मुलगैन (कहानी) / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

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गामोॅ मेॅ गीत-नाद गावै रोॅ बीड़ा उठाय छेलै, धनिया रोॅ माय भूखनी। कैन्हे कि सब्भे गीतारीन जुटे छेलै, आपना में गलगुदुर करै छेलै मतरकि हिम्मत कोय नै जुटाबे पारै छेलै। बढ़ी-चढ़ी केॅ गीतनाद गावै लेॅ, सब्भै एक दूसरा रोॅ मुँह ताके छेलै। सब्भै मौगी छौड़ी टुकुर-टुकुर आँगना सेॅ दहजीजोॅ दिश ताकै छेलै। सएक ठो छौड़ी केॅ दौड़ैलके, बुढ़िया केॅ वोलावैल जाय, केॅ कहि की सब्भे तोरहै आशोॅ में छटपटाय रहिलोॅ छौन बुढ़िया कत्ते देर करलकै। सब्भै रोॅ आँख पथराय गेलोॅ, तोरोॅ बॉट जोहते-जोहते। अखनि जेटा काम छौन हौ काम अभि छोड़ी दोंहोॅ, वहाँ से अहियोॅ, तबे हौ काम निपटैयोॅ, येहे सब्भे एक स्वरोॅ सें बोललीन्ह है सुनि केॅ धनियां माय सन्न होय गेलै।

हम्में गलती करलियै, पैन्है हमरा वहीं पर जाय केॅ हाजरी दै देना ठीक छेलै। बुढ़िया हपसली-धपसली लठलैके, आरोॅ गामोॅ रोॅ डगर पकड़लकै, आरोॅ पहुँची गेलै गीतारनी रो झुण्डोॅ में, झुण्डो सें एक ठो नया कनियान छेलै, हौ बोललै, दादी हमरा सब्भै पर गोसाय गेलोॅ छौ, लाठी से मारिके, हमरा सब्भै केॅ चोरस करि देतै। है सुनि केॅ बूढ़ी बोलै छै, हमरा से कनियान गलती होय गेलै, आरोॅ हम्मी सब्भै केॅ मारवै है, कहाँ करोॅ निशाफ छेकै। है बात नया कनियानी नें नैहियर सें माय सें सीखी केॅ येहे बानगी लै के ऐलोॅ छौ।

धनियां रोॅ बेटा छोटोॅ छै, डेगा-डेगी दै छै। छौड़ा केॅ नया गोड़ होलोॅ छै। छौड़ा रोॅ माय गेलो छेलै, पुबारी बहियार महाशय नदी रोॅ किनारी में घास छीलैलेॅ, बैशाखो रोॅ दिन छेकै। धनियां कमायलेॅ गेलोॅ छै, पुनसिया बाज़ार हम्में छौड़ा माय केॅ कहिलीयै झव-झव घास छिली केॅ चल्लो अहियोॅ छोड़ा केॅ नया गोड़ होलोॅ छै, घरोॅ सेॅ हरदम बहारे हो जाय छै, तेल कुड़ लगाय केॅ खिलाय-पिलाय केॅ राखै छियै, हम्में तेॅ आशोॅ में अटकलोॅ छेलियै। आवेॅ ऐतै आवेॅ ऐतै, जेन्है केॅ ऐलै छौड़ा रो माय की, लाठी लेलियै, अटकलोॅ-भटकलोॅ झटकलोॅ आभिये रहिलोॅ छियै।

धूप ऐंगना में उहारी से आधोॅ परसी गेलोॅ छेलै, उहारी रोॅ छैया में बैठी गेलै, आरोॅ गीतोॅ रोॅ सुरतान छेड़ी केॅ पसाही पसारी देलकै। आरोॅ सब्भै गीतारनी नें गीत गल्ला लोकी लेलकै, आरोॅ गावे लागलै। बूढ़ी बोलै छै, हे कनियान, हे बेटी, पहले पाँच ठो देवी देवता रो गीत गावै छिहौन। हे माय, हे दादी आबेॅ देवी देवता रोॅ पाँच गीत पूरी गेल्हों, आवेॅ सुर्रा गीत चललै दोहोॅ, आपन्है रोॅ गल्ला पर झटका दै-दै केॅ टटका गीत गावै छियौं, है बात सुनि केॅ बूढ़ी फूली के कुप्पा होय जाय छै। ग्रामीण देवी-देवता गीतोॅ रो इनका खान छेलै। जबेॅ गावेॅ लागै छेले ते सूद बुद्ध खोय जाय छेले। गीतोॅ रोॅ धारोॅ में डूबी जाय छेलै। है गामोॅ से पकिया गीतारिन छेलै, पुरानोॅ आरोॅ नया गीतोॅ केॅ जोड़ै रोॅ काम करै छेलै।

गीतारिनी सब्भै रोॅ बीचोॅ में आपनोॅ अनुभवोॅ रोॅ पोटली खोलै आरोॅ खंगालै पैंसठ वर्षों रोॅ उतारोॅ-चढ़ावोॅ सें बेटी, पतोहू, पोती, आरोॅ नतनी है सब्भै केॅ अवगत कराय छै। गामोॅ रोॅ बूढ़ी-पुरानी बोलै छै, छै तेॅ हिनी गरीब मतरकि झूठ-झाठ, नोन-तेल लगाय केॅ कमिर्या नै बोलै छै, है बात सब्भे लोग बोलै छै।

गामों में कोय पाठा कबूतर शीतला माय काली माय, तेवाड़ी बाबा, विशु राउत दानोॅ बाबा एवंम प्रकारोॅ रोॅ गोसांय-पितरोॅ रोॅ मनौती करै छै तेॅ बुढ़िया केॅ गीत नाद गावै लेॅ लागै छेलै। एक-एक दिनों में शीतला काली थानों में दो तीन आदमी पाठा दै छेलै तेॅ सब्भै में भूखली-प्यासली गीत गावै में भिड़ली रहि छेलै। गामोॅ रोॅ सब्भे गीतारिन है करै पर अअकलोॅ रहि छै। जबेॅ तक है नै एैतै, तब तक गीतोॅ रोॅ धार नै निकलै पारै छेलै। अंगिका में कहावत छै, "बिना गांगो रोॅ झूमर नै होवेॅ पारेॅ" ऐलै सिलेमा रोॅ धूनोॅ पर मौगी-छौड़ी गावै छै, थिरकै छै नाचै छै। सिलेमा रोॅ तर्जो पर गोड़-हांथ मुंह देह चमकाय छै, ओरोॅ हमरा आगू में ऐठी-ऐठी के इठलाय छै। है देखी केॅ हमरा बड़ी गुस्सा बरै छै। आवे हमरोॅ जमाना चलोॅ गेलै। नया कनियानी गामोॅ रोॅ छोड़ी सब्भे हँसी-ठिठोली, बतकटरी करेॅ लागै छै। आबेॅ जमाना बदलाय गेलै, नया-नया ढंगोॅ सेॅ गावेलेॅ चाहै छै, पढ़ली-लिखली छौड़ी सब्भे रोॅ बोली-चाली पहनाव-ओढ़ाव सें गामोॅ रोॅ रंग ढंग बदलोॅ जाय छै।

गामोॅ रोॅ कनियान सब्भे बोलै छै, हे दादी, आपनें है कैन्हे बोलै छोॅ। आपनें रोॅ गीतोॅ रोॅ भाव कभी नै कर्म बाला छै। आपने रोॅ गला गीत गावै रोॅ अलग ढंग छै। हौ भाव-भंगिमा कमै बाला नै छै। आपने रोॅ गीत मिट्टी से मिललोॅ छै। होकरा सें गामोॅ रोॅ सोंधी-सोंधी गंध आवै छै। आरोॅ देवी-देवता रोॅ गीत-नाद हमेशा बरकरार रहितै। है नैं छुटै वाला आरोॅ नै छूटै रोॅ कोय तूक छै। गामोॅ रोॅ महक जे दिन छूटी जैतै, हौ दिन गांव मृत होय जैतै। है लेलि आपनोॅ रोॅ भाव सब दिन बरकरार रहितै।

भूखनी रिक्शा पर चढ़ै सें हिचकिचाय छेलै कहियोॅ रिक्शा पर नै चढ़ै छेलै, मतरकि पोता रोॅ मन दबी गेलोॅ छेलै। होकरा डॉक्टर बाबू के यहाँ ले जाना ज़रूरी छेलै, बटना रोॅ माय नैहियर गेलोॅ छेलै। एक महीना पहिनै धनिया बिदागरी करायकेॅ गेलोॅ छेलै, ससुरार। है बीचोॅ में धनिया केॅ एक ठीकेदारे ने भागलपुर लेने गेलोॅ छेलै पन्द्रह दिनों वास्तें कमाय लेॅ लगैनें छेलै। धनियां भी घरो में नै छेलै। घरोॅ में हम्मी आरोॅ बटना छौड़ा छेलियै, अचताय-पचताय केॅ भूखनी पोता बटना केॅ साथोॅ में लै केॅ पुनसिया रिक्शा सें जाना छेलै। बटना रोॅ बगलोॅ में दादी लै केॅ बैठलोॅ छेलै। , गामोॅ रोॅ रिक्शा वाला लूटना छौड़ा छेलै जेवॅ डॉक्टर बाबू सूई देवै लागै तेॅ भूखनी आँख बंद करि केॅ पकड़नें छेलै। डाक्टर बाबू है देखी केॅ मुस्कुरैलै। है सब आदमी पुरानोॅ विचारोॅ रोॅ छेकै। आवे लकीर सेॅ फकीर बनला सें काम नै होवेॅ पारेॅ। पुरानोॅ विचारोॅ में धसलोॅ छै। आरोॅ कोय बात नै छै। बूड़ी आपनोॅ बेड़ा पार करि लेलकै।

दो घंटा रोॅ बाद लूटना वोलै छै, दादी आबे चलोॅ घर नै तेॅ दूसरोॅ रिक्शा वाला देखोॅ, कैन्हें कि हमरा कॉनमेंट वाला लड़का केॅ स्कूल पहुँचाय लेॅ लागतै। है लेली लूटना धड़फड़ाय रहिलोॅ छेलै। तबेॅ भूखनी पोता केॅ लैकेॅ रिक्शा पर लै केॅ बैठलै। रिक्शा वाला आधोॅ रास्ता ऐलो होतै कि एक ठो गामोॅ रोॅ तरफोॅ सें बैलगाड़ी आबी रहिलोॅ छेलै, एक सांढ़ बैलगाड़ी देखी केॅ ढ़कचै लागलै, बैलगाड़ी हरकी गेलै, आरोॅ रिक्शा में धक्का दै देलकै। रिक्शा उलटी गेलै। सड़कोॅ रोॅ बगलोॅ में एक बड़ोॅ टुकड़ा पत्थरोॅ रोॅ छेलै। मुँहे बाटे बूढ़ी पत्थरोॅ पर गिरी गेलै, बूढ़ी रोॅ अगला दाँत उपर वाला चारो टूटी गेलै। भलभल खून मुँहोॅ से बहे लागलै, बटना बूढ़ी पर गिरी गेलोॅ छेलै। उठाय-पुठाय केॅ घर लानलकै। तबेॅ बटना माय-बापोॅ के फोन करी देलकै चार घंटा रोॅ बाद आभी गेलै।

घर ऐलै कि गामोॅ रोॅ मरदाना जनानी बच्चा बुतरू नें यैगनोॅ भरी देलकै। सब्भै नै भगवानोॅ से प्रार्थना करेॅ लागले, बूढ़िया दरदो से बेचैन छेलै। जल्दी ठीक हो जाय, तबे डॉक्टरोॅ रोॅ पास लै गेलै, सुई दवा देलकै, सब्भै केॅ हूक डूकी गेलै, आवे ॅ विवाह शादी में आधू बढ़ी-चढ़ी केॅ गीत-नाद केन्हा केॅ गैतै, दाँते टूटी गेलै, आवाज केना केॅ सुरीली निकलतै। कोय बोलै छै, आवेॅ तेॅ चट लगन पट बीहा होबेॅ लागलै।

रधवा केॅ बड़ी चिंता होय गेलै, हमरा विवाह में बूढ़ी गीत-नाद आवे नै गावै पारतै। रधवा मनोॅ में पश्चाताप करै छै। दादी केॅ एक झपट देखै लेॅ गेलै। दादी केॅ देखी केॅ बड़ा मर्माहत होय गेलै। रधवामनोॅ में सोचै छै, दादी रोॅ दाँत बनबाय देबौ, मतरकि माय आरोॅ बहिनी नें, है सलाह नै दै छै। बूढ़ी बड़ी स्वाभिमानी छै, तोरा सें पैसा नै लेतौ, आरोॅ तोरा पैसा सें दाँत नै बनबैतोॅ। है लेली तों कथिलेॅ कहिवै। बात नै मानतौ तेॅ, तोहे उठल्लू होय जैबे। है लेली बूढ़ी रोॅ सामना में है बात नै खोललकै। चुपे चाप रहि गेलै।

भूखनी कबूतर पोसै छेलै। कबूतर आरोॅ बकरी राखै छेलै। कबूतरोॅ बच्चा, आरोॅ पाठा-पाठी, खस्सी बेची केॅ रुपया आपनोॅ पास राखै छेलै। कोय विशेष काम बेटा-पतोहू केॅ लागै छेलै तेॅ सौ पचास दै छेलै। मतरकि दो कुड़िया में पैसा राखे छेलै, एक कुड़िया में लोट मोड़ियाय के राखै छेलै, दूसरा में सिक्का राखै छेलै। हजार बाज़ार आपनोॅ पास हमेशा राखै छेलै।

बूढ़ी मनोॅ में सोचै छेलै, जबेॅ अब्बे-तब्बे होबे लागवै जबेॅ हमरा लागतै आबेॅ नै बचबै, तभिये है पैसा रोॅ बारे में पतोहू आरोॅ बेटा सें बोलबै। गामोॅ रोॅ लोग चंदा-चिट्ठा करि केॅ दांत बनवाय लेॅ चाहै छेलै। बूढ़ी रोॅ कानोॅ में है खबर जाय छै, तबेॅ बूढ़ी बोलै छै। है मगजमारी तोॅरा सब नै करोॅं। हम्में हौ पैसा नै छूभौन।

आय-काल गामोॅ में सधबा रोॅ बेटा मदना छौड़ा आई.ए. पास करि केॅ बेरोजगार छै। नया नेता बनलोॅ छै, खादी, कुर्ता पैजामा, चप्पल लगाय केॅ प्रखंड, जिला, नरेगा आरोॅ गामोॅ रोॅ कामोॅ में पैरबी पैगाम करै लेॅ भिड़लोॅ रहि छै। गरीब घरो में जन्म लेने छै, इमानदार बहुत छै, वृद्धापेंशन, इंदरा आवास अन्य कामोॅ में लोगोॅ रोॅ बहुत मदद करै छै, कोय आदमी सें घूस-घास ने लै, कमीशन लेना हराम समझै। छोड़ा रोॅ बाप राजमिस्त्राी छेकै।

बूढ़िया मदना केॅ कहि छै, रे पोता हमरा डॉक्टर बाबू कन लै, चलभैं, है पर मदना कहि छै, दादी अंगिका में कहावत छै "लंगड़ा रे घोड़ा पर चढभैं, एक टांग अलगे छौ" वहे बात छै हमरा साथोॅ में, तबे बूढ़िया साथोॅ में पतोहू केॅ लै लेलकै, आरोॅ साथोॅ में मदन चललै। डॉक्टरो ने दाँतो रोॅ नाप लै लेलकै आरोॅ दूसरोॅ दिन डॉक्टर बाबू ने बोलैलकै।

डॉक्टर बाबू ने दाँत फीट करि केॅ मुँहोॅ में लगाय देलकै। बूढ़ी बोलै छै, मुँहोॅ में ओझरोॅ नाकी लागै छै, डॉक्टर बाबू कहि छै कि पाँच सात दिनोॅ तक ऐन्हे लागतौं। तबे धीरे-धीरे आपने सेंट करि जैतै, बूढ़िया केॅ बोलाय केॅ लै गेलै, मंडप रोॅ गीत गावै लेॅ, एक ठो कनियानी कहि छै, हे दादी दाँत आवेॅ, कैन्है रोशनी में चमकै छौन। बूढ़ी बोलै छै गीत गावै लेली, हमरा सब्भे हुज्जत करै छेलै। टोका-टोकी करै छेलै, है चलते दाँत टूटी गेलोॅ, आवे सब्भे रोॅ नजर दाँतोॅ पर गड़ी जाय छौन, कनियान बोलै छै, कथिलेॅ टोकलियै। है पर बूढ़ी बोललै मतरकि भीतर से हमरा दुःख ने होवै छै। कहै वाली हँसे लागै छै। रधवा रोॅ तिलक रामनवमी दिन होय गेलै, बहुत दान दहेज देनै छेलै। आय रधवा रोॅ सगुन उठतै, भूखनी केॅ बोलाबैले भेजने छै। बूढ़िया आबै सेॅ अनाकानी करै छै, मतरकि ऐन्होॅ आदमी केॅ भेजने छेलै, साथै लेने ऐलकै। लाईट रोशनी में बूढ़ी रोॅ दॉत खूब चमकै छेलै। गीत गावै में, हेकरा पर सब्भै नें छीटाकशी करै छेलै। हिनका सब्भै रोॅ बात केॅ बूढ़ी बुझी रहिलोॅ छेलै, पाँच गीत देवी-देवता रोॅ गैलकै। हेकरा कन जत्ते ॅ सवासिन ऐलोॅ छै। सब्भै रोॅ पहनाब-ओढ़ाव चाल-ढ़ाल गामोॅ में केकरोॅ से नै मिलै छैं, सब्भे लागै छै शहरिया छोड़ी-मौगी रहै। केकरोॅ कोय लाज हान छेवेे नै करै। शरीरोॅ पर कपड़ा बढ़िया सें नै राखै छै। खाली ऐंगना घरोॅ में ऐठी-ऐठी केॅ बुलै छै। आरोॅ ही हाँ, हँसी मजाक करै छै। केकरोॅ लाज हान नै राखै छै। सब्भे लागै छै मुंबई सिलेमा रोॅ छोड़ी मौगी रहेॅ।

बरामदा में टी.वी., सी.डी दरवाजा पर डेग खाली देनें छै। आरोॅ बच्चा सें लैकेॅ छोड़ी सब्भे आगू में थिरकै छै, आरोॅ आपनोॅ गुमाड़ निकालै छै। हँसी दिलग्गी करै छै। भूखनी के साथोॅ में ऐगना में चार-पाँच ठो बूढ़ी औरत छै। वही सब ग्रामीण गीत गावै छै। सब्भे र झुकाव टी.वी, सी.डी के तरफ छै। है देखी केॅ भूखनी रोॅ गीत गावै रोॅ मन नै भावै छै। बूढ़ी बोलै छै, आवे जाय छिहौन। है पर रधवा माय बोलै छै, हे माय खाय लिहोॅ तबे जहियोॅ, है पर बोलै छै हमरोॅ मन दब छौन, येहै से चलोॅ ऐलिहोॅ, कहिलोॅ रहिलोॅ हे माय कल्होॅ अइहोॅ।

दूसरोॅ दिन बोलाबैलै गेलै मतरकि भूखनी नें माथा रोॅ दरद गच्छी लेलकै। आबे हम्में नै जाबै पारभौन, केन्हैं कि पूरे शरीरोॅ आरोॅ माथा में दरद उठी गेलोॅ छै। कल्हू से खैने नै छियै, है लेली नै जावे पार भौन। हेकरा कन के चाल ढाल तनियोॅ टा नै भावै छै, है लेली डेग नै उठै छेलै।

मड़बा दिन रधवा खुदे बोलावैले ऐलै, हाँक लगैलकै दादी झोॅलगा घाटोॅ पर बैठली छेलै, आरोॅ खॉसै छेलै, आय जाय ले लागतोॅन केन्है की मंडप पूजन बिद-बाद गीत-नाद भोजभात, सब्भै रोॅ वीडियोग्राफी होतै। है लेली हमरा साथोॅ चलोॅ, वी.डीयो काफी की होय छै, ग्राफी कहि छै, हेकरा में तोरोॅ फोटो आभी जैतौन, तवेॅ चलें बेटा। दो चार गीत नाद गैलके, बूढ़िया रोॅ आगू में सब्भे हँसी ठिठोली करै, कैमरा में चिपकै लेली बूढ़ी औकताय केॅ अकच होय गेलै, आरो बहाना बनाय केॅ चली देलकै, कुछ देरोॅ रोॅ बाद बोललै, हूनी चलोॅ गेलै, रधबा रोॅ माय खोजेॅ लागलै, तवे मालूम होलै कि चुपके चली देलकै, मूलगैन।