मालवगढ़ की मालविका / भाग - 35 / संतोष श्रीवास्तव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहला पन्ना

इस दुनिया में इनसान का जन्म माँ की कोख से होता है लेकिन मेरा जन्म चिता से हुआ... और जन्म होते ही जिस देवपुरुष ने मुझे सम्हाला वे हैं जिम... इनसान के रूप में देवपुरुष। नहीं, मैं अपनी पिछली जिंदगी बिल्कुल याद नहीं करूँगी। वह तो मेरे कर्मों का भुगतान थी। मैं जिंदगी भर अपनी सीप-सी मुट्ठी में जिस मोती को सहेजे रही वह बूँद निकली और फिर चालीस मन लकड़ियों की चिता पर बूँद का अस्तित्व ही क्या? मैंने बहुत तर्क किए थे उस बूँद के लिए जिम से लेकिन मेरे हर तर्क का काट उनके पास मौजूद है। उन्होंने मेरी उन बातों के प्रति भी आँखें खोलीं, प्रताप भवन में रहते हुए जिन बातों की ओर मेरा कभी ध्यान भी नहीं गया। तब मैंने महसूस किया कि त्याग भी उसी के लिए करना चाहिए जो तुम्हारा त्याग समझे। उसी क्षण हमने शादी का फैसला कर लिया और यह सही भी था क्योंकि जिम की मुहब्बत जुनून की हद पार कर चुकी थी।

शादी की रात मुझे जिम की बहनों ने जिम की पसंद से सजाया था। दूध-सी सफेद पोशाक में ऐसी शांति बसी थी जैसी मैंने और कहीं नहीं पाई. मेरे हाथों में मेहँदी नहीं, सफेद रेशम के कोहनी तक के दस्ताने थे। पाँवों में महावर नहीं, मोती टँके सफेद चमड़े के खूबसूरत जूते थे। गले में सफेद शनील के नेकलेस पर हीरा जगमगा रहा था। शादी की कसमों के बाद जब जिम ने मेरी उँगली में अँगूठी पहनाकर मुझे चूमा तो ऐसा लगा कि जाने कब से मैं जिम के प्यार के इंतजार में थी। सदियाँ गुजर गईं... तूफानों ने बार-बार झकझोरा लेकिन शायद मैं इसी दिन के लिए बचती चली आई. हालाँकि अहल्या गौतम के धोखे में इंद्र की बाँहों में समाकर पत्थर होने का शाप झेलती रही... लेकिन एक दिन उस पत्थर को पिघलना ही था। मैं चिता की राख में अपने पत्थर होने के शाप को तोड़कर अपने गौतम के आगोश में समा गई. मुझे इंतजार था पायल और संध्या का। लेकिन मारिया अकेली ही आई. उसने और थॉमस ने फूलों का गुच्छा मुझे भेंट किया और बधाई दी। मेरे खामोश प्रश्न पर उसने तसल्ली दी - "नहीं आ पाईं दोनों, मैं तो आ गई न छोटी आंटी. उनके साथ प्रताप भवन के कायदे-कानून हैं, उन्हें तो उसी समाज में रहना है।" मारिया के मुँह से इस कड़वे सच को सुन थोड़ी देर को मैं विचलित हो गई थी। स्थिति समझकर जिम ने मेरे कंधे थपथपाए और फ्लोर पर थिरकते जोड़ों को दिखाने लगे जो अफ्रीकी ड्रम की लय के साथ नाच रहे थे। अंग्रेजी विवाह गीत के लरजते बोल मालवगढ़ में दूर-दूर तक गूँज रहे थे।

दूसरा पन्ना

जानती हूँ इस विवाह की खबर से पूरा मालवगढ़ थू-थू कर उठेगा। इसीलिए जिम से जिद की कि हम शिमला चलकर रहेंगे। जिम समझ गए, यह आशंका उनकी आँखों में भी तैर रही थी। बोले - "मैं ट्रांसफर करवाने की कोशिश करता हूँ। वैसे मालवगढ़ के हालात कुछ अच्छे नहीं हैं। क्रांति कब यहाँ सुलग उठे, कहा नहीं जा सकता।"

जिम ठीक कह रहे थे। क्रांति पूरे देश में लावा बनकर फूट रही थी। एक-एक गाँव तक एकजुट होकर उस लावे में कूद पड़ने को तैयार था। मारिया हर हफ्ते आती और क्रांति की खबरें और प्रताप भवन की खबरें सुना जाती। मुझे केवल संध्या की चिंता थी... पता नहीं, अजय और संध्या के रिश्ते को प्रताप भवन कबूल भी कर पाएगा? तब क्या होगा? क्या करेगी वो... कहीं आत्महत्या न कर ले? कहीं घर से न भाग जाए. दोनों ही कलंक हैं... एक प्रताप भवन के लिए और दूसरा खुद संध्या के लिए. गुप्त विवाह ही सही पर शादी कोई गुड़ियों का खेल नहीं। पूरी जिंदगी समर्पित कर देनी पड़ती है। मैंने जिम को सब कुछ बता दिया था। उन्होंने हमेशा की तरह मुझे धीरज ही बँधाया - "सब ठीक हो जाएगा। इन सब बातों को कबूल करने में वक्त लगता है पर कबूल हो जाता है। कोठी को भी दोनों की शादी को मान्यता देनी ही होगी।"

देश उलटफेर के कगार पर था। ऐसे में किसी भी प्रकार की तसल्ली व्यर्थ लग रही थी।

तीसरा पन्ना

कल रात हम डिनर लेकर बिस्तर पर लेटे ही थे कि किसी ने दो बार दरवाजा थपथपाया। जिम ने रिवॉल्वर हाथ में ली और बाहर के कमरे में आकर दरवाजा खोला। ऊँट पालने वाले की वेशभूषा में एक व्यक्ति अंदर आया। जिम से रात भर के लिए शरण देने की विनती की... कहा कि वह ब्रिटिश विरोधी है और भारत की आजादी चाहता है। उसने सीने में रिवॉल्वर छिपा रखी थी, जेब में फोल्डिंग पर्स था जिसमें ज़रूरी कागजात, नक्शे आदि थे।

"क्या चाहते हो?" जिम ने रिवॉल्वर ताने हुए पूछा।

"सिर्फ आज रात के लिए आश्रय। पुलिस मेरे पीछे है।"

"क्रांतिकारी हो! जानते हो मैं अंग्रेज हूँ।"

क्रांतिकारी ने मुझे देखा और हथियार डाल दिए - "तो मार दें गोली, कहीं-न-कहीं तो मरना ही है, यह भी तो शहीदी मौत कहलाएगी। क्या ग़लत कर रहे हैं हम? अपना ही देश तो माँग रहे हैं आप लोगों से। बापूजी की अहिंसा आपको रास नहीं आती, हिंसा पर उतर आते हैं। हमारी जमीन, धन-दौलत छीनकर हमीं पर रुआब?"

युवक हाँफने लगा। जिम की रिवॉल्वर नीची हो गई. उन्होंने आगंतुक को अंदर बुलाकर दरवाजा लगा लिया और बत्ती बुझाकर उसे आराम करने का इशारा किया। बाहर पुलिस के भारी बूटों की आवाज देर तक माहौल थर्राती रही। अपने कमरे में आकर जिम ने मुझसे कहा, "उसे कुछ खाने-पीने को दे दो।"

मैं आशंकित थी। जिम के व्यवहार ने मेरे अंदर खलबली मचा दी थी। नहीं रहा गया तो पूछा - "ऐसा क्यों किया आपने, क्या ये देशद्रोह नहीं है?"

जिम ने चकित हो मुझे देखा। न जाने कितने तूफान छुपे थे उन आँखों में -"भारतीय सिपाही भी तो भारतीय क्रांतिकारियों को टॉर्चर करते हैं, क्या वे देशद्रोही नहीं हैं?"

"लेकिन वे तो गुलाम हैं, जैसा हुक्म होगा पालन करेंगे।"

"मालविका!" जिम ने मेरे हाथों को अपने हाथ में लेकर कहा - "मैं ईस्ट इंडिया कंपनी में उच्च पद का ऑफीसर ज़रूर हूँ लेकिन मेरा जन्म भारत में हुआ है। सच पूछा जाए तो मैंने अपने देश को जाना ही नहीं कि कैसा होता है अपना देश! मैं अपने को भारतीय मानता हूँ। और तहेदिल से चाहता हूँ कि भारत आजाद हो जाए."

मैंने अपना सिर धीरे-धीरे जिम के उन्हीं हाथों पर झुका दिया जो मेरा हाथ पकड़कर मुझे आश्वस्त कर रहे थे।

चौथा पन्ना

लंदन में जिम की थोड़ी-बहुत पैतृक संपत्ति है। एक मिल है और एक फार्म हाउस भी जिसकी देखभाल जिम के चचेरे भाई करते हैं। उस संपत्ति में जिम की ज़रा भी रुचि नहीं है। हालाँकि उस संपत्ति से होने वाली आय का जिम के हिस्से का धन हर साल बैंक में जिम के नाम जमा हो रहा है लेकिन वह धन कितना है यह भी जिम नहीं जानते। ऐसे निर्विकार इनसान का क्या कीजै?

पाँचवाँ पन्ना

महीने भर की यूरोप यात्रा कराके जिम मुझे मालवगढ़ वापस नहीं लाए, सीधे शिमला ले आए. अच्छा ही हुआ। मालवगढ़ रहने की ज़रा भी इच्छा नहीं थी। मैं कोई ऐसी नई जगह रहना चाहती थी जहाँ पहले न आई होऊँ। जहाँ मेरा अतीत दबे पाँव मुझ पर हावी न रहे, जहाँ कोई सवाल न हो, संशय न हो, बस जिंदगी का भरा पूरा छतनारा वृक्ष हो जिसके नीचे मैं बकाया उमर गुजार सकूँ। वैसे अतीत हर वक्त धूप के उस जिद्दी टुकड़े-सा धप्प-से मेरे आगे आ धमकता है जिसे ढकते तोपते थान के थान कपड़े खर्च हो गए. यूरोप की यात्रा में जब हम जिम की बड़ी बहन के घर पेरिस गए तो वहाँ भी चर्चा उठी थी - "तुम राजस्थानियों में विधवा औरतें जिंदा जलाई जाती हैं?"

मैंने कहना चाहा, औरत कहाँ नहीं जलाई जाती - पूरे विश्व में औरत की स्थिति एक जैसी ही है - कहीं वह उम्रभर जलती है, कहीं झटके से एक बार में ही।

"यह एक कुप्रथा है जिसे राजस्थानी समाज धर्म की आड़ में बढ़ावा दे रहा है जबकि उन लोगों का इतिहास कुछ और ही कहता है। अपनी इच्छा से शरीर त्याग देने वाली सती स्त्रियाँ जब चिता पर बैठती हैं तो चिता अपने आप जल उठती है, उन्हें जबरदस्ती नहीं जलाया जाता।" जिम ने हकीकत पेश की तो मैं उनका चेहरा देखती ही रह गई.

"इसी प्रथा को आज जबरदस्ती विधवा को पति की चिता के साथ जलाकर जीवित रखा गया है। यह समूह के द्वारा की गई हत्या है जिसे धर्म का जामा पहनाया गया है। घोर पाप, मृत्यु दंड भी जिसके लिए छोटा दंड है। मुट्ठी भर लोग अपने कर्तव्यों से विमुख होना चाहते हैं और इस सनकी जिद पर उतर आते हैं। क्या हक है उन्हें ऐसा करने का?"

जिम तैश में आ गए थे। ऊपर से उनकी बहन ने आग में घी का काम किया - "तुम नहीं बचाते इन्हें तो ये जला दी जातीं।"

उपकार - एहसान-इस सबसे मैं दूर रहना चाहती हूँ। नहीं याद करना चाहती मैं अपना अतीत। धुआँ भरा दमघोंटू अतीत... जिम! किसी खुली जगह ले चलो मुझे - जहाँ मेरा पीछा एक भी घटना न करे। अब तो मैं अपनी परछाईं से भी डर जाती हूँ।

छठा पन्ना

शिमला आकर मैंने शिमला की वादियों में नए जन्मे पंछी की तरह अपने पंख पसार लिए. जिम के लकड़ी से बने कॉटेज में, जो यूरोपीय स्थापत्य का आभास देता लाल टीन की ढलवाँ छत वाला बेहद खूबसूरत और तमाम सुख-सुविधाओं से पूर्ण था, मैं महारानी की तरह निवास करने लगी। पहाड़ी नौकर तो मानो मेरी और जिम की सेवा करने के लिए ही धरती पर आया था। वह मेरे पाँवों में से सैंडिल उतारता भी था और पहनाता भी था। सप्ताह में एक दिन जिम मुझे डांसिंग क्लब ले जाते हैं जहाँ मैं मात्र दर्शक बनी फ्लोर पर थिरकते अंग्रेज दंपत्तियों को देखती रहती। यह डांसिंग क्लब सिर्फ अंग्रेजों के लिए ही बनाया गया था। लोअर जाखू रोड पर उतरते ही बोर्ड लगा है -'प्राइवेट रोड'। इस रोड को केवल अंग्रेज ही इस्तेमाल कर सकते हैं। एक बात जो मैंने इन लोगों में खास देखी, वह है जीने की भरपूर कला। जिंदगी के हर पल का ये जिंदादिली से उपयोग करते हैं और कभी निराश नहीं होते। भले ही थोड़े समय के लिए ये कहीं निवास करें पर वहाँ भी अपनी सुख-सुविधाओं की सामग्री जुटा लेते हैं।

सातवाँ पन्ना

आज मारिया के पत्र ने चौंका देने वाली लेकिन सुखद खबर दी कि संध्या की शादी अजय से हो रही है। मुझे इसी का डर था कि कहीं मेरे द्वारा आरंभ किए इस महायज्ञ की पूर्णाहुति यज्ञ अग्नि को बुझा ही न डाले। लेकिन पायल ने गवाही देकर मेरा सिर गर्वोन्नत कर दिया। भविष्य में संभावनाएँ हैं पायल से। प्रताप भवन में बरसों बाद कोई नगीना पैदा हुआ - यही तो कहा था न पायल के बाबा ने। वे महापुरुष थे, तमाम गुणों से पूर्ण। लेकिन ये आज मुझे क्या हो गया? मालविका तो मर चुकी है... अब प्रताप भवन या पायल के बाबा का जिक्र भी मेरे लिए असह्य है। नहीं, मूँदनी ही होंगी आँखें उस जिंदगी के तमाम पहलुओं से।

मारिया ने बताया कि संध्या की शादी बिल्कुल अव्यवस्थित थी। न शान-शौकत, न जमीदाराना आभास, कोई बात नहीं। मौका ही ऐसा था। वह तो उनकी शादी हो गई यही महत्त्वपूर्ण बात है। जिम कहते हैं - "उदास न हो, हम कलकत्ते चलकर शादी सैलिब्रेट करेंगे। जैसा तुम चाहोगी, सारी मन की कसर निकाल लेंगे।"

जिम अक्सर मेरा मन पढ़ लेते हैं और प्रयास करते हैं कि मैं किसी भी तरह दुखी न रहूँ। मेरी छोटी-छोटी बातों का इस कदर ध्यान रखते हैं कि पापी मन सोचने लगता है कि मालविका बनकर उतने साल प्रताप भवन में क्यों गँवा डाले। क्यों न जिम की होकर पैदा हुई ताउम्र के लिए. कभी-कभी मेरी ऐसी सोच मुझे अपने ही कठघरे में खड़ा कर देती है और मैं जिरह करने लगती हूँ अपने आप से। जैसे पायल करती है हर बात में जिरह। उसे न कोई रीति-रिवाज बिना पूर्ण संतुष्ट हुए स्वीकार है और न किसी की सीख। हजारों सवाल उसे घेरे रहते हैं। अब तो शांति निकेतन में पढ़ने लगती है। खुले आकाश तले विद्या अध्ययन व्यक्तित्व में और निखार लाएगा। उसे जिंदगी की चुनौती स्वीकार है और मेरी आँखों में बस यही ख्वाब आ बसा है कि मैं पायल को सफलतम इनसान के रूप में देखूँ। इधर मैंने भी वकील साहब से अंग्रेजी सीखना आरंभ कर दिया है।

आठवाँ पन्ना

आज जिम मुझे अपना फैमिली फोटो एल्बम दिखा रहे थे। माँ, बाप और तीन बहनें - बीच में सबसे छोटे जिम। उनके पिता बरसों पहले हिंदुस्तान केवल नौकरी करने आए थे लेकिन यहाँ की खूबसूरत प्रकृति, साल भर बदलते रहने वाले मोहक मौसम और बेहद भोले भारतीयों के बीच वे ऐसे रम गए कि यहीं बस गए. यहीं उनके चारों बच्चे हुए, यहीं पले-बढ़े। लेकिन तीनों बेटियों की शादी लंदन में हुईं। जिम ने शादी नहीं की। अपने इस फैसले के लिए उन्हें माँ-बाप का कड़ा विरोध भी सहना पड़ा। अपनी बहू की आस लिए दोनों दुनिया से कूच कर गए. जिम ने तब अपने आपको बहुत कोसा, वे स्वयं को माँ-बाप का दोषी समझने लगे।

"काश, तुम पहले मिल जातीं मालविका तो मेरा मन अपराध बोध से पीड़ित नहीं होता। बेटा होकर मैंने पिता के प्रति कोई कर्तव्य पालन नहीं किया।"

जिम भावुक हो उठे थे। मैंने सांत्वना दी कि उन दोनों के बाद ही सही आपने शादी करके उनकी आत्मा को शांति पहुँचाई है, यह क्या कम है।

नौवाँ पन्ना

कलकत्ते में संध्या, अजय और पायल से मिलकर बड़ी राहत मिली। संध्या और अजय को शादी के बंधन में बँधा देखा, बेहद अच्छा लगा। मैं यही चाहती थी क्योंकि मैंने दोनों के प्रेम की गहराई देख ली थी। वरना क्या मैं उनके गंधर्व विवाह का जोखिम उठाती? न जाने क्यों संध्या से बेहद लगाव है और पायल तो मेरा ही अंश है, मेरे शरीर का टुकड़ा जो मुझसे जुदा होकर अपने हिसाब से अपने लिए शरीर गढ़ लेगा। जिम कहते हैं कि मैं पायल को अपने पास शिमला बुला लूँ। लेकिन मैं प्रताप भवन के किसी भी सूत्र को पकड़कर कमजोर होना नहीं चाहती और यह जिम के प्रति अन्याय होगा। मुझे केवल जिम की होकर रहना चाहिए. उन्होंने मुझे मृत्यु के द्वार से घसीटा है इसीलिए मुझ पर हक है उनका।

इसके आगे अंग्रेजी की कुछ पंक्तियाँ लिखी थीं दादी ने। फिर कुछ अंग्रेजी और हिन्दी की कविताएँ। एक-दो पन्नों में मात्र चंद शब्द ही - दादी के बेहद निजी शब्द जो जिम ने उनसे कहे होंगे। इसके बाद था अगला पृष्ठ।

दसवाँ पन्ना

मैंने पेरिस में रहकर केक बनाना सीख लिया है। जैम, जैली, सॉस भी... क्रिसमस के त्यौहार पर इस बार मैंने बहुत बड़ा केक बनाकर उसे अपने हाथों से सजाया भी था। ताज्जुब है अब जब भी किचन जाती हूँ, सूप, पुडिंग, केक, पैन केक यही बन पाता है मुझसे। यही अच्छा भी लगने लगा है। लेकिन जिम कुछ और ही उम्मीद करते हैं मुझसे-"वैसा लंच-डिनर तैयार करो न जैसा प्रताप भवन में बनवाती थीं तुम! चटपटा लज्जतदार। जिसे खाकर मैं तुम्हारा दीवाना हो गया था।"

मुझे हँसी आ गई - "आप मेरा नाम मर्लिन क्यों नहीं रख देते?"

"क्यों? मैं ही अपना नाम क्यों न बदल लूँ? जयंत या फिर जयशंकर।"

जयशंकर! ...और हम देर तक हँसते रहे, मैं कहना चाहती थी कि मुझे मालविका को भूलना है या तुम्हें जिम को? जिम ठीक कहते हैं अगर तुम मालविका को भूलना चाहती हो तो जिम को भी भूलना होगा क्योंकि चिता से जिंदगी तक की यात्रा जिम ने ही तय की है। वह कड़वा सच तो जिम के साथ भी जुड़ा है। सच बार-बार भूलने या पीछा छुड़ाने की बात करके हम दोनों और अधिक उससे जुड़ते चले जा रहे हैं। कगार पर खड़े होकर लहरों को भूला भी तो नहीं जा सकता और कगार से हटने का उपाय? हाँ, एक चाह है मन में या शायद प्रतिशोध कि मेरी कब्र मालवगढ़ में हो। मैं वहीं दफनाई जाऊँ। यह प्रतिशोध किससे? प्रताप भवन से? नाते-रिश्तेदारों से या उस मिट्टी से जिसमें गिर-गिरकर मैंने चलना सीखा था। बहुत कलपाया है उस मिट्टी ने मुझे। उसी मिट्टी में समाकर मैं जता देना चाहती हूँ कि मैं कोई एहसान फरामोश नहीं। मिट्टी का कर्ज उतारने मेरी निर्जीव देह मिट्टी को समर्पित। मालवगढ़ में जिम के बंगले से वह जगह दिखती है जिसे जिम अपनी पारिवारिक सिमिट्री बनाना चाहते थे। दूर-दूर तक फैला सन्नाटा और पंख पसारे मोर जो जमीन पर छिछली टुकड़ा भर हरियाली में बड़े मजे से टहलते हैं। सच है सुख हमारी अपनी जमीन पर है जहाँ हम खड़े हैं। लेकिन हम उसे भूलकर यहाँ-वहाँ तलाशते घूमते हैं।

इसके बाद के बहुत सारे पन्ने मुख्तसर से थे। कहीं कविताएँ - अंग्रेजी में, हिन्दी में - कहीं संस्कृत के श्लोक - कहीं एक-दो पंक्तियाँ अस्पष्ट-सी. एक पन्ने पर मर्दाने स्वेटर का नाप लिखा था और दूसरे पन्ने पर खुबानियों के जैम की विधि-फिर लाल पेन से बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था - हम आजाद हो गए - यह पंक्ति रेखांकित थी और रेखांकन के दोनों तरफ दादी और जिम के हस्ताक्षर...

ग्यारहवाँ पन्ना

जिम ने मुझे बाँहों में भर लिया और कानों में फुसफुसाए -

"मुबारक हो मालविका... इंडिया आजाद हो गया।"

मेरी आँखों से खुशी के आँसू चू पड़े। एकाएक पायल के बाबा याद आ गए. आजाद भारत का सपना लिए जो दुनिया छोड़ चुके थे - काश, वे होते और अपनी आँखों से इस आधी रात में भारत के खुलते बंधन देखते।

"यह आजादी उन हजारों-लाखों क्रांतिकारियों और शहीदों की बदौलत मिली है जिन्होंने क्रांति का बिगुल बजाया, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचे, घर जलाए, जेल गए, यातनाएँ सहीं और फाँसी चढ़े। ये आजादी केवल अहिंसा से नहीं मिली है मालविका बल्कि गुलामी के अंधकार भरे आसमान पर बिजलियाँ इन्हीं ने चमकाई हैं। अपने शरीर की मशाल जलाकर आजाद भारत के प्रकाश को रचा है... आओ, इन शहीदों के लिए हम दो मिनिट खामोश खड़े रहें।"

दो मिनिट के लिए कॉटेज भी मानो मौन श्रद्धांजलि अर्पित करता-सा लगा। मैं दौड़ी हुई पूजा के कमरे में गई और दीपदान की सारी बत्तियाँ जलाकर कृष्णजी के आगे सिर नवा दिया। फिर आटे के दीये बनाकर कॉटेज को दीवाली जैसी रोशनी से जगमगा दिया। बारिश के आसार थे, रह-रहकर बिजली चमक रही थी।

"आओ मालविका, कलकत्ता फोन लगाते हैं।" जिम ने नंबर लगाया और तहेदिल से बधाई दी। पायल को यह चिंता सताए जा रही थी कि अब हम लंदन चले जाएँगे। जिम छोड़ेंगे भारत? उनकी तो जन्मभूमि है ये। कहने को वे अंग्रेज हैं पर पूरी तरह हिंदुस्तानी संस्कृति में रचे-बसे और मेरे साथ रहकर तो खानपान में भी अंग्रेजियत छोड़ चुके हैं। मैं समझ नहीं पाती कि मेरी जिंदगी में जिम इतनी गहराई से कैसे शामिल हो गए. यह मेरे प्रति प्रेम है या भारत के प्रति लगाव है। हाँ, भारत के प्रति लगाव ही। वे भारत को बहुत जल्द आजाद देखना चाहते थे। क्रांतिकारियों के हर कार्य, हर प्रयास का वे हमेशा वर्णन करते। जिस क्रांतिकारी ने हमारे घर शरण ली थी, वह पकड़ा गया था और उसे ब्रिटिश हुकूमत ने फाँसी पर चढ़ा दिया था। जिम गए थे जेल में, फाँसी वाले दिन उससे मिलने। लौटकर पूरी घटना ब्योरेवार बताई थी उन्होंने - "जब उसे फाँसी की सजा का पता चला तो उसकी खुशी का पारावार नहीं था। उसका पूरा परिवार भी वहीं खड़ा था। वह सबसे हँस-हँसकर मिल रहा था। उसके चेहरे पर जो मोहिनी हँसी मैंने देखी... वह मैं कभी नहीं भूल सकता मालविका। उस हँसी में भारतीय होने का गर्व था और ब्रिटिश सरकार के प्रति हिकारत। वह हँसते-हँसते फाँसी के लिए चला गया। उसके परिवार में सभी की आँखें सूनी और उदास थीं। उस वक्त तो कोई नहीं रोया लेकिन जब कंबल ढकी उसकी लाश लाई गई तो एक-एक कर सभी की आँखें बरस पड़ीं। मेरी आँखें भी आँसुओं से भर गईं। मैंने उसके पिता के कंधे पर सांत्वना भरे हाथ रखे - इस शहीद की मृत्यु पर आँसू बहाना इसकी शानदार मौत का अपमान करना है। मरना तो सभी को है पर ऐसी मौत किसे मिलती है।"

मालविका, उसकी वीरता ने मेरे दिल पर गहरा असर कर दिया।

बारहवाँ पन्ना

मारिया के पत्र ने मेरा मन आलोड़ित कर दिया। पत्र जिम ने भी पढ़ा और उनकी आँखों में खुशी के आँसू झिलमिलाने लगे - "ओह... ग्रेट। पायल रोम यूनिवर्सिटी से पी-एच.डी. करेगी यह उतनी ग्रेट बात नहीं जितनी अपनी रूढ़ियों को तोड़ने की उसकी कोशिश, औरत का स्वतंत्र होना भी अपने आप में एक क्रांति है।"

मैंने जिम को गहराई से देखा। वहाँ पायल के प्रयास के लिए गर्व था। पत्र देर से मिला, पायल अब तक इटली के लिए रवाना हो गई होगी वरना उसे बधाई देती फोन पर। उस रात मैं देर तक पूजा घर में बैठी पायल की कामयाबी के लिए प्रार्थना करती रही। जानती थी इस खबर का नाते-रिश्तेदारों में जमकर विरोध होगा। जो आज तक नहीं हुआ, पायल उसे करने जा रही है। वैसे भी विभाजन को लेकर देश में दंगे भड़क उठे हैं। और जब बाहर आग लगी हो तो घर की आग बहुत छोटी नजर आती है। कुछ दिनों में ठंडी पड़ जाएगी। पायल के कदम अब लौटेंगे नहीं, मैं जानती हूँ।