मीरा / गोवर्धन यादव

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एक छोटे से रियासत की राजकुमारी थी मीरा, गाने का उसे बेहद शौक था,

एक दिन राणाजी ने उसका गाना सुना, गाना सुनते ही उन पर मदहोशी का आलम छाने लगा, उन्होनें अपने कारिन्दों के जरिये अपने महल में आने का निमंत्रण भिजवाया, एक दिन मीरा अपने साजिंदों के साथ महल में पधारीं, उनका वहाँ भरपूर स्वागत-सत्कार किया गया, सारी औपचारिकताओं के पूरा हो जाने के, राणा ने उन्हें कुछ सुनाने का आग्रह किया, साजिंदॊं ने अपने वाद्ध यंत्रों को साधा और एक स्वरलहरी वातायण को झंकृत करने लगी, मीरा ने आलाप ली और पूरा राजमहल थिरक उठा, राणा को लगा कि वे किसी तीसरी दुनियाँ में जा पहुँचे हैं,

वाद्ध कभी के शांत हो चुके थे, लेकिन राणा अभी तक उस स्वरों की रहस्यमयी दुनियाँ में ही विचर रहे थे, काफ़ी देर बाद उन्हें होश आया, होश में आते ही राणा ने अपने गले में पडे हीरा-मोती-पन्ना-पुखराज से जडा नौलखा हार मीरा कि ओर बढ़ा दिया, मीरा ने कोर्निश लेते हुये, हाथ बढ़ाकर उसे कुबूल किया और धन्यवाद दिया,

राणा कि मुलाकातें जब-तब मीरा से होती रही, अपने धडकते दिल पर काबु रखते हुये राणाजी ने मीरा के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा, मीरा ने देर न करते हुये, राणा के प्रस्ताव पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी,

दो संगीतप्रेमी अपनी ही बनाई हुई दुनिया में मस्त रहाने लगे, बडे-बडे राजे-रजवाडॊं से भी मीरा आमंत्रण आते, रणा इस पर एतराज करते, लेकिन मीरा को यह नागवार लगता, शादी से पहले उसने यह शर्त रख दी थी कि उसे बाहर के कार्यक्रमॊं में जाने की छूट रहेगी, जिसे राणा ने स्वीकार भी किया था,