मिस लिली / प्रभात रंजन

Gadya Kosh से
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उस घटना ने जैसे लिली ठाकुर की ज़िंदगी बदल दी। नवरात्र का समय था। नवमी की भीड़... रिक्शे पर बैठकर ‘नाज टेलर’ जा रही थी। कल यानी विजयदशमी के दिन उसे नेहरू भवन में आयोजित सास्कृतिक कार्यक्रम में जिला के क्लेक्टर, एस.पी., सांसद और इसी तरह के शहर के अन्य गणमान्य लोगों के सामने सुगम संगीत प्रस्तुत करना था। उसी मौक़े के लिए उसने लखनवी चिकन का कुर्ता ख़ासतौर पर सिलवाया था। लाने जा रही थी। उसने पहले तो गौर नहीं किया। मगर साइकिल की घंटी और सीटियों की आवाज़ें बढ़ती गईं तो उसने ध्यान दिया कि एक लड़का रिक्शे के दोनों ओर कलाबाजियाँ करता हुआ साइकिल चला रहा था। उसके देखने से साइकिल वाले लड़के से आँखें मिल गईं। जवाब में उस लड़के ने साइकिल की हैंडल से दोनों हाथ हटाए, बालों पर हाथ फिराते हुए उसने आँखों से कुछ इशारा भी किया। लिली ने घबराकर आँखें नीची कर लीं और रिक्शेवाले से तेज़ी से रिक्शा चलाने के लिए कहा। सीतामढ़ी के बीच बाज़ार में महंत साह चौक पर जब वह नाज टेलर के सामने रिक्शे से उतरने लगी तब तो हद ही हो गई। उस लड़ने ने पीछे से आकर उसका दुपट्टा खींचते हुए फब्ती भी कसी। उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती कि इससे पहले ही सामने के ‘प्रिंस पान भंडार’ से एक आकृति तेज़ी से उस भागते साइकिल सवार के पीछे दौड़ी। उसको पकड़कर उसने खूब धुनाई की। आगे से किसी लड़की के साथ दुर्व्यवहार न करने की क़सम खिलवाई, सड़क पर थूक फेंक कर चटवाया और फिर अब तक यह तमाशा देखते-देखते टेलर की सीढ़ियों तक पहुंच चुकी लिली के पास पहुंचते हुए नज़रें झुकाए हुअ बोला, “कभी कोई ज़रूरत हो तो अरुण चौधरी को याद कर लीजिएगा।” उसने स्वयं यह दृश्य कई बार सिनेमा के परदे पर देखा था। मगर यह दृश्य भी उस अरुण चौधरी द्वारा सिनेमा की तरह प्रायोजित किया गया था- ऐसा मानने का लिली का दिल नहीं हुआ। अगले दिन नेहरू भवन में सरस्वती वंदना के बाद उसने गाना शुरू किया, ‘अपनी अटरिया पर आवSओ साँवरिया, देखा-देखी तनिक होइ जाए!’ तो बार-बार उसकी आँखों के सामने अरुण चौधरी की छवि उभरकर आती रही। कार्यक्रम के बाद जब स्थानीय जिलाधिकारी महोदय के हाथों वह पुरस्कार प्राप्त कर रही थी, तो न जाने क्यों लगा कि हॉल के पीछे भीड़ में ताली बजाने वालों में अरुण चौधरी की लम्बी-छरहरी आकृति भी है। उस रात लिली ने अपनी छोटी बहन मिली से कहा, “लगता है उसे कोई ऐसा मिल गया है जो उसके सपनों की मंज़िल तक ले जाने में हर तरह से उसका साथ देगा।” “कौन है वह, दीदी?” मिली ने पूछा। “कोई नहीं, सो जा!” लिली ने उसे जोर से कलेजे भींचते हुए कहा। स्नेहसुधा ठाकुर : हाईस्कूल शिक्षिका- लिली के घर के बाहर यह तख़्ती टँगी थी। उसकी माँ घर में आजीविका कमाने वाली एकमात्र प्राणी थी। पिताजी जटाशंकर ठाकुर पुराने पुराने जमींदारों के वंशज थे। डाक विभाग में बाबू थे। एक बार अफ़सर ने उनसे बिना उचित सम्मान दिए बातचीत करना आरम्भ कर दिया। जवाब में उन्होंने उस अफ़सर की पिटाई कर दी। यह घटना दस साल पहले की है। तब से वह सस्पेंड चल रहे हैं। उनका ज़्यादातर समय या तो कोर्ट में कटता या स्थानीय स्तर पर फैले भ्रष्टाचार को लेकर राष्ट्रपति से लेकर राज्यपाल तक को पत्र लिखते रहने में, जिसे देश के एक नागरिक के रूप में वे अपना कर्तव्य समझते हैं। वैसे उनके किसी पत्र पर किसी तरह की कोई कार्रवाई हुई हो यह सुनने में नहीं आया। लिली अपने घर की सबसे बड़ी आशा है। दो लड़कियों के बाद माता-पिता ने लड़के की आस छोड़ दी। माँ अपनी लड़कियों को लेकर ही बड़े-बडे सपने देखती थीं। बड़ी-लड़की बी.ए. में पढ़ती थी। सीतामढ़ी के पंडित रविशंकर ओझा के पास बचपन से ही माँ उसे शास्त्रीय गायन सीखने भेजती रहीं। सीतामढ़ी शहर का शायद ही कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम ऐसा होता हो जिसमें लिली ठाकुर का गायन प्रमुखता से न हुआ हो। सब कहते वह एक दिन टीवी की ‘इंडियन आइडल’ बन सकती है। वह स्वयं भी देश-विदेश में गायिका के रूप में अपना नाम कमाना चाहती थी। पढ़ने में भी कोई खराब नहीं थी। शहर में सब यही चर्चा करते, “बड़ी एढभांस है इसकी माँ, जो पढ़ाई-लिखाई छोड़कर एस्टरा करकूलर (एक्स्ट्रा कैरिकुलर) में बेटी को आगे बढ़ा रही है।” कई तो उसकी माँ को आकर समझाते भी कि एक शिक्षक होकर इतने ऊँचे सपने नहीं देखने चाहिए। लेकिन उसकी माँ यही कहती, “मैं अपनी बेटी की राह में बाधा नहीं बनना चाहती।” जिला स्तर पर तो गायन की सभी प्रतियोगिताओं में वह अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी थी। अब उसकी साध थी कि उसे किसी तरह टीवी पर अपनी कला का प्रदर्शन करने का अवसर मिले। ज़्यादा दिन नहीं हुए पास के ही शहर मुजफ्फरपुर की शिल्पी को जीटीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ‘सारेगामा’ में गाने का मौक़ा मिला था। वह तो कोई पुरस्कार भी नहीं जीत पाई। मगर सीतामढ़ी से राजधानी पटना जाने के रास्ते में जगह-जगह उसकी बधाई के पोस्टर लगे हुए थे। उसे शिल्पी से बड़ा रश्क होने लगा था। नेपाल की सीमा से लगे उस छोटे-से लोगों के सपने ही ज़्यादा नहीं होते थे। पहले तो ज़्यादातर लड़के-लड़कियाँ डॉक्टर-इंजीनियर बनने के सपने पालते, बैंक में बाबू बनने के सपने पालते। जब से शहर के एक दवा-व्यापारी का लड़का निरंजन खेतान आई.ए.एस. की परीक्षा में उतीर्ण हो गया था तब से वहाँ के कुछ साहसी विद्यार्थी आई.ए.एस. आई.पी.एस. बनने का सपना भी देखने लगे थे और उसे पूरा करने के लिए, उसकी पढ़ाई के लिए दिल्ली-पटना जैसे शहरों का रुख़ करने लगे थे। लेकिन इधर जब से टीवी के परदे ने घरों ने अपनी स्थाई रूप से जगह पक्की कर ली थी तब से लड़के-लड़कियों की आँखों में सपने टीवी परदे के माध्यम से भी आने लगे थे। जो विद्यार्थी पढ़ने में स्वयं को तेज़ समझते, वे क्विज़ की किताबें पढ़ते, सामान्य ज्ञान बढ़ाने की कवायद करते रहते। इस चक्कर में तीन बार बैंक पी.ओ. का इंटरव्यू देने वाले खाद-व्यापारी के लड़के उमेश भवशिंका का धंधा खूब चल पड़ा था। सीतामढ़ी में लोग कहते कि दुनिया में शायद ही कोई ऐसा सवाल हो जिसका जवाब उमेश भवशिंका के पास न हो। दिन भर स्कुलिया-कॉलेजिया विद्यार्थी उसके पास एक से एक मुश्किल सवाल लेकर आते रहते। वह हँसते-हँसते उनके जवाब बता दिया करता। लोग चर्चा करते कि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ वालों को पता है कि यह सारे जवाब जानता है, इसलिए इसको उसमें भाग नहीं लेने देते हैं। यह बात कितनी सच थी पता नहीं, मगर कॉलेजों के हॉस्टल में, गली-मुहल्ले के विद्यार्थी लॉज में जब विद्यार्थीगण सामूहिक रूप से ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की तैयारी में लगे रहते तो उनके बीच अक्सर इस बात को लेकर चर्चा होती कि उमेश भवशिंका ने दो बार किस तरह ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के सवालों को पत्र लिखकर ग़लत साबित कर दिया था। लोग कहते कि पत्र पढ़कर अमिताभ बच्चन ने स्वयं भवशिंका को फोन करके मुम्बई बुलाया, साथ खाना खिलाया और दस लाख रुपए देते हुए यह कहा कि वे यह बात किसी को न बताए कि ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में पूछे गए दो सवाल गलत निकल गए थे। हालांकि उमेश भवशिंका ने खुद यह बात कभी नहीं कही, लेकिन नेपाल के धरान कस्बे से सीतामढ़ी पढ़ने आए संजय क्षेत्री का तो यह दावे के साथ कहना था कि उमेश ने सवाल ग़लत होने की बात पत्र जरिए बाद में स्टार चैनल को भी बता दी थी। इसलिए ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से अमिताभ बच्चन को हटा कर उनके स्थान पर इस कार्यक्रम की एंकरिंग का काम शाहरुख़ ख़ान को दे दिया गया। इसके बदले में स्टार चैनल ने उसको मुँह बंद रखने के एवज में अच्छे पैसे भी दिए। बहरहाल, लड़कों को जब किसी सवाल का जवाब नहीं आता तो वे उमेश के पास जा पहुंचते। वह सवाल के जवाब बताने के पैसे तो नहीं लेता, लेकिन जनरल नॉलेज की कोचिंग ज़रूर देता था। ऐसा नहीं है कि सीतामढ़ी में इतने लोग ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की तैयारी करने लगे थे कि उसके कोचिंग सेंटर खुल रहे हों। ऊपर दर्ज़ किया जा चुका है, जब से छोटा परदा इस छोटे कस्बे में घरू सदस्य की तरह हो गया था, लोगों में वही करने की होड़ मच जाती जैसा टीवी पर किसी को करते दिखाया गया हो। इस तरह से जनरल नॉलेज पर आधारित क्विज़ कार्यक्रम लोगों को बड़ा भाया। सीतामढ़ी ही नहीं, उससे सटे नेपाल के शहरों जनकपुर, जलेश्वर और गौर बाज़ार आदि में भी अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल खुल गए थे। स्कूलों में आपस में इस बात की होड़ लगी रहती कि वे कैसे अपने स्कूल को बेहतर साबित करें, ताकि बिहार-नेपाल के ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे उसके स्कूल में पढ़ने आएँ। ऐसे में इस तरह के क्विज़ कार्यक्रम काफी लोकप्रिय होने लगे। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ की तर्ज़ पर इस तरह आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों के नेपाल में नाम इस तरह होते थे- ‘कौन बनेगा अंचलपति’। सीतामढ़ी में भी एक बार ‘कौन बनेगा जिलापति’ क्विज़ कार्यक्रम आयोजित हुआ। उसमें इनाम राशि एक लाख रखी गई। पुरस्कार राशि सेठ गेंदामल बाजोरिया की ओर से रखी गई थी। यह बात अलग है कि सेंट कबीर स्कूल के जिस बच्चे प्रतीक को यह पुरस्कार मिला, पुरस्कार मिलने के दो दिन बाद ही कुँवर-बजरंगी गिरोह ने उसका अपहरण कर लिया। बच्चे को तो छुड़ा लिया गया। मगर कहते हैं कि पुरस्कार की राशि फिरौती में वे ले गए। इसके बाद से सीतामढ़ी में यह तय कर लिया गया कि पुरस्कार की राशि इतनी ही रखी जाए जिससे जान-माल का ख़तरा न रहे। पुरस्कार राशि कम हो जाने से इस तरह के क्विज़ कार्यक्रम उतने लोकप्रिय तो नहीं रह गए। लेकिन उनके आयोजन प्रखंडों, सब-डिविज़नल कस्बों तक में होने लगे। नामंकन के मौसम में बिहार-नेपाल के इस इलाक़े के स्कूल नामांकन के लिए इस तरह विज्ञापन निकालते- ‘सेंट लोयला स्कूल, अपने बच्चे के बेहतर भविष्य के लिए। हम नहीं हमारे आँकड़े बोलते हैं। दो सालों से हमारे स्कूल के छात्रों ने सीतामढ़ी-नेपाल के पाँच जिलों में सबसे अधिक क्विज़ कार्यक्रम जीते हैं। सामान्य ज्ञान हर प्रकार के कैरियर के लिए अति आवश्यक होता है। हमारे स्कूल में सामान्य ज्ञान की तैयारी अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखकर करवाई जाती है। जल्दी हम अपने बच्चों को अंतरराष्ट्रीय क्विज़ प्रतियोगिताओं में भेजने की योजना बना रहे हैं। हो सकता है उनमें आपका बच्चा भी हो। सीटें कम हैं, इसलिए नामांकन के लिए शीघ्र सम्पर्क करें। हमारे स्कूल में नामांकन प्रतियोगिता के आधार पर होता है। प्रतियोगिता का आवेदन प्रपत्र 100 रुपए में स्कूल से प्राप्त करें। जल्दी करें कहीं, आप सोचते ही न रह जाएँ और समय हाथ से निकल जाए।’ सीतामढ़ी में कई तरह के सामाजिक संगठन थे- मारवाड़ी युवक संध, सुहृदय संघ, लायंस क्लब, युवा समाज... कम से कम से इतने संघ, क्लब आदि तो थे ही जो साल में कम से कम एक बार अपने अपने स्थापना दिवस या सालाना दिवस के अवसर पर शहर के नौजवानों के लिए क्विज़ प्रतियोगिताएँ आयोजित करते थे। वे हर बार अलग-अलग विषयों पर होते, मसलन, क्रिकेट, सिनेमा, आदि-आदि। वैसे इन सामाजिक संगठनों द्वारा भी क्विज़ प्रतियोगिताओं का आयोजन भी हाल में ही शुरू हुआ था। पहले जब जीटीवी की अंत्याक्षरी की लोकप्रियता थी, तब ये संगठन साल में एक बार अंत्याक्षरी की प्रतियोगिताएँ आयोजित करवाया करते... धीरे-धीरे वहाँ के लड़के-लड़कियों में टेलिविज़न पर प्रसारित ‘इंडियन आइडल’ प्रतियोगिता की सफलता के बाद गायकी में करियर बनाने की धुन सवार होती जा रही थी। लड़कियों के पिता शादी-ब्याह के मौसम में जब कम्प्यूटर सेंटर में अपनी लड़की के बायोडाटा का प्रिंट लेने जाते, तो उसमें यह कॉलम ख़ास तौर पर डलवाते- सिंगिंग में करियर बनाने की इच्छुक। शहर में जगह-जगह संगीत विद्यालय खुल गए थे। लड़कियों ने अभी शास्त्रीय या सुगम संगीत यानी ग़ज़ल, दादरी, ठुमरी सीखने का प्रचलन था, तो परम्परा पहले से सम्भ्रांत परिवारों में चली आ रही थी। इधर भोजपुरी फ़िल्मों का दौर फिर से शुरू हो जाने से भोजपुरी गीत गाना सीखने का चलन भी शुरू हो गया था। पहले के मुक़ाबले यह फर्क ज़रूर आ गया कि अब शहर में ही क्या आसपास के कस्बों, सीमा पार नेपाल के शहर में सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन खूब खुल गए थे। अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों की बाढ़ आ गई थी। शहर ने बिजली-सड़क के मामले में भले आज़ादी के बाद अब तक कोई ख़ास विकास नहीं किया हो, लेकिन टेलिविज़न के दौर में उसका सास्कृतिक विकास खूब हो रहा था। बर्थ डे आदि मौको पर पार्टियों का चलन भी ख़ूब बढ़ रहा था। बिहार में अनेक क्षेत्रीय चैनल शुरू हो चुके थे और वे छोटे-छोटे शहरों-कस्बों में सम्भावित बाज़ार तलाशते घूम रहे थे। इसके अलावा, स्थानीय केबल चैनल भी थे। इन सब पर संगीत की प्रतोयोगिताओं का आयोजन तो जीटीवी के ‘सारेगामा’ के साथ ही शुरू हो चला था। लेकिन ‘इंडियन आइडल’ की राष्ट्रव्यापी सफलता के बाद बिहार में ‘भोली टीवी’ ने जब ‘बिहार आइडियल’ प्रतियोगिता के आयोजन की घोषणा की, उसके बाद तो जैसे सिंगिंग को करियर बनाने की लहर कम से कम सीतामढ़ी में तो चल ही पड़ी। डुमरा की एक लड़की का उसमें पहले राउंड में चयन भी हो गया। बी.ए. सेकेंड ईयर में पढ़नेवाली, स्कूल से लेकर अभी तक साल में कम से कम एक बार ऐनुअल डे पर ‘हम होंगे कामयाब’, ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ जैसे गीत गाकर तालियाँ और वाहवाही बटोरने वाली लिली ठाकुर ने रविशंकर ओझा से सुगम संगीत में गायन का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद आधुनिक गायन सीखने के लिए सुषमा संगीत विद्यालय में नाम लिखा लिया। सिर्फ़ सुगम संगीत के सहारे सिंगिंग करियर सम्भव नहीं था। उसके लिए आधुनिक फ़िल्मी गाना बहुत ज़रूरी होता। स्वीटी मैम यानी सुषमा संगीत विद्यालय की म्युज़िक टीचर ने भी उसे बताया कि आजकल फ़िल्मी गानों में ही करियर है। पहले तो सिर्फ सिनेमा में ही गाने से नाम होता था। आज कल तो टीवी के इतने चैनल हो गए है, संगीत के इतने कार्यक्रम, इतनी प्रतियोगिताएँ आयोजित होने लगी हैं कि कोई चाहे त घर बैठे-बैठे शोहरत और पैसा दोनों कमा सकता है। स्वीटी मैम ने डुमरा की लड़की सोना कुमारी का उदाहरण देते हुए बताया, “सोना का तो नाम सुना ही होगा। वही जिसका बिहार आइडल में सेलेक्शन हो गया था। उसे तो भोजपुरी फ़िल्म ‘पिरितिया हमार तोहार’ में दो गाना गाने का मौका भी मिल गया है।” पिरितिया हमार तोहार- सिनेमा का यह नाम सुनते ही लिली जैसे कहीं खो गई। “क्या सोच रही हो?” यह स्वीटी मैम की आवाज़ थी। “नहीं, मैं यह जानना चाहती थी कि कब से म्यूज़िक सीखने आऊँ?” “कल से ही आ जाओ।” स्वीटी मैम ने कहा। वह तो अरुण चौधरी के बारे में सोच रही थी। अरुण चौधरी राधाकृष्ण गोयनका कॉलेज में छात्र था और नेता भी। तीन साल में उसने बी.ए. की परीक्षा पास कर ली और छात्र तथा नेता दोनों के पदभार से मुक्त हो गया। बजाय किसी नौकरी के लिए प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने, किसी राजनेता के पीछे घूमने, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव बनने, छात्र नेता के रूप में अपने बनाए गए समर्कों को भुनाने के लिए इंश्योरेंस बनने या इसी तरह के किसी और काम के उसने सस्ता सीडी व्यापार शुरू किया। फ़िल्मों के ओरिजिनल सीडी-डीवीडी सैकड़ों रुपए में मिलते, वह नई से नई फ़िल्म की सीडी-डीवीडी बीस-पच्चीस रुपए के बीच उपलब्ध करवा दिया करता। क़ीमत इस बात पर निर्भर करती की उस फ़िल्म की डिमांड कितनी है। दस-दस रुपए में गानों की एमपीथ्री सीडी। एक से एक नई-पुरानी फ़िल्मों के गाने, ग़ज़ल, कव्वाली, अंग्रेज़ी पॉप। वह कहता दुनिया में कोई ऐसा गाना जिसे वह अपनी दस रुपल्ली सीडी में नहीं डाल सकता हो। दस रुपए में चालीस-पचास गानों की सीडी उपलब्ध करवाकर वह कहता एक सामाजिक आंदोलन चला रहा है। वैसे, यह काम वह खुलेआम नहीं करता। दिन के वक़्त में रोड, सीतामढ़ी में अपनी नई-नई दुकान मुन्ना इलेक्ट्रॉनिक्स में बैठता। शाम को दुकान का शटर बंद करते ही वह अपने सामाजिक आंदोलन के विस्तार के काम में जुट जाता। “ग़रीबी तक वह मनोरंजन पहुंचा रहा हूँ जो अब तक अमीरों का ही समझा जाता है। राजनीति में रहता तो क्या करता? जनता के नाम पर माल लूटता। यहाँ तो मैं बेहतरीन मनोरंजन की सामग्री उन तक सस्ता पहुंचा रहा हूँ। बताइए, एक विधायक-मंत्री से मेरा काम कम है क्या? नागेंद्र बाबू तीन टर्म एम.पी. रहे। बेचारे, अपने गाँव की खुरपैरिया सड़क को पक्का भी नहीं करवा पाए। किसी तरह गाँव के बीच से बहने वाली नदी के ऊपर एक कटही पुल बनवा गए और उसके ऊपर अपना नाम भी लिखवा गए। इसीलिए उनका नाम आज तक याद रह गया, वरना कौन याद करता उनको?” जब कोई उसे यह कह देता कि लेकिन आप तो अवैध काम कर रहे हैं! इस पर वह जवाब देता, “आप ही बताइए, जनता तक अगर सस्ता सामान पहुंचाना अपराध है, तो मैं मानता हूँ कि मैं अपराधी हूँ। अफसर लोग तो खुद हमसे सीडी-डीवीडी मँगवाते हैं। कहते हैं इतनी सस्ती और अच्छी सीडी तो दिल्ली बाज़ार में भी नहीं मिलती।” वैसे शहर में यह चर्चा सब करते कि वह सीतामढ़ी क्या, आसपास के शहरों, मुजफ्फर, मोतिहारी, बेतिया, रक्सौल तक के अफसरों तक अरुण चौधरी एक से एक देसी सीडी पहुंचाया करता था। देसी सीडी, नहीं समझे? महंत साह चौक पर होजियरी की दुकान चलानेवाले फेकू मंडल कहते हैं, “बुलू फिल्म समझते हैं न! वही, जिसमें गोरी-विदेशी मेमसाहबों के साथ खेलाखेली दिखाया जाता है, वह हुआ विदेशी सीडी। अफसर लोग तो बड़का- बड़का स्कूल कॉलेजमें पढ़े होते हैं न। सो, स्कूल के हॉस्टल से ही विदेशी सीडी देख-देखकर चट चुके होते हैं। उनको तो मनोरंजन के लिए हमेशा कुछ नया चाहिए। उसी से वे लोग खुश होते हैं, जो कुछ नए ढंग से मनोरंजन करवा सके। याद है, दो साल पहले एक नौजवान डी.एम. आया था, महेश प्रसाद। एकदम छोकरा। उसकी शादी भी नहीं हुई थी। उसके साथ हर समय अरुण चौधरी चिपका रहता। वह तो उसका एक साल में ही ट्रांसफर हो गया, नहीं तो अरुण चौधरी उस डी.एम. के सहारे कहाँ से कहाँ पहुंच जाता! उसका अर्दली रामनगीना मेरे ही गाँव का है। वह बताता कि दिन-रात जब वक़्त मिलता कलेक्तर साहब अपने हाथ-कम्प्यूटर पर सिनेमा लगते। एक बार उसने झाँककर देखा तो औरत-मर्द का खेला चल रहा था।” विदेशी सीडी देख-देखकर बोर हो चुके कलेक्टर साहेब को उसने देसी सीडी दिखाकर उसका ऐसा आदि बना दिया कि अरुण चौधरी के मुरीद हो गए। वह उनको नित नए-नए सीडी उपलब्ध करवाता। किसी में झारखंड के आदिवासी के साथ खेलाखेली होता, किसी में छत्तीसगढ़ की। अरुण तो जाने कहाँ से कॉलेज के सटाक जींस पहनकर जाने वाली लड़कियों के सीडी भी उपलब्ध करवा देता। मंडल जी धीरे-से फुसफुसाते हुए बताते, “यह बात बहुत कम लोग जानते हैं, कलेक्टर साहेब थोड़ा रंगीन तबीयत के थे। वह नेपाल से गोरी-चिट्टी लड़कियों को लाता और कलेक्टर साहेब के सामने पेश कर देता। एक बार उसने कलेक्टर साहेब के खेलाखेली की फिल्म अपने मोबाइल कैमरे पर उतार ली। बस वे तो उसकी उँगलियों के इशारे पर नाचने लगे।” वे बताते, “सच बताऊँ, किसी से कहिएगा नहीं। उसके पास तो हर बड़े अफसर की ऐसी ही फिल्म रहती है। इसीलिए तो कोई उसपर हाथ नहीं डालता। तीन साल पहले तक गोयनका कॉलेज में पढ़ने वाले, हम जैसे दुकानदारों से चंदा माँग-माँगकर खर्चा चलाने वाले, शहर में एक छोटी-सी इलेक्ट्रॉनिक दुकान चलाने वाले अरुण में ऐसा क्या है कि शहर के सारे बड़े अफसरों से उसके अंतरंग रिश्ते बन जाते।” उस दिन नेहरू भवन के बाहर सचमुच अरुण चौधरी ने आकर लिली को बधाई दी, “आप सचमुच आच्छा गाती हैं।” लिली ने नज़रें उठाकर उसकी ओर देखा, तो उसे उसकी आँखों में एक मासूमियत नज़र आई। उसने उसके बारे में जैसा सोच रखा था वैसा तो कुछ भी नहीं लगा। उसे लगा वह सचमुच उसकी प्रशंसा कर रहा है। उसने महसूस किया, अरुण चौधरी बहुत धीरे-धीरे और कम बोलता। “किसी भी तरह ज़रूरत हो तो मुझे याद कीजिएगा। वैसे सिंगिंग को आपको करियर बनाना चाहिए। नाम भी है, पैसा भी है।” लिली ने निगाहें उठाकर देखा और फिर नीची कर लीं। “9431099...”- उसने कुछ रुकते हुए कहा- “यह मेरा नम्बर है।” कहकर वह तेज़ी से अफसरों के साथ चायपान करने बढ़ गया। लिली ने अपना मोबाइल नम्बर तो अरुण चौधरी को नहीं दिया। मगर एक दो दिनों के बाद ही अपने एक छोटे काम के लिए पहली बार उसने अरुण चौधरी को फोन किया, “सॉरी, बी.ए. की परीक्षा है। मैं ठीक से क्लास नहीं कर पाई। गाना सीखने में लगे रह गई। इस बार फायनल है। आप हिस्ट्री और पोलिटिकल साइंस के गेस क्वेश्चन दिलवा देंगे?” “बस यही?” अरुण चौधरी ने कहा, “कल मिल जाएँगे। और कोई बात हो तो भी बेझिझक याद कर लीजिएगा।” थोड़ा रुककर उसने कहा, “एक बात कहें तो अदर वे तो नहीं लेंगी न?” “बोलिए न!” लिली ने कहा। “आपने मुझे अपना समझकर याद किया, मुझे अच्छा लगा।” कहकर उसने फोन रख दिया। इस तरह फोन करने से अरुण चौधरी के पास लिली का नम्बर आ गया। वह उसे फोन तो नहीं करता। मगर अक्सर एसएमएस करने लगा। कभी गुड मॉर्निंग, कभी गुड नाइट। फिर दोस्ती को लेकर तरह-तरह की सुक्तियाँ भेजने लगा, चुटकुले भेजने लगा। जिस दिन लिली परीक्षा का फार्म भरने जा रही थी, उस दिन उसने सवेरे-सवेरे एसएमएस में बेस्ट ऑफ लक के साथ यह भी सूचना भेजी कि उसकी परीक्षा अच्छी हो इसके लिए वह देवी मंदिर में पूजा करके आया है। आपका प्रसाद सुषमा संगीत विद्यालय के स्वीटी मैम के पास है। दोपहर में कॉलेज से लौटते हुए प्रसाद ज़रूर लेती जाइएगा। हमको अच्छा लगेगा। लिली भी उसके एसएमएस का जवाब देती। अक्सर संक्षिप्त। उसके हर बात के जवाब में थैंक यू। धीरे-धीरे वह भी एसएमएस में खुल गई। एक दिन उसने अरुण को एसएमएस को भेजा, “मुझे परीक्षा का बड़ा डर लग रहा है। जाने क्या होगा!” “आप अपनी तैयारी कीजिए। बाक़ी अरुण चौधरी पर छोड़ दीजिए।” अरुन के ऐसे जवाबों पर उसे बड़ी आश्वस्ति मिलती। उसे लगता कि कोई है जो उसकी सही प्रतिभा को पहचानकर उसकी ओर आकर्षित हो रहा है। कोई है जो उसके लिए चुटकी बजाते ही सबकुछ कर देता है। उसे अच्छा लगने लगा था। एक दिन जब माँ के स्कूल जाने और पिताजी के चौक पर चाय की दुकान में जाने के बाद वह छत पर बैठकर साइकोलॉजी के गेस क्वेश्चन रटने में लगी थी कि एसएमएस की घंटी बजी। अरुण का एसएमएस था, “अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपसे एक बात कहना चहता हूँ।” अरुण ने एसएमएस में यह सवाल पूछा था। “क्या?” जवाब में लिली ने भी सवाल किया। “आई लव यू!” लिली के बदन में जैसे इस एसएमएस से कँपकपी दौड़ गई। वह जानती थी घर में कोई नहीं है। पापा दो बजे खाना खाने आते। माँ और बहन स्कूल से शाम को। लेकिन उसने नीचे के दरवाज़े को जाकर देखा। वह बंद था। बार-बार उस एसएमएस को देखती और अपने में लाल होती जाती। उसने जब काफी देर तक अरुण को कोई जवाब नहीं दिया, तो उसका फोन आया। फोन की घंटी सुनते ही उसकी साँसें ऊपर-नीचे चलने लगतीं। उसने फोन में ‘हाँ’ का बटन दबा दिया। “नाराज़ तो नहीं हैं? अगर नाराज़ हैं तो माफ कर दीजिए।” अरुण पहली बार फोन करके उससे बातें कर रहा था। जवाब में उसे तेज़-तेज़ चलती साँसों की आवाज़ सुनाई देती रही। “आप सिर्फ़ इतना कह दीजिए कि आप नाराज़ नहीं हैं।” “नहीं!” काँपती आवाज़ से उसने इतना कहा और फोन रख दिया। फोन रखने के बाद भी काफी देर उसकी साँसें तेज़-तेज़ चलती रहीं। उसका बड़ा मन हो रहा था अभी अरुण चौधरी के पास चली जाए। उससे खूब सारी बातें करे। वह सारी बातें बताए जो उसने किसी को नहीं बताई थी। वह हो, अरुण हो और कोई न हो। लेकिन सीतामढ़ी में उस समय तो क्या, कभी भी अरुण चौधरी से मिलने का सवाल ही नहीं उठता था। भले शहर में अब लड़कियाँ दिल्ली-पटना की तरह जींस-टॉप पहनकर चलने लगी थीं। लेकिन किसी लड़के से मिलने के मामले में लड़कियों के लिए उस शहर में अब भी कोई जगह नहीं थी। उस शहर में तो कोई पार्क भी नहीं था। उसे याद आया इंटर की अपनी सहेली रजनी की बात। उसे बजरंग टॉकिज के मालिक के लड़के से प्यार हो गया था। दोनों अलग-अलग गाड़ी में बैठकर 60 किलोमीटर दूर मुजफ्फरपुर जाते। वहाँ जुब्बा साहनी पार्क था। जहाँ जाकर दोनों प्यार करते और जल्दी-जल्दी वापस भागते। अगर रजनी शाम से पहले अपने घर नहीं पहुंचती तो शक हो सकता था। सिनेमा हॉल तो बंद होते जा रहे थे। वैसे भी अरुण चौधरी के साथ सिनेमा देखने जाती,तो सारा शहर उसे भी जान जाता। यही कारण था कि उस शहर में अक्सर सहपाठियों में ही प्यार होता। नोट लेने-देने के बहाने उनमें बात भी हो जाती। आपस में मिलना-जुलना भी हो जाता। या तो प्रेमी-प्रेमिका एक ही सर के यहाँ ट्यूशन पढ़ने लगते। इससे कुछ देर साथ बैठन-देखना तो हो ही जाता। या लड़कों को अपने दोस्त की बहन से प्यार हो जाता। लेकिन लिली-अरुण का प्यार ऐसा था कि इसमें प्रेमियों के आपस में मिलने की कोई खास नहीं दिखाई दे रही थी। वे न तो सहपाठी थे। लिली का तो कोई बड़ा या छोटा भाई भी नहीं था कि अरुण की उससे किसी तरह की मित्रता की सम्भावना बन पाती। एक शायर का मिसरा है- ‘प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं...’ राह इस प्रेम कहानी में भी निकल आई। राह निकाली सुषमा संगीत विद्यालय ने। वहाँ सूफी संगीत गायन सिखाने का विशेष बैच प्रारम्भ हो गया। वह बैच भी ऐसा कि जिसमें सीखने वाली केवल लिली होती थी और सिखाने वाली स्वीटी मैम नहीं, अरुण चौधरी होता। दोपहर 1-3 का समय रखा गया था। अरुण वहाँ पहले से ही आ जाता। संगीत विद्यालय होने के कारण किसी को संदेह भी नहीं होता। दोनों प्रेमी पहले तो झिझकते रहे फिर एक दिन दोनों ने प्यार के आवेश में स्वीटी मैम को साक्षी बनाकर गंदर्व विवाह कर लिया। उस दिन से लिली बालों में छिपाकर सिंदूर भी लगाने लगी। बी.ए. पार्ट थ्री की परीक्षा हुई। चार महीने बाद जब रिजल्ट आया तो लिली को पहली बार फर्स्ट डिविजन आया। धीरे-धीरे उस छोटे शहर में इस बात को लेकर चर्चा होने लगी कि अरुण चौधरी का कोई चक्कर इसके साथ अवश्य है। उसी ने जगह-जगह जाकर पैरवी की, जिससे लिली को फर्स्ट डिविजन मिला। इधर अरुण चौधरी ने नए गायक-गायिकाओं के सीडी तैयार करने का काम भी शुरू कर दिया। छठ पर्व के अवसर पर उसने ‘छठ मइया की महिमा’ नामक सीडी तैयार की, जिसके ऊपर मुख्य गायिका ले रूप में मिस लिली का नाम और उसका फोटो दोनों थे। सीतामढ़ी-नेपाल के सीमावर्ती इलाक़ों में लिली की झनकदार आवाज़ में गाए गए छठ गीतों ने अच्छा व्यापार किया। उसके बाद कई सीडी मिस लिली के नाम से और निकलीं। सरकारी समारोहों में लिली को बुलाया जाने लगा। सास्कृतिक कार्यक्रमों में वह सुगम संगीत गाती। मिस लिली की माँ मारुति कार से स्कूल आने-जाने लगी। कई भोजपुरी में भी उसके गाने को लेकर चर्चा होने लगी। सब कहने लगे इतने छोटे शहर में रहकर लिली ने अच्छा मुकाम बनाया। ईटीवी के फोक जलवा कार्यक्रम के सेमी फायनल तक पहुंचने के बाद मिस लिली उत्तर बिहार और सीमावर्ती शहरों में एक जाना-पहचाना नाम हो गया। सबकी ज़ुबान पर उसका गाया गाना ‘नथुनी संग हिलेला जवानी’ चढ़ गया। इसके बाद तो अरुण के कहने पर उसने ख़ास-ख़ास मौक़े पर स्टेज शो भी देने शुरू कर दिए। उसके पिताजी ने अब चाय की दुकान पर बैठना छोड़ दिया था। राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखने तक का वक़्त वे नहीं निकाल पाते थे। अब वे जानकी मंदिर के पास अपनी नई खरीदी गई ज़मीन पर मकान बनबाने में लगे रहते। सीतामढ़ी में लोग कहते कि शारदा सिन्हा की तरह ही हमारे इलाक़े की इस लड़की ने नाम कमाया। अरुण अब उसके गायन-कार्यक्रमों के दौरान उसका सारा इंतजाम देखता। लिली के माँ-पिता को अरुण पसंद तो नहीं था, लेकिन वे देख रहे थे कि उसके ही बल से उसकी बेटी तरक्की कर रही है। इसीलिए उन्होंने इस रिश्ते से आँख मुँद रखी थीं। अरुण-लिली के गंधर्व विवाह के तो दो-तीन सल हो गए। अब लिली उसे सचमुच शादी करने को कहती, तो वह उसकी पलकों को चूमते हुए कहता- अभी तुम्हें करियर में काफी आगे जाना है। पहले की तरह सुषमा संगीत विद्यालय के निरापद एकांत का प्यार बाहर निकल आया था। अब तो अरुण-लिली अपने घर के निरापद एकांत का भी फायदा उठाने लगे। इस बीच शहर में जगह-जगह नेपाल के टीवी चैनल द्वारा ‘टैलेंट हंट’ आयोजित करवाए जाने को लेकर पोस्टर चिपकाए जाने लगे। उसमें पहला इनाम 50 लाख रुपए का था। कुछ दिनों बाद यह ख़बर फैली कि लिली का चयन उसमें भाग लेनेवालों में हो गया है। वह अपने पिताजी-माँ के साथ उसमें भाग लेने गई। लगभग सप्ताह भर बाद उसके माता-पिता अकेले लौटे। लौटकर उन्होंने नेपाल की राजधानी काठमांडू में अरुण चौधरी द्वारा अपहरण किए जाने सम्बंधी रपट थाने में दर्ज़ करवाई। उन्होंने जो रपट लिखवाई उसके अनुसार काठमांडू में उस चैनल द्वारा ऐसी कोई प्रतियोगिता ही नहीं आयोजित की गई थी जिसमें लिली के चयन और भाग लेने की बात की गई थी। वहाँ उनकी लड़की लिली के अलावा काफी अन्य लड़कियाँ भी आई थीं। उनमें से उनकी लड़की लिली तथा सीतामढ़ी, शिवहर, जनकपुर की पाँच और लड़कियों के साथ अरुण चौधरी चैनल के मालिकों से मिलकर शिकायत करने की बात कहकर चला गया। उसके बाद न वह लौटा, न उनकी लड़की। उन्होंने वहाँ पुलिस में शिकायत दर्ज़ करवानी चाही तो पुलिस वालों ने उनका सामान छीनकर भगा दिया। अरुण चौधरी के तार किसी माफिया से जुड़े लगते हैं। मेरी बेटी के पास दस हज़ार नकद थे। उसने क़रीब पचास हज़ार रुपए के ज़ेवरात भी पहन रखे थे। उस समय सीतामढ़ी-मुजफ्फरपुर में ‘दैनिक चकमक’ और ‘दैनिक बकबक’ में प्रतियोगिता चल रही थी। दोनों को इस ख़बर से तो जैसे प्रसार बढ़ाने का मसाला मिल गया। ‘दैनिक चकमक’ में अगले दिन यह ख़बर सुर्खियों में छपी- उभरती गायिका मिस लिली काठमांडू में गायब। अख़बारों में चर्चा शुरु होने से मामला गरमाने लगा। लेकिन अरुण चौधरी उसी तरह अपनी दुकान पर बैठा रहता। वह कहता कि वह तो काठमांडू गया ही नहीं था। एसडीओ साहबके बेटे को वह पटना स्कूल का इंट्रेंस दिलवाने गया था। इस बीच ईटीवी बिहार ने एक ब्रेकिंग न्यूज़ में बताया कि एक बहुत बड़े सेक्स रैकेट का काठमांडू में पर्दाफाश हुआ है। बिहार के सीमावर्ती इलाक़ों से लड़कियों को फ़ँसा-फँसाकर लाया जाता और यहाँ के फाइव स्टार होटलों में बेच दिया जाता। वहाँ से उनको यूरोप के सेक्स बाज़ार में भेज दिया जाता। नेपाल में ज़्यादातर बिहार से आए व्यापारी-अफसर मनोरंजन करने आते। उस ख़बर में यह भी बताया गया था कि ‘होटल मॉन्टी’ पर जब छापा पड़ा तब बिहार के कई बड़े-बड़े अधिकारी नवयुवतियों के साथ दुष्कर्म में लिप्त थे। बाद में अफसरों को छोड़ दिया गया। टीवी के काठमांडू रिपोर्टर ने यह बताया कि हो सकता है कि लिली भी इसी रैकेट में फँस गई हो। टीवी मीडिया पर इस ख़बर के आने के बाद सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने इस मामले को उठाया। विधायक महुआ देवी ने विधानसभा में भी गायिका मिस लिली के रहस्यमय तरीके से ग़ायब होने और अपराधियों को आला अधिकारियों द्वारा मिल रहे संरक्षण की बात उठा दी। जिला प्रशासन पर दबाव पड़ा तो उसने अरुण चौधरी को गिरफ़्तार कर लिया। सरकार ने एक आई.ए.एस. अधिकारी की अध्यक्षता में जाँच आयोग बिठाकर महीने भर के अंदर गायिका मिस लिली की रिपोर्ट देने के लिए कहा। आनन-फानन में सदर थाना के इंचार्ज रधुनाथ सिंह का तबादला भी कर दिया। जाँच आयोग की रपट से एक दूसरी ही कहानी ही निकल कर सामने आई। सैकड़ों लोगों की गवाही, अनेक साक्ष्यों के आधार पर उस ईमानदार तथा तत्पर समझे जाने वाले अफसर ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि वास्तव में मिस लिली के पास जो सम्पत्ति रातोंरात आती जा रही थी, वह उसकी गायन प्रतिभा के कारण नहीं आ रही थी। गायन तो वास्तव में एक सार्वजनिक छवि के लिए था। लिली वास्तव में एक बहुत बड़े कॉल गर्ल रैकेट की हिस्सा थी। सुरक्षा और गोपनीयता के लिहाज से वह ज़्यादातर वह नेपाल में धंधा करती। नेपाल में उसके सेक्स सीडी खूब बिकते थे। उस अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट के साथ कुछ सीडी भी लगाई थी। उसमें पुरुष की पहचान तो नहीं हो पाती, लेकिन लड़की तो निश्चित तौर पर लिली जैसी ही लगती थी। अपनी रिपोर्ट में उस युवा अधिकारी ने लिखा था कि उसकी समिति को इस बात का पक्का भरोसा है कि लिली नेपाल में है और बिहार सरकार को नेपाल सरकार से इस मामले में सहयोग करने के लिए कहना चाहिए। अरुण चौधरी को जाँच समिति ने इस मामले से बड़ी कर दिया। सीतामढ़ी के कई अफसरों ने उसके पक्ष में गवाही दी थी कि वह घटना वाले दिन तो उनके साथ था। इस कांड के बारे में इलाक़े के लोगों के भी अनेक संस्करण प्रचलित हुए। होजियरी की दुकान वाले फेकू मंडल के अनुसार- अरुण चौधरी ने लिली को पहले अपने प्रेम जाल में फँसाया। उसके बाद सुषमा संगीत विद्यालय चलाने वाली स्वीटी देवी के साथ मिलकर लिली के साथ अपने अंतरंग क्षणों की उसने सीडी बना ली। वह उसे संगीत के कार्यक्रम तो दिलवाता रहा। सीडी के द्वारा लिली को ब्लैकमेल करके वह उसे गाने के कार्यक्रमों के लिए नेपाल ले जाने लगा। वास्तव में वहाँ जे जाकर उसने उसे देह-व्यपार के बड़े खेल में धकेल दिया। काठमांडू के अंतरराष्ट्रीय ड्रग्स और सेक्स बाज़ार के बड़े खेल में। टीवी चैनल द्वारा प्रतियोगिता आयोजित किए जाने सम्बंधी पोस्टर अरुण चौधरी ने ही लगवाए थे। उसने लड़कियों के साथ-साथ वहाँ ले जाकर लिली ठाकुर को भी बेच दिया। उसके पहले से बनाए सीडी को नेपाल के बाज़ारों में बेचकर भी उसने खूब पैसे कमाए। नेपाल के रास्ते यहाँ की लड़कियों को यूरोप के बाज़ार में भेज दिया जाता। वहाँ उनकी बड़ी माँग थी। उसका तो कहना था कि हो सकता है कि लिली इस समय यूरोप के किसी बड़े देश में कॉलगर्ल हो। उनके माता-पिता बदनामी के डर से रातोंरात औने-पौने दामों में अपनी सम्पत्ति बेचकर दिल्ली चले गए। अरुण चौधरी कहता, “छिनाल थी लिली। मेरे परिवार की प्रतिष्ठा उसके कारण धूल में मिल गई। उसकी माँ ही असल में उससे धंधा करवाती थी। काठमांडू में बेटी को छोड़ आई। मेरे ऊपर इसीलिए सारा इलजाम लगाया, क्योंकि मैं उसे इस गंदगी से निकलना चाहता था। उसकी लड़की को एक सम्मानजनक ज़िंदगी दिलवाना चाहता था। दिल्ली में बड़ी कॉलगर्ल बन गई है लिली। उसने अपना नाम बदलकर रीना राजपाल रख लिया है। दिल्ली की पॉश कॉलोनी साकेत में पीवीआर के पास उसने एक आलीशान कोठी खरीदी ली है। एक-एक रात के चालीस-पचास हज़ार लेती है। वहाँ उसके माँ-बाप बैठकर उसकी कमाई पर ऐश कर रहे हैं।” अरुण चौधरी ने कुछ दिनों के बाद स्वयं से पाँच साल बड़ी स्वीटी मैम से विवाह कर लिया। खैर, कहानियाँ चाहे जितनी रही हों। काठमांडू जाने के बाद किसी ने सीतामढ़ी में मिस लिली को नहीं देखा। धीरे-धीरे उसकी सीडी को भी लोग भूलने लगे। सीतामढ़ी के लोग उस हैरतनाक घतना को भूल चुके हैं, जिसने उनकी शांति को भंग करके रख दिया था। अलबत्ता अख़बार वालों को जब स्थानीय प्रशासन को उसकी विफलता के लिए लोसना होता है तो वे कभी-कभार मिस लिली कांड को याद कर लेते हैं। एक बात और हुई है- सिंगिंग को करियर बनाने का चलन कम होता जा रहा है। सुषमा संगीत विद्यालय याद है आपको? वह बंद हो चुका है। उसकी जगह अरुण चौधरी-स्वीटी देवी फ़िल्म्स का दफ़्तर खुल गया है। उन्होंने स्थानीय भाषा मैथिली में फीचर फ़िल्म बनाने की घोषणा की है। सुना है हीरो-हीरोइन के लिए मुम्बई में ऑडिशन का काम चल रहा है।