माया मेमसाब: प्यासी नदी / जयप्रकाश चौकसे

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माया मेमसाब: प्यासी नदी
प्रकाशन तिथि : 23 मई 2019


फिल्मकार केतन मेहता इस सुझाव पर खफा हो गए कि वे कंगना रनौट के साथ 'माया मेमसाब' बना सकते हैं। सुझाव देते समय यह स्मरण नहीं रहा कि केतन मेहता और कंगना रनौट 'झांसी की रानी' करने वाले थे परंतु कंगना रनौट ने 'बाहुबली' के लेखक के साथ वह फिल्म बनाई। केतन मेहता का विचार है कि उनसे 'रानी' चुरा ली गई है। ज्ञातव्य है कि केतन मेहता 'मंगल पांडे' बना चुके हैं। वे अपनी 'भवनी भवाई' और 'मिर्च मसाला' के लिए चर्चित रहे हैं। उन्होंने आमिर खान के साथ 'राख' नामक प्रयोगात्मक फिल्म बनाई थी, जो 'कयामत से कयामत तक' के पहले बनी थी। सुझाव का उद्‌देश्य केवल यह था कि 'मैडम बोवरी' से प्रेरित 'माया मेमसाब' पुन: बनाई जानी चाहिए। प्रियंका चोपड़ा 'माया' अभिनीत कर सकती हैं। दरअसल, फ्रांसीसी उपन्यासकार गुस्ताव फ्लॉबर्ट द्वारा रचा मैडम बोवरी का पात्र महिला के निर्मल आनंद के तलाश की कथा है। वह सदियों से इससे वंचित रही है। उसे वंचित रखने का कोई षड्यंत्र नहीं रचा गया है परंतु अधिकांश महिलाएं जीवन में एक बार भी निर्मल आनंद प्राप्त नहीं कर पातीं। सिमॉन द ब्वॉ ने इस व्यथा का वर्णन विस्तार से किया है।

केतन मेहता पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षित फिल्मकार हैं। पुणे संस्थान का वह सुनहरा दौर था और प्रतिभाएं मांजी गई थीं। विधु विनोद चोपड़ा भी उसी दौर का हिस्सा रहे हैं। राजकुमार हिरानी पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षित फिल्मकार हैं और अब तक उनकी बनाई सभी फिल्में सफल रही हैं। 'मैडम बोवरी' में उनकी रुचि संभवत: नहीं होगी, क्योंकि वे आधे-अधूरे पुरुष पात्रों को ही प्रस्तुत करना पसंद करते हैं।

21 मई को प्रियंका चोपड़ा की 'मैरी कॉम' और 'बर्फी' एक के बाद एक देखीं। यह कहा जा सकता है कि वे इस दौर की सबसे अधिक प्रतिभाशाली कलाकार हैं। मैडम बोवरी के पहले पति की भूमिका में निक जोनस को लेकर इसे एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म की तरह बनाया जा सकता है। फिल्में सरहदों के ऊपर से उड़ जाने वाले परिंदों की तरह होती हैं। 1856 में फ्रेंच भाषा में लिखा उपन्यास 'मैडम बोवरी' आज भी पढ़ा जाता है और फिल्म के नए संस्करण की संभावनाएं भी बनी रहती हैं। ज्ञातव्य है कि दीपा साही ने यह भूमिका अभिनीत की थी और केतन मेहता से विवाह भी किया। उन्होंने विशेष प्रभाव बनाने वाले माया स्टूडियो को भी स्थापित किया था।

एक बार केतन व दीपा साही ने खाकसार को दोपहर के भोज के लिए आमंत्रित किया था। उनकी बैठक की दीवार पर 'आवारा', 'मदर इंडिया', और 'गंगा जमना' के पोस्टर लगे हैं। ये उनके आदर्श हैं परंतु वे 'भवनी भवाई', 'मिर्च मसाला', और 'माया मैम साब' जैसी फिल्में ही बनाते हैं, क्योंकि हर फिल्मकार अपनी स्वतंत्र रुचियों के अनुरूप फिल्में बनाता है। यही सही रास्ता भी है। ऐसा नहीं करने पर राम गोपाल वर्मा की शोले (आग) जैसे हादसे रचे जाते हैं। अपनी सीमाओं का विस्तार करना सभी चाहते हैं परंतु आप अपने अंतरिक्ष के पार नहीं जा सकते।

उम्र और अनुभव से तराशे हुए केतन मेहता को अपनी विधा 'माया' गढ़ने में लगाना चाहिए। इस तरह उनके भीतर दबा हुआ फिल्मकार फीनिक्स परिंदे की तरह अपनी ही राख से नया जन्म ले सकता है। केतन मेहता और दीपा साही ने 'माया मेमसाब' बनाई, जिसका नया संस्करण उन्हें दूसरा जन्म दे सकता है। गर्भ से जन्मी रचना अपने ही गर्भ से फिल्मकार को नया जीवन दे सकती है। पतझड़ में दरख्त से गिरे सूखे पत्ते कालांतर में खाद बनकर उसी वृक्ष को नई शक्ति देते हैं।

ज्ञातव्य है कि केतन मेहता को फ्रांस की सरकार ने 'मैडम बोवरी' प्रेरित हिंदी फिल्म बनाने के लिए आंशिक आर्थिक सहायता प्रदान की थी। वर्तमान समय में पूंजी निवेश आसानी से उपलब्ध है। कुछ फिल्म बनाने वाले कॉर्पोरेट प्रयोग के लिए तत्पर हैं। प्रियंका चोपड़ा भी अपने पति निक जोनस के साथ फिल्म अभिनीत करने में रुचि ले सकती हैं। बहरहाल, संभावनाओं को टटोला जाना चाहिए। मेहबूब खान ने स्वयं की बनाई 'औरत' को ही 'मदर इंडिया' के नाम से बनाया और यही फिल्म उनकी याद को बनाए रखेगी। चीन की सरकार ने पहल की थी कि 'आवारा' को पुन: हिंदी और चीनी भाषा में बनाया जाए तथा राज कपूर अभिनीत पात्र रणवीर कपूर और पृथ्वीराज अभिनीत पात्र ऋषि कपूर अभिनीत करें। लेकिन, कपूर बंधु अपने वातानुकूलित कक्ष से बाहर ही नहीं आना चाहते। हर एक की अपनी वातानुकूलित गुफा है। सुविधाओं की गुफाओं से बाहर कोई आना नहीं चाहता।