ़ा जाने वाला है। एक चतुर व्यापारी को यह दंभ भी है कि सरकार या अफसर नहीं वरन व्यापारी देश को चला रहे हैं। यथार्थ जीवन में यह सच है कि बाजार की ताकतों ने संसद को अपने कब्जे में किया है और ‘सेज’ बतर्ज नंदीग्राम बनाने के लिए जोर जबरदस्ती जारी है। जैसे मशीन के साथ जीवन शैली आती है वैसे ही मॉल और मल्टीप्लैक्स के साथ उपभोग और दिमागी अय्याशी का एक पूरा संसार भी साथ आता है। आज हम जिस ग्रेनाइट और संगमरमरी प्रगति पर इतरा रहे हैं, उसके भीतर कितनी सड़ांध है इसका अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं। इस मनोरंजक फिल्म में इस तरह के गंभीर इशारे हैं, परंतु पूरा स्वरूप भावना से ओतप्रोत ही रखा गया है।