माला सिन्हा और पृथ्वी का अस्तित्व / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
माला सिन्हा और पृथ्वी का अस्तित्व
प्रकाशन तिथि :29 अप्रैल 2015


हिन्दुस्तानी सिनेमा की नेपाल से आई पहली सुपर स्टार माला सिन्हा थीं और दूसरी मनीषा कोइराला जो वहां के शिखर राजनीतिक परिवार की कन्या हैं। माला सिन्हा हमारे सिनेमा के आजादी के बाद के स्वर्णकाल में लोकप्रिय नायिका थीं और उन्होंने राजकपूर, देव आनंद, धर्मेन्द्र, शम्मी कपूर, मनोज कुमार इत्यादि के साथ दर्जनों सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया है और बलदेवराज चोपड़ा की फिल्मों की नायिका भी रही हैं। दो दशक तक नायिका रहने के बाद उन्होंने 1979 में 'हरजाई' में शम्मी कपूर के साथ महत्वपूर्ण चरित्र भूमिका की। उनका विवाह भी नेपाल के धनाढ्य परिवार में हुआ और उन्होंने एक फिल्म नेपाली भाषा में भी अभिनीत की है। भूकम्प के पश्चात फोन पर उन्हें ज्ञात हुआ कि उनका ससुराल पक्ष सुरक्षित है।

उनके देवर ने उन्हें बताया कि काठमांडू से कहीं अधिक हानि ग्रामीण क्षेत्र में हुई है। प्रकृतिजन्य आपदा हो या मनुष्य निर्मित त्रासदी हो, प्राय: आम, गरीब आदमी को ही अधिक नुकसान होता है और श्रेष्ठि वर्ग बच जाता है। शायद बादल भी जानते हैं कि किस घर को बचाना है, कहां बरसना है। लगता है कि श्रेष्ठि वर्ग का दान गरीब की प्रार्थना से अधिक असर रखता है। बहरहाल, माला सिन्हा ने बताया कि कुछ दिन बाद वे नेपाल जाएंगी। उन्हें इस बात की चिंता है कि धरती से हमने बहुत कुछ ले लिया है और अपनी बेचैनी में वह करवट लेती है। सुखद आश्चर्य की बात है कि दो दशक तक शिखर नायिका रहीं माला सिन्हा इस तरह के विचार रखती है और धरती की उन्हें चिंता है। कुछ वर्ष पूर्व किताब आई थी 'द प्लेनेट वी प्लांड्‌रड' जिसमें लिखा है कि हजारों वर्ष में मनुष्य ने धरती के दस प्रतिशत खनिज एवं अन्य चीजों का इस्तेमाल किया था, परंतु विगत 150 वर्षों में हम उसका 40 प्रतिशत दोहन कर चुके हैं और पृथ्वी के अस्तित्व को हमारा सुविधा आधारित तथाकथित विकासोन्मुख नजरिया नष्ट कर रहा है। इस धरती के जो बड़े लुटेरे हैं, उन्हें इसके अल्प जीवन का कुछ अंदेशा हो गया है और वे भविष्य में किसी अन्य ग्रह में बसने की तैयारियां भी कर रहे हैं। यह एक फंतासी नहीं वरन् सच है। अब यह बात है कि क्या वे नोहा की नाव की तरह हर प्रजाति का एक जोड़ा अपने साथ ले जाएंगे?

भूकम्प के भयावह परिणामों की खबरों के साथ यह तथ्य भी प्रकाशित हुआ है कि हिमालय की ऊंचाई पांच सेंटीमीटर प्रतिवर्ष बढ़ रही है। आने वाले वर्षों में हिमालय ही निर्णय करेगा कि उसे चीन की ओर ढहना है या भारत की ओर। चीन ने हिमालय की गोद में कई किलोमीटर लंबी सीमेंट की सड़कें बनाई हैं, अत: संभवत: इस हिमाकत से वह नाराज हो, परंतु बात तो मनुष्य के अस्तित्व की है और लाख सरकारी घोषणाआें के बाद लूटे गए वनों के एवज में भव्य पैमाने पर वृक्षारोपण नहीं हो रहा है, ना नदियों को प्रदूषण मुक्त किया जा रहा है। धुआं उगलते, सड़कों पर मंडराते मशीनी अजगर और खेतों में रसायनयुक्त खाद के कारण फसलों और फलों के वृक्षों पर रेंगते सांप कितने लोग देख पा रहे हैं और मुक्ति की राह पर कौन सी सरकार अमल कर रही हैं? क्या यह गौरतलब नहीं है कि हर मनुष्य का प्रत्येक नैतिकताविहीन कार्य और बोला हुआ झूठ भी किसी किस्म का प्रदूषण पैदा कर रहा है। दरअसल, इसी अदृश्य प्रदूषण का परिणाम है कि सत्ता धरती के संकट को अनदेखा कर रही है।

कैमरून की 'अवतार' में अन्य ग्रह पर वृक्ष गिराने के दृश्य में एक पात्र कहता है कि इस ग्रह पर गिरे हर वृक्ष की सहानुभूति में धरती का कोई वृक्ष अपनी हरियाली त्याग देगा। विज्ञान फंतासी में दार्शनिकता की गुंजाइश यथार्थ फिल्मों से अधिक होती है। यक्ष के प्रश्न के उत्तर में युधिष्ठिर ने कहा था कि मृत्यु जैसे अटल सत्य को भी अनदेखा किया जाता है और अब तो बात प्यारी स्वर्ग समान धरती के अस्तित्व की है।