मुझको अपने गले लगा लो... / प्रमोद यादव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘पापाजी...ये इलेक्शन का तमाशा कब ख़तम होगा? बंटी ने थोड़े गुस्से भरे अंदाज से पूछा.

‘क्यों? इससे तुम्हें क्या तकलीफ है? मैंने भी उसी भाव से पूछा.

‘है....तभी तो आपसे पूछ रहा हूँ...कई दिन हो गए छुट्टियाँ लगे और आप हैं कि सुबह-शाम टी.वी. में सिर घुसाए, ऐसे मगन बैठे रहते हैं जैसे “ रामायण” देख रहे हों ..’

‘तो भला इससे तुम्हें क्या तकलीफ है? ‘

‘अरे पापा....सोचा था छुट्टियाँ लगते ही कार्टून चैनल्स देखूँगा....मूवीस देखूँगा..यो-यो हनीसिंघ के गाने सुनूंगा..लेकिन बीस दिन बीत गए ..टी.वी. पर आप कब्ज़ा जमाये बैठे हैं..क्या इस चुनावी मूवी में कोई इंटरवेल – दी एंड नहीं होता...? ताकि दो पल ही सही- मैं भी तो कुछ देख संकू. .. ‘

‘होता है बेटे..पर फिलहाल तू ये समझ कि अभी मैं “ ट्रेलर” ही देख रहा हूँ...”

‘इसका मतलब अभी इलेक्शन शुरू ही नहीं हुआ? ‘बंटी घबरा सा गया.’

‘ऐसा कब कहा.. “ ट्रेलर” से मेरा आशय है कि अभी तक पार्टियाँ उम्मीदवार ही खोज रहे कि कौन प्रत्याशी किस जगह किसके विरुद्ध फिट होगा..कौन दम-ख़म वाला और उपयुक्त होगा...किस सितारे को कौन सितारा तोड़ पायेगा .कौन किसे टक्कर देने में कामयाब होगा...जाति-समीकरण के तहत भी हर पार्टी तुष्टिकरण का गणित कर उचित उम्मीदवार ढूँढ़ रहे..कोई अमेठी पर चिंतित है तो कोई बनारस पर..कोई परेशान है रायबरेली के लिए तो कोई लखनऊ के लिए..’

‘लेकिन पापा..बहुत सारे नेता तो रोड-शो कर प्रचार कर रहें हैं..वोट मांग रहे हैं..’

‘तुम नहीं समझोगे बंटी..अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तारीख को चुनाव है..इसलिए कहीं कुछ चल रहा है तो कहीं कुछ....कुछ प्रमुख पार्टी तो अब तक अपना घोषणा-पत्र तक जारी नहीं कर सके हैं..’

‘घोषणा-पत्र क्या होता है पापा? ‘बंटी ने सवाल किया.

‘अरे भई..ये सब तुम अभी नहीं समझोगे.. ये नेताओं के झूठे वादों का पुलिंदा होता है जिसे वे जीतने के बाद निभाने का वादा करते हैं पर जीतते ही सब “गजनी” जैसे हो जाते हैं...यह एक सतत प्रक्रिया है..जिसे हर जीतने वाली पार्टी और सरकार निभाती है- पूरे वेग और मनोयोग से..’

‘पापा ये बातें मेरी समझ से परे है..इसे छोडिये और ये बताइये..दिन भर न्यूज चैनल्स बदल-बदल कर क्या देखते हैं? पिछले कई दिनों से आपके पीछे बैठे देख रहा हूँ ...सारे चैनल्स में एक सफ़ेद दाढ़ी वाले अंकल ही तो गरजते, मुट्ठी भांजते दिखते हैं...फिर बाक़ी में किसे खोजते हैं? ‘

‘तेरी मम्मी को..’ मेरे मुंह से निकल गया.

‘तो इसके लिए रिमोट की क्या जरुरत? इसे मुझे दीजिये....मम्मी तो बिना रिमोट के किचन में मिल जायेगी..’ और वह छिनने लगा रिमोट.

‘अरे ..मजाक कर रहा था..तेरी मम्मी को मैं तब भी बिना रिमोट के ही ढूँढ़ कर ( शादी कर ) लाया था..उस जमाने में इसका आविष्कार नहीं हुआ था..पर इतना तय है कि रिमोट का आविष्कार किसी न किसी महिला ने ही किया होगा..क्योंकि उंगली पर नचाने का इन्हें काफी तजुर्बा होता है..’

‘पापा..आप क्या अंड-बैंड बोलते हैं, मेरी तो समझ ही नहीं आता... एक बात बताइये.. पिछले कई दिनों से ये दाढ़ी वाले अंकल अपनी पार्टी में कई विरोधी पार्टी के दिग्गज लोगो को अपनी पार्टी में अंधाधुंध एडमिशन दे रहे हैं...छोटे-बड़े किसी से इन्हें परहेज नहीं..गुरेज नहीं.. गुजरात हो या बिहार..रामलाल हो या श्यामलाल.... एम.एल.ए. हो या एम.पी...सबका वे गले लगा स्वागत कर रहे..ये बताना क्या चाहते हैं? ‘

‘यही कि आनेवाला कल ( भविष्य ) उनका है.. और जिन्हें भी अपने भविष्य ( कल ) की चिता है, आकर चुनाव के पहले मिल लें..अन्यथा बाद में सबका भविष्य अंधकारमय कर देंगे .. ‘

‘तो पापा..आप भी इन्हें क्यों “ज्वाइन” नहीं कर लेते? ‘बंटी ने सलाह दिया.

‘मेरा तो भूत- भविष्य दोनों पहले से ही अंधकारमय है बेटा..मैं ज्वाइन करूँगा तो दुनिया की कोई ताकत दाढ़ी वाले को डूबने से नहीं बचा पाएगी....और किसी को डूबते मैं देख नहीं सकता..संवेदनशील आम आदमी जो ठहरा..’

‘पर पापा ऐसा भी तो हो सकता है कि ज्वाइन करते ही कहीं उनके साथ आपकी तक़दीर भी संवर जाए..’ बेटे ने सम्भावना जताई...’

मैं चुप रहा. बंटी को मेरी चुप्पी अच्छी न लगी. एक पल बाद कहा –

‘पापा...आप भी उनकी पार्टी में प्रवेश कर लें..हमारे शहर में परसों उनकी रैली है..मंच पर आपको गले लगा शामिल करेंगे तो सारे चैनल्स में लोग आपको देखेंगे..दोस्त-यारों पर बढ़िया इम्प्रेशन पड़ेगा..मम्मी भी कितनी खुश होगी आपको टी.वी. पर देखकर.. ‘

‘’वो तो ठीक है बेटा पर वे मुझे कतई शामिल नहीं करेंगे...मैं चाहे लाख कहूँ- ‘मुझको अपने गले लगा लो’ पर वे मानेंगे नहीं..’

‘क्यों पापा? ‘बंटी ने पूछा.

‘वो इसलिए बेटा..क्योंकि मैं किसी पार्टी में नहीं.. मेरी कोई पार्टी नहीं..केवल एक आम आदमी हूँ..और आम आदमी की जगह मंच पर नहीं, जमीन पर होती है.. जमीं से जुड़ा होता है आम आदमी...उसे वहीँ जीना और वहीँ मरना..उसकी राजनीति तो केवल घर-परिवार तक ही होता है.. उसे जमीं से ऊपर उठना (उड़ना) भी नहीं चाहिए..जिसने भी कोशिश की, उसने मुंह की खाई..और थप्पड़ भी खाए ..अब भला कोई सूजा मुंह लिए टी.वी. में दिखे तो किसे अच्छा लगेगा? ‘

‘तो फिर क्यों न्यूज चैनल्स में बेकार समय बरबाद कर रहे हैं पापा ...लाईये..रिमोट मुझे हैण्ड-ओवर कीजिये और चैन से मुझे “ छोटा भीम” देखने दीजिये..’ इतना कह उसने रिमोट छीन ली.

अब सोच रहा हूँ कि यह आम आदमी क्या करे? अपनी दाढ़ी नोचे कि सामने वाले की?