मिट्टी से खेलते हो बार-बार किसलिए? / ममता व्यास

Gadya Kosh से
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कल मेरे, शहर में अचानक कहीं से भटके हुए बादल आये और बरस कर चले गए। बरसात के आते ही पूरा वातावरण, मिट्टी की सौंधी खुशबू से महकने लगा। इक पल पहले जो, सूखी मिट्टी तपती धरती का हिस्सा थी, जो सूरज की तपन और जलन में सुर-से सुर मिला कर जल रही थी। बादलों के बरसते ही कैसे झट से, सौंधी महक में बदल गयी। सख्त, चुभती, सूखी, धूल उड़ाती आँखों में खटकती मिट्टी, बूंदों से मिलते ही कैसी मुलायम, लचीली और सुगन्धित बन गयी। दोस्तों, हम भी तो इसी मिट्टी से बने हैं न? हमारी मिट्टी की देह इक दिन इसी मिट्टी में मिल जाएगी। जब हम सभी इक ही मिट्टी से बने हैं। फि र क्या बात है कि सभी की खुशबू अलग-अलग है? और यही खुशबू हमें सबसे अलग बनाती है। किसी से जुडऩे से पहले हमें उसकी खुशबू आ जाती है और हमारे आसपास अहसास महकने लगते हैं।

क्या कभी सूखी मिट्टी में कोई खुशबू होती है? नहीं जब तक प्रेम के अपनेपन के आत्मीयता के अहसास बूंदों के रूप में नहीं बरसते, नहीं छलकते तब तक कोई भी मिट्टी खुशबू नहीं दे सकती हाँ वो उड़-उड़ कर किसी की आँख में चुभन जरूर पैदा कर सकती है, लेकिन जब हम किसी अहसास से जुड़ते हैं तो हम भी सौंधी महक से महकने लगते हैं इसलिए, रिश्तों की मूरत बनाने के लिए सूखी मिट्टी के अलावा अहसास के बादल भी होना जरूरी है।

इस बात के अलावा इस मिट्टी को देख इक सवाल और उठता है मेरे मन में, हम सभी मिट्टी के खिलौने है और वो ऊपर आसमान में बैठा विधाता कु म्हार है, वही हमें बनाता है वही हमें बिगाड़ भी देता है इस मिट्टी की भी अजब तासीर है, वो जिस रूप में चाहे हमें ढाल देता है हम सिर्फ खिलौने हैं इतने कच्चे कि सांसों के स्पंदन से ही बिखर जाए, पक्के इतने की हर तूफान सह जाए, आसमान में बैठे उस कुम्हार के खेल कभी समझ नहीं आते। क्यों वो नित नए माटी के पुतले गढ़ता है, और फिर उन्हें तोड़ भी देता है। कभी-कभी इक सवाल मन में उठता है कि उस कुम्हार से पूंछूं की तुम्हें ये मिट्टी के खेल क्यों कर इतने भाते हैं? खिलौने बनाना तक तो ठीक था, लेकिन उनमें जो प्रेम के, आत्मीयता के, अपनेपन के अहसास भर देते हो। जिनकी खुशबू की वजह से ये खिलौने जीवित हो उठते हैं। तुम उन्हें अपनी मर्जी से करीब लाते हो, और अपनी मर्जी से अलग भी कर देते हो।

कभी सोचा है तुमने इन मिट्टी के खिलौनों को भी दर्द होता है पीड़ा होती है आँखों से आंसू बहते हैं, मन से आहें उठती हैं। दो मन, दो विचार, दो तकदीरे, आपस में जुडऩे ही वाली होती हैं तो तुम झट से उन्हें अलग कर देते हो तोड़ देते हो ऐसा करते हुए तुम्हारा मन नहीं दुखता? मन समझते हो ना तुम? या मन जैसी कोई चीज तुम्हारे पास है भी या नहीं? लोग कहते हैं तुम टूटे दिलों में रहते हो। तो क्या अपने रहने के लिए तुम जानबूझ कर दिलों को तोड़ते हो? इक आखिरी बात बताओ। टूटे हुए खिलौनों से तुम्हे क्यों प्यार है? मिट्टी के इस खेल को बंद कर दो या ये बता दो कि मिट्टी से खेलते हो बार-बार किसलिए? टूटे हुए खिलौनों से प्यार किसलिए?