मुंबई में प्यार की झप्पी और बाहों का घेरा / जयप्रकाश चौकसे

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मुंबई में प्यार की झप्पी और बाहों का घेरा
प्रकाशन तिथि :24 फरवरी 2017


आकाश में सितारे अलसभोर तक जगमगाते हैं और ठीक इसी तरह फिल्म उद्योग के सितारों की महफिल में भी रतजगा होता है। मुंबई तो वह महानगर माना जाता है, जो कभी सोता ही नहीं। समुद्र के किनारे बसे इस महानगर में मनुष्यों की लहरें सड़कों पर सारा समय प्रवाहित रहती हैं। पूनम की रात समुद्र की लहरों पर ज्वार आता है गोयाकि चांदनी उन्हें मदमस्त कर देती है। मुंबई में फाकाकशी करने वाले भी मदमस्त रहते हैं, क्योंकि भूख भी इस शहर को बड़े प्यार से पालती है। इसी शहर की तमाम पांच सितारा होटलों मे ग्राहकों द्वारा प्लेटों मे छूटा हुआ भोजन नष्ट कर दिया जाता है, जबकि उसे बांटा जाएं तो कोई भूखा नहीं सोएगा परंतु पांच सितारा होटलों का नियम है कि किसी भोजन को री-साइकल नहीं किया जाता और उसे नष्ट करना आवश्यक है। मध्यम दर्जे के भोजनालय भोजन को री-साइकल करते हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली का ताजा बजट भी 2004 के बजट का री-साइकल ही है। चतुर गृहणियां भी भोजन को री-साइकल करती हैं। मध्यम वर्ग की महिलाओं की किफायत भारतीय अर्थशास्त्र की रीढ़ है। रात की बची रोटियों का कुस्करा बड़ा स्वादिष्ट लगता है और सुबह का उत्तम नाश्ता बन जाता है। नोटबंदी की सबसे गहरी मार गृहणियों पर पड़ी, क्योंकि घर खर्च के लिए मिले रुपए में से उन्होंने अपनी बचत को आटे के डिब्बों में फिजूलखर्च पतियों की निगाह से बचाकर रखा था। अधिकतर नोट तो बदलने के लिए पतियों को देने पड़े। थोड़े से नोट, जो गृहणियां स्वयं भूल गई थीं कि कहां छिपाकर रखे हैं, वह करेंसी अब इल्लियां बन जाएगी। काला धन जस का तस है और अनावश्यक कवायद में सरकार को हजारों करोड़ों का खर्च करना पड़ा, जिसे कह सकते हैं कि 'खाया-पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना।' प्राय: ऐसी आवाजें भोजनालय में गूंजती रहती हैं।

प्राय: खिचड़ी बीमार को दी जाती है। मुंबई के बांद्रा में हिल रोड पर रेस्तरां होता था, जिसका नाम था 'गजीबो ओरिएंटल।' एक दौर में शराबनोशी करने वाले प्राय: देर रात गजीबो में खिचड़ी खाने आते थे। शराब के साथ 'चखना' के रूप में इतना खाया जाता है कि भूख ही मर जाती है परंतु इस दशा में खिचड़ी मुफीद होती है और स्वादिष्ट भी लगती है। खिचड़ी भारतीय भोजन की मौलिक रचना है, जो दाल-चावल से अधिक स्वादिष्ट लगती है। कुछ गृहणियां खिचड़ी में बाटियां भी डाल देती हैं ताकि खाने वाले के उदर में कुछ गेहूं भी जाए। आजकल अनेक राजनीतिक दल मिलकर खिचड़ी सरकार बनाते हैं, जिसका प्रारंभ मध्यप्रदेश में राजमाता सिंधिया के मार्गदर्शन में हुआ था। किसी एक दल को बहुमत नहीं मिलने पर खिचड़ी सरकार बनाई जाती है। मुंबई के कुछ रेस्तरां इसी खिचड़ी में गोश्त मिलाकर उसे 'खिचड़े' के नाम पर भी परोसते हैं। पारसी लोग दालगोश्त पकाते हैं। भाषा में मिलावट पुल्लिंग हो जाती है और विशुद्ध रूप स्त्रीलिंग बना रहता है। कम से कम एक क्षेत्र में तो नारी को शिखर पद दिया गया है।

अनुष्का शर्मा का बयान आया है कि वे भी देर रात खिचड़ी खाना पसंद करती हैं। उनकी निर्माण की गई 'एनएच टेन' महान फिल्म सिद्ध हुई और अब उनकी 'फिल्लौरी' प्रदर्शन के लिए तैयार है। जिस तरह उनके अंतरंग मित्र विराट कोहली क्रिकेट मैदान पर कीर्तिमान रचते जा रहे हैं उसी तरह अनुष्का शर्मा भी मनोरंजन जगत में घमासान मचाए रहती हैं। इस तरह की जोड़ियों को आसमान में बनीं जोड़ियां कहते हैं, जो धरती पर बिजली-सी कौंधती है। अनुष्का शर्मा को आदित्य चोपड़ा ने रनवीर सिंह के साथ प्रस्तुत किया था और दोनों ही अपना मकाम बनाने में सफल रहे हैं परंतु अनुष्का शर्मा अपने माध्यम को पूरी तरह समर्पित हैं, जबकि रनवीर सिंह स्वयं को माचो पुरुष सिद्ध करने में जुटे हैं। पौरुषीय दंभ से भयावह कोई दलदल नहीं होता।

अब खबर है कि कैटरीना कैफ भी फिल्म निर्माण प्रारंभ करने जा रही हैं परंतु उनका उद्‌देश्य मात्र इतना है कि वे अपनी छोटी बहनों को अभिनय के क्षेत्र में प्रस्तुत करना चाहती हैं। बहनापा फिल्म बनाने का कोई प्रशंसनीय कार्य नहीं है। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि सलमान खान अपनी फिल्म निर्माण संस्था में कैटरीना की बहनों को प्रस्तुत नहीं करेंगे। भारतीय फिल्म उद्योग में दुर्गा खोटे, लीला चिटणीस, जद्‌दबाई और शोभना समर्थ अपने दौर में फिल्म निर्माण कर चुकी हैं परंतु शोभना समर्थ का उद्‌देश्य मात्र अपनी सुपुत्रियों नूतन और तनूजा को अभिनय क्षेत्र में प्रस्तुत करना था। जद्‌दनबाई ने अपने बेटे अनवर खान को बतौर नायक लेकर बनाई गई फिल्मों के घाटे से उबरने के लिए अपनी सुपुत्री नरगिस को अभिनय क्षेत्र में प्रस्तुत किया।

अनुष्का शर्मा इन सबसे अलग केवल फिल्म माध्यम के प्रति प्रेम के कारण फिल्म निर्माण कर रही हैं। आश्चर्य नहीं होगा कि अगर तुनक मिजाज़ कंगना रनौट भी निर्माण क्षेत्र में कूदें। ज्ञातव्य है कि वे न्यूयॉर्क जाकर पटकथा लेखन एवं निर्देशन का अध्ययन कर चुकी हैं। इन सब बातों में यह तथ्य दु:खी करता है कि मुंबई महानगर को एक जीवंत पात्र की तरह प्रस्तुत नहीं किया गया है और अनुराग बसु की 'बॉम्बे वेलवेट' एक हादसा थी। यह काम राजकुमार हिरानी बखूबी कर सकते हैं। मुंबई की आबादी का पांचवां भाग अन्य शहरों से प्रतिदिन मुंबई आता है, जिसे फ्लोटिंग पॉपुलेशन कहते हैं गोयाकि इस महानगर की बाहों में लाखों लोग आते हैं और प्यार की झप्पी ले-देकर वापस लौट जाते हैं और कुछ लोग लतियाकर हताश लौटते हैं।